14/09/2025
कैलाशनाथ वांचू भारत के दसवें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) थे। उनका जन्म 1903 में हुआ और वे इलाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज से स्नातक (B.A.) की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय सिविल सेवा (ICS) में शामिल हुए। वांचू का नाम इसलिए विशेष रूप से चर्चा में आता है क्योंकि कहा जाता है कि उनके पास कानून की डिग्री (LLB) नहीं थी, इसके बावजूद वे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुँचे।
यह प्रश्न उठता है कि बिना LLB डिग्री के कोई व्यक्ति कैसे जज बन सकता है और क्या यह कानूनन सही था। दरअसल, स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में न्यायपालिका में नियुक्तियों के नियम आज जैसे सख्त नहीं थे। उस दौर में ICS अधिकारियों को न्यायिक कार्यों का प्रशिक्षण मिलता था और उन्हें विभिन्न न्यायिक पदों पर कार्य करने का अवसर भी दिया जाता था। वांचू ने भी अपने सेवाकाल में न्यायिक प्रशासन और न्यायिक दायित्व निभाए, जिससे वे अनुभव और योग्यता के आधार पर ऊँचे पदों के लिए उपयुक्त माने गए।
कैलाशनाथ वांचू को 1 अगस्त 1967 को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और उन्होंने 24 फरवरी 1968 तक इस पद पर कार्य किया। यद्यपि उनका कार्यकाल केवल लगभग सात महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने और न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने का प्रयास किया।
आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह स्थिति संभव नहीं है। भारतीय संविधान और “Judges (Qualifications, etc.) Act, 1959” के अनुसार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए विधि स्नातक होना तथा अधिवक्ता के रूप में निश्चित अनुभव होना अनिवार्य है। लेकिन जिस समय वांचू की नियुक्ति हुई, उस समय की कानूनी स्थिति अलग थी। इसलिए उनकी नियुक्ति पूरी तरह से उस समय के कानून और नियमों के अनुरूप थी।
इस प्रकार, कैलाशनाथ वांचू का उदाहरण भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का एक अनोखा अध्याय है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार बदलते समय और बदलते कानूनी ढांचे के साथ न्यायपालिका में नियुक्ति की प्रक्रिया भी सख्त और व्यवस्थित होती गई।