Pt. Ramesh Mishra

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16/09/2025
कैलाशनाथ वांचू भारत के दसवें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) थे। उनका जन्म 1903 में हुआ और वे इलाहाबाद के मुइर ...
14/09/2025

कैलाशनाथ वांचू भारत के दसवें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) थे। उनका जन्म 1903 में हुआ और वे इलाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज से स्नातक (B.A.) की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय सिविल सेवा (ICS) में शामिल हुए। वांचू का नाम इसलिए विशेष रूप से चर्चा में आता है क्योंकि कहा जाता है कि उनके पास कानून की डिग्री (LLB) नहीं थी, इसके बावजूद वे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुँचे।

यह प्रश्न उठता है कि बिना LLB डिग्री के कोई व्यक्ति कैसे जज बन सकता है और क्या यह कानूनन सही था। दरअसल, स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में न्यायपालिका में नियुक्तियों के नियम आज जैसे सख्त नहीं थे। उस दौर में ICS अधिकारियों को न्यायिक कार्यों का प्रशिक्षण मिलता था और उन्हें विभिन्न न्यायिक पदों पर कार्य करने का अवसर भी दिया जाता था। वांचू ने भी अपने सेवाकाल में न्यायिक प्रशासन और न्यायिक दायित्व निभाए, जिससे वे अनुभव और योग्यता के आधार पर ऊँचे पदों के लिए उपयुक्त माने गए।

कैलाशनाथ वांचू को 1 अगस्त 1967 को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और उन्होंने 24 फरवरी 1968 तक इस पद पर कार्य किया। यद्यपि उनका कार्यकाल केवल लगभग सात महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने और न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने का प्रयास किया।

आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह स्थिति संभव नहीं है। भारतीय संविधान और “Judges (Qualifications, etc.) Act, 1959” के अनुसार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए विधि स्नातक होना तथा अधिवक्ता के रूप में निश्चित अनुभव होना अनिवार्य है। लेकिन जिस समय वांचू की नियुक्ति हुई, उस समय की कानूनी स्थिति अलग थी। इसलिए उनकी नियुक्ति पूरी तरह से उस समय के कानून और नियमों के अनुरूप थी।

इस प्रकार, कैलाशनाथ वांचू का उदाहरण भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का एक अनोखा अध्याय है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार बदलते समय और बदलते कानूनी ढांचे के साथ न्यायपालिका में नियुक्ति की प्रक्रिया भी सख्त और व्यवस्थित होती गई।

कौन है सुशीला कार्की जो होंगी नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री?सुशीला कार्की नेपाल की एक जानी-मानी न्यायविद् हैं, जिन्होंने ...
12/09/2025

कौन है सुशीला कार्की जो होंगी नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री?

सुशीला कार्की नेपाल की एक जानी-मानी न्यायविद् हैं, जिन्होंने देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनकर इतिहास रचा। उनका जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के मोरंग जिले के बिराटनगर में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में पूरी करने के बाद उन्होंने महेन्द्र मोरंग कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और फिर वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उन्होंने त्रिभुवन विश्वविद्यालय से विधि की डिग्री भी हासिल की।

उन्होंने वकालत का कार्य 1979 में बिराटनगर से शुरू किया। धीरे-धीरे न्यायिक सेवाओं में कदम रखते हुए वे सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनीं। 11 जुलाई 2016 से 6 जून 2017 तक वे नेपाल सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रहीं। इस पद पर पहुँचने वाली वे पहली महिला थीं। उनके कार्यकाल में कई संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई हुई, जिनमें भ्रष्टाचार और पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति से जुड़े विवाद शामिल थे।

उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप और विवादों का भी सामना करना पड़ा। 2017 में उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, क्योंकि उन्होंने सरकार के कुछ निर्णयों को रद्द कर दिया था। हालांकि यह प्रयास सफल नहीं हुआ और उन्हें व्यापक जनसमर्थन भी मिला।

सुशीला कार्की केवल न्यायिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने साहित्य में भी योगदान दिया। उनकी आत्मकथा ‘न्याय’ और उपन्यास ‘कारा’ समाज और न्याय व्यवस्था से जुड़े उनके अनुभवों को सामने लाते हैं। विशेषकर ‘कारा’ उपन्यास उनके पञ्चायत काल में जेल जीवन के अनुभवों पर आधारित है।

हाल के दिनों में जब नेपाल में युवा पीढ़ी ने व्यापक आंदोलन खड़ा किया, तो अंतरिम प्रधानमंत्री के पद के लिए सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे आया। उन्हें एक ईमानदार, पारदर्शी और निष्पक्ष नेतृत्व के रूप में देखा जाता है। जनता को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में नेपाल को राजनीतिक स्थिरता और सुशासन की नई दिशा मिलेगी।

11/09/2025
10/09/2025

*अंबानी, ट्रम्प और मोदी सरकार: वंतारा प्रोजेक्ट की जांच के राजनीतिक निहितार्थ*

गुजरात के जामनगर की शांत ज़मीन पर फैला एक अनोखा संसार—वंतारा। मुकेश अंबानी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट किसी सपने से कम नहीं दिखता। हजारों एकड़ में फैले इस संरक्षण केंद्र में 38 देशों से दुर्लभ प्रजातियों के जानवर लाए गए हैं। सफेद शेर से लेकर जिराफ तक और दुर्लभ पक्षियों से लेकर कछुओं तक, यहाँ मानो पूरी दुनिया का जंगल बसाया गया है। दावा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी स्तर पर बनाया गया वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सेंटर है।

लेकिन इस चमक-दमक के बीच अब सवाल भी उठ रहे हैं। हाल ही में जब मुकेश अंबानी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की, तो दिल्ली की गलियारों में फुसफुसाहट शुरू हो गई। चर्चाएँ होने लगीं कि क्या यह मुलाकात केवल कारोबारी थी या इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा भी छिपी थी। कहा जाने लगा कि इस कड़ी में मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी शामिल हो सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जब यह बातें पहुँचीं, तो उन्होंने वंतारा प्रोजेक्ट की गहन जांच का आदेश दिया। अब यह जांच कई पहलुओं पर केंद्रित है—क्या जानवरों को लाने की प्रक्रिया कानूनी थी, क्या अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया गया, और क्या वाकई यह संरक्षण का प्रयास है या फिर व्यावसायिक महत्वाकांक्षा का हिस्सा। जांच का जिम्मा ऐसे अधिकारियों को सौंपा गया है जिनकी ईमानदारी पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता।

इस कदम ने बहस को और भी तेज़ कर दिया है। एक पक्ष मानता है कि यह जांच अंबानी को सख्त संदेश देने के लिए है, जबकि दूसरा पक्ष कहता है कि वंतारा पूरी तरह पारदर्शी है और यह भारत की शान बनने जा रहा है। पर्यावरणविदों की भी राय बंटी हुई है—कुछ इसे दुर्लभ प्रजातियों को बचाने की ऐतिहासिक पहल मानते हैं, तो कुछ सवाल करते हैं कि क्या इतने बड़े पैमाने पर जानवरों को विदेश से लाना वास्तव में संरक्षण कहलाएगा।

05/09/2025

ज़िंदगी जिनकी क़ैद घर से दफ़्तर में है,
उनकी दुनिया तो सिर्फ़ मेज़, कुर्सी और फ़ाइलों में है।
ख़्वाब आँखों में ही दम तोड़ देते हैं,
क्योंकि साँसें भी टाइम शीट की सिलाईयों में हैं।

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