21/03/2021
#चुआड़_विद्रोह_के_महानायक_क्रांतिवीर_शहीद_रघुनाथ_महतो_अमर_रहे!
जिन लोगों ने देश की गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए, अंग्रेजों के अत्याचार, शोषण तथा जुल्म के खिलाफ हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दी, उनमें अमर शहीद रघुनाथ महतो का नाम प्रमुखता से लिया जाता है l झारखंड के आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल, जमीन के बचाव तथा नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए 1769 में जो आन्दोलन आरम्भ किया उसे चुआड़ आंदोलन कहते हैं। चुआड़ आंदोलन देश में अंग्रेजों के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह था यह जो विभिन्न आदिवासी नेताओं के नेतृत्व में 1805 तक चला।
क्रांतिवीर रघुनाथ महतो का जन्म तत्कालीन जंगल महल वर्तमान सरायकेला-खरसावां जिला के नीमडीह प्रखंड के घुटियाडीह में 21 मार्च 1738 को एक किसान परिवार में हुआ था l उसकी माता करमी देवी तथा पिता काशीनाथ महतो थे l रघुनाथ महतो बचपन से ही देशभक्त व क्रांतिकारी स्वभाव के थे। बड़े बुजुर्ग उनके विद्रोही स्वाभाव का उदहारण देते हुए बताते हैं कि एक बार एक तहसीलदार रघुनाथ महतो के पिता से किसी बात को लेकर उलझ गया l रघुनाथ महतो को यह सहन नहीं हुआ l उन्होंने तहसीलदार को मारते-पीटते गांव के बाहर खदेड़ दिया l
1764 में बक्सर युद्ध की जीत के बाद अंगरेजों का मनोबल बढ़ गया। 1765 में शाह आलम द्वितीय से अंगरेजों को बंगाल, बिहार, ओड़िशा व छोटानागपुर की दीवानी मिल गयी। उसके बाद अंगरेजों ने किसानों से लगान वसूलना शुरू कर दिया। अंगरेजों ने चुआड़ की जमीन छीन कर जमींदारों के हाथों बेचना शुरू कर दिया। इन्हें शारीरिक यातना दी जाने लगी। अंग्रेजों का जल, जंगल एवं जमीन हड़पने के साथ-साथ अन्याय, अत्याचार एवं शोषण चरम पर पहुंच रहा था l अंग्रेजों की दमनकारी गतिविधियों से तंग आकर कुडमी व आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया। जब अंग्रेजों ने पूछा, ये लोग कौन हैं, तो उनके पिट्ठू जमींदारों ने घृणा और अवमानना की दृष्टि से उन्हें ‘चुआड़’ (बंगाली में एक गाली) कहकर संबोधित किया, तत्पश्चात उस विद्रोह का नाम ‘चुआड़ विद्रोह’ पड़ा।
रघुनाथ महतो ने 1769 में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन नीमडीह के मैदान में अंग्रेजों के दमन नीति के खिलाफ जनसभा बुलायी l यही स्थान रघुनाथपुर के नाम से जाना गया। अंग्रेजों को ललकारते हुए नारा दिया “अपना गांव