24/08/2025
🌸 मासिक धर्म : आयुर्वेद में ‘आरोग्य की खिड़की’
✍️ आयुर्वेदाचार्य एवं नाड़ी विशेषज्ञ – डॉ. भाग्यश्री गावंडे
स्त्री का शरीर प्रकृति की सबसे अद्भुत रचनाओं में से एक है। जीवन की निरंतरता स्त्री के गर्भाशय से जुड़ी है, और इसी गर्भाशय से जुड़ा है मासिक धर्म (Menstruation)।
आयुर्वेद ने मासिक धर्म को केवल रक्तस्राव की शारीरिक प्रक्रिया न मानकर “आरोग्य की खिड़की” कहा है। अर्थात्, स्त्री के संपूर्ण स्वास्थ्य का आईना है उसका मासिक धर्म।
✨ संतुलित मासिक धर्म = स्वस्थ महिला।
✨ असंतुलित मासिक धर्म = रोग की ओर बढ़ता कदम।
🌿 आयुर्वेद में मासिक धर्म की परिभाषा
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मासिक धर्म को ‘ऋतुचक्र’ (Ritu Chakra) कहा गया है।
यह चक्र लगभग 28–30 दिनों का होता है।
इसमें तीन मुख्य अवस्थाएँ बताई गई हैं:
ऋतु काल (Menstrual Phase) – रक्तस्राव का समय।
ऋतुकालोत्तर (Follicular Phase) – ओव्यूलेशन की तैयारी।
ऋतुर्वात (Luteal Phase) – गर्भधारण या पुनः मासिक धर्म की तैयारी।
आयुर्वेद के अनुसार, यदि यह चक्र नियमित, संतुलित और बिना तकलीफ के चलता है, तो स्त्री की प्रजनन शक्ति, मानसिक स्वास्थ्य और संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम माना जाता है।
🌸 क्यों कहा गया है मासिक धर्म को "आरोग्य की खिड़की"?
शरीर की आंतरिक स्थिति का संकेतक:
मासिक धर्म स्त्री के हार्मोन, रक्त, धातु और अग्नि की स्थिति को दर्शाता है।
हार्मोनल संतुलन का परिचायक:
यदि मासिक धर्म समय पर और सामान्य है, तो यह बताता है कि हार्मोन संतुलित हैं।
आगामी रोगों की चेतावनी:
यदि मासिक धर्म में अनियमितता, अधिक दर्द, अत्यधिक रक्तस्राव या रुकावट हो, तो यह शरीर में किसी रोग का संकेत हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य से सीधा संबंध:
स्त्रियों का भावनात्मक उतार-चढ़ाव भी मासिक धर्म के दौरान स्पष्ट दिखता है।
🌿 मासिक धर्म और त्रिदोष संबंध
आयुर्वेद में स्त्री के मासिक धर्म को त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से जोड़ा गया है।
वात दोष असंतुलन:
अनियमित पीरियड्स
अत्यधिक दर्द, ऐंठन
रक्त का कम प्रवाह
मानसिक चिड़चिड़ापन
पित्त दोष असंतुलन:
समय से पहले या बहुत जल्दी पीरियड आना
अधिक रक्तस्राव
जलन, गर्मी, गुस्सा बढ़ना
कफ दोष असंतुलन:
पीरियड्स का देर से आना
भारीपन, आलस्य, थकान
रक्त गाढ़ा होना या थक्के आना
👉 जब वात-पित्त-कफ संतुलित रहते हैं, तब मासिक धर्म भी सहज और स्वस्थ रहता है।
🌸 असंतुलित मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएँ
आधुनिक जीवनशैली, तनाव, गलत खानपान और दिनचर्या के कारण आजकल बहुत सी महिलाएँ मासिक धर्म की समस्याओं से जूझ रही हैं:
अनियमित पीरियड्स (Irregular Cycles)
अत्यधिक रक्तस्राव (Menorrhagia)
पीरियड न आना या बहुत देर से आना (Amenorrhea)
तीव्र दर्द (Dysmenorrhea)
बार-बार गर्भपात
हार्मोनल असंतुलन (PCOD, Thyroid)
तनाव, अवसाद और चिंता
👉 आयुर्वेद मानता है कि यदि मासिक धर्म की असंतुलित स्थिति को समय रहते संतुलित किया जाए, तो बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है।
🌿 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से मासिक धर्म संतुलन
आयुर्वेद में मासिक धर्म को संतुलित रखने के लिए मुख्यतः 3 आधार बताए गए हैं:
1. आहार (Diet)
संतुलित और सात्त्विक आहार लें।
लौह (Iron) और कैल्शियम युक्त भोजन करें।
अधिक मसालेदार, तैलीय और फास्ट फूड से बचें।
पीरियड्स के दौरान ताजे फल, सब्जियाँ और हल्का भोजन करें।
पर्याप्त पानी और हर्बल ड्रिंक (जैसे अदरक, जीरा, अजवाइन का काढ़ा) लें।
2. विहार (Lifestyle)
नियमित योग और प्राणायाम करें।
देर रात तक जागना और तनाव से बचें।
दिनचर्या और रात्रिचर्या का पालन करें।
अत्यधिक शारीरिक श्रम या कड़ी कसरत पीरियड्स में न करें।
पर्याप्त नींद लें।
3. औषधि (Herbs & Remedies)
आयुर्वेद में कई ऐसी औषधियाँ हैं जो मासिक धर्म को संतुलित रखने में सहायक हैं:
अशोक चूर्ण / अशोकघृत – अत्यधिक रक्तस्राव और गर्भाशय विकारों में उपयोगी।
शतावरी – हार्मोनल संतुलन और प्रजनन क्षमता में लाभकारी।
लोध्र – गर्भाशय की सूजन और रक्तस्राव में सहायक।
अश्वगंधा – तनाव और हार्मोनल असंतुलन को दूर करती है।
गुडुची – शरीर को रोग प्रतिरोधक बनाती है।
👉 इन औषधियों का सेवन केवल आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए।
🌸 मासिक धर्म और मानसिक स्वास्थ्य
आयुर्वेद के अनुसार, मासिक धर्म केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं बल्कि मानसिक शुद्धि और संतुलन का भी समय है।
पीरियड्स के दौरान स्त्री का मन अधिक संवेदनशील और भावुक हो जाता है।
यदि इस समय स्त्री को आराम, स्नेह और सकारात्मक वातावरण मिले तो मानसिक संतुलन उत्तम रहता है।
तनाव, क्रोध और चिंता सीधे तौर पर मासिक धर्म को प्रभावित करते हैं।
🌿 मासिक धर्म और प्रजनन क्षमता
👉 आयुर्वेद कहता है कि यदि मासिक धर्म संतुलित है तो स्त्री की प्रजनन शक्ति (Fertility) भी संतुलित रहती है।
👉 यदि मासिक धर्म अनियमित है तो गर्भधारण में कठिनाई आती है।
👉 इसलिए निःसंतानता (Infertility) के इलाज में सबसे पहला कदम मासिक धर्म को संतुलित करना है।
🌸 आधुनिक जीवनशैली और चुनौतियाँ
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में –
फास्ट फूड
तनाव
मोबाइल और लेट नाइट जागना
प्रदूषण
हार्मोन युक्त खाद्य पदार्थ
👉 ये सब स्त्रियों में मासिक धर्म की अनियमितता को बढ़ा रहे हैं।
आयुर्वेद मानता है कि यदि हम जीवनशैली को प्रकृति के अनुरूप बना लें तो मासिक धर्म स्वतः संतुलित हो जाएगा।
🌿 आयुर्वेदिक उपाय मासिक धर्म संतुलन के लिए
प्रतिदिन योगासन जैसे भद्रासन, पश्चिमोत्तानासन, सेतुबंधासन करें।
प्राणायाम – अनुलोम विलोम और कपालभाति।
तनाव प्रबंधन के लिए ध्यान और मंत्रजप करें।
पीरियड्स के दिनों में अधिक आराम और पौष्टिक आहार लें।
धूम्रपान, मद्यपान और जंक फूड से दूरी रखें।
आयुर्वेदिक काढ़े –
अदरक + गुड़ + जीरा का काढ़ा दर्द में आराम देता है।
शतावरी कल्प का सेवन हार्मोनल संतुलन में सहायक है।
🌸 निष्कर्ष
आयुर्वेद के अनुसार मासिक धर्म केवल स्त्री का शारीरिक धर्म नहीं, बल्कि संपूर्ण आरोग्य का दर्पण है।
यह स्त्री के शारीरिक, मानसिक और प्रजनन स्वास्थ्य का सबसे बड़ा संकेतक है।
✨ यदि मासिक धर्म संतुलित है तो महिला का स्वास्थ्य, सौंदर्य, ऊर्जा और मातृत्व क्षमता सभी संतुलित रहेंगे।
✨ यदि मासिक धर्म असंतुलित है तो यह भविष्य में कई रोगों का संकेत है।
👉 इसलिए हर महिला को अपने मासिक धर्म को गंभीरता से लेना चाहिए।
👉 आयुर्वेद के बताए आहार, विहार और औषधियों को अपनाकर हर महिला स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकती है।
✍️ लेखक
आयुर्वेदाचार्य एवं नाड़ी विशेषज्ञ – डॉ. भाग्यश्री गावंडे