
12/04/2024
भगवान शिव से जुड़े देश भर में ऐसे कई स्थान हैं जो भोलेनाथ के चमत्कारों के गवाह रहे हैं। ऐसी ही एक जगह है मणिमहेश। यह स्थान जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश से 90KM दूर है ,77 KM गाड़ी में हड़सर तक ओर हड़सर से आगे 13KM पैदल यात्रा करके इस स्थान पर पहुंचते है ।
कहते हैं भगवान शिव ने यहीं पर सदियों तक तपस्या की थी। इसके बाद से ये पहाड़ रहस्यमयी बन गया। स्थानीय लोग मानते हैं कि देवी पार्वती से शादी करने के बाद भगवान शिव ने मणिमहेश नाम के इस पहाड़ की रचना की थी। पहाड़ की चोटी पर एक शिवलिंग बना है। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां वास करने के लिए यह रूप धारण किया था। लोग आज भी इस शिवलिंग की पूजा करते हैं।ऐसा माना जाता है कि आज तक इस पहाड़ की ऊंचाई कोई नहीं नाप पाया। इस पहाड़ पर चढ़ना मुश्किल नहीं है लेकिन जो भी उपर गया वह वापस नहीं लौटा।स्थानीय लोग व बुजुर्ग कहते हैं कि भले ही एवरेस्ट पर लोग चढ़ गए हों लेकिन इस पहाड़ पर चढ़ना इतना आसान नहीं है। कहते हैं एक बार एक गद्दी इस पहाड़ पर चढ़ गयामगर चोटी पर पहुंचने से पहले ही ये पत्थर में बदल गया। इसके साथ जो भेड़ें थी वे भी पत्थर की बन गई। इसके कुछ मिलते जुलते पत्थर आज भी यहां पड़े हैं।एक और मान्यता ये भी है कि एक बार एक सांप ने इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की थी मगर वह भी पत्थर का बन गया था। इसके बाद किसी ने भी यहां चढ़ने की कोशिश तक नहीं की।हिमाचल के चंबा जिले में स्थित मणिमहेश की यात्रा जन्माष्टमी में शुरू होती है और राधाष्टमी केदिन खत्म होती है । इस पहाड़ के नीचे पवित्र मणिमहेश झील है। लोग यहीं से इस चोटी के दर्शन करते हैं।कहते हैं कि चोटी का उपरी हिस्सा हमेशा बादलों से ढका रहता है। सिर्फ वही लोग इस चोटी के दर्शन करते हैं जो सच्ची श्रद्घा से भगवान शिव को याद करते हैं। कई लोगों को एक साथ दर्शन करने पर ये चोटी दिखाई नहीं देती। मणिमहेश मंदिर के पुजारी का दर्जा हड़सर गांव के स्थानीय निवासियों को प्राप्त है ।