06/10/2024
#बूंदी_इतिहास:
#मां_के_दूध_की_शक्ति:--
कोटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के समय सुर्खियों रही पुरातत्व विभाग की छतरी सूरज छतरी का इतिहास और चौथ माता बूंदी का इतिहास❓
मेवाड़ के राणा सांगा तथा बूंदी के राजा नारायण दास के समय मेवाड़ एवं बूंदी के संबंध अत्यंत मधुर थे। मेवाड़ के कतिपय दरबारी बूंदी को अपमानित तथा पद दलित करने का अवसर खोजते रहते थे।
सांगा के पुत्र राणारतन सिंह तथा बूंदी के नारायण दास के पुत्र सूरजमल दोनों मौसेरे भाई तथा सगे साढू भी थे। राणा रतन सिंह के राज्य अभिषेक के साथ ही मेवाड़ीयो ने बूंदी के विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर दिए थे।
रतन सिंह के मन में इतना जहर भर दिया कि वह सूरजमल को षडयंत्र पूर्वक मारने की योजना बनाने लगा। रतन सिंह तथा सूरजमल का ससुराल अजमेर के पास श्रीनगर था। दोनों के घर में परमार वंश की सभी बहने थी।
एक बार राणा रतन सिंह के पत्नी ने राणा के सामने बूंदी के सूरजमल की निशानेबाजी तथा वीरता की भरपूर प्रशंसा की। पत्नी द्वारा अपने शत्रु सूरजमल की प्रशंसा सुनकर राणा का क्रोध आसमान पर पहुंच गया।
सूरजमल का वध करने हेतु राणा दलबल सहित वसंत उत्सव मनाने हेतु कपट पूर्वक मेहमान के रूप में बूंदी पहुंचा।
चारण साहित्य के अनुसार पूर्व काल में किसी दैविक शक्ति संपन्न सती ने श्राप दिया था जिसके अनुसार"यदि राणा तथा हाडा बसंत उत्सवएक साथ मनाएंगे तो दोनों में से एक या दोनों ही काल के ग्रास बनेंगे।"यह भविष्यवाणी अनेक बार सत्य प्रमाणित हुई है।
नारायण दास के पत्नी तथा सूरजमल की मां राठौड़ी राजमाता ने अपने बुद्धि कौशल के आधार पर अपने पुत्र को मेवाड़ीयो के षड्यंत्र के प्रति अनेक बार सचेत कर दिया था। काला सूरजमल वीर, शारीरिक शक्ति संपन्न, आजानू बाहू तथा सच्चा क्षत्रिय था।
सूरजमल को राठौड़ी मां ने बचपन में स्वयं का ही दूध पिलाया था। राठौड़ी धारू ने धाय से बच्चे को दूध पिलाने के लिए स्पष्ट मना कर रखा था।
एक बार रानी को स्नान करने में समय लग गया इस दौरान शिशु सूरजमल जोर जोर से रोने लगा, बच्चे को चुप कराने हेतु धाय ने बच्चे के मुंह में अपना आंचल दे दिया। स्नान के उपरांत रानी ने धाय को डांट पिलाई तथा बच्चे को उल्टा करके उसके पेट में से धाय द्वारा पिलाया गया
समस्त दूध बाहर निकाला
राणा रतन सिंह के सम्मान में बूंदी के सूरजमल द्वारा में परंपरा के अनुसार शिकार अभियान का आयोजन किया गया। इस अभियान में मेवाड़ राणा सहित लगभग 10 जागीरदार सम्मिलित थे जबकि हाडा सूरजमल माता की चेतावनी के बाद भी केवल एक साथी बांसी के जागीरदार सावत सिंह हाडा को लेकर गया था।
शिकार स्थल वर्तमान कोटा से पश्चिम दिशा में तथा बूंदी जिले के जाखमुंड व तुलसी गांव के पश्चिम में स्थित था। यहां उस समय घना जंगल हुआ करता था। पूर्व योजना के अनुसार सूरजमल को माला (गड्ढे) में उतारा गया। उसी गड्ढे में मेवाड़ का पूरणमल चौहान था जिसके पिता की हत्या नारायण दास ने चित्तौड़ में भरी सभा में की थी। संकेत पाते हैं अन्य दो मेवाड़ीयो ने तलवार के वार से सूरजमल के कपाल को काट दिया। अर्ध मृत सूरजमल ने पूरणमल को तो अपनीे भुजाओं में मसल कर मार डाला। अपने सिरके कटे हुए भाग को पुनः यथा स्थान स्थापित करके अपनी पगड़ी से बांधकर हाडा सूरजमल ने तीर द्वारा तीन अन्य मेवाड़ी यों को मार डाला। राणा रतन सिंह हाडा को मरा हुआ मानकर उसे देखने हेतु गड्ढे के पास आया। अर्ध मूर्छित हाडा ने अपने तीर द्वारा राणा का भी काम तमाम कर दिया। इस प्रकार राणा सहित 6 मेवाड़ी ओं को मारकर हाडा सूरजमल का स्वर्गवास हुआ।
इस ह्रदय विदारक घटना की प्रारंभिक सूचना लेकर तत्काल ही एक दूत बूंदी पहुंचा जिसने सूरजमल के मरने की खबर राठौड़ी माता को सुनाई। राजमाता राठौड़ी की आशंका सत्य हो गई। दूत ने केवल सूरजमल के मरने का ही समाचार दिया था। सूरजमल की परमार रानी सती होने की तैयारी करने लगी। राजमाता ने सती होने से स्पष्ट मना कर दिया तथा कहा की"जो वीर समर भूमि में अनेक वीरों को मार कर मरा हो तथा जिसके शरीर पर असंख्य घाव हो उसी पति के साथ सती होने पर पुण्य का लाभ मिलता है।"
कहा जाता है कि राजमाता राठौड़ी को इस समय अलौकिक प्रमाद हो गया था। उसके मुंह से निकला की "मेरा दूध इतना कमजोर नहीं हो सकता की मेरा पुत्र कायर के समान मर जाए।"वंश भास्कर के भाग पांच के अनुसार इसी समय राजमाता के स्तनों से दूध की तीव्र वेग युक्त धारा फूट पड़ी जो सामने स्थित महल की पाषाण भित्ति से टकराई जिसके कारण पाषाण पर घाव का निशान बन गया। यह स्थान बूंदी के गढ़ में वर्तमान में भी मौजूद है जहां पर नवरात्रा में अनेक हाडा परिवार इस स्थान की पूजा करते हैं।
वीभत्स घटना का पटाक्षेप होने के पश्चात दूसरे दूत ने बूंदी पहुंचकर समाचार दिया की हाडा सूरजमल जी राणा सहित 6 मेवाड़ी यों को मार कर स्वर्गवासी हुए हैं। इस खबर के पश्चात राजमाता ने पुत्रवधू को सती होने के लिए स्वीकृति तथा अपना आशीर्वाद दिया। शिकार स्थल पर वीभत्स दुर्घटना होने के पश्चात राणा रतन सिंह तथा अन्य मेवाड़ीयो का दाह संस्कार चंबल नदी के किनारे स्थित गोकर्णेश्वर तीर्थ पर किया गया। यह स्थान वर्तमान में कोटा के गढ़ के पश्चिम में बैराज के किनारे गोकर्णेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। शिवजी के मंदिर के सामने वर्तमान में भी राणा रतन सिंह के स्मारक के रूप में छतरी बनी हुई है। बूंदी के सूरजमल हाडा का स्मारक शिकार स्थल पर ही सूरज छतरी के रूप में वर्तमान में भी बना हुआ है।
राजमाता राठौड़ी वास्तविक वीर क्षत्राणी थी जिसे अपने दूध की शुद्धता, शक्ति तथा ओज के प्रति पूर्ण विश्वास था। परंपरा के अनुसार पुत्र वधू सती होने के पश्चात राजमाता राठौड़ी का अलौकिक एवं दैविक भाव अधिक प्रज्वलित होने लगा। वह अपने जीवन काल में ही भूत भविष्य के बारे में लोगों का मार्गदर्शन करने लगी। स्थानीय के किंवदंतियों के अनुसार राठौड़ी जी वर्तमान में बूंदी की चौथ के रूप में पूजी जाती है। यह स्थान बूंदी की बाणगंगा के पास स्थित छोटी पहाड़ी पर स्थित है। पूर्व समय में यहां एक चबूतरा होता था। कालांतर में बूंदी के पराक्रमी महाराव उम्मेद सिंह जी ने शिकारबुर्ज बनाने के साथ ही सती चौथ के लिए गुंबज वाला मंदिर बनवाया था जिसमें चौथ की मूर्ति के साथ गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी। वर्तमान में सती चौथ माता धाम पर शिखरबंध मंदिर बन गया है। बूंदी की चौथ की बूंदी जिले में ही नहीं अपितु अन्य जिलों के भक्तों तथा आस्तिको में भी बड़ी मान्यता है।
संकलनकर्ता