
07/10/2025
40 वर्षों के बाद बिहार में दो चरणों में चुनाव!
#क्या_बिहार वास्तव में चुनावी हिंसा के काले अध्याय को पीछे छोड़ चुका है।
#हिंसा_और_बूथ_कैप्चरिंग_का_दौर
1985 के चुनाव, हालांकि दो चरणों में हुए, लेकिन वे भी हिंसा से अछूते नहीं रहे। उस दौर में चुनावों का मतलब सत्ता का हिंसक हस्तांतरण माना जाता था, जिसमें मतदाताओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती होती थी। कांग्रेस उस समय एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति थी, लेकिन सामाजिक न्याय की राजनीति का उदय भी हो रहा था, जिसने आने वाले दशकों में बिहार की राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया।
#बिहार_2025_चुनाव_बदला_हुआ_परिदृश्य
40 वर्षों के बाद बिहार में दो चरणों में चुनाव कराना निस्संदेह एक सकारात्मक और प्रगतिशील कदम है। यह राज्य में बेहतर होती कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक दक्षता का प्रमाण है। यह इस बात का भी प्रतीक है कि बिहार की चुनावी संस्कृति परिपक्व हुई है और हिंसा की राजनीति हाशिये पर चली गई है।
हालांकि, यह निर्णय एक चुनौती भी है। प्रशासन और सुरक्षा बलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अति-आत्मविश्वास में न आएं और हर बूथ पर निष्पक्ष और भयमुक्त मतदान सुनिश्चित करें। राजनीतिक दलों को भी यह जिम्मेदारी समझनी होगी कि वे चुनावी प्रक्रिया की गरिमा बनाए रखें।
कुल मिलाकर, यह फैसला बिहार के लोकतंत्र के लिए एक मील का पत्थर है, जो अतीत की छाया से निकलकर एक अधिक स्थिर और शांतिपूर्ण भविष्य की ओर बढ़ने का संकेत देता है। 2025 का यह चुनाव न केवल राज्य की अगली सरकार तय करेगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि क्या बिहार वास्तव में चुनावी हिंसा के काले अध्याय को पीछे छोड़ चुका है।