08/12/2024
आज चंडीगढ़ सेक्टर 17 में संगठनों के द्वारा किया गया रोष प्रदर्शन जागो हिन्दुओं जागो के लगें नारे चंडीगढ़ बीजेपी के शीर्ष राजनीति के नेता संजय टंडन, सतिंदर सिंह आदि तमाम लोग हुऐ शामिल भारी संख्या में लोगों ने शांति पूर्वक अपना गुस्सा जाहिर किया बंगला देशी के खिलाफ l संजय टंडन ने तो बाम पंथी और कांग्रेस को भी कोसा l आइए सुनाते हैं आपको पूरी कहानी आखि़र क्या है कारण
बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी के बाद हिंदू अल्पसंख्यकों में आक्रोश बढ़ गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद से यहां हिंदू मंदिरों और पूजा स्थलों पर हिंसा बढ़ी है। भारत ने प्रतिक्रिया में अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं और बांग्लादेशी हिंदुओं से अपने अधिकारों के लिए लड़ने का संदेश दिया है।
बांग्लादेश के इस्लामवादी गढ़ बनने की आशंका
दो महीने पहले वॉयस ऑफ अमेरिका को दिए गए इंटरव्यू में यूनुस ने जिस 'रीसेट' का जिक्र किया था, वह भ्रष्टाचार से गिरी संस्थाओं की पवित्रता को बहाल करने तक ही सीमित हो सकता है, लेकिन शासन का समर्थन करने वाले अन्य लोगों के विचार स्पष्ट रूप से दूसरे हैं। अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो बांग्लादेश के इस्लामवादी गढ़ बनने की पूरी आशंका है, जिसके पूर्वी भारत के लिए भयावह परिणाम होंगे।
दूसरा, इस्लामवादियों के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के कारण बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति और भी अधिक खराब हो गई है। चूंकि हिंदू समुदाय, मोटे तौर पर, अवामी लीग का समर्थक था, इसलिए 5 अगस्त के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सबसे बुरा असर उन पर पड़ा। हालांकि, हिंदुओं के राजनीतिक नेतृत्व के उत्पीड़न के साथ-साथ 1.3 करोड़ हिंदू आबादी में असुरक्षा पैदा करने का एक टारगेटेड कदम भी उठाया गया।
अल्पसंख्यकों के साथ ही मंदिरों पर हमले
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, 4 से 20 अगस्त के बीच अल्पसंख्यकों पर हमलों की 2,010 घटनाएं हुईं। 22 अगस्त से 12 अक्टूबर के बीच 57 घटनाएं हुईं। हिंसा की पहली लहर से लगभग 1,705 परिवार और 50,000 लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा, 69 पूजा स्थलों (मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों) पर हमला किया गया, तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। इस साल बांग्लादेश में दुर्गा पूजा लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और भय के माहौल जीee के बीच आयोजित की गई।
अल्पसंख्यकों के साथ ही मंदिरों पर हमले
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, 4 से 20 अगस्त के बीच अल्पसंख्यकों पर हमलों की 2,010 घटनाएं हुईं। 22 अगस्त से 12 अक्टूबर के बीच 57 घटनाएं हुईं। हिंसा की पहली लहर से लगभग 1,705 परिवार और 50,000 लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा, 69 पूजा स्थलों (मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों) पर हमला किया गया, तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। इस साल बांग्लादेश में दुर्गा पूजा लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और भय के माहौल के बीच आयोजित की गई।
हालांकि, यह 1947 से ही बांग्लादेश से हिंदुओं के सांस्कृतिक प्रभाव को खत्म ककरनेरने के लिए इस्लामवादियों की तरफ से जानबूझकर किए गए एक कदम का भी परिणाम है। उदाहरण के लिए, 1971 में पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के बाद भारत आए शरणार्थियों में से लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और भय के माहौल के बीच आयोजित की गई।
हालांकि, यह 1947 से ही बांग्लादेश से हिंदुओं के सांस्कृतिक प्रभाव को खत्म करने के लिए इस्लामवादियों की तरफ से जानबूझकर किए गए एक कदम का भी परिणाम है। उदाहरण के लिए, 1971 में पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के बाद भारत आए शरणार्थियों में से अधिकांश हिंदू थे। उनमें से अधिकांश स्वतंत्र बांग्लादेशअधिकांश हिंदू थे। उनमें से अधिकांश स्वतंत्र बांग्लादेश वापस नहीं लौटे।
भारतीयों ने विरोध-प्रदर्शन से दिया संदेश
इस साल, उत्पीड़न के प्रति बांग्लादेशी हिंदुओं की प्रतिक्रिया में स्पष्ट बदलाव देखने को मिला। चिन्मय कृष्ण दास और इस्कॉन में उनके कई पूर्व सहयोगियों की तरफ से किए गए नेतृत्व के कारण, ढाका और चटगांव जैसे स्थानों पर हिंदुओं की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए।
भारत भागने की कोशिश करने के बजाय, नेतृत्व ने यह संदेश दिया कि बांग्लादेश भी उनका देश है और वे अपने अधिकारों के लिए खड़े होंगे और लड़ेंगे। इसने हिंदू समुदाय को उन लोगों के साथ सीधे संघर्ष में खड़ा कर दिया है जो हिंदू-मुक्त पूर्वी पाकिस्तान के मूल पाकिस्तानी डिजाइन को पूरा करना चाहते हैं।
अंत में, सत्ता परिवर्तन और हिंदुओं के उत्पीड़न के प्रति भारत की प्रतिक्रिया काफी अलग रही है।
साथ ही, भारत ने पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में हिंदुओं के पलायन को रोकने के लिए अपनी सीमाएं कमोबेश बंद कर दी हैं। साथ ही वीजा सिस्टम को सख्त कर दिया है। संदेश स्पष्ट है: भारत चाहता है कि बांग्लादेश के हिंदू अपने अधिकारों के लिए अंदर से लड़ें।
साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के कार्यभार संभालने के बाद, भारत को लोकतंत्र की बहाली की आड़ में अमेरिका में विदेश विभाग और खुफिया एजेंसियों पर दबाव डालना चाहिए कि वे उस गंदगी को साफ करें जो उसने फैलाई है। भारत को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह अपनी पूर्वी सीमाओं पर एक प्रतिगामी और शत्रुतापूर्ण इस्लामी शासन को बर्दाश्त नहीं कर सकता। सफाई कैसे होनी चाहिए, यह सार्वजनिक बहस का विषय नहीं होना चाहिए।
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सूचना: यह एक AI जनरेटेड video हैं सत्यता की पुष्टि अपने अस्तर पर जरूर करें, हम कोई जिम्मेदारी नहीं ले रहे है l
par atyachar me bagla desh ke khilaaf rosh pradarshan #अदानी