05/09/2025
संपादकीय :
शिक्षक दिवस पर गुरु-शिष्य परंपरा को निभाने का ले संकल्प
“अध्यापक एक ऐसा प्रज्वलित दीपक है जो स्वयं जलकर समूचे संसार को रोशनी देता है।” बचपन में पढ़ी यह पंक्तियाँ आज शिक्षक दिवस के अवसर पर अनायास ही स्मरण हो आईं। सचमुच, शिक्षक अपने जीवन की आहुति देकर शिष्य के भविष्य को प्रकाशित करता है।
परंतु बीते कुछ वर्षों में गुरु और शिष्य के संबंधों में बदलाव देखने को मिला है। कहीं छात्रों द्वारा शिक्षकों का अपमान, तो कहीं शिक्षकों द्वारा अपने उत्तरदायित्व से विमुख होने की घटनाएँ सामने आई हैं। इन घटनाओं ने उस पवित्र गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न खड़े किए हैं, जिस पर भारतीय संस्कृति सदियों से गर्व करती आई है।
हमारे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहाँ शिष्य ने अपने गुरु के प्रति अपार श्रद्धा और समर्पण दिखाया। एकलव्य इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसने गुरु की प्रतिमा को सामने रखकर शिक्षा ग्रहण की और गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा तक समर्पित कर दिया। यह घटना गुरु के प्रति आदर्श भक्ति और अनुशासन की मिसाल है।
आज का जमाना छद्म दुनिया यानी सोशल मीडिया का है । जहां पर गुरु और शिष्य दोनों एक साथ मौजूद होते हैं तो जाहिर सी बात है संबंध भी सोशल मीडिया वाले ही बनेंगे ।
आज आवश्यकता है कि शिक्षक और शिष्य दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी को समझें। शिक्षक केवल ज्ञान देने वाला नहीं, बल्कि मूल्य, संस्कार और चरित्र निर्माण करने वाला भी बने । वहीं, छात्र को भी गुरु के प्रति सम्मान और विश्वास बनाए रखना चाहिए। और इन सब की शुरुआत हमेशा अपने घर से ही होती है । परिजनों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को गुरु के प्रति आदर की शिक्षा दें ।
इस शिक्षक दिवस पर हमें संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं गुरु-शिष्य परंपरा की गरिमा को बनाए रखेंगे और दूसरों को भी इसके निर्वाह के लिए प्रेरित करेंगे। यही सच्ची गुरु-दक्षिणा होगी और यही हमारे समाज को उज्ज्वल दिशा देने का मार्ग बनेगा।