Dr Shikha's Natural life

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16/07/2025

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वात पित्त कफ के दोष तीनों को संतुलित करे इस आयुर्वेदिक उपाय से...अंत तक जरुर पढ़े

वात पित्त और कफ के दोष:-

पोस्ट को धयान से 2 बार पढ़े

शरीर 3 दोषों से भरा है
#वात(GAS) -लगभग 80 रोग
#पित्त(ACIDITY)- लगभग 40 रोग
#कफ(COUGH) -लगभग 28 रोग

यहां सिर्फ त्रिदोषो के मुख्य लक्षण बतये जायेगे और वह रोग घरेलू चिकित्सा से आसानी से ठीक होते है

सभी परहेज विधिवत रहेंगे जैसे बताती हूं

💙जिस इंसान की बड़ी आंत में कचड़ा होता है बीमार भी केवल वही होता है

💙एनीमा एक ऐसी पद्धति है जो बड़ी आंत को साफ करती है और किसी भी रोग को ठीक करती है

💚संसार के सभी रोगों का कारण इन तीन दोष के बिगड़ने से होता है

वात( ) अर्थात वायु:-💛

--शरीर मे वायु जहां भी रुककर टकराती है, दर्द पैदा करती है, दर्द हो तो समझ लो वायु रुकी है
--पेट दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, घुटनो का दर्द ,सीने का दर्द आदि
--डकार आना भी वायू दोष है
--चक्कर आना,घबराहट और हिचकी आना भी इसका लक्षण है

कारण:-
°°°°°°°°°°°
--गैस उत्तपन्न करने वाला भोजन जैसे कोई भी दाल आदि गैस और यूरिक एसिड बनाती ही है
--यूरिक एसिड जहां भी रुकता है उन हड्डियों का तरल कम होता जाता है हड्डियां घिसना शुरू हो जाती है ,उनमे आवाज आने लगती है, उसे डॉक्टर कहते है कि ग्रीस ख़त्म हो गई, या फिर स्लिप डिस्क या फिर स्पोंडलाइटिस, या फिर सर्वाइकल आदि
--प्रोटीन की आवश्यकता सिर्फ सेल्स की मरम्मत के लिए है जो अंकुरित अनाज और सूखे मेवे कर देते है
--मैदा औऱ बिना चोकर का आटा खांना
--बेसन की वस्तुओं का सेवन करना
--दूध और इससे बनी वस्तुओं का सेवन करना
-आंतो की कमजोरी इसका कारण व्यायाम न करना

निवारण:-
°°°°°°°°°°°
--अदरक का सेवन करें,यह वायु खत्म करता है, रक्त पतला करता है कफ भी बाहर निकालता है, सोंठ को लेकर रात में गुनगने पानी से आधा चम्मच खायेँ
--लहसुन किसी भी गैस को बाहर निकालता है,
यदि सीने में दर्द होने लगे तो तुरन्त 8-10 कली लहसुन खा ले, ब्लॉकेज में तुरंत आराम मिलता है
--लहसुन कफ के रोग और टीबी के रोग भी मारता है
--सर्दी में 2-2 कली सुबह शाम, और गर्मी में 1-1 कली सुबह शाम ले, और अकेला न खायेँ सब्जी या फिर जूस , चटनी आदि में कच्चा काटकर डालकर ही खायेँ
--मेथीदाना भी अदरक लहसुन की तरह ही कार्य करता है

प्राकृतिक उपचार:-
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गर्म ठंडे कपड़े से सिकाई करे, अब उस अंग को पहले छुएं यदि वो गर्म है तो ठंडे सिकाई करे और वह अंग अगर ठंडा है तो गर्म सिकाई करे औऱ अगर न गर्म है और न ठंडा तो गर्म ठंडी सिकाई करे एक मिनट गर्म एक मिनट ठंडा

कफ( ):-

--मुंह नाक से आने वाला बलगम इसका मुख्य लक्षण है
--सर्दी जुखाम खाँसी टीबी प्लूरिसी निमोनिया आदि इसके मुख्य लक्षण है
--सांस लेने में तकलीफ अस्थमा आदि या सीढी चढ़ने में हांफना

कारण:-
°°°°°°°°°°°
--तेल एव चिकनाई वाली वस्तुओं का अधिक सेवन
--दूध और इससे बना कोई भी पदार्थ
--ठंडा पानी औऱ फ्रिज की वस्तुये खांना
--धूल ,धुंए आदि में अधिक समय रहना
--धूप का सेवन न करना

निवारण:-
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--विटामिन C का सेवन करे यह कफ का दुश्मन है यह संडास के रास्ते कफ निकालता है, जैसे आवंला
--लहसुन, यह पसीने के रूप में कफ को गलाकर निकालता है
--Bp सामान्य हॉगा
--ब्लड सर्कुलेशन ठीक हॉगा
--नींद अच्छी आएगी
--अदरक भी सर्वश्रेष्ठ कफ नाशक है

प्राकृतिक उपचार
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--एक गिलास गुनगने पानी मे एक चम्मच नमक डालकर उससे गरारे करे
--गुनगने पानी मे पैर डालकर बैठे, 2 गिलास सादा।पानी पिये और सिरर पर ठंडा कपड़ा रखे, रोज 10 मिनट करे
--रोज 30-60 मिनट धूप ले

पित्त( ):-पेट के रोग

--वात दोष और कफ दोष में जितने भी रोग है उनको हटाकर शेष सभी रोग पित्त के रोग है, BP, शुगर, मोटापा, अर्थराइटिस, आदि
--शरीर मे कही भी जलन हो जैसे पेट मे जलन, मूत्र त्याग करने के बाद जलन ,मल त्याग करने में जलन, शरीर की त्वचा में कही भी जलन,
--खट्टी डकारें आना
--शरीर मे भारीपन रहना

कारण:-
°°°°°°°°°°
--गर्म मसाले, लाल मिर्च, नमक, चीनी, अचार
--चाय ,काफी,सिगरेट, तम्बाकू, शराब,
--मांस ,मछली ,अंडा
--दिनभर में सदैव पका भोजन करना
--क्रोध, चिंता, गुस्सा, तनाव
--दवाइयों का सेवन
--मल त्याग रोकना
--सभी 13 वेग को रोकना जैसे छींक, पाद, आदि

निवारण
°°°°°°°°°°
--फटे हुए दूध का पानी पिये, गर्म दूध में नीम्बू डालकर दूध को फाड़े, वह पानी छानकर पिए, पेट का सभी रोग में रामबाण है, सभी प्रकार का बुखार भी दूर करता है
--फलो व सब्जियों का रस, जैसे अनार का रस, लौकी का रस, पत्ता गोभी का रस आदि
--निम्बू पानी का सेवन

प्राकृतिक उपचार
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
--पेट को गीले कपड़े से ठंडक दे
--रीढ़ की हड्डी को ठंडक देना, लकवा इसी रीढ़ की हड्डी की गर्मी से होता है, गीले कपड़े से रीढ़ की हड्डी पर पट्टी रखें
--व्यायाम ,योग करे
--गहरी नींद ले

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14/02/2025

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                                                             सात धातुएं और उनके बढ़ने या घटने से होने वाले रोगहमारे शरीर ...
06/10/2024




सात धातुएं और उनके बढ़ने या घटने से होने वाले रोग
हमारे शरीर का निर्माण करने वाले तत्वों में धातुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। ये शरीर का पोषण और निर्माण करते हैं साथ ही शरीर की संरचना में सहायक होते हैं। इसलिए इन्हें “धातु” कहा जाता है। आयुर्वेद में सात प्रकार की धातुओं के बारे में बताया गया है और इन्हें एक निश्चित क्रम में रखा गया है।

हमारे शरीर की पूरी संरचना इन्हीं सातों धातुओं से मिलकर हुई है। इनमें से हर एक का अपना अलग ही महत्व है। तीनों दोषों की ही तरह इन सातों धातुओं का निर्माण भी पांच तत्वों (पंच महाभूत) से मिलकर होता है। हर एक धातु में किसी एक तत्व की अधिकता होती है।

Contents
1 सात धातुओं के नाम
2 धातुओं का निर्माण कैसे होता है
3 1- रस धातु
3.1 रस धातु के कार्य
3.2 रस धातु बढ़ने के लक्षण
3.3 रस धातु में कमी के लक्षण
3.4 रस धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
3.5 उपचार
4 2- रक्त धातु ( खून या ब्लड) :
4.1 रक्त धातु के कार्य :
4.2 रक्त धातु बढ़ने के लक्षण
4.3 रक्त धातु में कमी के लक्षण :
4.4 रक्त धातु के असतुलन से होने वाले रोग :
4.5 उपचार
5 3- मांस धातु
5.1 मांस धातु के कार्य
5.2 मांस धातु बढ़ने के लक्षण
5.3 मांस धातु की कमी के लक्षण
5.4 मांस धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
6 4- मेद धातु
6.1 मेद धातु के कार्य
6.2 मेद धातु के वृद्धि के लक्षण
6.3 मेद धातु में कमी के लक्षण
6.4 मेद धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
6.5 उपचार
7 5- अस्थि धातु
7.1 अस्थि धातु के बढ़ने के लक्षण और रोग
7.2 अस्थि धातु में कमी के लक्षण
7.3 उपचार
8 6- मज्जा धातु
8.1 मज्जा धातु के बढ़ने के लक्षण और रोग
8.2 मज्जा धातु में कमी के लक्षण
8.3 उपचार
9 7- शुक्र धातु
9.1 शुक्र धातु के कार्य
9.2 शुक्र धातु के बढ़ने के लक्षण
9.3 शुक्र धातु में कमी के लक्षण
9.4 शुक्र धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
9.5 उपचार
10 सातों धातुओं की वृद्धि और कमी :
सात धातुओं के नाम
1- रस : प्लाज्मा

2- रक्त : खून (ब्लड)

3- मांस : मांसपेशियां

4- मेद : वसा (फैट)

5- अस्थि : हड्डियाँ

6- मज्जा : बोनमैरो

7- शुक्र : प्रजनन संबंधी ऊतक (रिप्रोडक्टिव टिश्यू )

धातुओं का निर्माण कैसे होता है
हम जो भी खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए इन धातुओं में बदल जाती है। आपके द्वारा खाया गया खाना आगे जाकर दो भागों में बंट जाता है : सार और मल। सार का मतलब है भोजन से मिलने वाला पोषक तत्व और उर्जा, जिससे हमारा शरीर ठीक ढंग से काम कर सके। वहीं मल से तात्पर्य है कि भोजन को पचाने के बाद जो अपशिष्ट बनता है जिसका शरीर में कोई योगदान नहीं वो मल के रुप में शरीर से बाहर निकल जाता है। भोजन का यह सार वायु की मदद से खून में पहुँचता है और फिर खून के माध्यम से यह पूरे शरीर में फैलकर धातुओं को बनाता है।

ये सारी धातुएं एक क्रम में हैं और प्रत्येक धातु अग्नि द्वारा पचने के बाद अगली धातु में परिवर्तित हो जाती है। जैसे कि जो आप खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद सबसे पहले रस अर्थात प्लाज्मा में बदलता है। इसके बाद प्लाज्मा खून में और फिर खून से मांसपेशियां बनती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है। सबसे अंत में शुक्र अर्थात प्रजनन संबंधी ऊतक जैसे कि वीर्य, शुक्राणु आदि बनते हैं। इसलिए कहा जाता है कि शरीर में पाचक अग्नि का ठीक होना बहुत ही ज़रूरी है। इन सभी धातुओं के निर्माण में रस धातु (प्लाज्मा) ही मूलभूत तत्व है। आइये प्रत्येक धातु के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1- रस धातु
तीनों दोषों, सात धातुएं, पांच तत्व, शरीर, इन्द्रियां और मन के सारे कार्य इसी रस धातु से ही होते हैं। रस धातु का निर्माण पाचन तंत्र में होता है और फिर यह रस रक्त द्वारा पूरे शरीर में फ़ैल जाता है। दोषों में गड़बड़ी होने पर धातुओं के स्तर में भी बदलाव होने लगता है। दोष में असंतुलन धातु को प्रभावित करता है तो रोग की उत्पत्ति होती है। जिस धातु के दूषित होने से रोग की उत्पप्ति होती है वह रोग उसी धातु के नाम से जोड़कर बोला जाता है। जैसे रस धातु के दूषित होने से रसज रोग।

रस धातु के कार्य
इस रस का मुख्य काम तृप्ति करना है। यह संतुष्टि और प्रसन्नता प्रदान करता है और अपने से अगली धातु (रक्त) का पोषण करता है।

रस धातु बढ़ने के लक्षण
रस धातु की वृद्धि होने पर कफ प्रकोप के सामान लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे पाचन शक्ति की कमी, जी मिचलाना, ज्यादा लार बनना, उल्टी साँसों से जुड़े रोग और खांसी आदि।

रस धातु में कमी के लक्षण
रस धातु में बढ़ोतरी की ही तरह कमी होना भी सेहत के लिए हानिकारण है। इस एकै लक्षणों से पहचाना जा सकता है। मुंह सूखना, थकान, रूखापन, दिल में दर्द और धड़कन तेज होना, तेज साँसे चलना आदि रस धातु में कमी के लक्षण हैं।

रस धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
शरीर में रस धातु की वृद्धि से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। इनमें से प्रमुख समस्याएं निम्न हैं।

भूख ना लगना,
कुछ भी अच्छा ना लगना
मुंह का बुरा स्वाद
बुखार
बेहोशी
नपुंसकता
पाचन शक्ति में कमी
त्वचा पर झुर्रियां पड़ना
उपचार
रसज रोगों के इलाज के लिए रसायन और ताकत देने वाली औषधियों का उपयोग करना फायदेमंद माना जाता है।

2- रक्त धातु ( खून या ब्लड) :
रक्त धातु के कार्य :
रक्त हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसकी मदद से बाकी सभी अंगों को पोषण मिलता है। यह धातु रंग को निखारता है और बाकी इन्द्रियों से जो ज्ञान मिलता है वह भी रक्त के कारण ही संभव है। रक्त से आगे चलकर मांस धातु बनती है। रक्त में ही सभी धातुओं के पोषक तत्व मिले हुए होते हैं।

रक्त धातु बढ़ने के लक्षण
रक्त धातु में बढ़ोतरी होने पर त्वचा और आंखों में लालिमा दिखाई देती है।

रक्त धातु में कमी के लक्षण :
रक्त धातु में कमी होने पर रक्त वाहिकाएँ कमजोर हो जाती हैं। इसकी कमी होने पर त्वचा की चमक फीकी पड़ जाती है और त्वचा रूखी हो जाती है। रक्त धातु की कमी होने पर रोगी को अम्लीय और ठंडी चीजें ज्यादा अच्छी लगती हैं।

रक्त धातु के असतुलन से होने वाले रोग :
शरीर में रक्त धातु के असंतुलन से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं।

कुष्ठ रोग
ब्लड कैंसर
महिलाओं के जननांगो से रक्तस्राव
मुंह में छाले
लिंग का पकना
प्लीहा (स्प्लीन) के आकार में वृद्धि
पेट में गाँठ
काले तिल और मुंह पर झाइयाँ
दाद
सफेद दाग
पीलिया
जोड़ों का रोग
उपचार
रक्त धातु से होने वाले रोगों के लिए रक्त को शुद्ध करना, पोषण और विरेचन सबसे अच्छे उपाय है।

3- मांस धातु
मांस धातु के कार्य
मांस धातु का मुख्य कार्य है लेपन अर्थात हमारी मांसपेशियों का निर्माण। जैसे किसी मकान को बनाने में सीमेंट या मिट्टी से लेप किया जाता है वैसे ही शरीर के निर्माण में मांसपेशियों का लेपन होता है। मांसपेशियों से शरीर को शक्ति मिलती है। ये शरीर के पूरे ढांचे को सुरक्षा प्रदान करता है।

मांस धातु बढ़ने के लक्षण
शरीर में मांस धातु के बढ़ने से गर्दन, हिप्स, गालों, जांघों, टांगों, पेट, छाती आदि अंगों में मांस बढ़ने से मोटापा बढ़ जाता है। इससे शरीर में भारीपन आता है।

मांस ज्यादा बढ़ जाने पर घी, तेल, वसा और चिकनाई युक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा व्रत रहना, योग और एक्सरसाइज को अपनी आदतों को अपनी जीवनशैली में शामिल करें।

मांस धातु की कमी के लक्षण
मांस धातु की कमी से अंगों में दुबलापन, शरीर में रूखापन, शरीर में कुछ चुभने जैसा दर्द और रक्त वाहिकाओं के कमजोर होने जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं।

मांस धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
शरीर में मांस धातु के असंतुलन से निम्न समस्याएं होती हैं।

जांघों के मांस में वृद्धि
गले की ग्रंथियों के आकार में वृद्धि
जीभ, तलवे और गले में गांठे होना
4- मेद धातु
मेद धातु का तात्पर्य हमारे शरीर में मौजूद वसा (फैट) से है। वसा का हमारे शरीर में महत्वपूर्ण रोल है।

मेद धातु के कार्य
इस धातु का मुख्य काम शरीर में चिकनाहट और गर्मी लाना है। यह शरीर को शक्ति, सुरक्षा, दृढ़ता और स्थिरता देता है।

मेद धातु के वृद्धि के लक्षण
शरीर में मेद धातु बढ़ जाने से गले की ग्रंथियों में बढ़ोतरी, पेट का आकार बढ़ने जैसे लक्षण नज़र आते हैं। इसके अलावा थोड़ी सी मेहनत करने पर थक जाना, स्तनों और पेट का लटकना, शरीर से दुर्गंध आना मेद धातु के मुख्य लक्षण हैं।

मेद धातु में कमी के लक्षण
शरीर में मेद धातु की कमी होने पर भी कुछ लक्षण नजर आते हैं। आखें मुरझाना, बालों और कानों में रूखापन, पेट व शरीर के बाकी अंगों का पतला होना, प्लीहा में वृद्धि आदि मेद धातु की कमी के मुख्य लक्षण है। मेद धातु की कमी होने पर मांसाहारी रोगियों को वसायुक्त मांस खाने का मन करता है। ।

मेद धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
मेद धातु के बढ़ जाने से कई तरह के रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं।

हाथ-पैर में जलन
बालों का उलझना या जटाएं बन जाना
मुंह, गला और तलवे सूखना
आलस
बहुत अधिक प्यास लगना
ज्यादा पसीना निकलना
शरीर में जलन
शरीर सुन्न पड़ना
उपचार
मेद धातु बढ़ने का सीधा मतलब है शरीर का मोटापा बढ़ना। इसके लिए आपको अपनी जीवनशैली में सही बदलाव लाकर मोटापे को कम करने के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए व्रत रहें और योग करें। अगर मेद धातु की कमी हो गयी हो तो घी, दूध आदि वसायुक्त चीजों का सेवन करें।

5- अस्थि धातु
हमारे शरीर का ढांचा हड्डियों से ही निर्मित होता है। इसी के आधार पर शरीर व उसके अंगों के आकार का निर्धारण होता है और शरीर खड़ा रहता है।

अस्थि धातु के बढ़ने के लक्षण और रोग
शरीर में अस्थि धातु के बढ़ने से हड्डियों का आकार सामान्य से अधिक मोटा और बढ़ा हुआ होने लगता है। बालों और नाखूनों में तेजी से वृद्धि, दांतों का आकार सामान्य से ज्यादा होना, हड्डियों व दांतों में दर्द, दाढ़ी-मूंछ के रोग होना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं।

अस्थि धातु में कमी के लक्षण
शरीर में अस्थि धातु की कमी होने पर हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। हड्डियों और जोड़ों में दर्द, दांतों व नाखूनों का टूटना और रुखापन, बालों और दाढ़ी के बालों का झड़ना आदि अस्थि धातु में कमी के लक्षण हैं।

उपचार
अस्थि धातु बढ़ जाने पर तिक्त द्रव्यों से तैयार बस्ति देनी चाहिए। अस्थि धातु कमजोर होने पर कैल्शियम युक्त आहार, दूध, मट्ठा, पनीर, छाछ, ड्राई फ्रूट्स का सेवन करें। इसके अलावा हड्डियों में कमजोरी होने पर ताजे फल, हरी सब्जियां, चना आदि दालों का सेवन करें। रोजाना कुछ देर धूप में टहलना भी हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है। हड्डियों की मजबूती के लिए आप मुक्ताशुक्ति व शंखभस्म आदि भी ले सकते हैं।

6- मज्जा धातु
मज्जा धातु का मतलब शरीर में मौजूद बोनमैरो से है। शरीर में मौजूद हड्डियों के भीतर जो खाली जगह और छिद्र होते हैं उनमें बोनमैरो भरा हुआ रहता है। बोनमैरो हड्डियों के जोड़ों के बीच चिकनाई का काम करती है और उन्हें मजबूत बनाती है।

मज्जा धातु के बढ़ने के लक्षण और रोग
पूरे शरीर और खासतौर पर आंखों में भारीपन और हड्डियों के जोड़ों में बड़े बड़े फोड़े फुंसियाँ होना मज्जा धातु के बढ़ने के लक्षण हैं।

मज्जा धातु के बढ़ने से निम्नलिखित रोग हो सकते हैं।

बोन कैंसर
ब्लड कैंसर
उंगलियों के जोड़ों में दर्द और उनके अंदर फोड़े होना
चक्कर आना
बेहोशी
आंखों के आगे अँधेरा छा जाना
मज्जा धातु में कमी के लक्षण
मज्जा धातु की कमी से भी शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख समस्याएं निम्न हैं।

हड्डियों में खोखलापन
आस्टियोपीनिया
ऑस्टियोपोरोसिस
रुमेटाइड आर्थराइटिस
हड्डियों और जोड़ों का टूटना
चक्कर आना
आंखों के आगे अँधेरा छा जाना
शुक्र धातु की कमी
उपचार
शरीर में बोनमैरो की कमी होने पर मज्जायुक्त द्रव्य आहार का सेवन करना चाहिए।

7- शुक्र धातु
इसे सबसे अंतिम, शक्तिशाली और महत्वपूर्ण धातु माना गया है। इसका सीधा संबंध हमारे शरीर में मौजूद प्रजनन संबंधी टिश्यू से है। अर्थात वो सारी चीजें जो संतान पैदा करने में मदद करती हैं शुक्र धातु के अंतर्गत आती हैं।

शुक्र धातु के कार्य
शुक्र धातु का मुख्य काम संतान उत्पत्ति करना है। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, वीरता, निडरता, संभोग के समय वीर्य का निकलना आदि शुक्र धातु के कारण ही संचालित होती हैं।

शुक्र धातु के बढ़ने के लक्षण
शुक्र का अधिक मात्रा में स्राव, कामवासना बढ़ना और शुक्र मार्ग में पथरी होना शुक्र धातु के बढ़ने के लक्षण हैं।

शुक्र धातु में कमी के लक्षण
शरीर में शुक्र धातु की कमी होने से कई तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। शरीर में कमजोरी, मुंह सूखना, एनीमिया, थकान, नपुंसकता आदि शुक्र धातु की कमी के लक्षण हैं। इसके अलावा अंडकोष में तेज दर्द, लिंग में जलन होना भी शुक्र की कमी के लक्षण हैं।

शुक्र धातु के असंतुलन से होने वाले रोग
शरीर में शुक्र धातु के असंतुलन से निम्नलिखित समस्याएं होती हैं।

नपुंसकता
सेक्स की इच्छा में कमी
बीमार बच्चा पैदा होने की संभावना
नपुंसक बच्चे को जन्म देना
कम उम्र वाले बच्चे को जन्म देना
अपंग या विकृत बच्चे को जन्म देना
उपचार
शरीर में शुक्र ज्यादा होने पर उपवास, पूजा-पाठ और संतुलित आहार का सेवन करें। शुक्र धातु की कमी होने पर शुक्र बढ़ाने वाली चाजों और मधुर रस वाली शुक्र पुष्टिकर औषधियों का सेवन करें।

सातों धातुओं की वृद्धि और कमी :
इन सातों धातुओं की वृद्धि और कमी, पाचक अग्नि की स्थिति पर निर्भर करती है। 13 प्रकार की अग्नियों में सात धातु अग्नियाँ प्रमुख हैं। अगर ये सात धातु अग्नियाँ संतुलित अवस्था में है तो समझिये कि सातों धातुएं भी सम अवस्था में रहेंगी। यदि ये अग्नियाँ बढ़ी हुई हैं तो धातुओं की कमी होने लगेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि तीव्र होने की वजह से ये अग्नियाँ धातुओं का पाचन अधिक मात्रा में करेंगी। इसके विपरीत अगर ये धातु अग्नियाँ कमजोर हैं तो इनसे धातुओं का पाचन ठीक से नहीं हो पायेगा। इस वजह से धातुओं में बढ़ोतरी होने लगेगी।

किसी एक धातु में वृद्धि या कमी होने पर उसके आगे वाली धातु में भी वृद्धि या कमी के लक्षण दिखाई देने लगेंगे। इसलिए धातुओं को संतुलित अवस्था में रखने के लिए धातु अग्नियों का संतुलित अवस्था में होना बहुत ज़रूरी है।

15/09/2024



*सरकोपेनिया*
उम्र बढ़ने के परिणामस्वरूप, शरीर के कंकाल की मांसपेशियों की ताकत में गिरावट आती है।

यह एक डरावनी स्थिति है.

आइए सरकोपेनिया के प्रभाव को कम करने पर विचार करें:

1- जितना हो सके खड़े रहने की आदत डालनी चाहिए.

कम से कम बैठें.
यदि आप बैठ सकते हैं तो कम से कम लेटें।

2- अगर कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति अस्पताल में भर्ती है तो उसे ज्यादा आराम करने के लिए न कहें. लेटने और बिस्तर से न उठने की सलाह न दें।

एक सप्ताह तक लेटे रहने से मांसपेशियाँ की संख्या कम से कम 5% कम हो जाती है।

एक बूढ़ा आदमी अपनी मांसपेशियों का पुनर्निर्माण नहीं कर सकता, एक बार वे ख़त्म हो गईं तो ख़त्म हो गईं।

सामान्य तौर पर, कई वरिष्ठ नागरिक जो सहायक नियुक्त करते हैं, उनकी मांसपेशियां जल्दी ही कमजोर हो जाती हैं।

3- सरकोपेनिया ऑस्टियोपोरोसिस से भी ज्यादा खतरनाक है.

ऑस्टियोपोरोसिस में आपको केवल यह सावधान रहने की आवश्यकता है कि आप गिरें नहीं, जबकि सरकोपेनिया न केवल जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि अपर्याप्त मांसपेशी द्रव्यमान के कारण उच्च रक्त शर्करा का कारण भी बनता है।

4- मांसपेशी शोष में सबसे तेजी से पैरों की मांसपेशियों में हानि होती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जब कोई व्यक्ति बैठता है या लेटता है तो पैर हिलते नहीं हैं और पैर की मांसपेशियों की ताकत प्रभावित होती है।

आपको सरकोपेनिया से सावधान रहना होगा।

सीढ़ियाँ चढ़ना और उतरना, हल्की दौड़, साइकिल चलाना सभी बेहतरीन व्यायाम हैं और मांसपेशियों का निर्माण कर सकते हैं।

बुढ़ापे में जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिए, मानव मांसपेशियों की बर्बादी को रोकने के लिए जितना संभव हो सके अपने बुजुर्गों और प्रियजनों को भेजें।

*बुढ़ापे की शुरुआत पैरों से होती है!*

अपने पैरों को सक्रिय और मजबूत रखें। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारे पैर हमेशा सक्रिय और मजबूत रहने चाहिए।

यदि आप केवल दो सप्ताह तक अपने पैर नहीं हिलाते हैं, तो आपके पैर की वास्तविक ताकत 10 साल कम हो जाती है।

*नियमित व्यायाम करना और पैदल चलना बहुत जरूरी है*।

*पाद/पैर एक प्रकार का स्तंभ है*
जिस पर मानव शरीर का पूरा भार टिका होता है।

हर दिन पैदल चलना जरूरी है.

खास बात यह है कि इंसान की 50% हड्डियां और 50% मांसपेशियां पैरों में होती हैं।

*क्या आप प्रतिदिन पैदल चलते हैं*

मानव शरीर में सबसे बड़े और मजबूत जोड़ और हड्डियाँ भी पैरों में पाई जाती हैं।

मानव गतिविधि और ऊर्जा का 70% हिस्सा पैरों के माध्यम से होता है।

*पैर शरीर की गति का केंद्र है*।

मानव शरीर की 50% नसें और 50% रक्त वाहिकाएं दोनों पैरों में होती हैं और 50% रक्त इन्हीं में बहता है।

उम्र बढ़ने की शुरुआत पैरों से ऊपर की ओर होती है।

*सत्तर की उम्र के बाद भी पैरों का संभावित व्यायाम करना चाहिए*

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके पैरों को उचित व्यायाम मिल रहा है और आपके पैर की मांसपेशियां स्वस्थ हैं, हर दिन अंतराल पर कम से कम 30-40 मिनट टहलें।

इस महत्वपूर्ण लेख को अपने 40 साल से ऊपर के बुजुर्गों, दोस्तों और रिश्तेदारों को जरूर भेजें क्योंकि हम सभी दिन-ब-दिन बूढ़े होते जा रहे हैं।

शुभकामनाएँ

         मेरी पोस्ट उन तमाम लड़कियों के लिए है जिनको ये शिकायत है कि हमको ससुराल में बेटी नही समझा जाता।पहले ये जानना जरू...
21/08/2024







मेरी पोस्ट उन तमाम लड़कियों के लिए है जिनको ये शिकायत है कि हमको ससुराल में बेटी नही समझा जाता।
पहले ये जानना जरूरी है कि बेटी थी तब क्या रोल था आपका घर में..आप आराम से उठती थी देर तक सोती रहती थी,खाना चाय नाश्ता सब मम्मी बना देती थी बाकी काम मेड करती थी कभी कभार आप घर के काम मे हाथ बंटाती थी।
अब बताएं कि आप की मम्मी भी यदि यही सोचती की मैं भी ससुराल में बेटी की तरह रहूंगी तो क्या आपको ये आराम मिलता शायद नहीं,शादी से पहले आप मां बाप की जिम्मेदारी है इसलिए वो आपकी गलतियों को नज़र अंदाज़ करते है,शादी के बाद आपके ऊपर भी आपकी माँ की तरह जिम्मेदारी आती है तो आपको भी वो करना होगा जो माँ घर मे करती थी।हमने लोग अपनी शादी से पहले की ज़िंदगी खूब ऐश के साथ काटकर आते है अब जब हम पर जिम्मेदारी आयी तो घबराना क्यों,क्यों शिकायत करना ।

अब मुझे बताएं यदि आप पीहर आएं आपकी भाभी देर तक सोती रहे मम्मी रसोई में काम करें तो क्या आप उस भाभी की तारीफ करेंगी ??कभी नहीं आप मां से कहेंगी की आप क्यो रसोई में खटती है भाभी को करने दिया करो,कौन लड़की ऐसी है जो भाभी से ये कहे कि भाभी आप खूब आराम करो मम्मी सब कर लेगी??
अब एक बात जो वो कहती है कि हम सिर्फ सास ससुर पति और अपने बच्चों का करेंगे दूसरों का नही मतलब देवर ननद जेठ ...अब इसका मुझे जवाब दें कि आपके भाई की शादी पहले हो गयी और भाभी आ गयी वो सब का खाना बनाए और आपका नही तो क्या आप या आपके मां बाप को सहन होगा ,बिल्कुल नहीं...इसलिए यदि जो आप चाह रही है वो आपकी भाभी आपके साथ करे तो बुरा नही लगना चाहिए।आपको अपनी ननद उनके बच्चों का आना बुरा लगता है तो आप भी सोच लीजिये आप की भाभी भी आपके आने से खुश नही होगी।........ ...... ......... ...... ......... ...... ..... ..... .....
कभी सोचा है आपने अपनी मां को घर मे पीहर की तरह महसूस करवाया है??यदि नही तो आप कैसे उम्मीद करती है कि आपको महसूस हो। क्या माँ ने कभी ये शिकायत की कि मुझे जल्दी उठना पड़ता था,काम करना पड़ता था,शायद कभी नहीं वो तो सर दर्द होने पर भी आप लोगो के लिए खाना बनाती थी।
हर जगह का अपना महत्व है ।इसलिए दोनों को महत्व दीजिये।
जो लड़कियां समझती है वो तारीफ के काबिल हैं🙏

24/05/2024







*. लू लगना*

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है?
दिल्ली से आंध्रप्रदेश तक....सैकड़ो लोग लू लगने से मर रहे हैं।

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगो की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है?

👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है।
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👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है।

👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है।( बंद कर देता है )

👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है।

👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त मे उपस्थित प्रोटीन पकने लगता है ( जैसे उबलते पानी में अंडा पकता है )
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👉 स्नायु कड़क होने लगते है इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते हैं।

👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन ) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है।

👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक- एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है।

👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोडा थोडा पानी पीते रहना चाहिए, और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर ध्यान देना चाहिए।
Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव अगले 5 -7 दिनों मे एशिया के अधिकतर भूभाग को प्रभावित करेगा।

कृपया 12 से 3 के बीच ज्यादा से ज्यादा घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें।

तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा।

यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा।

(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है।)

कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें।

किसी भी अवस्था मे कम से कम 3 ली. पानी जरूर पियें।किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम 6 से 8 ली. पानी जरूर लें।

जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।

ठंडे पानी से नहाएं। मांस का प्रयोग छोड़ें या कम से कम करें।

फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें।

हीट वेव कोई मजाक नही है।

एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है।

शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है।

अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें।

जनहित मे इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें।.

            सुषुम्ना नाड़ी के भीतर भी तीन अत्यन्त सूक्ष्म धाराएँ प्रवाहित हैं। जिन्हें वज्रा, चित्रणी और ब्रह्म नाड़ी कह...
05/04/2024







सुषुम्ना नाड़ी के भीतर भी तीन अत्यन्त सूक्ष्म धाराएँ प्रवाहित हैं। जिन्हें वज्रा, चित्रणी और ब्रह्म नाड़ी कहते हैं। ब्रह्म नाड़ी सब नाड़ियों का मर्मस्थल केन्द्र एवं शक्ति स्रोत है। ब्रह्म नाड़ी ही मस्तिष्क के केन्द्र में ब्रह्मरन्ध्र में पहुँचकर हजारों भागों में चारों ओर फैल जाती है।

इसी कारण उस स्थान को सहस्र दल कमल कहते हैं। सहस्र दल सूक्ष्म लोकों- विश्व व्यापी शक्तियों से सम्बन्धित है। जिसके द्वारा परमात्मा की अनन्त शक्तियों को सूक्ष्म लोक से पकड़ा जाता , मेरुदण्ड के नीचे अन्तिम भाग में सुषुम्ना के भीतर रहने वाली ब्रह्म नाड़ी एक काले वर्ण के षट्कोण वाले परमाणु से लिपटकर बंध जाती है।

षट्कोण परमाणु को यौगिक ग्रन्थों में अलंकारिक भाषा में कूर्म कहा गया है। उसकी आकृति कछुए जैसी होती है। पृथ्वी कूर्म भगवान पर टिकी है। शेषनाग के फन पर अवलम्बित है। इस उक्ति का आधार ब्रह्मनाड़ी की वह आकृति है जिसमें वह इस कूर्म में लिपटकर बैठी हुई है ।

और जीवन को धारण किए हुए है। यदि वह अपना आधार त्याग दे तो जीवन भूमि के चूर-चूर हो जाने में थोड़ी भी देरी न लगे। कूर्म से ब्रह्म नाड़ी के गुन्थन स्थल को आध्यात्मिक भाषा में कुण्डलिनी कहते हैं। कुण्डलाकार होने के कारण ही उसका नाम कुण्डलिनी पड़ा।

कुण्डलिनी की महिमा, शक्ति एवं उपयोगिता इतनी अधिक है जितनी कि बुद्धि कल्पना भी नहीं कर सकती। भौतिक विज्ञान के अन्वेषकों के लिए परमाणु एक चमत्कार बना हुआ है। उसके तोड़ने की विधि प्राप्त हो जाने पर प्रचण्ड ऊर्जा का स्रोत वैज्ञानिकों के हाथ लग गया है।

अभी तो उसकी ऊर्जा के एक अंश का विध्वंसात्मक स्वरूप देखा गया है। रचनात्मक एवं शक्ति का एक बड़ा पक्ष अछूता है।यह तो जड़ जगत के एक नगण्य से परमाणु की शक्ति की बात हुई जिसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाना पड़ता तो चैतन्य जगत का एक स्फुल्लिंग जो जड़ परमाणु की तुलना में अनन्त गुना शक्तिशाली है।

विज्ञान की शक्ति एवं उपलब्धियों से सभी परिचित हैं। योग की उपलब्धियाँ हैं ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ। जिस प्रकार परमाणु की शोध में अनेकों वैज्ञानिक जुटे हैं। उसी प्रकार पूर्वकाल के आध्यात्मिक विज्ञान वेत्ताओं, तत्वदर्शी ऋषियों ने मानव शरीर के अंतर्गत एक बीज परमाणु की अत्यधिक शोध की थी ओर उसकी असीम शक्ति से लाभ उठाया।

दो परमाणुओं को तोड़ने, मिलाने या स्थानान्तरित करने का सर्वोत्तम स्थान कुण्डलिनी केन्द्र में होता है क्योंकि अन्य सभी स्थानों के चैतन्य परमाणु गोल और चिकने होते हैं पर कुण्डलिनी में यह मिथुन के रूप में लिपटा हुआ है।

जिस प्रकार युरेनियम एवं प्लूटोनियम धातु के परमाणुओं का गुन्थन ऐसे टेढ़े-तिरछे ढंग से हुआ है कि उनका तोड़ा जाना अन्य पदार्थों के परमाणुओं की अपेक्षा अधिक सरल है । उसी प्रकार कुण्डलिनी स्फुल्लिंग परमाणुओं की गतिविधि का इच्छानुकूल संचालन अधिक सुगम है।

अत एव पूर्वकाल के ऋषियों ने बड़ी तत्परता से कुण्डलिनी जागरण पर शोध की। शोध के परीक्षण एवं प्रयोग के उपरांत उन्होंने इतनी सामर्थ्य प्राप्त कर ली जिसे चमत्कार समझा जाता है।कुण्डलिनी को गुप्त शक्तियों का भण्डार-तिजोरी कहा गया है।

बहुमूल्य रत्नों को तिजोरी में रखकर किसी गुप्त स्थान में रख दिया जाता है। उसमें मजबूत ताले लगा दिये जाते हैं जिससे कोई अनाधिकारी बाहरी व्यक्ति न प्राप्त कर सके।परमात्मा ने भी मनुष्य की अनन्त शक्तियों के भण्डार दिए हैं पर उन पर छह ताले लगा दिए हैं।

इन्हें ही षट्चक्र कहते ,चक्रों के रूप में यह ताले इसलिए लगाये गये हैं कि कोई उन्हें कुपात्र न प्राप्त करले। कुण्डलिनी शक्ति पर लगे छह तालों- छह चक्रों को बेधना- खोलना पड़ता है। सामान्यतया कुण्डलिनी अस्त-व्यस्त स्थिति में मूलाधार में नीचे की ओर मुँह किए बैठी रहती है।

उसे जगाने के लिए सविता की प्राण शक्ति का आश्रय लेना होता है। ध्यान योग की उच्चस्तरीय साधना द्वारा मूर्छित पड़ी कुण्डलिनी महाशक्ति का जागरण किया जाता है। योग में प्राण साधना इसी लक्ष्य की आपूर्ति करती है।

कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया के साथ साधक को आत्मपरिष्कार आत्मसुधार का अवलम्बन लेना पड़ता है। दोहरे मोर्चे पर किया गया साधना पुरुषार्थ साधक के अन्तरंग को शक्ति सामर्थ्य से परिपूर्ण बनाता है।

11/03/2024







गले का पक जाना और दर्द करना

➖गले में दर्द के लिए मुलेठी का पेस्ट गले के चारों तरफ लगाएं। इससे आराम मिलेगा।
➖सादा पान का पत्ता मुलेठी के साथ दिन में 2-3 बार खाएं।
➖ चाय में अदरक और तुलसी के पत्ते डालकर उबाल लें और दिन में 2-3 बार गरारे करें।
➖काली चाय वाले गर्म पानी में 1 बड़ा चम्मच नमक मिलाकर दिन में 2 बार गरारे करें। गरारे करते समय, आवाजें नहीं निकालें। ऐसा करने से दर्द बढ़ जाएगा।
➖कुटी हुई 2-3 लौंग और थोड़े से लहसुन को 1 कप शहद में डालें और 1-2 दिनों तक रखें। दिन में 3 बार खाएं।
➖पानी बहुत अधिक (10-12 गिलास). पिएं। ज्यादातर देखा गया है कि पानी की कमी से गले की परेशानी बढ़ जाती है।
➖1/2 छोटा चम्मच शहद और 1/2 छोटा चम्मच नीबू का रस हर 1-2 घंटे में लेते रहें।
➖2 बड़े चम्मच मेथीदाना 6 कप पानी में डाल लें। मंदी आंच पर 15- 20 मिनट के लिए गर्म कर लें। गरारे करने के लिए उतना ठंडा कर लें, जिससे आपका गला न जले और इस घोल से दिन में 2-3 बार गरारे कर लें।
➖ 1 कप दूध हल्का गर्म करें और उसमें 1-2 चुटकी हल्दी पाउडर मिलाएं। रात को सोते समय पिएं।

गले की सूजन ,दर्द ,टांसिल

मेथीदाना का काढ़ा तैयार कर दिन में 3--4 बार गरारे करें।

11/03/2024








फैटी लीवर

➖सबसे पहले दूध बंद कर देना चाहिए।
➖जितना रोगी का वजन है उसको 10 से गुणा कर दो उतने ग्राम 4 तरह के फल उनके पसंद के खिलाएं।
➖सुबह 10:00 बजे से पहले उसके बाद
12:00 बजे खाने में चार प्रकार के सलाद उनकी पसंद के, मात्रा फलों की मात्रा से आधा।
➖ खाने में सबसे पहले सलाद खाए उसके बाद खाना। घी दूध और चिकनाई का परहेज रखें।
➖ सुबह-सुबह 5 ग्राम बायबिडंग और 5 ग्राम पुनर्नवा (जिसे ग्रामीण इलाके में साठी कहते हैं) को मोटा कूट पीसकर पानी में भिगो दें 100 ग्राम पानी में।
➖ दूसरे दिन 24 घंटे बाद प्रातः काल उसको छानकर उसमें 100 ग्राम पानी और मिलाएं मतलब बचे हुए ठोस चूर्ण को 100 ग्राम पानी से धो कर छान ले कपड़े से और दूसरे दिन के लिए उसी समय भिगोकर रख दें।
➖एक चम्मच चीनी या एक डली गुड़ खाकर 15 मिनट बाद इस दवा का छाना हुआ पानी पी ले प्रातः काल 15 दिन तक सेवन करने से फैटी लीवर ठीक होता है। 2 घंटे तक पानी के अलावा कुछ भी ना खाए ना पिए।
➖ दिन में दो चार बार पुदीना सौंफ काली मिर्च की चाय का सेवन करने से बढ़ा हुआ पित ठीक होता है।
➖जैसे किसी का वजन 60 किलो है तो 10 से गुणा करने पर 600 ग्राम हो जाता है मतलब 600 ग्राम 4 तरह के फल।
➖600 का आधा 300 ग्राम सलाद 4 तरह के। फल और सलाद रोगी के मनपसंद के हो सकते हैं।
➖इसे लंबे समय तक लिया जा सकता है। उपरोक्त दवा पीने वाली जांच के अनुसार 15 दिन बाद 1 हफ्ते का विराम देकर आगे भी बढ़ा सकते

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