24/05/2025
यह कहानी है दो महानायकों की—एक भारत के राष्ट्रपति, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की, और दूसरे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिन्हें पूरे देश में “सैम बहादुर” के नाम से जाना जाता है।
बात उन दिनों की है जब डॉ. कलाम कुन्नूर के दौरे पर थे। उन्हें पता चला कि फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ वहां के सैन्य अस्पताल में भर्ती हैं। बिना किसी औपचारिकता की परवाह किए, डॉ. कलाम सीधे अस्पताल पहुंचे।
वो सैम के पास गए, उनका हालचाल पूछा और विनम्रता से बोले,
“क्या आपको किसी चीज़ की तकलीफ है? क्या मैं कुछ कर सकता हूं जिससे आप सहज महसूस करें? कोई शिकायत हो तो बताएं।”
सैम मानेकशॉ मुस्कुराए और बोले,
“हां, सर, एक शिकायत है।”
डॉ. कलाम थोड़ा चौंके और गंभीरता से पूछा,
“कृपया बताइए, क्या बात है?”
सैम की आंखों में गर्व और देशप्रेम की चमक थी। उन्होंने कहा,
“मेरी शिकायत बस इतनी है कि मेरे प्यारे देश के राष्ट्रपति मेरे सामने खड़े हैं… और मैं उठकर उन्हें सलाम नहीं कर पा रहा।”
पूरा कमरा एक पल के लिए मौन में डूब गया। कलाम जी ने सैम का हाथ थामा। दोनों की आंखें नम थीं—एक सच्चे देशभक्त की दूसरे देशभक्त के लिए भावना और सम्मान का प्रतीक।
अस्पताल से निकलते समय सैम ने एक और बात साझा की—उन्हें 2007 में घोषित फील्ड मार्शल की बढ़ी हुई पेंशन अब तक नहीं मिली थी। यह पेंशन सेवा में बने रहने वाले प्रमुखों के बराबर होनी थी, लेकिन सैम तक नहीं पहुंची।
डॉ. कलाम ने इस बात को दिल से लगा लिया। दिल्ली लौटते ही उन्होंने कार्रवाई की। सिर्फ एक सप्ताह में 1.30 करोड़ रुपये की बकाया राशि का चेक तैयार करवाया गया। रक्षा सचिव खुद विशेष विमान से ऊटी के वेलिंग्टन अस्पताल पहुंचे।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
जब सैम मानेकशॉ को वह चेक सौंपा गया, तो उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने सबका दिल छू लिया।
उन्होंने पूरी राशि—1.30 करोड़ रुपये—बिना झिझक सेना राहत कोष में दान कर दी।
यह था सैम का सच्चा देशप्रेम—निस्वार्थ, निस्संदेह और प्रेरणादायक।
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किसे सलाम करें?
• डॉ. कलाम को, जिन्होंने एक सैनिक की तकलीफ को अपना कर्तव्य समझा।
• सैम मानेकशॉ को, जिन्होंने अपने लिए कुछ भी न रखकर देश के लिए सब कुछ दे दिया।
ये हैं हमारे सच्चे नायक—जिन्होंने न केवल देश की रक्षा की, बल्कि हमें यह भी सिखाया कि सम्मान, देशभक्ति और मानवता क्या होती है।
🙏 जय हिंद 🇮🇳