01/09/2025
बिहार के सीतामढ़ी ज़िले के उत्तर-पूर्वी हिस्से में बसा चोरौत (Cheraut/Choraut) गाँव, अपने भीतर मिथिला की धरती की परंपराओं, संघर्षों और सादगी को समेटे हुए है। नेपाल की सीमा से निकटता और रतो व यमुनी जैसी नदियों की मौजूदगी इसे एक अनोखा भौगोलिक स्वरूप देती है। जब कोई यात्री राष्ट्रीय राजमार्ग 527C से होकर इस गाँव की ओर बढ़ता है, तो उसे दोनों ओर फैले खेत, तालाबों की झलक और छोटे-छोटे घरों के झुंड स्वागत करते दिखाई देते हैं।
गाँव की संरचना बिल्कुल विशुद्ध ग्रामीण भारतीय स्वरूप लिए हुए है। बीच से होकर जाती कच्ची और पक्की सड़कें, चारों ओर बिखरे छोटे मोहल्ले, और हर मोहल्ले में एक चौपाल या पेड़ तले बैठक की जगह – यही इसकी पहचान है। अधिकांश घर अब ईंट-सीमेंट के हो गए हैं, पर कई जगहों पर आज भी मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छतों वाले घर गाँव की पुरानी आत्मा को जीवित रखते हैं। बरसात के दिनों में रतो और यमुनी नदियों की बाढ़ कई बार गाँव को घेर लेती है, पर यही पानी खेतों को उपजाऊ भी बनाता है। यही कारण है कि गाँव का जीवन मुख्यतः खेती पर आधारित है। धान, गेहूँ, मक्का और सब्ज़ियाँ यहाँ की प्रमुख फसलें हैं।
गाँव का एक प्रमुख स्थल है चौरौत मठ (लक्ष्मीनारायण मंदिर)। अठारहवीं शताब्दी में दरभंगा राज के सहयोग से बने इस मठ की भव्यता आज भी गाँव की पहचान है। ताँबे और चाँदी की नक्काशीदार दरवाज़े, विशाल घंटियाँ और यहाँ का प्राचीन ग्रंथ-संग्रह, इस क्षेत्र को आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि शैक्षिक दृष्टि से भी समृद्ध बनाते हैं। यह मठ मिथिला की उस पुरानी परंपरा का प्रतीक है जहाँ वैदिक अध्ययन और संस्कृत विद्या का केंद्र गाँव ही होते थे।
गाँव का जीवन-शैली सरल और सामुदायिक है। सुबह होते ही खेतों की ओर जाते किसान, बैलगाड़ी या साइकिल से बाज़ार की ओर निकलते लोग और स्कूल जाते बच्चे – यह रोज़मर्रा का दृश्य है। महिलाएँ घर-आँगन में चौका-बर्तन, बुनाई या खेतों में सहायक कामों में लगी दिखती हैं। गाँव का साप्ताहिक हाट, जहाँ सब्ज़ी, कपड़ा और घरेलू सामान बिकते हैं, न केवल व्यापार का स्थल है बल्कि सामाजिक मेल-जोल का भी केंद्र है।
त्योहारों के समय गाँव की रौनक देखते ही बनती है। छठ पूजा, दुर्गा पूजा और दीपावली तो हर घर में उत्साह से मनाई जाती है, पर खास बात यह है कि इन त्योहारों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय सक्रिय भाग लेते हैं। इन्द्र पूजा और गौ पूजा जैसी स्थानीय परंपराएँ गाँव की सांस्कृतिक विशिष्टता को और गहरी करती हैं। सामूहिक भोज, मेलों का आयोजन और लोकगीतों की गूंज इस मिट्टी की असली पहचान है।
चौरौत की जनसंख्या में बहुलता किसानों और मजदूरों की है। साक्षरता दर अभी भी राष्ट्रीय औसत से कम है, पर गाँव के बच्चे शिक्षा की ओर बढ़ते दिखते हैं। कई युवा पढ़ाई या रोज़गार के लिए दिल्ली, मुंबई और यहाँ तक कि खाड़ी देशों तक जाते हैं, और फिर साल-दो साल में छठ या किसी पारिवारिक अवसर पर गाँव लौटते हैं।
कुल मिलाकर चौरौत गाँव मिथिला की उस छवि का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ इतिहास और आधुनिकता साथ-साथ चलते हैं। एक ओर सदियों पुराना मठ और बाढ़ग्रस्त धरती की चुनौतियाँ हैं, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय राजमार्ग और नए पक्के मकान विकास की दिशा दिखाते हैं। यहाँ का जीवन संघर्षों से भरा है, पर उसमें अपनापन और सामूहिकता की मिठास है। यही कारण है कि चौरौत महज़ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि अपनी परंपराओं, आस्था और संस्कृति के कारण एक जीवंत पहचान है।
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