Mandeepsheoran Foji

  • Home
  • Mandeepsheoran Foji

Mandeepsheoran Foji Mandeep Sheoran

*भगवान बुद्ध की एक कथा**पुरानी गलतियों को भूलें* बुद्ध भगवान एक गाँव में उपदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि “हर किसी को धर...
17/07/2025

*भगवान बुद्ध की एक कथा*

*पुरानी गलतियों को भूलें*

बुद्ध भगवान एक गाँव में उपदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि “हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए। क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करने वाला दूसरों को जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा।”

सभा में सभी शान्ति से बुद्ध की वाणी सुन रहे थे, लेकिन वहाँ स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था जिसे ये सारी बातें बेतुकी लग रही थी। वह कुछ देर ये सब सुनता रहा फिर अचानक ही आग- बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो। बड़ी-बड़ी बातें करना यही तुम्हारा काम है। तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो, तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखतीं"

ऐसे कई कटु वचनों सुनकर भी बुद्ध शांत रहे। अपनी बातों से ना तो वह दुखी हुए, ना ही कोई प्रतिक्रिया की; यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और वहाँ से चला गया।

अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो उसे अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंचा, पर बुद्ध कहाँ मिलते वह तो अपने शिष्यों के साथ पास वाले एक अन्य गाँव निकल चुके थे।

व्यक्ति ने बुद्ध के बारे में लोगों से पूछा और ढूंढते- ढूंढते जहाँ बुद्ध प्रवचन दे रहे थे वहाँ पहुँच गया। उन्हें देखते ही वह उनके चरणो में गिर पड़ा और बोला , “मुझे क्षमा कीजिए प्रभु!”

बुद्ध ने पूछा : "कौन हो भाई ? तुम्हे क्या हुआ है ? क्यों क्षमा मांग रहे हो?”

उसने कहा : “क्या आप भूल गए। मै वही हूँ जिसने कल आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। मै शर्मिन्दा हूँ। मैं मेरे दुष्ट आचरण की क्षमा याचना करने आया हूँ।”

भगवान बुद्ध ने प्रेमपूर्वक कहा : “बीता हुआ कल तो मैं वहीं छोड़कर आया और तुम अभी भी वहीँ अटके हुए हो। तुम्हें अपनी ग़लती का आभास हो गया, तुमने पश्चाताप कर लिया; तुम निर्मल हो चुके हो; अब तुम आज में प्रवेश करो। बुरी बातें तथा बुरी घटनाएँ याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते है। बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो।”

उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया। उसने भगवान बुद्ध के चरणों में पड़कर क्रोध त्याग कर तथा क्षमाशीलता का संकल्प लिया; बुद्ध ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा। उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया, और उसके जीवन में सत्य, प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी।

मित्रों, बहुत बार हम भूत में की गयी किसी गलती के बारे में सोच कर बार-बार दुखी होते और खुद को कोसते हैं। हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, गलती का बोध हो जाने पर हमे उसे कभी ना दोहराने का संकल्प लेना चाहिए और एक नयी ऊर्जा के साथ वर्तमान को सुदृढ़ बनाना चाहिए।

*बेलपत्र की कथा*स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ न...
17/07/2025

*बेलपत्र की कथा*

स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। चुंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं। फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करती है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है।

भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।

बेल वृक्ष का महत्व:-

1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते।

2. अगर किसी की शवयात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है।

3. वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है।

4. 4, 5, 6 या 7 पत्तों वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है।

5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

6. सुबह-शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।

7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं।

8. बेल वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

9. बेलपत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे।

10. जीवन में सिर्फ 1 बार और वह भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते हैं।

11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्द्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।

कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाएं। बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं........।

*कृष्ण कथा - हर दिन**जब कन्हैया ने गले लगायो*एक व्यक्ति था जिसे कुष्ठ का रोग हो गया,अब वह अपने रोग से बड़ा परेशान रहता,क...
16/07/2025

*कृष्ण कथा - हर दिन*

*जब कन्हैया ने गले लगायो*

एक व्यक्ति था जिसे कुष्ठ का रोग हो गया,अब वह अपने रोग से बड़ा परेशान रहता,किसी ने कहा तुम वृंदावन चले जाओ
अब वह व्यक्ति वृंदावन आ गया और सड़क के किनारे बैठा रहता, जो भी वहाँ से निकलता उसको कुछ न कुछ उपाय बताकर जाता,कोई कहता ये लगा,कोई कहता ये दवाई खा.

इस प्रकार सभी कहते परन्तु सब करने पर भी उसका रोग दूर नहीं होता, एक बार एक बड़े सरल बाबा वहाँ से निकले और उसकी दशा को देखकर बोले - तुम बैठे तो रहते ही हो अपने मुख से श्री राधे राधे कहा करो.

अब उस कोढ़ी ने ऐसा ही किया,राधे राधे कहने लगा,और जब उसके घाव में बड़ी वेदना होती थी तब और भी करुण स्वर में हा राधे ,हा राधे कहता.

एक बार श्रीकृष्ण व्रज की गलियों में जा रहे थे जब उन्होंने उस कोढ़ी की आवाज सुनि जो दर्द में राधे राधे कह रहा था,

जो भगवान ने राधे राधे सुना तो तुरंत उस कोढ़ी की ओर भागे और उसके पास आकर उन्हें लगा जैसे राधा रानी जी ही खड़ी है,

तुरंत उसे गले से लगा लिया,और स्वयं भी राधे राधे ....कहने लगे.

पीछे से राधा रानी भी आ गई और बोले मै तो यहाँ खड़ी हूँ,
पर भगवान तो उसे ही कस कर पकड़कर राधे राधे...कहते जा रहे थे,

जब बाद में कुछ होश आया तो देखा राधा जी तो पीछे खड़ी है,भगवान का स्पर्श मिलते ही उसका कोढ़ ठीक हो गया.

जय हो मेरी राधारानी !!

😍 *कृष्ण लीला* 💗 *कृष्ण कथा* 😍🌻 *जब कान्हा ने मिट्टी खाई* 🌻भगवान प्रतिदिन गोपियों के यहाँ माखन चुराने पधारते है। लेकिन आ...
16/07/2025

😍 *कृष्ण लीला* 💗 *कृष्ण कथा* 😍

🌻 *जब कान्हा ने मिट्टी खाई* 🌻
भगवान प्रतिदिन गोपियों के यहाँ माखन चुराने पधारते है। लेकिन आज भगवान का मन खेलने में नहीं है।
भगवान बोले की माखन तो बहुत खायो है और अंदर से पेट भी चिकनो हो गयो है।
जैसी सफाई मिट्टी से हो सकती है और किसी चीज से नहीं हो सकती। भगवान ने मिट्टी उठा कर मुँह में रख ली।

भगवान को मिट्टी खाते हुए श्रीदामा ने देख लिए और बोले की क्यों रे कनवा तूने मिट्टी खाई ? भगवान ने ना में गर्दन हिला दी...
श्रीदामा ने फिर पूछा तो भगवान ने फिर से ना में गर्दन हिला कर जवाब दिया। श्रीदामा ने कहा की इसे आज मैया के पास ले चलो। पहले ये माखन चुरा के खाता था और अब मिट्टी भी खाने लगा है तो दो सखाओ ने भगवान के हस्त कमल पकडे और दो सखाओ ने चरण कमल पकडे। और डंडा डोली (झूला झुलाते हुए) करते हुए ले के माँ के पास गए। और मैया के पास जाकर बोले-
तेरे लाला ने माटी खाई.... यशोदा सुन माई ....सुनत ही माटी को नाम ब्रजरानी दौड़ आई और पकड़ हरी को हाथ,
कैसे तूने माटी खाई ?
तो तुनक तुनक तुतलाय के... हूँ बोले श्याम... मैंने नाही माटी खाई नाहक लगायो नाम। भगवान कहते है मैया मैंने माटी नहीं खाई ? ये सब सखा झूठ बोल रहे है।
माँ बोली, लाला एक संसार में तू ही सचधारी पैदा हुआ है बाकि सब झूठे है ? आज मैं तेरे को सीधो कर दूंगी। तो माँ हाथ में एक लकड़ी लेकर आई और भगवान को डराने लगी।
जब भगवान ने माँ के हाथो में लकड़ी देखि तो झर-झर भगवान की आँखों से आंसू टपकने लगे। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा- गुरुदेव, जिनकी एक भृकुटि टेढ़ी हो जाये तो काल भी डर जाता है। लेकिन आज माँ के हाथ में लकड़ी देख कर भगवान की आँखों से आंसू आ रहे है। क्यों ? ये नन्द और यशोदा कोन है ? जिनको भगवान ने इतना बड़ा अधिकार दे दिया ?
शुकदेव जी कहते है कि हे.. परीक्षित, पूर्व जन्म में ये द्रोण नाम के वसु थे और इनकी पत्नी का नाम था धरा । ये निःसंतान थे और इन्होने भगवान की तपस्या की। भगवान प्रकट हो गए और बोले की आप वर मांगिये।
तो इन्होने कहा भगवान, आप हमे ये वरदान दीजिये की हमे आपकी बाल लीला का दर्शन हो।हमे इस जन्म में सब कुछ मिला लेकिन हमारे संतान नही हुई। तो हम आपकी बाल लीला देखना चाहते है।
भगवान बोले की, कृष्णावतार में आप मेरी बाल लीला का दर्शन करोगे। ये द्रोण ही नन्द बाबा बने और उनकी पत्नी धरा ही यशोदा है। दोनों को भगवान अपनी बाल लीला का दर्शन करवा रहे है।
माँ पूछ रही है तेने माटी खाई ?
भगवान कहते है नही खाई मैया, मैंने माटी नाही खाई हाथ में लकड़ी ले के माँ डरा रही है। भगवान ने कहा यदि मैया तेरे को मो पर विश्वास नही है तो मेरा मुख देख ले।
साँच को आंच कहाँ तो छोटो सो मुखारविंद कृष्ण हूँ ने फाड़ दियो। भगवान ने अपना छोटा सा मुँह खोला और माँ मुँह में झांक-कर देखती है तो आज सारे ब्रह्माण्ड का दर्शन माँ को हो रहा है। केवल ब्रह्माण्ड ही नही गोकुल और नन्द भवन का दर्शन कर रही है ना ही गोकुल और नन्द भवन का दर्शन कर रही है। और नन्द भवन में कृष्णा और स्वयं का दर्शन भी माँ को हो रहा है।
अब माँ बोली की मेरे लाला के मुँह में अलाय-बलाय कहाँ से आ गई ? थर थर डर के माँ कांपने लगी।
भगवान समझ गए आज माँ ने मेरे ऐश्वर्ये का दर्शन कर लिया है कहीं ऐसा ना हो की माँ के अंदर से मेरे लिए प्रेम समाप्त ना हो जाये और मैं तो ब्रजवासियों के बीच प्रेम लीला करने आया हूँ। क्योंकि जहाँ ऐश्वर्ये है वहां प्रेम नही है। ऐसा सोच कर भगवान मंद मंद मुस्कराने लगे। भागवत में भगवान की हंसी को माया कहा है।
भगवान ने माया का माँ पर प्रभाव डाला और जब थोड़ी देर में माँ ने आँखे खोली। तो भगवान अपनी माँ से पूछने लगे मैया तेने हमारे मुख में माटी देखि ? माँ बोली की सब जग झूठो केवल मेरो लाला सांचो।
भगवान की मुस्कराहट से माँ सब कुछ भूल गई। इस प्रकार से प्रभु ने ढमृतिका भक्षण लीला की है।
बोलो मेरी प्यारी यशोदा मैया की जय

जय श्री राम
15/07/2025

जय श्री राम

*कृष्ण कथा - हर दिन**जब ठाकुर जी ने मोदक भोग लगायो*एक थे गवारियां बाबा। वृन्दावन में ही रहते थे। बिहारी जी को अपना यार क...
15/07/2025

*कृष्ण कथा - हर दिन*

*जब ठाकुर जी ने मोदक भोग लगायो*

एक थे गवारियां बाबा। वृन्दावन में ही रहते थे। बिहारी जी को अपना यार कहते थे। सिर्फ कहते नहीं, मानते भी थे। नियम था बिहारी जी को नित्य सायं शयन करवाने जाते थे। एक बार शयन आरती करवाने जा रहे थे। बिहारी जी की गली में बढ़िया मोदक बन रहें थे। अच्छी खुशबू आ रही थी। चार मोदक मांग लिए बिहारी जी के लिए ! वृन्दावन के लोग बिहारी जी के भक्तो का बड़ा आदर करते है। उन्होंने मना नहीं किया। एक डोने में बांध दियो साथ में। बाबा भीतर गए तो बिहारी जी के भोग के पट आ चुके थे।

गवारिया बाबा जी ने वही बैठकर अपना कम्बल बिछाया और उस पर बैठकर अपने मन के भाव में खो गए। वहां बिहारी जी की आरती का समय हुआ तो श्री गौसाई जी बड़ा प्रयास कर रहे हैं लेकिन ठाकुर जी के मंदिर का पट नहीं खुल रहा। बड़े हैरान इधर उधर देख रहें। एक संत कोने में बैठे सब दृश्य आरंभ से देख रहें थे। पुजारी जी ने लाचारी से देखा तो संत बोले उधर गवारिया बाबा बैठे हैं उनसे पूछो वो बता देंगे।

गौसाईं जी ने बाबा से कहा, रे बाबा तेरे यार तो दरवाजा ही न खोल रहियो ? बाबा हड़बड़ा कर उठे। रोम रोम पुलकित हो रहा था बाबा का। बाबा ने कहा जय जय ! अब जाओ ! और बाबा ने पुजारी से कहा अब खोलो। पुजारी जी ने तब खोला और दरवाजा खोलने का प्रयास किया। लेकिन हल्का सा छूते ही दरवाजा खुल गया। पुजारी जी ने आरती की और बिहारी जी को शयन करवा दिया। लेकिन आज पुजारी जी के मन में यह बात लगी है की आज मैं प्रयास करके हार गयो लेकिन दरवाजा नहीं खुला। लेकिन बाबा ने कहा और दरवाजा खुल गया। पुजारी जी गवारिया बाबा के पास गए और कहा , बाबा आज तुझे तेरे यार की सौगंध है। साँची साँची कह दें , आज तेरे यार ने क्या खेल खेलो।

गवारिया बाबा हंस दिए। कहते जय जय ! जब आप भोग के लिए दरवाजा खोल रहे थे। तब बिहारी जी मेरे पास मोदक खा रहे थे। अभी मैंने उनका मुंह भी नहीं धुलाया था की आपने आवाज दे दी। उनका मुंह साफ कर देना। जाईये उनका मुख तो धुला दीजिये उनके मुख पर जूठन लगी है। गौसाईं जी ने स्नान किया मंदिर में गए तो देखा की ठाकुर जी के मुख पर तो लड्डू का जूठन लगी थी।

सच में रहस्य रस है ठाकुर जी की सेवा में ! अधिकार रखिये श्री ठाकुर जी पर। सर्वस नौशावर करके उनकी सेवा सुख मिलता है।

जय जय श्री राधे कृष्ण जी

💖 *कृष्ण कथा - हर दिन* 💖🌻🦚🌻 *श्री राधा श्याम सुंदर और गोपी की अमृत कथा* 🌻🦚🌻एक बार श्यामसुन्दर अपना श्रृंगार कर रहे थे। त...
15/07/2025

💖 *कृष्ण कथा - हर दिन* 💖

🌻🦚🌻 *श्री राधा श्याम सुंदर और गोपी की अमृत कथा* 🌻🦚🌻

एक बार श्यामसुन्दर अपना श्रृंगार कर रहे थे। तभी श्यामसुन्दर ने कुछ सोचकर नन्द गाँव की गोपियों को बुलाया और कहा कि अभी तुम बरसाना जाओ और ये पता लगाओ कि हमारी प्राण प्यारी ने आज कैसे वस्त्र धारण किए हैं।आज हम भी वैसी ही पोशाक धारण करेंगे। आज तो मैं राधे जैसे ही वस्त्र धारण करके ही निकुँज में जाऊँगा, जिससे राधा जी मुझे देखकर अचम्भित हो जाएँ।

जब नन्द गाँव से गोपियाँ श्री बरसाना पहुँची तब कुछ मंजरिया श्री राधा रानी का श्रृंगार कर रही थीं।कुछ मंजरिया बाहर खड़ी थीं, उन्होंने गोपियों को अंदर जाने नहीं दिया। गोपियों ने बहुत अनुरोध किया कि सिर्फ एक झलक तो प्यारी की निहारने दो फिर हम यहाँ से चली जाएगीं। तब मंजरिओं ने कहा कि एक शर्त है कि कोई एक गोपी ही अंदर जाएगी।अत: एक गोपी ही अंदर श्रीराधे की झलक के दर्शन करने गयी। गोपी बिना पलके झपकाए निमिमेष श्रीराधे की झलक के दर्शन करती रही।फिर उस गोपी ने तुरंत अपने नेत्र बंद कर लिए और बंद नेत्रों से ही बाहर आकर दूसरी गोपी को कहा कि अरी सखी जल्दी से मुझे नन्द गाँव ले चल।सभी सखियों ने कहा कि पहले श्रीराधे के श्रृंगार का वर्णन तो कर सखी।गोपी ने कहा कि पहले जल्दी से मुझे श्यामसुंदर के पास ले चलो वहीं पर बताती हूँ।तब उस गोपी का हाथ पकड़ कर सखियाँ नन्दभवन में आई।जब सखियाँ नंदगाँव पहुची तो श्यामसुन्दर ने पूछा कि कर लिये मेरी श्रीराधे के दर्शन?अब जल्दी से मुझे बताओ कैसी पोशाक धारण किए है? कितनी सुंदर लग रही थी मेरी प्यारी?

गोपी ने कहा कि अपनी प्राण प्यारी को बड़े प्रेम से संभाल कर मेरे इन नेत्रों में समा कर लायी हूँ।अब मैं नेत्र खोल रही हूँ। आप मेरे नेत्रों में झाँक कर प्राण प्यारी का दर्शन करें।

अहाहा…. ऐसा अद्भुत और समर्पित भाव केवल व्रज की गोपिकाए में ही मिल सकता है।

तब श्यामसुन्दर ने उस गोपी के नयनो में झाँका तो बरसाने में श्रृंगार करती हुई श्रीराधे दिखाई दीं।श्यामसुन्दर अपनी प्राण प्यारी की झलक पाकर उस गोपी के नेत्रों में ही खो गए। अपलक उस गोपी के नेत्रों में ही निहारते रहे।अपना श्रृंगार करना भी जैसे भूल गए। एक स्तंभ की तरह जैसे अचेतन हो गए हो। एक गोपी ने श्यामसुन्दर को प्यार से निहारा और पुकारा तब वह चेतन हुए।

श्यामसुन्दर उस गोपी पर बलिहारी जाते हैं और भावविह्वल हो कर कह उठते हैं- ‘तू धन्य है गोपी और तेरा प्रेम भी धन्य हैं। तुम्हारे प्रेम ने तो मुझे नन्दभवन में बरसाना दिखा दिया है।’

हम सब भी बलिहारी जाए उस गोपी पर जिसने श्याम को अपने नेत्रों में ही बरसाने की प्यारी श्यामा का दर्शन करा दिया

तब श्यामसुंदर ने श्रीराधे जैसा ही श्रृंगार और पोषाक धारण किए और जिस गोपी के नेत्रों में श्री राधे देखी थी उससे कहा कि अब तू दूसरे नेत्र में मेरी छबि को बंद कर ले।उस गोपी ने श्यामसुन्दर को भी अपलक निहारा और थोड़ी देर में अपने नेत्रों को बंद कर दिया।तब श्यामसुन्दर ने एक और गोपी से कहा कि इस गोपी को उस निकुँज में ले जाओ जहाँ श्रीराधे बैठकर मेरा इन्तजार कर रही थी। वह सखी उस सखी का हाथ पकड़ कर श्रीराधे जिस निकुँज में थी वहाँ ले आई।निकुँज में राधा जी बडी बेसब्री से श्यामसुन्दर का इन्तजार कर रहीं थीं।उन नन्द गाँव की गोपियों को देखकर पूछा कि श्यामसुन्दर कहाँ हैं?

जिस गोपी के नेत्र बंद थे उसने कहा कि श्यामसुन्दर मेरे नेत्रों में समा गए हैं।ऐसा कहकर उस गोपी ने अपने नेत्रों को जैसे ही खोला, श्रीराधे भी अचम्भित सी हो गयीं। उस गोपी के एक नेत्र में श्रृंगार करती हुई बरसाना की श्रीराधे दिखाई दे रही हैं और दूसरे नेत्र में श्रृंगार करतें हुए नन्दभवन के श्यामसुन्दर दिखाई दे रहे हैं।

उस गोपी के दोनों नेत्रों में श्रीराधे और श्यामसुन्दर दोनों दिखाई दे रहे थे।तभी दूर से श्यामसुन्दर अपनी बंसी की मधुर धुन बजाते हुए आते दिखे।अब दोनों एक दूसरे को देखकर अचम्भित हो रहे हैं क्योंकि जैसा श्रृंगार उस गोपी के नेत्रों में दिखाई दे रहा है वैसा ही श्रृंगार दोनों ने किया है।
तब राधा जी उस गोपी को अपना हीरा जड़ित हार पहना देती है और आलिंगन करते हुए कहती हैं कि तू धन्य है गोपी और तेरा प्रेम भी धन्य हैं। तूने तो अपने दोनों नेत्रों में बरसाना और नन्द गाँव समा लिए और साथ में मुझे और श्यामसुन्दर को भी अपने नेत्रों में समा लिए।

तत्पश्चात् कान्हा जी, राधा जी सभी गोपियाँ आनंदित होकर निकुँज में भाविभोर हास परिहास करते हैं।

*शिव को प्रसन्न करना चाहते है तो पढ़ें..* *स्कंद-पुराण की महाकाल की कथा*माटी नाम का एक बड़ा शिवभक्त था। उसने संतान प्राप...
15/07/2025

*शिव को प्रसन्न करना चाहते है तो पढ़ें..*
*स्कंद-पुराण की महाकाल की कथा*

माटी नाम का एक बड़ा शिवभक्त था। उसने संतान प्राप्ति के लिए 100 साल तक शिवजी का कठोर तप किया था। शिवजी ने उसे संतान का वरदान दिया। समय आने पर उसकी पत्नी गर्भवती हुई।

पत्नी का प्रसव चार साल तक नहीं हुआ तो माटी को बड़ी चिंता हुई। पता चला कि गर्भ का बालक कालमार्ग नामक राक्षस के डर से बाहर ही नहीं निकल रहा। माटी ने सोचा कि क्यों न गर्भ में स्थित शिशु को शिव ज्ञान दे दिया जाए। उसने शिशु को शिव ज्ञान देना शुरू किया जिससे शिशु को बोध हुआ और वह बाहर निकला। माटी ने कालमार्ग से डरने के कारण अपने पुत्र का नाम रखा कालभीति। कालभीति जन्म से ही परम शिव भक्त थे। बड़ा होते ही कालभीति घोर तपस्या में लगे।

बेल के पेड़ के नीचे पैर के अंगूठे पर खड़े हो वह सौ वर्षों तक एक बूंद भी पानी पिए बिना मंत्रों का जप करते रहे। सौ वर्ष पूरे होने पर एक दिन एक आदमी जल से भरा हुआ घड़ा लेकर आया।

कालभीति को नमस्कार कर उसने कहा कि जल ग्रहण कीजिए।

कालभीति बोले– आप किस वर्ण के हैं, आप का आचार-व्यवहार कैसा है ? यह सब जाने बिना मैं जल नहीं पी सकता।

पानी लाने वाला आगंतुक बोला- मैं जब अपने माता-पिता को ही नहीं जानता तो अपने वर्ण का क्या कहूं ? आचार-विचार और धर्मों से मेरा कोई वास्ता ही नहीं रहा है।

कालभीति ने कहा- मेरे गुरु के अनुसार जिसके कुल का ज्ञान न हो उसका अन्न जल ग्रहण करने वाला तत्काल कष्ट में पड़ता है। मैं पानी नहीं पिउंगा श्रीमन् !

आगंतुक बोला– तुम्हारी बात पर हंसी आती है। जब सब में भगवान शंकर ही निवास करते हैं, तो किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए क्योंकि इससे भगवान शंकर की ही निंदा होती है। यह जल अपवित्र कैसे हुआ ? घड़ा मिट्टी का बना है और आग में पका है, फिर जल से भर दिया गया। मेरे छूने से अशुद्धि आ गई? तो अगर मैं अशुद्ध होकर इसी धरती पर हूं तो आप यहां क्यों रहते हैं? आकाश में क्यों नहीं रहते?

कालभीति ने कहा– सभी में शिव ही हैं, सब को शिव मानने वाले नास्तिक लोग खाना छोड़ कर मिट्टी क्यों नहीं खाते? राख और धूल क्यों नही फांकते? मैं यह नहीं कह रहा कि सब में शिव नहीं है। भगवान शिव सब में हैं ही। मेरी बात ध्यान से सुनिए। सोने के गहने बहुत तरह के बनते हैं। कुछ शुद्ध सोने के तो कुछ मिलावटी। खरे, खोटे सभी आभूषणों में सोना तो है ही। इसी प्रकार ऊंच, नीच, शुद्ध, अशुद्ध सब में भगवान् सदा शिव विराजमान हैं।

जैसे खोटा सोना खरे के साथ मिलकर एक हो जाता है इसी तरह इस शरीर को भी व्रत, तपस्या और सदाचार आदि के द्वारा शोधित करके शुद्ध बना लेने पर मनुष्य निश्चय ही खरा सोना होकर स्वर्गलोक में जाता है।

तो शरीर को खोटी अपवित्र चीजों से बिगाड़ना ठीक नहीं। जो व्रत, उपवास करके शुद्ध हो गया है, वह भी यदि इस तरह अशुद्ध होने लगे तो थोड़े ही दिनों में पतित हो जाएगा इसलिए आपका दिया पानी तो मैं कभी नहीं पीयूंगा।

कालभीति के ऐसा कहने पर आगंतुक हंसने लगा। उसने दाहिने अंगूठे से जमीन कुरेदकर एक बहुत बड़ा गड्ढा तैयार किया। फिर उसी में वह सारा जल ढुलका दिया। गड्ढा भर गया, पानी बचा रह गया।

फिर उसने अपने पैर से ही कुरेदकर एक तालाब बना दिया और बचे हुए जल से उस तालाब को भर दिया। यह अद्भुत दृश्य देखकर कालभूति जरा भी नहीं चौंके।

आगंतुक बोला- ब्राह्मणदेव ! आप हैं तो मूर्ख, परन्तु बातें पंडितों सी करते हैं। लगता है आपने विद्वानों की बात नहीं सुनी, कुआं दूसरे का, घड़ा दूसरे का और रस्सी दूसरे की है। एक पानी पिलाता है और एक पीता है।

सब समान फल के भागी होते हैं। ऐसा ही मेरा भी जल है। तुम धर्म के ज्ञाता हो, फिर क्यों इसे नहीं पियोगे।

कालभीति ने विचार किया,यदि एक कार्य में अनेक सहायक हों तो काम करने वाले को मिलने वाला फल बंटकर समान हो जाता है। बात तो ठीक है।

कालभीति ने उस मनुष्य से कहा- आपका यह कहना ठीक है। कुएं और तालाब का पानी पीने में दोष नहीं है। फिर भी आपने तो अपने घड़े के जल से ही इस गड्ढे को भरा है। यह बात सामने देखकर मैं हर्गिज इसे नहीं पीयूंगा।

कालभीति के हठ पर वह पुरुष हंसता हुआ अंतर्ध्यान हो गया। अब कालभीति को अचरज हुआ। सोचने लगे कि यह क्या किस्सा है। इतने में ही उस बेल के पेड़ के नीचे धरती फाड़ कर सुन्दर चमचमाता शिवलिंग प्रकट हो गया

तब कालभीति ने कहा- जो पाप के काल हैं जिनके कंठ में काला चिन्ह सुशोभित होता है तथा जो संसार के कालस्वरूप हैं, उन भगवान् महाकाल की मैं शरण लेता हूं। आप हमें शरण दीजिए. आपको बारम्बार नमस्कार है।

कालभीति की स्तुति पर महादेव उस लिंग से प्रकट हुए और कहा- ब्राह्मण ! तुमने इस महातीर्थ में रहकर मेरी जो आराधना की है, उससे मैं संतुष्ट हूं। अब कालमार्ग से तुम निर्भय रहो। मैं ही मनुष्य रूप में प्रकट हुआ था। मैंने यह गड्ढा और तालाब सब तीर्थों के जल से भरा है। यह परम पवित्र जल तुम्हारे लिए ही लाया था। तुम मुझ से कोई मनोवांछित वर मांगो।

कालभीति ने कहा- प्रभु ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं, तो सदा यहां निवास करें। इस शिवलिंग पर जो भी दान, पूजन किया जाए, वह अक्षय हो। आपने काल से मुझे मुक्ति दिलाई है,इसलिए यह शिवलिंग महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हो।

भगवान बोले- जो कोई अक्षय तृतीया, शिवरात्रि, श्रावण मास, चतुर्दशी, अष्टमी, सोमवार तथा विशेष पर्व के दिन इस सरोवर में स्नान करके इस शिवलिंग की पूजा करेगा, वह शिव को ही प्राप्त होगा। यहां किया हुआ जप, तप और रूद्र जप सब अक्षय होगा। तुम नंदी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल बनोगे।

काल पर विजय पाने से तुम महाकाल के नाम से प्रसिद्ध होंगे। शीघ्र ही राजर्षि कर्णधम यहां आएंगे उन्हें धर्म का उपदेश करके तुम मेरे लोक में चले आओ। यह कहकर भगवान रूद्र उस लिंग में ही लीन हो गए।

स्कंदपुराण की यह कथा श्रवण, पठन एवं मनन करने से आशुतोष महाकाल अत्यंत प्रसन्न होते है

*कृष्ण कथा - हर दिन**श्री कृष्ण और दुर्वासा ऋषि*एक बार श्री कृष्ण जी के गुरु दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे...
15/07/2025

*कृष्ण कथा - हर दिन*

*श्री कृष्ण और दुर्वासा ऋषि*

एक बार श्री कृष्ण जी के गुरु दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे थे।
रास्ते में किसी जंगल में रूककर उन्होंने आराम किया। उसी के पास ही द्वारका नगरी थी।
दुर्वासा ऋषि ने अपने शिष्यों को भेजा कि श्री कृष्ण को बुला कर लाओ। तब उनके शिष्य द्वारका गये और द्वारकाधीश को उनके गुरुदेव का सन्देश दिया। सन्देश सुनते ही श्री कृष्ण जी दौड़े -2 अपने गुरु के पास गए। और उन्हें दण्डवत प्रणाम किया।
उनसे द्वारका चलने के लिए विनती की लेकिन दुर्वासा ऋषि जी ने चलने के लिए मना कर दिया, और फरमाया कि हम फिर कभी आपके पास आयेंगे।
श्री कृष्ण जी ने पुन: दुर्वासा ऋषि जी से विनती की तब दुर्वासा ऋषि जी ने फरमाया कि ठीक है कृष्ण हम तुम्हारे साथ चलेंगे..
लेकिन हम जिस रथ पर जायेंगे, उसे घोड़े नहीं खीचेंगें एक तरफ से तुम और एक तरफ से तुम्हारी पटरानी रुकमणि खीचेंगी।
श्री कृष्ण उसी समय दौड़ते हुए रुकमणि के पास गए और उन्हें बताया कि मुझे तुम्हारी सेवा की जरुरत है।
तब रुकमणि को उन्होंने सारी बात बताई तब वह दोनों अपने गुरुदेव के पास आये, और उन्हें रथ पर बैठने के लिए विनती की।
जब उनके गुरुदेव रथ पर बैठे तो उन्होंने अपने शिष्यों को भी रथ पर बैठने के लिए कहा..
लेकिन श्री कृष्ण जी ने परवाह ना की.. क्योंकि वे जानते थे कि गुरुदेव उनकी परीक्षा ले रहे है।
रुकमणि और श्री कृष्ण जी ने रथ को खींचना आरम्भ किया और उस रथ को खींचते - खींचते द्वारका ले पहुँचे।
जब गुरुदेव द्वारका पहुँचे तो श्री कृष्ण जी ने उन्हें राज सिंघासन पर बिठाया। उनका आदर सत्कार किया फिर श्री कृष्ण जी ने 56 तरह के व्यंजन बनवाये अपने गुरुदेव के लिए।
लेकिन जैसे ही वह व्यंजन गुरुदेव के पास पहुँचे उन्होंने सारे व्यंजनों का तिरस्कार कर दिया।
श्री कृष्ण जी ने पुन: अपने गुरुदेव से पूछा कि गुरुदेव आप क्या लेंगे ?
तब दुर्वासा ऋषि जी ने खीर बनवाने के लिए कहा। श्री कृष्ण जी ने आज्ञा मानकर खीर बनवाई।
खीर बनकर आई.. वो खीर से भरा पतीला दुर्वासा ऋषि जी के पास पहुँचा.. उन्होंने खीर का भोग लगाया.. थोड़ी-सी खीर का भोग लगा कर उन्होंने श्री कृष्ण जी को खाने के लिए कहा‌।
उस पतीले में से श्री कृष्ण जी ने थोड़ी सी खीर को खाया।
तब उनके गुरुदेव ने श्री कृष्ण को बाकी खीर अपने शरीर पर लगाने की आज्ञा दी। श्री कृष्ण जी ने आज्ञा पाकर खीर को अपने शरीर पर लगाना शुरू कर दिया।
उन्होंने पूरे शरीर पर खीर लगा ली। लेकिन जब पैर पर लगाने की बारी आई तो श्री कृष्ण जी ने अपने गुरुदेव को अपने पैरों पर खीर लगाने के लिए मना कर दिया।
श्री कृष्ण जी ने कहा ‘हे गुरुदेव.. यह खीर आपका भोग-प्रसाद है, मैं इस भोग को अपने पैरों पर नहीं लगाऊंगा।’
उनके गुरुदेव श्री कृष्ण जी से बहुत खुश हुए।
उन्होंने फरमाया ‘हे कृष्ण.. मैं तुमसे बहुत खुश हूँ तुम हर परीक्षा में सफल रहे, मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि पूरे शरीर में तुमने जहाँ -2 खीर लगाईं है वह अंग आपका वज्र के समान हो गया है...
और इतिहास साक्षी है कि महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण जी का कोई भी अस्त्र-शास्त्र बाल भी बाँका नहीं कर पाया।
जो अपने गुरुदेव की आज्ञा में तत्पर रहता है उन भक्तों को ही गुरुदेव का सच्चा प्यार और आशीर्वाद नसीब होता है।

*प्रश्न :* भगवान् विष्णु द्वारा इस जगत की रचना करने का क्या कारण है ?*उत्तर :* "प्राणियों के स्वामी (विष्णु) द्वारा भौति...
15/07/2025

*प्रश्न :* भगवान् विष्णु द्वारा इस जगत की रचना करने का क्या कारण है ?

*उत्तर :* "प्राणियों के स्वामी (विष्णु) द्वारा भौतिक सृष्टि की रचना बद्धजीवों के लिए भगवद्धाम वापस जाने का सुअवसर है |"

"भगवान् ने इस भौतिक जगत् को इसीलिए रचा कि बद्धजीव यह सीख सकें कि वे विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किस प्रकार यज्ञ करें जिससे वे इस जगत् में चिन्तारहित होकर सुखपूर्वक रह सकें तथा इस भौतिक देह का अन्त होने पर भगवद्धाम को जा सकें | बद्धजीव के लिए ही यह सम्पूर्ण कार्यक्रम है |"

*हरे कृष्ण! 🙏*

Address


Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Mandeepsheoran Foji posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Mandeepsheoran Foji:

Shortcuts

  • Address
  • Telephone
  • Alerts
  • Contact The Business
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share