22/06/2025
कहानी: "मानवता का मसीहा - रतन टाटा"
एक साधारण सी सुबह थी, जब शहर की एक गली में अचानक भीड़ जमा हो गई। लोगों की नजरें एक व्यक्ति पर टिकी थीं – वे थे रतन टाटा, एक ऐसा नाम जो केवल उद्योगपतियों में ही नहीं, बल्कि हर आम इंसान के दिल में बसता है। लेकिन आज वो किसी बिजनेस मीटिंग या समारोह में नहीं, बल्कि उन गलियों में थे जहाँ ज़िन्दगी की हकीकत छुपी होती है — गरीबों की दुनिया।
उनके हाथों में रुपये के कुछ नोट थे, और सामने खड़ी थी एक बुज़ुर्ग महिला, जिसकी आँखों में आँसू थे — लेकिन ये आँसू दर्द के नहीं, कृतज्ञता के थे। पास में खड़े दो और बूढ़े व्यक्ति हाथ जोड़कर आशीर्वाद दे रहे थे, मानो उन्हें भगवान का ही कोई रूप मिल गया हो।
रतन टाटा बिना किसी कैमरे, शोहरत या प्रचार के, बस एक इंसान बनकर आया थे — जो किसी भूखे पेट को खाना, किसी फटे हुए तन को कपड़ा, और किसी टूटी उम्मीद को एक नई रोशनी देना चाहता था।
यह दृश्य सिर्फ एक दान की कहानी नहीं थी — यह एक प्रेरणा थी। एक संदेश कि असली अमीरी पैसे में नहीं, बल्कि उस दिल में होती है जो दूसरों का दर्द समझ सके। रतन टाटा ने उस दिन यह साबित कर दिया कि जब एक बड़ा इंसान झुकता है, तो न सिर्फ किसी भूखे का पेट भरता है, बल्कि समाज की आत्मा भी तृप्त होती है।
"जो धन बांटा जाए वही सबसे बड़ा धन होता है, और जो दिलों में बस जाए वही सबसे बड़ा इंसान होता है।"