15/07/2025
मैं एक गाय हूँ। आज मैं उस सड़क किनारे खड़ी हूँ, जहाँ मेरी बारह बहनों का खून बिखरा पड़ा है। मेरी आँखें आँसुओं से भरी हैं, और मेरा हृदय दर्द से चीत्कार कर रहा है। बिलासपुर के इस गाँव की सड़क, जो कभी हमारी शरणस्थली थी, आज हमारी कब्रगाह बन गई। एक अज्ञात वाहन ने मेरी बहनों को कुचल दिया, और अब यहाँ सन्नाटा है, सिर्फ़ मेरी सिसकियों की आवाज़ गूँज रही है।
मैं पूछती हूँ, हमारा कसूर क्या था? हम तो बस वही कर रहे थे, जो हमें आता है—जीवन जीना, सड़क किनारे चरना, और अपने मालिकों की सेवा करना। लेकिन क्या यह हमारी गलती है कि हमें सड़कों पर छोड़ दिया जाता है? नहीं, यह गलती उन पशु मालिकों की है, जो हमें खुला छोड़ देते हैं, बिना यह सोचे कि सड़कें अब हमारी नहीं, तेज़ रफ़्तार वाहनों की हो चुकी हैं।
और शासन-प्रशासन? मैं उनसे सवाल करती हूँ—क्या तुमने कभी हमारी सुध ली? गोठानों का निर्माण हुआ, मगर उनमें हमें रखा ही नहीं जाता। सड़कों पर हमें रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। क्या हमारी जान की कीमत इतनी सस्ती है? सरकार हमारी रक्षा का दम भरती है, लेकिन जब हम सड़कों पर मर रहे हैं, तब वह कहाँ होती है? गोवंश की रक्षा के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, पर हकीकत में हमारी चीखें अनसुनी रह जाती हैं।
मैं बिलख रही हूँ, क्योंकि मेरी बहनों की साँसें छिन गईं। क्या वे सिर्फ़ एक संख्या बनकर रह जाएँगी? क्या मेरी करुण पुकार कभी सुनी जाएगी? मैं सरकार से, समाज से, हर उस इंसान से पूछती हूँ—कब तक हम यूँ ही मरते रहेंगे? कब तक सड़कें हमारी कब्र बनती रहेंगी? मेरी आवाज़ शायद कमज़ोर है, लेकिन मेरा दर्द बहुत बड़ा है।
हे सरकार, हे इंसानों, मेरी पुकार सुनो! हमें गोठानों में जगह दो, सड़कों को सुरक्षित बनाओ, और हमें वह सम्मान दो, जो तुम हमें अपनी संस्कृति का हिस्सा कहकर देते हो। मेरी बहनों की मौत व्यर्थ न जाए। मेरी करुण पुकार कब सुनेगी सरकार?