Curiosity VAM

Curiosity VAM कल्पनाओं के पंख देता है — लेखन।
(जहाँ सोच रुक जाए, वहाँ से लेखन उड़ान भरता है।)

30/08/2025

आरा, बिहार: लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) के कार्यकर्ताओं को टॉफियाँ ऑफ़र कीं। ये वही कार्यकर्ता थे जिन्होंने उन्हें काले झंडे दिखाए और दरभंगा मे की एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री और उनकी दिवंगत माता के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर उनका सामना किया।

राहुल गांधी ने मुस्कुराते हुए विरोध करने आए कार्यकर्ताओं से कहा – “आप लोग गुस्सा मत करिए, ये लो टॉफी खाइए।”
कांग्रेस नेताओं ने इसे उनके धैर्य और सहज स्वभाव का उदाहरण बताया, जबकि भाजपा कार्यकर्ताओं ने इसे विरोध को हल्के में लेने की कोशिश करार दिया।

पीटर नवारो चाहे सिर पीट ले, सच्चाई यह है कि अब भारत तेल के खेल में बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। जुलाई 2025 में भारत यूक्रेन ...
30/08/2025

पीटर नवारो चाहे सिर पीट ले, सच्चाई यह है कि अब भारत तेल के खेल में बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। जुलाई 2025 में भारत यूक्रेन को सबसे ज़्यादा डीज़ल सप्लाई करने वाला देश बना। यूक्रेनी ऑयल मार्केट एनालिटिक्स फर्म NaftoRynok के अनुसार भारत से रोज़ाना औसतन 2,700 टन डीज़ल यूक्रेन भेजा गया। जुलाई 2025 में भारत की हिस्सेदारी 15.5% रही जबकि जुलाई 2024 में यह केवल 1.9% थी यानी एक साल में आठ गुना से ज़्यादा बढ़ोतरी। यही वजह है कि अमेरिका बेचैन है, क्योंकि पहले तेल और ऊर्जा सप्लाई की राजनीति उसी के हाथ में थी लेकिन अब भारत ने बाज़ार में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा दी है और यूक्रेन जैसे युद्धग्रस्त देश के लिए अहम सप्लायर बन गया है। साफ़ है कि अब भारत तय करेगा कौन कितने डीज़ल पर चलेगा और यही बात अमेरिका को सबसे ज़्यादा खटक रही है।

भारत अब सिर्फ़ ऊर्जा बाज़ार का हिस्सा नहीं बल्कि उसकी दिशा तय करने वाला बन रहा है। अमेरिका को तकलीफ़ इसलिए है क्योंकि पहले “तेल की राजनीति” उसी की मोनोपॉली थी, अब भारत उसकी बराबरी पर खड़ा दिखाई दे रहा है। ये बढ़त केवल व्यापार नहीं बल्कि भू-राजनीतिक ताक़त का संकेत है। आने वाले वक्त में भारत की डीज़ल सप्लाई सिर्फ़ यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यूरोप और बाकी दुनिया के लिए भी भारत एक अहम ऊर्जा स्रोत बन सकता है। यही वजह है कि वॉशिंगटन से लेकर ब्रुसेल्स तक हलचल मची हुई है।

19वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी को असली मुनाफ़ा सिर्फ़ एक व्यापार से होता था – अफ़ीम के कारोबार से।इस अफ़ीम व्यापार ने च...
26/08/2025

19वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी को असली मुनाफ़ा सिर्फ़ एक व्यापार से होता था – अफ़ीम के कारोबार से।

इस अफ़ीम व्यापार ने चीन को बर्बादी की कगार पर पहुँचा दिया और भारत में अंग्रेज़ों की सत्ता को मज़बूती दी, क्योंकि अफ़ीम से हुए भारी मुनाफ़े ने ही अंग्रेज़ों को भारत पर लंबे समय तक क़ाबिज़ रहने की ताक़त दी।

भारत को इसका दीर्घकालिक नुकसान हुआ – सामाजिक, आर्थिक और नैतिक रूप से।

अफ़ीम के इस धंधे से भारत, यूरोप और अमेरिका के कई परिवारों और कंपनियों ने अपार दौलत कमाई और समृद्ध हुए।

इस अफ़ीम व्यापार की पूरी कड़ी बड़ी चतुराई से बनाई गई थी — भारत में अफ़ीम उगवाना, उसे चीन में बेचना और वहाँ से कमाई हुई चांदी से यूरोप और ब्रिटेन का व्यापार चलाना।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में किसानों पर दबाव डालकर अफ़ीम की खेती करवाई। किसान अपनी ज़रूरतों के अनुकूल फसल नहीं उगा सकते थे, जिससे उनकी आज़ादी भी छिन गई।

चीन में जब लोगों की ज़िंदगी अफ़ीम की लत से बर्बाद होने लगी, तब वहां के शासकों ने इसका विरोध किया। लेकिन ब्रिटेन ने 1839 और 1856 में दो 'अफ़ीम युद्ध' लड़कर चीन को झुका दिया।

इन युद्धों के बाद चीन को ज़बरदस्ती व्यापार के लिए अपने बंदरगाह खोलने पड़े और हांगकांग जैसे इलाके ब्रिटेन को सौंपने पड़े।

इस तरह, एक नशे के कारोबार ने एशिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताओं – भारत और चीन – को आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया, और पश्चिमी साम्राज्य को ताक़तवर बना दिया।
भारत में अफ़ीम केवल एक फसल नहीं थी — यह एक औपनिवेशिक हथियार था।

अंग्रेज़ों ने किसानों को अफ़ीम की खेती के लिए मजबूर करने के लिए "बाग़ीचों" की प्रणाली बनाई, जहाँ किसान को तय मात्रा में अफ़ीम उगानी होती थी, वो भी सरकार द्वारा तय कम दाम पर। अगर किसान मना करता, तो उसे सज़ा मिलती या जुर्माना देना पड़ता।

इस व्यवस्था ने भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया।
किसान कर्ज़ में डूबते गए, खाद्यान्न उत्पादन घटता गया, और भूखमरी बढ़ने लगी।

अफ़ीम के व्यापार से जो पैसा आता था, उसका इस्तेमाल अंग्रेज़ी फौज, अफ़सरशाही और रेलवे जैसी उपनिवेशिक संरचनाओं में किया गया — यानी भारत के ही धन से भारत पर राज किया गया।

आज जब हम विकास की बात करते हैं, तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत की गरीबी की जड़ें सिर्फ़ प्राकृतिक या सामाजिक नहीं, बल्कि औपनिवेशिक नीतियों में भी गहरी धँसी हैं।

अफ़ीम सिर्फ़ एक नशा नहीं था — यह एक साम्राज्य की नींव थी।

अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा अनुसंधान और विकास (R&D) पर किया गया खर्च दिखाया गया ...
10/08/2025

अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा अनुसंधान और विकास (R&D) पर किया गया खर्च दिखाया गया है। सबसे ऊपर अमेरिका है, फिर चीन, फिर यूरोपियन यूनियन, फिर जापान और फिर साउथ कोरिया। लेकिन इस लिस्ट में भारत का नाम नहीं है, क्योंकि भारत इन सभी देशों के मुकाबले बहुत ही कम पैसा R&D पर खर्च करता है। इसी वजह से भारत नई टेक्नोलॉजी, वैज्ञानिक खोज और इनोवेशन के मामले में पीछे रह जाता है। जब तक भारत R&D में ज्यादा निवेश नहीं करेगा, तब तक भारत दुनिया की लीडरशिप में नहीं आ पाएगा, और सिर्फ दूसरों की बनाई टेक्नोलॉजी पर निर्भर रहेगा। इसलिए यह चार्ट हमें एक साफ संदेश देता है — अगर हमें तरक्की करनी है, तो R&D में पैसा लगाना ही होगा।

चीन ने पिछले 15 सालों में R&D पर अपना खर्च बहुत तेज़ी से बढ़ाया है। 2007 में चीन अमेरिका से बहुत पीछे था, लेकिन अब वो लगभग बराबरी पर पहुंच चुका है। इसका मतलब है कि चीन ने वैज्ञानिक शोध, तकनीकी विकास और इनोवेशन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है।

वहीं भारत अब भी इस रेस से बाहर है। न तो सरकार और न ही निजी क्षेत्र R&D में पर्याप्त निवेश कर रहे हैं। इसका असर ये होता है कि भारत को दवाएं, मशीनें, तकनीक और सॉफ्टवेयर के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।

अगर भारत को आत्मनिर्भर बनना है, रोजगार बढ़ाने हैं और दुनिया में तकनीकी ताकत बननी है — तो R&D में खर्च बढ़ाना ही पड़ेगा।
वरना हम सिर्फ बाज़ार रह जाएंगे, निर्माता नहीं।

भारत की स्थिति को समझने के लिए यह सोचना ज़रूरी है कि R&D सिर्फ लैब में बैठकर कुछ बनाने का काम नहीं है — यह एक देश की सोच, नीति और भविष्य की दिशा तय करता है।

अमेरिका और चीन इसलिए आगे हैं क्योंकि उन्होंने शिक्षा, वैज्ञानिक शोध, टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स, यूनिवर्सिटी रिसर्च और इंडस्ट्री-इनोवेशन को जोड़कर एक मज़बूत R&D सिस्टम बनाया है।

भारत में क्या होता है?

साइंस को करियर नहीं, परीक्षा पास करने का ज़रिया समझा जाता है।

रिसर्च के लिए फंडिंग कम मिलती है।

सरकारी संस्थानों में नौकरशाही ज्यादा और स्वतंत्रता कम होती है।

प्राइवेट कंपनियाँ भी जल्दी मुनाफा चाहती हैं, रिसर्च में निवेश कम करती हैं।

नतीजा — प्रतिभा होते हुए भी भारत पीछे है।

अगर यही चलता रहा, तो आने वाले सालों में भारत सिर्फ उपभोक्ता बना रहेगा, निर्माता नहीं।
हमें अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास करना होगा, उन्हें संसाधन और आज़ादी देनी होगी — तभी भारत विश्व नेतृत्व कर पाएगा।

10/08/2025

शरीर में जब हम खाना खाते हैं तो हमारे खून में कुछ गंदगी और बेकार चीज़ें बन जाती हैं। इन बेकार चीज़ों को बाहर निकालना ज़रूरी होता है। ये काम हमारे शरीर के गुर्दे (किडनी) करते हैं।

हर इंसान के पास दो किडनी होती हैं। किडनी के अंदर लाखों छोटे-छोटे फिल्टर होते हैं, जिन्हें नेफ्रॉन कहते हैं। यही नेफ्रॉन खून को छानते हैं और उसमें से गंदगी और ज़रूरत से ज़्यादा पानी निकालते हैं।

जो चीज़ें ज़रूरी होती हैं जैसे कुछ पानी और पोषक तत्व, उन्हें वापस खून में भेज दिया जाता है। और जो गंदगी और फालतू पानी बचता है, वो पेशाब बन जाता है।

यह पेशाब पतली नली से होकर मूत्राशय (ब्लैडर) में जमा होती है। जब ब्लैडर भर जाता है, तो हमें पेशाब करने की इच्छा होती है। फिर ये पेशाब एक और नली (यूरीथ्रा) से होकर शरीर से बाहर निकल जाती है।
-----------------------------------------------------------------------
खून से गंदगी निकालने का काम किडनी करती है, नेफ्रॉन पेशाब बनाते हैं, पेशाब ब्लैडर में जमा होता है, फिर बाहर निकलता है।

💡 पेशाब बनाने से जुड़े आसान तथ्य:
किडनी दिनभर में लगभग 50 बार खून को छानती है।
मतलब हर वक्त आपकी किडनी सफाई में लगी रहती है।

एक दिन में एक इंसान लगभग 1 से 2 लीटर पेशाब करता है।
यह इस पर निर्भर करता है कि आपने कितना पानी पिया है।

पेशाब का रंग हल्का पीला होता है क्योंकि उसमें यूरिया और दूसरी बेकार चीज़ें मिली होती हैं।

अगर पेशाब का रंग गहरा पीला या बदबूदार हो तो यह संकेत हो सकता है कि आप कम पानी पी रहे हैं या शरीर में कोई दिक्कत है।

किडनी खराब हो जाए तो पेशाब बनना रुक सकता है, जिससे शरीर में ज़हर भर सकता है – इसलिए किडनी की देखभाल ज़रूरी है।

✅ किडनी और पेशाब की सेहत के लिए क्या करें?
खूब पानी पिएँ (दिन में 6–8 गिलास)

ज़्यादा नमक और जंक फूड से बचें

ज़्यादा देर तक पेशाब न रोकें

समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराएँ

09/08/2025

🚶‍♂️ हमारे शरीर में कोशिकाएँ (Cells) क्या होती हैं?
हमारा शरीर लाखों-करोड़ों छोटी-छोटी इकाइयों यानी कोशिकाओं से बना होता है। ये कोशिकाएँ ईंटों की तरह होती हैं, जो मिलकर पूरा शरीर बनाती हैं।

हर कोशिका को पता होता है कि उसे कब बनना है, कितना काम करना है और कब मर जाना है। ये सब कुछ शरीर बहुत ही अनुशासन के साथ करता है।

✅ स्वस्थ कोशिका (Healthy Cell) क्या होती है?
स्वस्थ कोशिका शरीर के नियम मानती है।

यह ज़रूरत पर बनती है,

शरीर का काम करती है (जैसे खून बनाना, मांसपेशियाँ बनाना, घाव भरना),

और जब उसका काम खत्म हो जाता है, तो वह खुद ही मर जाती है।

ये कोशिकाएँ एक अनुशासित नागरिक की तरह होती हैं – जो अपने देश (शरीर) का सही तरीके से साथ देती हैं।

❌ कैंसर कोशिका (Cancer Cell) क्या होती है?
कैंसर कोशिका एक बिगड़ैल और ज़िद्दी कोशिका होती है।

यह बिना ज़रूरत के बार-बार बनती रहती है,

मरती नहीं है या बहुत देर से मरती है,

और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलकर नुकसान पहुँचाती है।

ये शरीर के कानून नहीं मानती और अपने मन से बढ़ती जाती है — जैसे कोई अपराधी जो दूसरों की जगह छीनने लगे।

🔍 मुख्य अंतर (Difference):
तुलना स्वस्थ कोशिका कैंसर कोशिका
बनती कब है जब ज़रूरत हो बिना ज़रूरत के
मरती है हाँ, समय पर नहीं या बहुत देर से
नियम मानती है हाँ नहीं
फैलाव सीमित तेजी से हर जगह
--------------------------------------
🌱 उदाहरण से समझें:
सोचिए एक बग़ीचा है — हर पौधा अपनी जगह पर ठीक से बढ़ रहा है। पर अगर एक पौधा बहुत तेजी से बढ़ने लगे और बाकी पौधों की जगह छीन ले, तो वह नुकसान करेगा।

वही कैंसर कोशिका करती है — यह शरीर के अंदर बाकी अच्छी कोशिकाओं की जगह और पोषण छीन लेती है।

------------------------------------------------------
स्वस्थ कोशिका शरीर के लिए काम करती है।
कैंसर कोशिका शरीर के खिलाफ काम करती है।

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे :-भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे है, जबकि बाकी देश का...
09/08/2025

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे :-

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे है, जबकि बाकी देश काफी आगे निकल चुके हैं।
अगर ऐसा ही चलता रहा, तो भारत कभी वैश्विक शक्ति नहीं बन पाएगा।
हमें केवल जनसंख्या पर नहीं, बल्कि हर नागरिक की समृद्धि पर ध्यान देना होगा।
केवल विकास नहीं, समावेशी विकास ज़रूरी है।
वरना हम आगे नहीं, बस पीछे छूटते रहेंगे।

अगर हर नागरिक की आमदनी नहीं बढ़ी, तो जीडीपी बढ़ने का मतलब सिर्फ आंकड़ों का खेल बनकर रह जाएगा।
दूसरे देश तकनीक, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करके आगे बढ़ रहे हैं, और हम अब भी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं।
भारत को अगर सच्चे अर्थों में महाशक्ति बनना है, तो गुणवत्ता परक शिक्षा, रोज़गार के अवसर और आर्थिक समानता को प्राथमिकता देनी होगी।
वरना दुनिया दौड़ रही होगी, और हम पीछे छाया ढूंढते रह जाएंगे।
अब वक्त आ गया है — सिर्फ वादे नहीं, नीति और नीयत में बदलाव चाहिए।

प्रति व्यक्ति आय सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि हर भारतीय के जीवन स्तर का आईना है।
जब तक गाँवों में किसान कर्ज़ में डूबा रहेगा और शहरों में युवा बेरोज़गार घूमेगा, तब तक विकास अधूरा है।
दुनिया चांद पर बस्ती बसाने की बात कर रही है, और हम अब भी पीने के पानी और बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
भारत को सिर्फ अमीरों का देश नहीं, हर नागरिक के लिए अवसरों का देश बनना होगा।
असली तरक्की तब होगी जब हर हाथ को काम और हर घर को सम्मान मिलेगा।
देश को आगे ले जाने के लिए अब सही दिशा और सच्चा इरादा ज़रूरी है।

साज़िश और सत्ता:-सत्ता को साज़िशों की आदत है,वो खुला सच नहीं, बंद कमरों से मोहब्बत है।जहाँ फैसले होते हैं —पर जनता को सि...
06/08/2025

साज़िश और सत्ता:-

सत्ता को साज़िशों की आदत है,
वो खुला सच नहीं, बंद कमरों से मोहब्बत है।
जहाँ फैसले होते हैं —
पर जनता को सिर्फ़ आदेश मिलता है।
जहाँ नीतियाँ बनती हैं —
पर नीयत किसी को नहीं दिखती।

साज़िशें चलती हैं वहाँ,
जहाँ कुर्सी से बड़ा कुछ नहीं होता,
जहाँ इंसान को "डेटा" कहा जाता है,
और आत्मा को "रेटिंग" से तौला जाता है।

वे कहते हैं —
"हम तुम्हारे लिए काम कर रहे हैं।"
पर असल में
वे तुम्हारे नाम से अपने लिए राज कर रहे हैं।

हर चुनाव एक नया अभिनय है,
हर वादा एक अधूरी पटकथा,
हर झूठ —
इतना बार बोला जाता है कि
सच जैसा लगने लगता है।

और जब कोई पूछता है — "सबका साथ, या सिर्फ़ अपने का साथ?"
तो उसे देशद्रोही बना दिया जाता है।

ये साज़िशें इतनी महीन हैं कि
तुम्हें लगता है — ये व्यवस्था है,
पर असल में ये वशीकरण है।

अब समय है…
सत्ता की साज़िशों को पहचानने का,
हर प्रचार को तौलने का,
और हर "सच" को
अपने तर्क और विवेक से परखने का।

क्योंकि अगर तुम आज नहीं जागे —
तो कल तुम्हारे बच्चों को
इन साज़िशों की गुलामी विरासत में मिलेगी

✍️ विरेंद्र कुमार

05/08/2025

बड़े-बड़े देश, खासकर G20 देश, दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन पर गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहे।
ये लापरवाही आने वाले समय में पूरी दुनिया के लिए विनाश का कारण बन सकती है।
बड़ी-बड़ी कंपनियाँ मुनाफे के लिए पर्यावरण की अनदेखी कर रही हैं और ज़हरीला प्रदूषण फैला रही हैं।
अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो ये विकास नहीं, बल्कि विनाश की ओर बढ़ता रास्ता होगा।

इन विकसित देशों की फैक्ट्रियाँ और उद्योग दिन-रात धुआँ उगल रहे हैं, जिससे हवा, पानी और ज़मीन सब ज़हर बनते जा रहे हैं।
गरीब और विकासशील देश इस प्रदूषण का सबसे बड़ा शिकार बन रहे हैं, जबकि उनका योगदान सबसे कम है।
G20 देश सिर्फ बैठकों और वादों तक सीमित हैं, लेकिन ज़मीन पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे।
प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को न कोई रोक रहा है, न उन पर सख्त कानून लागू हो रहे हैं।
यह पर्यावरण का नहीं, मानवता का संकट बन चुका है – और इसके पीछे हैं वही ताकतें जो खुद को सबसे विकसित कहते हैं।

ये बड़े देश अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का दोहन कर रहे हैं – जंगल काटे जा रहे हैं, नदियाँ सुखाई जा रही हैं, और पहाड़ों को चीरकर मुनाफा कमाया जा रहा है।
जलवायु संकट पर उनके भाषण तो लम्बे होते हैं, लेकिन ज़मीनी बदलाव ना के बराबर हैं।
कार्बन उत्सर्जन के मामले में यही देश सबसे आगे हैं, फिर भी जिम्मेदारी लेने से बचते हैं।
छोटे देश और आम लोग जलवायु परिवर्तन की मार झेलते हैं, जबकि बड़े देश ऐश करते हैं।
अगर यही हाल रहा, तो ना हवा बचेगी, ना पानी – और इंसान अपने ही लालच से मिट जाएगा।
आज जिन तकनीकों और कारखानों को विकास का प्रतीक बताया जा रहा है, वही पृथ्वी के विनाश की जड़ बन चुके हैं।
बड़े देशों की कंपनियाँ गरीब देशों में फैक्ट्रियाँ लगाकर वहाँ का पर्यावरण भी बर्बाद कर रही हैं।
ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ का पिघलना, समुद्री स्तर का बढ़ना — ये सब चेतावनी है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं।
प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, तूफान अब सामान्य हो चुकी हैं – और इसका कारण है यही अंधाधुंध प्रदूषण।
जब तक बड़े देश अपने लालच को नहीं रोकते, तब तक धरती पर जीवन संकट में ही रहेगा।

बड़े राष्ट्रों की यह दोहरी नीति है — एक ओर वे जलवायु सम्मेलन करते हैं, दूसरी ओर कोयला, पेट्रोल और गैस का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भी वही करते हैं।
वे गरीब देशों को सलाह तो देते हैं, लेकिन खुद अपने कार्बन उत्सर्जन को घटाने की नीयत नहीं रखते।
उनकी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ जंगलों को काटकर मॉल, हाइवे और खदानें बना रही हैं — पर्यावरण का संतुलन बिगाड़कर।
पैसा और सत्ता के लिए वे धरती की प्राकृतिक विरासत को कुर्बान कर रहे हैं।
अगर यह वैश्विक असंतुलन नहीं रुका, तो भविष्य में धरती पर सांस लेना भी एक लग्ज़री बन जाएगा।

04/08/2025

नौशिर गोवादिया, जो मुंबई में जन्मे थे और बाद में अमेरिका के नागरिक बने, एक प्रतिभाशाली एयरोस्पेस इंजीनियर थे। उन्होंने अमेरिका के सबसे खतरनाक और गुप्त हथियार B-2 स्टेल्थ बॉम्बर की डिज़ाइन में अहम भूमिका निभाई थी। B-2 बॉम्बर की स्टेल्थ क्षमता, यानी रडार और हीट सेंसर से बचने की तकनीक, उनके डिज़ाइन किए गए एग्जॉस्ट सिस्टम पर आधारित थी। लेकिन यही शख्स, जिसने कभी अमेरिकी रक्षा की रीढ़ को मजबूती दी, बाद में अमेरिका का सबसे बड़ा गद्दार साबित हुआ।

उन्होंने 1970 में Northrop कंपनी जॉइन की और “ब्लूबेरी मिल्कशेक” कोडनाम वाले प्रोजेक्ट पर B-2 की स्टेल्थ प्रणाली पर दो दशकों तक काम किया। लेकिन 1986 में उन्हें एक दुर्लभ रक्त विकार के कारण कंपनी से जाना पड़ा और फिर उन्होंने एक निजी रक्षा कंसल्टेंसी कंपनी शुरू की। 1997 में एक सरकारी विवाद के बाद उनकी सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई। इसके बाद उनकी वित्तीय हालत बिगड़ने लगी। उन्होंने हवाई में $3.5 मिलियन का एक विला खरीदा और हर महीने $15,000 की किश्त चुकानी थी।

पैसों की तंगी में फंसे गोवादिया ने 2003 से चीन से गुप्त संपर्क बनाए और 6 बार चीन के चेंगदू और शेनझेन शहरों की यात्रा की। वहां उन्होंने B-2 जैसी ही एक क्रूज़ मिसाइल के लिए चीन को स्टेल्थ एग्जॉस्ट सिस्टम डिज़ाइन करने में मदद की, जिससे मिसाइल रडार और इंफ्रारेड से छुप सके। इसके बदले उन्हें $110,000 से ज्यादा का भुगतान मिला, जिसे उन्होंने अपने मकान की किश्तें भरने में लगाया। जब अमेरिकी कस्टम अधिकारियों ने कैश पर सवाल उठाया, तो उन्होंने बहाना बनाया कि ये एक पुरानी मेज़ खरीदने के लिए है।

2004 में उनके द्वारा मंगाए गए सामान में प्रतिबंधित रक्षा सामग्री मिली, जिससे FBI को शक हुआ। इसके बाद उन पर कड़ी निगरानी रखी गई और 13 अक्टूबर 2005 को उनके घर पर छापा मारा गया, जहाँ से 500 पाउंड से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक सबूत, डिजाइन, ईमेल्स और डिवाइस जब्त किए गए। पूछताछ में गोवादिया ने कबूल किया: “जो मैंने किया वह चीन की मदद करना, जासूसी और देशद्रोह था।”

2010 में शुरू हुए मुकदमे में गोवादिया ने कहा कि उन्होंने केवल "declassified" यानी सार्वजनिक जानकारी साझा की थी, लेकिन अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत लाभ के लिए अमेरिका से अपनी निष्ठा तोड़ी। उन्हें 14 में से 14 आरोपों में दोषी पाया गया और 32 साल की सजा सुनाई गई। आज वे कोलोराडो की एक अधिकतम सुरक्षा जेल में बंद हैं।

लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। मई 2025 में चीन के एक सैन्य बेस पर एक नया स्टेल्थ ड्रोन देखा गया, जिसकी बनावट और एग्जॉस्ट सिस्टम B-2 जैसे ही थे। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह गोवादिया द्वारा दी गई तकनीक का नतीजा है। उनके बेटे ने इस फैसले को पक्षपातपूर्ण बताया, लेकिन गोवादिया खुद अदालत में कह चुके हैं: “मैंने जो किया, वह जासूसी और देशद्रोह था।”

B-2 बॉम्बर, जिसे “स्पिरिट” भी कहा जाता है, आज भी अमेरिका का सबसे गुप्त और ताकतवर हथियार है। यह 10,000 नॉटिकल मील तक उड़ सकता है, परमाणु और पारंपरिक हथियार ले सकता है, और रडार पर एक छोटे पक्षी जितना दिखता है। इसका सबसे क्रांतिकारी हिस्सा — स्टेल्थ एग्जॉस्ट डिज़ाइन — नौशिर गोवादिया की देन था।

जून 2025 में, अमेरिका ने “मिडनाइट हैमर” नाम की गुप्त सैन्य कार्रवाई में ईरान के तीन परमाणु स्थलों पर हमला किया और इसमें 7 B-2 बॉम्बर शामिल थे। इस एक्शन ने फिर से दुनिया को दिखाया कि स्टेल्थ तकनीक कैसे युद्ध की दिशा बदल सकती है — लेकिन यह भी याद दिलाया कि जब ऐसी तकनीक गलत हाथों में जाती है, तो उसके परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं।

Address

Darbhanga

Telephone

+917050131739

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Curiosity VAM posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share