Curiosity VAM

Curiosity VAM कल्पनाओं के पंख देता है — लेखन।
(जहाँ सोच रुक जाए, वहाँ से लेखन उड़ान भरता है।)

28/09/2025

अमेरिका अब खुले तौर पर भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने किसानों और बाज़ार को अमेरिकी भुट्टे (कॉर्न) के लिए खोल दे।

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने बयान दिया –

🗣️ “कुछ देश हैं जिन्हें हमें ठीक (Fix) करना है, जैसे इंडिया और ब्राज़ील। इन देशों को अमेरिका के प्रति सही प्रतिक्रिया देनी होगी। उन्हें अपने बाज़ार खोलने होंगे और ऐसे कदम उठाने बंद करने होंगे जो अमेरिका को नुकसान पहुँचाते हैं।”

यानी साफ़-साफ़ धमकी कि भारत अगर अमेरिकी भुट्टा नहीं खरीदेगा, तो उसे “ठीक” कर दिया जाएगा।

👉 किसान और कृषि विशेषज्ञ इसे भारत की खाद्य-सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर सीधा हमला मान रहे हैं।

---------------------झूठ का षड्यंत्र---------------------सत्ता के महलों में लिखी जाती पटकथा,झूठ के रंग से रंगा जाता हर क...
27/09/2025

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झूठ का षड्यंत्र
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सत्ता के महलों में लिखी जाती पटकथा,
झूठ के रंग से रंगा जाता हर किस्सा।
कभी राष्ट्रवाद का मुखौटा पहनाते हैं,
कभी विकास का सपना दिखलाते हैं।

षड्यंत्र की फैक्ट्री चौबीस घंटे चलती है,
टीवी की स्क्रीन से ज़हर बरसता है।
सवाल पूछने वाला देशद्रोही ठहराया जाता है,
और झूठ बोलने वाला देशभक्त कहलाता है।

काग़ज़ों में आँकड़े गढ़े जाते हैं,
ग़रीब की भूख फोटोशूट में ढके जाते हैं।
नेता भाषणों में ईमान बेचते हैं,
और जनता ताली बजाकर सच भूल जाती है।

पर इतिहास चुप नहीं रहता,
षड्यंत्र का हर धागा खुलता है।
झूठ चाहे सौ नकाब ओढ़ ले,
जनता की आँखों में सच जलता है।

वो दिन आएगा जब
झूठ का साम्राज्य ढह जाएगा,
षड्यंत्र रचने वाले
अपनी ही चाल में फँस जाएँगे।

क्योंकि—
सत्ता से बड़ा है जनमत,
और जनमत से बड़ा है सत्य।
Curiosity VAM
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30/08/2025

आरा, बिहार: लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) के कार्यकर्ताओं को टॉफियाँ ऑफ़र कीं। ये वही कार्यकर्ता थे जिन्होंने उन्हें काले झंडे दिखाए और दरभंगा मे की एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री और उनकी दिवंगत माता के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर उनका सामना किया।

राहुल गांधी ने मुस्कुराते हुए विरोध करने आए कार्यकर्ताओं से कहा – “आप लोग गुस्सा मत करिए, ये लो टॉफी खाइए।”
कांग्रेस नेताओं ने इसे उनके धैर्य और सहज स्वभाव का उदाहरण बताया, जबकि भाजपा कार्यकर्ताओं ने इसे विरोध को हल्के में लेने की कोशिश करार दिया।

पीटर नवारो चाहे सिर पीट ले, सच्चाई यह है कि अब भारत तेल के खेल में बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। जुलाई 2025 में भारत यूक्रेन ...
30/08/2025

पीटर नवारो चाहे सिर पीट ले, सच्चाई यह है कि अब भारत तेल के खेल में बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। जुलाई 2025 में भारत यूक्रेन को सबसे ज़्यादा डीज़ल सप्लाई करने वाला देश बना। यूक्रेनी ऑयल मार्केट एनालिटिक्स फर्म NaftoRynok के अनुसार भारत से रोज़ाना औसतन 2,700 टन डीज़ल यूक्रेन भेजा गया। जुलाई 2025 में भारत की हिस्सेदारी 15.5% रही जबकि जुलाई 2024 में यह केवल 1.9% थी यानी एक साल में आठ गुना से ज़्यादा बढ़ोतरी। यही वजह है कि अमेरिका बेचैन है, क्योंकि पहले तेल और ऊर्जा सप्लाई की राजनीति उसी के हाथ में थी लेकिन अब भारत ने बाज़ार में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा दी है और यूक्रेन जैसे युद्धग्रस्त देश के लिए अहम सप्लायर बन गया है। साफ़ है कि अब भारत तय करेगा कौन कितने डीज़ल पर चलेगा और यही बात अमेरिका को सबसे ज़्यादा खटक रही है।

भारत अब सिर्फ़ ऊर्जा बाज़ार का हिस्सा नहीं बल्कि उसकी दिशा तय करने वाला बन रहा है। अमेरिका को तकलीफ़ इसलिए है क्योंकि पहले “तेल की राजनीति” उसी की मोनोपॉली थी, अब भारत उसकी बराबरी पर खड़ा दिखाई दे रहा है। ये बढ़त केवल व्यापार नहीं बल्कि भू-राजनीतिक ताक़त का संकेत है। आने वाले वक्त में भारत की डीज़ल सप्लाई सिर्फ़ यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यूरोप और बाकी दुनिया के लिए भी भारत एक अहम ऊर्जा स्रोत बन सकता है। यही वजह है कि वॉशिंगटन से लेकर ब्रुसेल्स तक हलचल मची हुई है।

19वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी को असली मुनाफ़ा सिर्फ़ एक व्यापार से होता था – अफ़ीम के कारोबार से।इस अफ़ीम व्यापार ने च...
26/08/2025

19वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी को असली मुनाफ़ा सिर्फ़ एक व्यापार से होता था – अफ़ीम के कारोबार से।

इस अफ़ीम व्यापार ने चीन को बर्बादी की कगार पर पहुँचा दिया और भारत में अंग्रेज़ों की सत्ता को मज़बूती दी, क्योंकि अफ़ीम से हुए भारी मुनाफ़े ने ही अंग्रेज़ों को भारत पर लंबे समय तक क़ाबिज़ रहने की ताक़त दी।

भारत को इसका दीर्घकालिक नुकसान हुआ – सामाजिक, आर्थिक और नैतिक रूप से।

अफ़ीम के इस धंधे से भारत, यूरोप और अमेरिका के कई परिवारों और कंपनियों ने अपार दौलत कमाई और समृद्ध हुए।

इस अफ़ीम व्यापार की पूरी कड़ी बड़ी चतुराई से बनाई गई थी — भारत में अफ़ीम उगवाना, उसे चीन में बेचना और वहाँ से कमाई हुई चांदी से यूरोप और ब्रिटेन का व्यापार चलाना।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में किसानों पर दबाव डालकर अफ़ीम की खेती करवाई। किसान अपनी ज़रूरतों के अनुकूल फसल नहीं उगा सकते थे, जिससे उनकी आज़ादी भी छिन गई।

चीन में जब लोगों की ज़िंदगी अफ़ीम की लत से बर्बाद होने लगी, तब वहां के शासकों ने इसका विरोध किया। लेकिन ब्रिटेन ने 1839 और 1856 में दो 'अफ़ीम युद्ध' लड़कर चीन को झुका दिया।

इन युद्धों के बाद चीन को ज़बरदस्ती व्यापार के लिए अपने बंदरगाह खोलने पड़े और हांगकांग जैसे इलाके ब्रिटेन को सौंपने पड़े।

इस तरह, एक नशे के कारोबार ने एशिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताओं – भारत और चीन – को आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया, और पश्चिमी साम्राज्य को ताक़तवर बना दिया।
भारत में अफ़ीम केवल एक फसल नहीं थी — यह एक औपनिवेशिक हथियार था।

अंग्रेज़ों ने किसानों को अफ़ीम की खेती के लिए मजबूर करने के लिए "बाग़ीचों" की प्रणाली बनाई, जहाँ किसान को तय मात्रा में अफ़ीम उगानी होती थी, वो भी सरकार द्वारा तय कम दाम पर। अगर किसान मना करता, तो उसे सज़ा मिलती या जुर्माना देना पड़ता।

इस व्यवस्था ने भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया।
किसान कर्ज़ में डूबते गए, खाद्यान्न उत्पादन घटता गया, और भूखमरी बढ़ने लगी।

अफ़ीम के व्यापार से जो पैसा आता था, उसका इस्तेमाल अंग्रेज़ी फौज, अफ़सरशाही और रेलवे जैसी उपनिवेशिक संरचनाओं में किया गया — यानी भारत के ही धन से भारत पर राज किया गया।

आज जब हम विकास की बात करते हैं, तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत की गरीबी की जड़ें सिर्फ़ प्राकृतिक या सामाजिक नहीं, बल्कि औपनिवेशिक नीतियों में भी गहरी धँसी हैं।

अफ़ीम सिर्फ़ एक नशा नहीं था — यह एक साम्राज्य की नींव थी।

अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा अनुसंधान और विकास (R&D) पर किया गया खर्च दिखाया गया ...
10/08/2025

अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा अनुसंधान और विकास (R&D) पर किया गया खर्च दिखाया गया है। सबसे ऊपर अमेरिका है, फिर चीन, फिर यूरोपियन यूनियन, फिर जापान और फिर साउथ कोरिया। लेकिन इस लिस्ट में भारत का नाम नहीं है, क्योंकि भारत इन सभी देशों के मुकाबले बहुत ही कम पैसा R&D पर खर्च करता है। इसी वजह से भारत नई टेक्नोलॉजी, वैज्ञानिक खोज और इनोवेशन के मामले में पीछे रह जाता है। जब तक भारत R&D में ज्यादा निवेश नहीं करेगा, तब तक भारत दुनिया की लीडरशिप में नहीं आ पाएगा, और सिर्फ दूसरों की बनाई टेक्नोलॉजी पर निर्भर रहेगा। इसलिए यह चार्ट हमें एक साफ संदेश देता है — अगर हमें तरक्की करनी है, तो R&D में पैसा लगाना ही होगा।

चीन ने पिछले 15 सालों में R&D पर अपना खर्च बहुत तेज़ी से बढ़ाया है। 2007 में चीन अमेरिका से बहुत पीछे था, लेकिन अब वो लगभग बराबरी पर पहुंच चुका है। इसका मतलब है कि चीन ने वैज्ञानिक शोध, तकनीकी विकास और इनोवेशन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है।

वहीं भारत अब भी इस रेस से बाहर है। न तो सरकार और न ही निजी क्षेत्र R&D में पर्याप्त निवेश कर रहे हैं। इसका असर ये होता है कि भारत को दवाएं, मशीनें, तकनीक और सॉफ्टवेयर के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।

अगर भारत को आत्मनिर्भर बनना है, रोजगार बढ़ाने हैं और दुनिया में तकनीकी ताकत बननी है — तो R&D में खर्च बढ़ाना ही पड़ेगा।
वरना हम सिर्फ बाज़ार रह जाएंगे, निर्माता नहीं।

भारत की स्थिति को समझने के लिए यह सोचना ज़रूरी है कि R&D सिर्फ लैब में बैठकर कुछ बनाने का काम नहीं है — यह एक देश की सोच, नीति और भविष्य की दिशा तय करता है।

अमेरिका और चीन इसलिए आगे हैं क्योंकि उन्होंने शिक्षा, वैज्ञानिक शोध, टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स, यूनिवर्सिटी रिसर्च और इंडस्ट्री-इनोवेशन को जोड़कर एक मज़बूत R&D सिस्टम बनाया है।

भारत में क्या होता है?

साइंस को करियर नहीं, परीक्षा पास करने का ज़रिया समझा जाता है।

रिसर्च के लिए फंडिंग कम मिलती है।

सरकारी संस्थानों में नौकरशाही ज्यादा और स्वतंत्रता कम होती है।

प्राइवेट कंपनियाँ भी जल्दी मुनाफा चाहती हैं, रिसर्च में निवेश कम करती हैं।

नतीजा — प्रतिभा होते हुए भी भारत पीछे है।

अगर यही चलता रहा, तो आने वाले सालों में भारत सिर्फ उपभोक्ता बना रहेगा, निर्माता नहीं।
हमें अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास करना होगा, उन्हें संसाधन और आज़ादी देनी होगी — तभी भारत विश्व नेतृत्व कर पाएगा।

10/08/2025

शरीर में जब हम खाना खाते हैं तो हमारे खून में कुछ गंदगी और बेकार चीज़ें बन जाती हैं। इन बेकार चीज़ों को बाहर निकालना ज़रूरी होता है। ये काम हमारे शरीर के गुर्दे (किडनी) करते हैं।

हर इंसान के पास दो किडनी होती हैं। किडनी के अंदर लाखों छोटे-छोटे फिल्टर होते हैं, जिन्हें नेफ्रॉन कहते हैं। यही नेफ्रॉन खून को छानते हैं और उसमें से गंदगी और ज़रूरत से ज़्यादा पानी निकालते हैं।

जो चीज़ें ज़रूरी होती हैं जैसे कुछ पानी और पोषक तत्व, उन्हें वापस खून में भेज दिया जाता है। और जो गंदगी और फालतू पानी बचता है, वो पेशाब बन जाता है।

यह पेशाब पतली नली से होकर मूत्राशय (ब्लैडर) में जमा होती है। जब ब्लैडर भर जाता है, तो हमें पेशाब करने की इच्छा होती है। फिर ये पेशाब एक और नली (यूरीथ्रा) से होकर शरीर से बाहर निकल जाती है।
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खून से गंदगी निकालने का काम किडनी करती है, नेफ्रॉन पेशाब बनाते हैं, पेशाब ब्लैडर में जमा होता है, फिर बाहर निकलता है।

💡 पेशाब बनाने से जुड़े आसान तथ्य:
किडनी दिनभर में लगभग 50 बार खून को छानती है।
मतलब हर वक्त आपकी किडनी सफाई में लगी रहती है।

एक दिन में एक इंसान लगभग 1 से 2 लीटर पेशाब करता है।
यह इस पर निर्भर करता है कि आपने कितना पानी पिया है।

पेशाब का रंग हल्का पीला होता है क्योंकि उसमें यूरिया और दूसरी बेकार चीज़ें मिली होती हैं।

अगर पेशाब का रंग गहरा पीला या बदबूदार हो तो यह संकेत हो सकता है कि आप कम पानी पी रहे हैं या शरीर में कोई दिक्कत है।

किडनी खराब हो जाए तो पेशाब बनना रुक सकता है, जिससे शरीर में ज़हर भर सकता है – इसलिए किडनी की देखभाल ज़रूरी है।

✅ किडनी और पेशाब की सेहत के लिए क्या करें?
खूब पानी पिएँ (दिन में 6–8 गिलास)

ज़्यादा नमक और जंक फूड से बचें

ज़्यादा देर तक पेशाब न रोकें

समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराएँ

09/08/2025

🚶‍♂️ हमारे शरीर में कोशिकाएँ (Cells) क्या होती हैं?
हमारा शरीर लाखों-करोड़ों छोटी-छोटी इकाइयों यानी कोशिकाओं से बना होता है। ये कोशिकाएँ ईंटों की तरह होती हैं, जो मिलकर पूरा शरीर बनाती हैं।

हर कोशिका को पता होता है कि उसे कब बनना है, कितना काम करना है और कब मर जाना है। ये सब कुछ शरीर बहुत ही अनुशासन के साथ करता है।

✅ स्वस्थ कोशिका (Healthy Cell) क्या होती है?
स्वस्थ कोशिका शरीर के नियम मानती है।

यह ज़रूरत पर बनती है,

शरीर का काम करती है (जैसे खून बनाना, मांसपेशियाँ बनाना, घाव भरना),

और जब उसका काम खत्म हो जाता है, तो वह खुद ही मर जाती है।

ये कोशिकाएँ एक अनुशासित नागरिक की तरह होती हैं – जो अपने देश (शरीर) का सही तरीके से साथ देती हैं।

❌ कैंसर कोशिका (Cancer Cell) क्या होती है?
कैंसर कोशिका एक बिगड़ैल और ज़िद्दी कोशिका होती है।

यह बिना ज़रूरत के बार-बार बनती रहती है,

मरती नहीं है या बहुत देर से मरती है,

और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलकर नुकसान पहुँचाती है।

ये शरीर के कानून नहीं मानती और अपने मन से बढ़ती जाती है — जैसे कोई अपराधी जो दूसरों की जगह छीनने लगे।

🔍 मुख्य अंतर (Difference):
तुलना स्वस्थ कोशिका कैंसर कोशिका
बनती कब है जब ज़रूरत हो बिना ज़रूरत के
मरती है हाँ, समय पर नहीं या बहुत देर से
नियम मानती है हाँ नहीं
फैलाव सीमित तेजी से हर जगह
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🌱 उदाहरण से समझें:
सोचिए एक बग़ीचा है — हर पौधा अपनी जगह पर ठीक से बढ़ रहा है। पर अगर एक पौधा बहुत तेजी से बढ़ने लगे और बाकी पौधों की जगह छीन ले, तो वह नुकसान करेगा।

वही कैंसर कोशिका करती है — यह शरीर के अंदर बाकी अच्छी कोशिकाओं की जगह और पोषण छीन लेती है।

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स्वस्थ कोशिका शरीर के लिए काम करती है।
कैंसर कोशिका शरीर के खिलाफ काम करती है।

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे :-भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे है, जबकि बाकी देश का...
09/08/2025

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे :-

भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बहुत पीछे है, जबकि बाकी देश काफी आगे निकल चुके हैं।
अगर ऐसा ही चलता रहा, तो भारत कभी वैश्विक शक्ति नहीं बन पाएगा।
हमें केवल जनसंख्या पर नहीं, बल्कि हर नागरिक की समृद्धि पर ध्यान देना होगा।
केवल विकास नहीं, समावेशी विकास ज़रूरी है।
वरना हम आगे नहीं, बस पीछे छूटते रहेंगे।

अगर हर नागरिक की आमदनी नहीं बढ़ी, तो जीडीपी बढ़ने का मतलब सिर्फ आंकड़ों का खेल बनकर रह जाएगा।
दूसरे देश तकनीक, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करके आगे बढ़ रहे हैं, और हम अब भी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं।
भारत को अगर सच्चे अर्थों में महाशक्ति बनना है, तो गुणवत्ता परक शिक्षा, रोज़गार के अवसर और आर्थिक समानता को प्राथमिकता देनी होगी।
वरना दुनिया दौड़ रही होगी, और हम पीछे छाया ढूंढते रह जाएंगे।
अब वक्त आ गया है — सिर्फ वादे नहीं, नीति और नीयत में बदलाव चाहिए।

प्रति व्यक्ति आय सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि हर भारतीय के जीवन स्तर का आईना है।
जब तक गाँवों में किसान कर्ज़ में डूबा रहेगा और शहरों में युवा बेरोज़गार घूमेगा, तब तक विकास अधूरा है।
दुनिया चांद पर बस्ती बसाने की बात कर रही है, और हम अब भी पीने के पानी और बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
भारत को सिर्फ अमीरों का देश नहीं, हर नागरिक के लिए अवसरों का देश बनना होगा।
असली तरक्की तब होगी जब हर हाथ को काम और हर घर को सम्मान मिलेगा।
देश को आगे ले जाने के लिए अब सही दिशा और सच्चा इरादा ज़रूरी है।

साज़िश और सत्ता:-सत्ता को साज़िशों की आदत है,वो खुला सच नहीं, बंद कमरों से मोहब्बत है।जहाँ फैसले होते हैं —पर जनता को सि...
06/08/2025

साज़िश और सत्ता:-

सत्ता को साज़िशों की आदत है,
वो खुला सच नहीं, बंद कमरों से मोहब्बत है।
जहाँ फैसले होते हैं —
पर जनता को सिर्फ़ आदेश मिलता है।
जहाँ नीतियाँ बनती हैं —
पर नीयत किसी को नहीं दिखती।

साज़िशें चलती हैं वहाँ,
जहाँ कुर्सी से बड़ा कुछ नहीं होता,
जहाँ इंसान को "डेटा" कहा जाता है,
और आत्मा को "रेटिंग" से तौला जाता है।

वे कहते हैं —
"हम तुम्हारे लिए काम कर रहे हैं।"
पर असल में
वे तुम्हारे नाम से अपने लिए राज कर रहे हैं।

हर चुनाव एक नया अभिनय है,
हर वादा एक अधूरी पटकथा,
हर झूठ —
इतना बार बोला जाता है कि
सच जैसा लगने लगता है।

और जब कोई पूछता है — "सबका साथ, या सिर्फ़ अपने का साथ?"
तो उसे देशद्रोही बना दिया जाता है।

ये साज़िशें इतनी महीन हैं कि
तुम्हें लगता है — ये व्यवस्था है,
पर असल में ये वशीकरण है।

अब समय है…
सत्ता की साज़िशों को पहचानने का,
हर प्रचार को तौलने का,
और हर "सच" को
अपने तर्क और विवेक से परखने का।

क्योंकि अगर तुम आज नहीं जागे —
तो कल तुम्हारे बच्चों को
इन साज़िशों की गुलामी विरासत में मिलेगी

✍️ विरेंद्र कुमार

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