Anand Shankar Asr

Anand Shankar Asr "पत्रकारिता का छात्र | सच्चाई की खोज में | खबरों की दुनिया का जुनून"

"मुस्कान अच्छी लड़की है। उसके साथ तू खुश रहेगा।" साहिल शुक्ला की मां स्नैप चैट पर उसे ऐसे मैसेजेस करती थी। वही मां जिनकी...
20/03/2025

"मुस्कान अच्छी लड़की है। उसके साथ तू खुश रहेगा।" साहिल शुक्ला की मां स्नैप चैट पर उसे ऐसे मैसेजेस करती थी। वही मां जिनकी मौत कब ही हो चुकी थी। यानि साहिल अपनी मरी मां से बात करता था। आज तक वालों ने एक अच्छी-खासी लंबी रिपोर्ट इन दो राक्षसों के बारे में लिखी है। बताया गया है कि साहिल शुक्ला एक अंधविश्वासी व्यक्ति है। उसकी मां नहीं है। वो अपनी मां को मिस करता है। इसलिए उसने अपनी मां के नाम से एक स्नैपचैट अकाउंट क्रिएट किया था। साहिल को लगता था कि उसकी मां, जो इस दुनिया में नहीं है। वो उससे बात करती है। और मुस्कान भी इस बात से वाकिफ़ थी। और जानते हैं मुस्कान ने क्या किया? मुस्कान ने अपने भाई के नंबर से एक स्नैप चैट अकाउंट बनाया। उस अकाउंट से वो साहिल को उसकी मां बनकर मैसेजेस करने लगी। मुस्कान ही साहिल से कहती थी कि मुस्कान अच्छी लड़की है। तू उसके साथ खुश रहेगा।

साहिल अपने इस अंधविश्वास की वजह से मुस्कान को लेकर और क्रेज़ी हो गया। वो मुस्कान से शादी करना चाहता था। और वो किसी भी कीमत पर सौरभ को रास्ते से हटाना चाहता था। लेकिन मेरठ पुलिस ने जो बताया उसके मुताबिक, सौरभ को तो मुस्कान भी रास्ते से हटाना चाहती थी। मगर वो साहिल शुक्ला से शादी नहीं करना चाहती थी। तो ये मुस्कान आखिर चाहती क्या थी? ये तो पता बाद आने वाले वक्त में पता चलेगा जब पुलिस अपनी इन्वैस्टिगेशन पूरी कर लेगी। मगर इस मामले ने लोगों पर जो असर डाला है वो बुरा ही है।

आज तक की रिपोर्ट में बताया गया है कि साहिल अंधविश्वास में इतना पागल हो चुका था कि उसने मुस्कान से ज़िद की कि सौरभ पर पहला वार वही करेगी। और पिछले साल नवंबर में ही साहिल और मुस्कान ने तय कर लिया था कि सौरभ जब वापस आएगा तो उसका काम तमाम कर दिया जाएगा। कोई दो साल बाद सौरभ 24 फ़रवरी को लंदन से मेरठ लौट रहा था। तय हुआ कि जिस दिन मुस्कान का बर्थडे होता है(25 फ़रवरी को) उसी दिन सौरभ की हत्या कर दी जाएगी। मुस्कान सौरभ को शराब पिलाएगी। उस शराब में बेहोशी की दवा होगी। सौरभ जैसे ही बेहोश होगा उसे खत्म कर दिया जाएघा। मगर वो प्लानिंग फ़ेल हो गई। क्योंकि उस दिन सौरभ ने शराब पी ही नहीं।

तय हुआ कि 3 मार्च को सौरभ को क़त्ल किया जाएगा। क्योंकि उस दिन सौरभ और मुस्कान की बेटी के एग्ज़ाम्स खत्म होंगे। और मुस्कान बेटी को अपने माता-पिता के घर छोड़ आएगी। मुस्कान ने दुकान से दो बड़े चाकू खरीद लाई। दुकान वाले से मुस्कान ने कहा कि मुर्गा काटना है इसलिए वो ये चाकू खरीद रही है। फिर आई तीन मार्च की रात। उस रात मुस्कान ने सौरभ की पसंदीदा डिश कोफ़्ता बनाई। और अपने इरादों पर कायम मुस्कान ने खाने में ही नशीली दवा मिला दी। सौरभ ने कोफ़्ता खाया और कुछ देर बाद बेहोश हो गया। सौरभ के बेहोश होते ही मुस्कान ने साहिल को बुला लिया। साहिल ने मुस्कान को चाकू दिया। सौरभ की छाती पर पहला वार मुस्कान ने ही किया।

मुस्कान के वार करने के बाद साहिल सौरभ पर टूट पड़ा। सौरभ ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लड़ने में। जितनी कि वो उस स्थिति में लगा सकते थे। मगर वो हार गए। साहिल सौरभ पर चाकू से वार करता रहा। मुस्कान पीछे खड़ी सौरभ की मौत का तमाशा देखती रही। जब सौरभ के प्राण निकल गए तो साहिल ने बाथरूम में उसकी हथेलियां काटी। फिर सिर काटा। अब बारी थी लाश को ठिकाने लगाने की। प्लानिंग पहले ही हो चुकी थी। एक बड़ा ड्रम खरीदा गया। कुछ सीमेंट के कट्टे भी खरीदे गए। सौरभ के शरीर के टुकड़ों को उस ड्रम में डाला गया और सीमेंट घोकर उस ड्रम में भर दिया गया। एक तरह से वो ड्रम साहिल की कब्र बन गया। एक ठोस कब्र।

ये सारे काम करने के बाद साहिल और मुस्कान साहिल के कमरे पर जाकर सो गए। और अगले दिन कैब बुक करके हिमाचल घूमने निकल गए। हिमाचल में ये दोनों शिमला, मनाली और कसौल गए। कुल 84 हज़ार रुपए थे मुस्कान के पास। मगर 14 दिन बाद वो सब खत्म हो गए। दोनों मेरठ लौट आए। फिर क्या हुआ आप जानते ही हैं। मुस्कान ने अपना भेद अपने माता-पिता के सामने खुद ही खोल दिया। और शर्म से पानी-पानी हुए मुस्कान के माता-पिता ने खुद ही पुलिस को मुस्कान की करतूतों की सूचना पुलिस को दी और मुस्कान व उसके प्रेमी साहिल शुक्ला को गिरफ़्तार करा दिया।

अश्विनी और अनीश, दो आईटी पेशेवर, जो 19 मई को पुणे में घर लौट रहे थे, जब कलेनी नगर में एक पंजीकरण न किए गए पोर्शे ने, जो ...
25/05/2024

अश्विनी और अनीश, दो आईटी पेशेवर, जो 19 मई को पुणे में घर लौट रहे थे, जब कलेनी नगर में एक पंजीकरण न किए गए पोर्शे ने, जो 150 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रही थी, उन्हें टक्कर मार दी। उनमें से एक की मौके पर ही मौत हो गई और दूसरे की उपचार के दौरान मौत हो गई।

कार का चालक 17 साल का नाबालिग था, जो कथित तौर पर अपने 12वीं कक्षा के परिणामों का जश्न मनाने के बाद दोस्तों के साथ पार्टी करके क्लब से लौट रहा था।

यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या क्यों है:

1. कार पंजीकरण नहीं की गई थी; शोरूम ने बिना पंजीकरण के कार डिलीवर की।
2. माता-पिता ने नाबालिग को बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाने की अनुमति दी।
3. क्लब के मालिक ने नाबालिग को शराब परोसी और उसे प्रवेश की अनुमति दी।
4. ट्रैफिक पुलिस ने महीनों तक सड़क पर बिना पंजीकरण, तेज रफ्तार वाली कार को नोटिस नहीं किया।

जब नाबालिग को आधी रात को गिरफ्तार किया गया, तो उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिला। एक स्थानीय विधायक उसके बचाव में आया, और वकीलों की एक टीम भी थी।

जहां आम लोगों के मामलों में देरी होती है, इस नाबालिग को रविवार को सिर्फ 14 घंटों में जमानत मिल गई। जमानत की शर्त यह थी कि उसे एक निबंध लिखना चाहिए और उसके माता-पिता को सुनिश्चित करना चाहिए कि वह वही गलती दोबारा न करें।

जब कानून एक समान है, तो विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के साथ अलग व्यवहार क्यों होता है?

मैं पीड़ितों को नहीं जानता, लेकिन मुझे आशा है कि उन्हें न्याय मिलेगा। उनकी परिवारों को समर्थन और ताकत मिले। 🙏

1952 में भारत ने कुछ 'अद्भुत' किया।पहली बार, एक नव स्वतंत्र देश ने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार देने का नि...
25/05/2024

1952 में भारत ने कुछ 'अद्भुत' किया।

पहली बार, एक नव स्वतंत्र देश ने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार देने का निर्णय लिया, अर्थात सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार। उस समय, पश्चिमी लोकतंत्रों में सामान्य प्रथा यह थी कि पहले संपत्ति वाले पुरुषों को ही यह अधिकार दिया जाए - जिसमें कामकाजी वर्ग और महिलाएं शामिल नहीं होती थीं।

भारत ने सभी को, चाहे वे संपत्ति, लिंग या साक्षरता की परवाह किए बिना, मतदान का अधिकार दिया।

कई लोगों ने इसे 'लोकतंत्र का सबसे बड़ा जुआ' कहा, जबकि अन्य ने टिप्पणी की '“भविष्य और अधिक प्रबुद्ध युग इस तथ्य पर आश्चर्यचकित होगा कि लाखों निरक्षर लोगों के वोटों को दर्ज करने का यह मूर्खतापूर्ण ढोंग है” [इंडिया आफ्टर गांधी द्वारा रामचंद्र गुहा]

अगर आपको वर्तमान चुनाव जटिल लगता है, तो 1952 की स्थिति की कल्पना करें

[1] लगभग 20 करोड़ मतदाता, जिनमें से 85% निरक्षर थे। यह मानवता के इतिहास में सबसे बड़ा चुनाव था।

[2] प्रत्येक मतदाता की पहचान, नामांकन और पंजीकरण किया जाना था। हाँ, नामांकन। कई उत्तर भारतीय महिलाएं अपना नाम देने से इनकार कर दीं और उन्हें एक्स की पत्नी या वाई की मां के रूप में नामित करने पर जोर दिया। यह सुकुमार सेन ICS (मुख्य चुनाव आयुक्त) थे जिन्होंने अधिकारियों को ऐसा नामांकन स्वीकार न करने का निर्देश दिया। इसके बावजूद, लगभग 3 करोड़ महिलाओं के नाम सूची से हटाने पड़े।

[3] अधिकारियों की शक्तियों और कर्तव्यों को परिभाषित करने के लिए कोई मौजूदा विधेयक नहीं था। चुनाव से पहले RPA 1951 और 1952 पारित किए जाने थे।

[4] 'महाकाय समस्या' - 4500 सीटें (लोकसभा + विधानसभा), 2.2 लाख मतदान केंद्र, 56 हजार अध्यक्ष अधिकारी, 2.8 लाख सहायक और 2.2 लाख पुलिसकर्मी!

[5] मतदाताओं के नाम पढ़ने में असमर्थता। इस समस्या को हल करने के लिए, दैनिक जीवन के सबसे आसानी से पहचाने जाने वाले प्रतीकों का उपयोग किया गया - बैल, हाथी, आदि।

[6] एक ही बैलेट बॉक्स निरक्षर भारतीयों के लिए भ्रम का कारण बन सकता था, इसलिए अलग-अलग बैलेट बॉक्स का उपयोग किया गया ताकि मतदाता बस पार्टी के बॉक्स में अपना वोट डाल सकें।

जो आज स्पष्ट लगता है, वह तब लोकतंत्र की सबसे कठिन परीक्षा थी।

और भारत न केवल इस परीक्षा में पास हुआ, बल्कि 75 वर्षों के बाद सबसे बड़े और सफल लोकतंत्र के रूप में उभरा!

सोचता हूं कि अब कुछ बेटों पर भी लिखा जाये-------घर की रौनक है बेटियां, तो बेटे हो-हल्ला है,गिल्ली है, डंडा है, कंचे है, ...
09/05/2024

सोचता हूं कि अब कुछ बेटों पर भी लिखा जाये-------
घर की रौनक है बेटियां, तो बेटे हो-हल्ला है,
गिल्ली है, डंडा है, कंचे है, गेंद और बल्ला है,

बेटियां मंद बयारो जैसी, तो अलमस्त तूफ़ान है बेटे,
हुडदंग है, मस्ती है, ठिठोली है, नुक्कड़ की पहचान है बेटे,

आँगन की दीवार पर स्टंप की तीन लकीरें है बेटे,
गली में साइकिल रेस, और फूटे हुए घुटने है बेटे,

बहन की ख़राब स्कूटी की टोचन है बेटे,
मंदिर की लाइन में पीछे से घुसने की तिकड़म है बेटे,

माँ को मदद, बहन को दुलार, और पिता को जिम्मदारी है बेटे,
कभी अल्हड बेफिक्री, तो कभी शिष्टाचार, समझदारी है बेटे,

मोहल्ले के चचा की छड़ी छुपाने की शरारत है बेटे,
कभी बस में खड़े वृद्ध को देख, "बाउजी आप बैठ जाओ" वाली शराफत है बेटे,

बहन की शादी में दिन रात मेहनत में जुट जाते है बेटे,
पर उसही की विदाई के वक़्त जाने कहा छुप जाते है बेटे,

पिता के कंधो पर बैठ कर दुनिया को समझती जिज्ञासा है बेटे,
तो कभी बूढ़े पिता को दवा, सहारा, सेवा सुश्रुषा है बेटे,

पिता का अथाह विश्वास और परिवार का अभिमान है बेटे,
भले कितने ही शैतान हो पर घर की पहचान है बेटे.

नोट:- तस्वीर में हमारे मित्र तिवारी सेठ अलमोरा वाले हैं (राहुल तिवारी)

Ye Aakash
23/04/2024

Ye Aakash

मुम्बई के कुछ छपरी फैन्स अब बेवकूफी और बत्तीमीजी में पीएचडी करना चाहते हैं.. उनको रोहित से रन चाहिए लेकिन टीम को जीता हु...
02/04/2024

मुम्बई के कुछ छपरी फैन्स अब बेवकूफी और बत्तीमीजी में पीएचडी करना चाहते हैं.. उनको रोहित से रन चाहिए लेकिन टीम को जीता हुआ नही देख सकते।
उनको हर हाल में बस हार्दिक को हारते हुए देखना है...
किसी के समर्थन में यह कितनी घटिया बात है सोचकर भी तरस आता है..
हार्दिक इतना बेहतरीन क्रिकेटर है कि पूरे विश्वकप हमने उसको मिस किया, ये और बात है कि मैक्सिमम हमने जीते लेकिन हमको एक ही हार पूरी तरह ले डूबी...

लेकिन हार्दिक की कमी पूरा करने कोई नही आया, फिलहाल अभी है भी नही...

धोनी ने कल के लौंडे को कप्तान बना दिया कोई हो हल्ला नही हुआ, वहां पर धोनी की वाहवाही होती है.. इधर मुम्बई ने किसी सफल कप्तान को कप्तान बना दिया तो सबको हजम नही हो रहा।
विदेश होता तो यही क्रिकेट टीम या किसी भी लीग के लिए अच्छा है.. लेकिन इंडिया के फैन्स सोचते हैं धोनी सौ साल तक खेले, सचिन हजार साल तक खेले..
उनको क्रिकेट की बारीकी उतनी ही पता है जितना सनी देओल को डांसिंग स्टेप के बारे में।

क्रिकेट फैंस अब क्रिकेट फैंस नही रहे, वो स्पेशल क्रिकेटर के फैन्स हो गए हैं. और तो और वो स्पेशल क्रिकेटर के फैन्स भी ज्यादा देर तक नही रह पाते। क्योंकि ये फूफा बदलने में तनिक भी देर नही लगाते।

रोहित का करियर मुम्बई के साथ बेहतरीन था, पंड्या का भी होगा। पिछले सीजन में तो मुम्बई भी नीचे से टॉप सिचुएशन में रही है या नही?
क्रिकेट की तारीफ होनी चाहिए..
अब तुम मेरे उस दोस्त की तरह सोचो जो कहता था कि युवराज को भारतीय टीम का कप्तान होना चाहिए क्योंकि वो देखने में बहुत स्मार्ट है... तब दिल से एक ही आवाज आती थी।
- धत्त तोरी महाबीरवा वाला..

नवादा लोकसभा सीट से विवेक ठाकुर ( भूमिहार ) सी पी ठाकुर के बेटे को टिकट1999 से एनडीए उम्मीदवार हमेशा जीते हैं2004 में आर...
25/03/2024

नवादा लोकसभा सीट से विवेक ठाकुर ( भूमिहार ) सी पी ठाकुर के बेटे को टिकट

1999 से एनडीए उम्मीदवार हमेशा जीते हैं
2004 में आरजेडी से वीरचंद्र पासवान जीते थे बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया

अगर घर का बेटा घर का नेता का मांग ऐसे ही चलता रहा तो सालों बाद आरजेडी नवादा फतह करेंगी ।
सरवन कुशवाहा उम्मीदवार हैं।

नोट : - नवादा भूमिहार बहुल सीट हैं रिजर्वेशन हटने के बाद सिर्फ भूमिहार उम्मीदवार जीते हैं ।
(निर्दलीय) मगही गायक गुंजन सिंह भी मैदान में होगे
निर्दलीय जितने का मौका सिर्फ़ 1967 में सूर्य प्रकाश पुरी को मिला हैं ।
सवाल बस एक हैं क्या बीजेपी और भूमिहार अपनी परंपरागत सीट बचा पाएगी ।

फिलहाल यहां बाहुबली सूरजभान सिंह (पूर्व संसद) के भाई चंदन सिंह सांसद हैं जो एलजेपी के उम्मीदवार थे ।
फिलहाल एलजेपी(पारस) में

भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचाने वाले कप्तान उदय सहारण ने कहा, धोनी या युवराज मेरे फेवरेट फिनिशर नहीं हैं। भ...
09/02/2024

भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचाने वाले कप्तान उदय सहारण ने कहा, धोनी या युवराज मेरे फेवरेट फिनिशर नहीं हैं। भारतीय टीम लगातार 5वीं बार ICC अंडर-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंच चुकी है। टीम इंडिया ने पहले सेमीफाइनल में साउथ अफ्रीका को रोमांचक मुकाबले में 2 विकेट से मात दे दी। टीम के कप्तान उदय सहारण ने मैच जिताऊ पारी खेली और टीम को फाइनल में पहुंचा दिया। मैच के बाद उदय ने बड़ा खुलासा किया और ये बताया कि मैच फिनिशिंग स्किल्स उन्होंने किस शख्स से सीखा है। उदय ने किसी खिलाड़ी का नाम नहीं लिया बल्कि उन्होंने अपने पिता को सबसे आगे रखा। सहारण ने 124 गेंद पर 6 चौकों की मदद से 81 रन ठोके। भारत को पहली बार टूर्नामेंट में 200 से ऊपर के लक्ष्य का पीछा करना पड़ा। टीम के सामने 245 रन का टारगेट था। लेकिन एक समय ऐसा आया जब लग रहा था कि टीम ये मैच गंवा देगी। भारतीय टीम का स्कोर 4 विकेट पर 32 रन हो चुका था और लग रहा था कि टीम इंडिया टूर्नामेंट से बाहर हो जाएगी।

सचिन धास ने 95 गेंद पर 96 रन की पारी खेली और और सहारण के साथ मिलकर 171 रन की साझेदारी कर कमाल कर दिया। इस साझेदारी ने टीम की मैच में वापसी करवा दी। मैच के बाद सहारण ने कहा कि मेरे पिता बड़े शॉट्स खेला करते थे और मैच को गहराई तक लेकर जाते थे। मैं भी यही सोच रहा था। मेरी सोच यही थी कि पूरी पारी के दौरान मैं खड़ा रहूंगा और अंत में जाकर बड़े शॉट्स लगाऊंगा। और हुआ भी कुछ ऐसा ही जिससे मैच हमारा हो गया। बता दें कि सहारण को उनकी 124 गेंद पर 84 रन की पारी के लिए प्लेयर ऑफ द मैच का अवॉर्ड दिया गया। पूरे टूर्नामेंट में उदय के बल्ले से रन निकल रहे हैं। ऐसे में इस बल्लेबाज ने मुशीर खान को पीछे छोड़ दिया है और 389 रन के साथ टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बन गए हैं। उदय सहारण को अंडर-19 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार जीतने की ढेर सारी शुभकामनाएं

शफी इनामदार फिल्म इंडस्ट्री के उन चुनिंदा कलाकारों में से एक रहे हैं जिन्हें भले ही एक हीरो के तौर पर कभी मौका ना मिला ह...
29/07/2023

शफी इनामदार फिल्म इंडस्ट्री के उन चुनिंदा कलाकारों में से एक रहे हैं जिन्हें भले ही एक हीरो के तौर पर कभी मौका ना मिला हो मगर उन्हें एक शानदार एक्टर के तौर पर जरूर याद किया जाता है। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में करीब दो दशकों तक काम किया. फिल्मों के अलावा वे टीवी इंडस्ट्री में भी सक्रिय रहे।

शफी का जन्म 23 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिला, दापोली तालुका में पांगरी गांव में हुआ था। साल 1982 में विजेता फिल्म से उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। 1983 में आई ब्लॉकबस्टर फिल्म अर्ध सत्या में इंस्पेक्टर हैदर अली का रोल प्ले कर के वे सुर्खियों में आए। उन्होंने कई सारी फिल्मों में पुलिस इंस्पेक्टर का रोल प्ले किया. इसके अलावा उन्होंने कुछ फिल्मों में निगेटिव शेड का रोल भी प्ले किया।

सपोर्टिव रोल उन्होंने बहुत इमानदारी से निभाए. उनकी एक्टिंग और डायलॉग डिलिवरी इतनी जानदार हुआ करती थी कि छोटे से सीन्स में भी वे लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करवा लेते थे। कुदरत का कानून, वर्दी, सैलाब, जुर्म, इज्जतदार, फूल बने अंगारे, क्रांतिवीर, यशवंत, अकेले हम अकेले तुम जैसी फिल्मों में वे नजर आए। नाना पाटेकर के साथ उन्होंने यशवंत फिल्म में काम किया और यही फिल्म उनके करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई।

जाने भी दो यारो फ‍िल्‍म में नजर आने वाली अदाकारा भक्ति बर्वे से शफी इनामदार ने शादी की थी। वह शफी से तीन साल छोटी थीं। भक्ति बर्वे मराठी, गुजराती थिएटर का बड़ा नाम था। पहले वह दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो में न्‍यूज रीडर हुआ करती थीं।

13 मार्च साल 1996 को भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट वर्ल्ड कप सेमीफाइन मुकाबले को देखते समय शफी इनामदार को हार्ट अटैक आ गया। और 50 साल की उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गए।

भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को भी फांसी हो गई होती तो ज्यादा अच्छा था !  1947 में आजादी के...
25/07/2023

भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को भी फांसी हो गई होती तो ज्यादा अच्छा था !

1947 में आजादी के पश्चात बटुकेश्वर को रिहाई मिली। लेकिन इस वीर सपूत को वो दर्जा कभी ना मिला जो हमारी सरकार और भारतवासियों से इन्हें मिलना चाहिए था।

आज़ाद भारत में बटुकेश्वर नौकरी के लिए दर-दर भटकने लगे। कभी सब्जी बेची तो कभी टूरिस्ट गाइड का काम करके पेट पाला। कभी बिस्किट बनाने का काम शुरू किया लेकिन सब में असफल रहे।

कहा जाता है कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे ! उसके लिए बटुकेश्वर दत्त ने भी आवेदन किया ! परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने इस 50 साल के अधेड़ की पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आएं..!!! भगत के साथी की इतनी बड़ी बेइज़्ज़ती भारत में ही संभव है।

हालांकि बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से माफ़ी मांगी थी ! 1963 में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया । लेकिन इसके बाद वो राजनीति की चकाचौंध से दूर गुमनामी में जीवन बिताते रहे । सरकार ने इनकी कोई सुध ना ली।
1964 में जीवन के अंतिम पड़ाव पर बटुकेश्वर दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कैंसर से जूझ रहे थे तो उन्होंने अपने परिवार वालों से एक बात कही थी।

"कभी सोचा ना था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फोड़ा था उसी दिल्ली में एक दिन इस हालत में स्ट्रेचर पर पड़ा होऊंगा।"

मै देशवासियों का ध्यान इनकी ओर दिलाया चाहता हूँ कि-"किस तरह एक क्रांतिकारी को जो फांसी से बाल-बाल बच गया जिसने कितने वर्ष देश के लिए कारावास भोगा , वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।"

जब भगतसिंह की माँ अंतिम वक़्त में उनसे मिलने पहुँची तो भगतसिंह की माँ से उन्होंने सिर्फ एक बात कही-"मेरी इच्छा है कि मेरा अंतिम संस्कार भगत की समाधि के पास ही किया जाए। उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई।

17 जुलाई को वे कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर उनका देहांत हो गया !

भारत पाकिस्तान सीमा के पास पंजाब के हुसैनीवाला स्थान पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि के साथ ये गुमनाम शख्स आज भी सोया हुआ है।

मुझे लगता है भगत ने बटुकेश्वर से पूछा तो होगा- दोस्त मैं तो जीते जी आज़ाद भारत में सांस ले ना सका, तू बता आज़ादी के बाद हम क्रांतिकारियों की क्या शान है भारत में।"

❓❓❓

वक्त की कीमत किसी के लिए शुभ किसी के लिए अशुभ कोई माने या ना माने लेकिन फिल्म इंडस्ट्रीज के कामयाब कलाकार जिन्होंने स्टा...
19/07/2023

वक्त की कीमत

किसी के लिए शुभ किसी के लिए अशुभ

कोई माने या ना माने लेकिन फिल्म इंडस्ट्रीज के कामयाब कलाकार जिन्होंने स्टार , जुबली कुमार और सुपर स्टार जैसे तमगे हासिल किए उनका तो यही मानना था।👍

बरसों पुरानी बात बात है। 1950 के दशक में
बंबई इतना फैला हुआ नहीं था। कार्टर रोड़ सुनसान और बियाबान और सुनसान इलाका था । लोग वहां तक जाने से डरते थे। बंबई के इसी डरावने कार्टर रोड पर नौशाद साहब के पड़ोस में एक बंगला था जिसे लोग भूत बंगला कहते थे। इस बंगले को भारत भूषण ने खरीद लिया।

बंगला खरीदते ही भारत भूषण की किस्मत चमकी। खुशी में आकर भारत भूषण ने फिल्में बना डाली। शुरू में कामयाबी मिली। भतीजे को लांच करने के चक्कर में फ्लॉप हो गए। बंगला राजेंद्र कुमार को 65000 में बेचना पड़ा। रामायण सीरियल की मंदोदरी याद है? अपराजिता भूषण ही भारत भूषण की बेटी है।

मनोज कुमार से मशवरा करके राजेंद्र ने इसे लेना चाहा।
इसे खरीदने के लिए राजेंद्र कुमार ने बी0आर0 चोपड़ा की "कानून" और दूसरी फिल्में साइन की। साइनिंग में एडवांस लिया और बंगला खरीद लिया। राजेंद्र कुमार ने अपनी बेटी के नाम से बंगले का नाम डिंपल रखा। उन्होंने यहां कामयाबी देखी। कई सुपर हिट फिल्में दी। जुबली कुमार बन गए। दूसरा बंगला बना लिया वहां चले गए।

1970 में राजेंद्र कुमार ने इसे राजेश खन्ना को 3.5लाख में बेच दिया। राजेंद्र कुमार की तरह राजेश खन्ना ने भी हाथी मेरे साथी के निर्माता से रकम एडवांस लेकर इसे खरीदा।इसका नाम राजेंद्र कुमार के आशीर्वाद से आशीर्वाद रखा। हाथी मेरे साथी की पेंटिंग इस बंगले की दीवारों पर आखरी दिन तक रही।👍

राजेश खन्ना के लिए भी ये बंगला बहुत लकी रहा।
इस बंगले में रहकर राजेश खन्ना ने वो दौर जिया जो आज तक किसी फिल्मी कलाकार को नसीब नहीं हुआ।
कई सुपर हिट फिल्में दी। पहले भी इसमें राजेंद्र की बेटी डिंपल रहती थी और बाद में भी डिंपल रही। जो राजेश खन्ना की बीवी थी। राजेश इसमें मरते दम रहे।

उनके मरने के बाद।
राजेश खन्ना के आखरी दिनों की साथी अनिता आडवाणी ने बंगले में हिस्सा क्या मांग लिया। डिंपल की दोनों लाडली चिढ़ गई। उन्होंने आशीर्वाद का नाम बदलकर "वरदान आशीर्वाद" कर दिया।

ग्राहक मिलते ही दोनों बेटियों ने 90 करोड़ में अलकार्गो के चेयरमैन शशि किरण शेट्टी को बेच दिया।

शशि किरण ठहरे कारोबारी।
उन्हें फिल्मों से क्या लेना~देना।
70 साल से ज्यादा पुराने इस बेशकीमती और किस्मती बंगले को शशि किरण शेट्टी ने तुड़वाना शुरू कर दिया......

उन्होंने पहली फुरसत में 6500 फीट जमीन पर बने आशीर्वाद को हमेशा~हमेशा के लिए जमीन में मिला दिया।

अब यहां ना डिंपल है
ना आशीर्वाद
और ना वरदान के नामों~निशान बाकी है......
गुजरे जमाने को मुंह चिढ़ाते हुए
अब यहां खड़ी है शशि किरण की 🏢

16/06/2023

जब सास बहू वाले सीरियल से TRP की दौड़ हों तो और क्या ही उम्मीद कर सकते हैं।।



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