देवभूमि उत्तराखंड

देवभूमि उत्तराखंड अपनी उत्तराखण्ड़ की रीती , रिवाजो और संस्कृति को सजोए रखने का प्रयास
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जय मां धारी देवी मां भगवती माता समस्त संसार पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखना माता...
08/07/2025

जय मां धारी देवी मां भगवती माता समस्त संसार पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखना माता...

गुमशुदा की तलाश..बागेश्वर रेंज ऑफिस में वन दरोग़ा के पद पर कार्यरत कैलाश चन्द्र पाण्डे जी 03 जुलाई 2025 से लापता हैं,जो ...
07/07/2025

गुमशुदा की तलाश..

बागेश्वर रेंज ऑफिस में वन दरोग़ा के पद पर कार्यरत कैलाश चन्द्र पाण्डे जी 03 जुलाई 2025 से लापता हैं,जो कि सफ़ेद कमीज पहनकर अपने घर बिजौरी गाँव से निकले थे,अगर आपको उनके बारे में कोई भी जानकारी हो तो आप उनके भांजे दीप जोशी मो० 9897649200 पर संपर्क करें।गुम शुदगी की रिपोर्ट बागेश्वर थाने में लिखा दी गई है और उनकी खोजबीन जारी है,उम्मीद है कि शासन-प्रशासन कैलाश चंद्र पाण्डे जी की खोजबीन में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करेगा।आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।कैलाश जी अगर आप ये पोस्ट देख रहे हैं तो घर चले आइये,आपके परिजन आपके लिये बहुत परेशान हैं।

#गुमशुदा

कनाताल, उत्तराखंड के  #टिहरी_गढ़वाल जिले में स्थित एक सुंदर और शांत हिल स्टेशन है, जो समुद्र तल से लगभग 8,500 फीट की ऊँच...
07/07/2025

कनाताल, उत्तराखंड के #टिहरी_गढ़वाल जिले में स्थित एक सुंदर और शांत हिल स्टेशन है, जो समुद्र तल से लगभग 8,500 फीट की ऊँचाई पर बसा है। यह जगह चंबा से करीब 16 किमी और मसूरी से लगभग 78 किमी की दूरी पर है। कनाताल अपने बर्फ से ढके पहाड़ों, घने देवदार और रोडोडेंड्रोन के जंगलों, और ताजगी से भरे वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान शहरी भीड़-भाड़ से दूर एक आदर्श छुट्टियों की जगह है। पर्यटक यहाँ ट्रेकिंग, कैम्पिंग, बोनफायर और नेचर वॉक जैसे साहसिक गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं। पास में स्थित ‘कोडिया जंगल’ में वन्यजीवों और प्राकृतिक झरनों की सैर रोमांचक अनुभव देती है। कनाताल का मौसम पूरे साल सुहावना बना रहता है, लेकिन बर्फबारी का आनंद लेने के लिए सर्दियों में आना सबसे अच्छा होता है। यहाँ की शांति और प्राकृतिक सुंदरता आत्मा को सुकून देती है।

#कनाताल
#उत्तराखंड_की_शान
#हिमालयी_सौंदर्य
#पहाड़ों_की_सैर
#प्राकृतिक_शांति




 #एप्पल   Made by Ai
06/07/2025

#एप्पल
Made by Ai

उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा आज आयोजित उत्तराखण्ड सम्मिलित राज्य सिविल/प्रवर अधीनस्थ सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा (वस्तुन...
06/07/2025

उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा आज आयोजित उत्तराखण्ड सम्मिलित राज्य सिविल/प्रवर अधीनस्थ सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा (वस्तुनिष्ठ प्रकार)2025 प्रश्नपत्र।

पहाड़ का मौन विलापपहाड़... जहाँ सुबह की किरणें सबसे पहले धरती को चूमती हैं, जहाँ नदियाँ गीत गाती हैं, और हवा भी अपने संगीत...
06/07/2025

पहाड़ का मौन विलाप

पहाड़... जहाँ सुबह की किरणें सबसे पहले धरती को चूमती हैं, जहाँ नदियाँ गीत गाती हैं, और हवा भी अपने संगीत में लिपटी रहती है। लेकिन उस खूबसूरत तस्वीर के पीछे एक सच्चाई है—संघर्ष। यहाँ हर सुबह सूरज के साथ नहीं, मेहनत के एक और दिन के साथ होती है। सुविधाएँ? जैसे किसी सपने में देखी चीज़ें हों—न के बराबर।

यहाँ के लोग 24 घंटे सिर्फ जीते नहीं, जूझते हैं। पानी के लिए मीलों चलना, लकड़ी के लिए जंगलों में भटकना, और खाने के लिए मिट्टी से सोना निकालने जैसी मेहनत करना। लेकिन यह सब करते हुए भी चेहरे पर शिकवा नहीं, बल्कि एक ठंडी मुस्कान होती है—शायद पहाड़ों से सीखी हुई।

लेकिन अब पहाड़ चुप हैं।

क्योंकि अब पहाड़ों में रहने वाला युवा अकेला होता जा रहा है।
अब लड़कियाँ जो कभी इसी मिट्टी की खुशबू में पली थीं, अब उस मिट्टी से भाग रही हैं।
"सुविधा"—अब ये शब्द प्यार, रिश्ते और समर्पण पर भारी पड़ रहा है।

> “पहाड़ का लड़का हो? रहने दो भाई... नौकरी शहर में नहीं है? रोड नहीं है? हॉस्पिटल दूर है? अच्छा इंटरनेट नहीं चलता? फिर कैसे चलेगा?”

आज की शिक्षित पीढ़ी ने आधुनिकता को आत्मसम्मान से जोड़ लिया है—जहाँ मेहनत शर्म की बात बन चुकी है, और संघर्ष पिछड़ापन।

और यही है वो मोड़, जहाँ पहाड़ों की कहानी करवट लेती है।

अब वो घर जहाँ पहले 7 लोग रहते थे, वहाँ अब सिर्फ एक बूढ़ी माँ बची है—जो हर शाम दरवाज़े की ओर देखती है, शायद उसका बेटा शहर से लौट आए।
वो खेत जो हर साल हरियाली से मुस्कुराते थे, अब सूखे पड़े हैं—क्योंकि हल चलाने वाला कोई नहीं।
वो लोकगीत जो पहाड़ी दुल्हनों की विदाई में गाए जाते थे, अब सिर्फ यूट्यूब पर सुनाई देते हैं।

आने वाले 20 सालों में शायद पहाड़ अब भी खड़े रहेंगे—but खाली।
न आवाज़ होगी, न संस्कृति, न जीवन।
केवल पत्थरों की एक लंबी खामोशी होगी, और कुछ अधूरी यादें।

क्या यही भविष्य है पहाड़ों का?

क्या आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी जड़ें खो देंगे?

शहर की चकाचौंध में खोकर, क्या हम उस मिट्टी को भूल रहे हैं, जिसने हमें खड़ा किया?

अब वक्त है सोचने का।

कि क्या सुविधा ही सबकुछ है?

या पहाड़ जैसा सीधा, सरल, और संघर्षशील जीवन भी कुछ मायने रखता है?

हरिद्वार में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़: भ्रष्टाचार पर जनता की चौकसी बनी हथियारउत्तराखंड के हरिद्वार जिले में भ्रष्टाचार के ...
04/07/2025

हरिद्वार में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़: भ्रष्टाचार पर जनता की चौकसी बनी हथियार

उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक और बड़ी कार्रवाई सामने आई है। सहायक चकबंदी अधिकारी कार्यालय मंगलौर में तैनात लिपिक विनोद कुमार को ₹2100 की रिश्वत लेते हुए सतर्कता अधिष्ठान, सेक्टर देहरादून की टीम ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया। यह कार्रवाई एक जागरूक नागरिक की शिकायत के बाद की गई, जिसने रिश्वत न देकर कानून का सहारा लिया।

शिकायतकर्ता के अनुसार, उसके भाई ने अपनी बुआ से एक प्लॉट खरीदा था। उस प्लॉट के दाखिला-खारिज (mutation) के एवज में लिपिक विनोद कुमार द्वारा रिश्वत की मांग की गई थी। शिकायतकर्ता ने यह रिश्वत देने से इनकार करते हुए सतर्कता विभाग को सूचित किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम की मांग की।

सतर्कता अधिष्ठान ने गंभीरता से कार्रवाई करते हुए योजना बनाकर 4 जुलाई 2025 को लिपिक विनोद कुमार को कु रु ड़ी, मंगलौर स्थित कार्यालय में रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उसके आवास और अन्य ठिकानों पर छापेमारी कर संपत्तियों की जांच की जा रही है।

यह घटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अगर नागरिक जागरूक हों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएं, तो व्यवस्था में सुधार संभव है। टेक्नोलॉजी और सतर्क नागरिकों की भागीदारी से अब रिश्वतखोरों की पोल खुलना आसान हो गया है।

अब सवाल है — क्या आप भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के लिए तैयार हैं? कॉमेंट कर अपनी राय ज़रूर दें। #भ्रष्टाचार_हटो #ईमानदार_भारत #रिश्वत_के_खिलाफ #सतर्क_नागरिक #न्याय_की_जीत #भ्रष्ट_अधिकारियों_को_सज़ा #जनता_की_ताकत

अस्कोट, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की एक सुरम्य और ऐतिहासिक बस्ती है, जो हिमालय की गोद में बसी है। यह स्थान प्राकृतिक स...
03/07/2025

अस्कोट, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की एक सुरम्य और ऐतिहासिक बस्ती है, जो हिमालय की गोद में बसी है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम है। अस्कोट विशेष रूप से अस्कोट कस्तूरी मृग अभ्यारण्य के लिए प्रसिद्ध है, जिसकी स्थापना 1986 में दुर्लभ कस्तूरी मृग और अन्य हिमालयी वन्यजीवों के संरक्षण हेतु की गई थी।

#अस्कोट' नाम 'अस्सी कोट' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है “अस्सी किले।” कहा जाता है कि इस क्षेत्र में 80 छोटे-छोटे किलों का एक समूह था, जिनमें से कई के खंडहर आज भी इतिहास की गवाही देते हैं। यह स्थान कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी रहा है, जिससे इसकी धार्मिक और भौगोलिक महत्ता और बढ़ जाती है।

हरियाली से ढके पहाड़, शांत वातावरण और हिमालयी दृश्य अस्कोट को प्रकृति प्रेमियों, ट्रेकर्स और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थल बनाते हैं। यह स्थान न केवल जैविक विविधता में समृद्ध है, बल्कि अपनी विरासत और लोककथाओं के लिए भी जाना जाता है।

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