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देवी मां के कदम आपके घर आएंआप खुशी से नहाएं और परेशानियां आपसे आंखें चुराए.जय माता दी!"माता रानी के सभी भक्तों को जय मात...
21/09/2025

देवी मां के कदम आपके घर आएं
आप खुशी से नहाएं और परेशानियां आपसे आंखें चुराए.
जय माता दी!
"माता रानी के सभी भक्तों को जय माता दी।"
#जयमातादी #जय #जयशेरोंवालीमां #मातावैष्णोदेवी

हंसते रहो हंसाते रहो ,😬जिंदगी के गम भुलाते रहो 🤪  #हंसते  #हंसाते
21/09/2025

हंसते रहो हंसाते रहो ,😬
जिंदगी के गम भुलाते रहो 🤪
#हंसते #हंसाते

कहानी – "मां-बाप की ममता"किसी छोटे से कस्बे में रामनाथ और उनकी पत्नी सावित्री रहते थे। दोनों साधारण किसान थे, जिनकी मेहन...
21/09/2025

कहानी – "मां-बाप की ममता"

किसी छोटे से कस्बे में रामनाथ और उनकी पत्नी सावित्री रहते थे। दोनों साधारण किसान थे, जिनकी मेहनत और त्याग से उनका बेटा अर्जुन पढ़-लिखकर शहर में बड़ा अफसर बन गया।

अर्जुन जब छोटा था, तब मां सावित्री अपने हिस्से का खाना छोड़कर उसे खिलाती थी। पिता रामनाथ ने अपने फटे कपड़ों में भी अर्जुन के लिए अच्छे कपड़े खरीदे। खेत में धूप और बारिश में दिन-रात मेहनत की ताकि बेटे को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें।

समय बीता और अर्जुन की नौकरी लग गई। मां-बाप ने सोचा—“अब हमारा बेटा बड़ा हो गया है, हमें भी अब थोड़ा चैन मिलेगा।”

कुछ समय बाद अर्जुन की शादी रीमा से हुई। रीमा शहर की पढ़ी-लिखी, सुंदर और आधुनिक विचारों वाली लड़की थी। शुरू-शुरू में सब कुछ अच्छा चला, लेकिन धीरे-धीरे रीमा के मन में सास-ससुर को लेकर कटुता आने लगी।

वह अर्जुन से कहती—
“ये गांव के लोग, हमेशा पुराने तरीके से रहते हैं। तुम्हें शहर में इज्ज़तदार अफसर बनना है तो इनकी आदतें छोड़ो। मां-बाप को यहां रखना अच्छा नहीं, लोग मज़ाक उड़ाएंगे।”

अर्जुन जो कभी मां-बाप की सेवा को धर्म मानता था, अब पत्नी की बातों में आकर बदलने लगा।

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धीरे-धीरे दूरी

शहर के नए मकान में रीमा ने साफ कह दिया—“मुझे संयुक्त परिवार पसंद नहीं।”
अर्जुन ने मजबूरी जताई, लेकिन अंत में पत्नी की बात मानकर अपने मां-बाप को गांव में ही छोड़ आया।

सावित्री के आंखों से आंसू बहते रहे। वह बोली—
“बेटा, हमसे कोई गलती हुई हो तो बता, पर हमें यूं मत छोड़कर जा।”

पर अर्जुन ने सिर्फ इतना कहा—
“अम्मा, मैं मजबूर हूं। रीमा को अकेले रहना पसंद है।”

रामनाथ ने आह भरकर बेटे को आशीर्वाद दिया और बोले—
“जा बेटा, खुश रह। हमें किसी से कोई शिकायत नहीं।”

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समय का पहिया

वक्त गुजरता गया। गांव में मां-बाप अकेले हो गए। उम्र ढलने लगी, बीमारियां घेरने लगीं। पर अर्जुन ने कभी पलटकर देखा तक नहीं।

उधर अर्जुन और रीमा के घर एक बेटा हुआ। अर्जुन ने सोचा—“अब तो रीमा मां-बाप को बुलाएगी ताकि बच्चे को संभालने में मदद मिले।”
लेकिन रीमा ने साफ मना कर दिया—
“मुझे उनकी जरूरत नहीं। नौकर रख लेंगे।”

अर्जुन चुप हो गया। वह भूल चुका था कि कभी उसकी परवरिश भी मां-बाप ने बिना थके की थी, नौकरों ने नहीं।

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जागृति

कई साल बाद, एक दिन अर्जुन को गांव से खबर मिली कि उसके पिता रामनाथ गंभीर रूप से बीमार हैं। वह भागा-भागा गांव पहुंचा।

रामनाथ खाट पर लेटे थे, आंखों में चमक और चेहरे पर शांति थी। बेटे को देखकर मुस्कुराए और बोले—
“अर्जुन... तू आया... अच्छा लगा... अब जीने का दुख नहीं।”

अर्जुन फूट-फूटकर रो पड़ा। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने माता-पिता को अकेलेपन और तड़प के सिवा कुछ नहीं दिया।

कुछ ही दिनों बाद रामनाथ चल बसे। सावित्री और भी टूट गईं। उन्होंने अर्जुन से बस इतना कहा—
“बेटा, मां-बाप के आशीर्वाद से ही जीवन में सुख मिलता है। हमें भले ही तूने छोड़ दिया, पर तू हमारी दुआओं से ही इतना बड़ा बना।”

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कड़वा सच

शहर लौटने के बाद अर्जुन का बेटा बड़ा हुआ। लेकिन जैसा अर्जुन ने अपने मां-बाप को भुला दिया था, वैसा ही उसका बेटा भी रीमा और अर्जुन को भूलने लगा।

अर्जुन को अब अपनी ही गलतियां याद आने लगीं। वह हर रात सोचता—
“काश मैंने मां-बाप का साथ कभी न छोड़ा होता।”

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सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि पत्नी, धन, नौकरी, सब जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन मां-बाप ही जीवन की जड़ें हैं।
जो बेटा अपनी जड़ों को काट देता है, उसका पेड़ भी समय आने पर सूख जाता है।

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👉 यह कहानी बताती है कि बेटा कभी भी पत्नी के कहने पर मां-बाप को नहीं भूलना चाहिए, वरना जिंदगी पछतावे में ही गुजर जाती है।
#जिंदगीकीसच्चाई #जिंदगीकीसीख #जीवन_का_हर_एक_मजंर_देखा_है #माँबाप

कथाबहुत समय पहले त्रेता युग में, जब अधर्म और राक्षसों का अत्याचार चारों ओर बढ़ गया था, तब धरती ने भगवान विष्णु से प्रार्...
21/09/2025

कथा

बहुत समय पहले त्रेता युग में, जब अधर्म और राक्षसों का अत्याचार चारों ओर बढ़ गया था, तब धरती ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे संसार को पापियों से मुक्त करें। उसी समय भगवान विष्णु के आदेश से उनकी शक्ति का एक दिव्य अंश प्रकट हुआ, जिसे “वैष्णवी” कहा गया। यही दिव्य रूप बाद में माता वैष्णो देवी के नाम से विख्यात हुआ।

राक्षसों का आतंक

उस समय का सबसे भयानक राक्षस था भैरवनाथ। वह बलशाली, अहंकारी और अत्याचारी था। भैरव के साथ कई छोटे–बड़े राक्षस भी उसके साथ थे, जो लोगों को लूटते, तपस्वियों को परेशान करते और यज्ञ-व्रत नष्ट कर देते।

माता का तप और राक्षसों का क्रोध

माता वैष्णो देवी धरती पर आईं और कठिन तपस्या कर रही थीं। उनके तेज और दिव्य शक्ति से साधु-संत और भक्त सुरक्षित रहने लगे। जब राक्षसों ने देखा कि माता के कारण उनका आतंक कमजोर पड़ रहा है, तो वे भड़क उठे।
भैरवनाथ ने सोचा – “यह देवी साधारण नारी है, इसे पकड़कर अपनी शक्ति दिखानी चाहिए।”

युद्ध का आरंभ

भैरवनाथ और उसके साथी राक्षसों ने माता पर आक्रमण किया। लेकिन माता वैष्णो देवी ने अपने त्रिशूल और दिव्य अस्त्रों से उनका संहार करना शुरू किया।

माता के एक बाण से एक राक्षस वहीं धराशायी हो गया।

उनके हाथ से छोड़े गए चक्र ने कई दानवों को भस्म कर दिया।

माता का रूप जैसे-जैसे प्रचंड होता गया, वैसे-वैसे राक्षस भयभीत होने लगे।

भैरवनाथ से मुठभेड़

अंततः भैरवनाथ स्वयं युद्धभूमि में उतरा। उसने अपनी माया से हजारों रूप बना लिए, पर माता वैष्णो देवी ने अपने महाशक्ति स्वरूप का आह्वान किया। माता के तेज से उसके सारे मायावी रूप नष्ट हो गए।

जब भैरवनाथ ने पहाड़ों के बीच माता का पीछा किया, तो माता ने गुफा में प्रवेश किया। वहीं भैरवनाथ ने फिर आक्रमण किया। तब माता ने कुपित होकर अपना महाकाली रूप धारण किया और एक ही वार में उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

भैरव का उद्धार

लेकिन मरने के बाद भी भैरवनाथ ने माता के चरणों में सिर झुकाकर क्षमा मांगी। माता ने उसकी भक्ति और साहस देखकर कहा –
“भैरव, यद्यपि तूने अधर्म का मार्ग चुना, परंतु मृत्यु के समय तूने मेरे चरणों का स्मरण किया। इसलिए तेरी मुक्ति होगी। मेरे दर्शन तब तक पूर्ण नहीं होंगे जब तक मेरे भक्त भैरवनाथ के मंदिर में जाकर तेरा आशीर्वाद नहीं लेंगे।”

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शिक्षा

यह कथा हमें सिखाती है कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है, परंतु यदि अंतिम क्षण में भी ईश्वर का स्मरण हो जाए तो आत्मा का उद्धार संभव है। माता वैष्णो देवी केवल दुष्टों का नाश ही नहीं करतीं, बल्कि सच्चे पश्चाताप करने वालों को भी मोक्ष प्रदान करती हैं।

#मातावैष्णोदेवी

हमारे पितृ (पूर्वज) ही तो हमारे अस्तित्व और संस्कारों की जड़ हैं। जिस तरह देवता हमारी रक्षा और कल्याण के लिए पूजे जाते ह...
21/09/2025

हमारे पितृ (पूर्वज) ही तो हमारे अस्तित्व और संस्कारों की जड़ हैं। जिस तरह देवता हमारी रक्षा और कल्याण के लिए पूजे जाते हैं, उसी तरह पितरों को भी भगवान का स्वरूप माना गया है।

शास्त्रों में कहा गया है –

"पितृदेवो भव" यानी पिता देवता के समान हैं।

पितृ ही हमें जन्म, पालन-पोषण और संस्कार देते हैं, इसलिए वे हमारे लिए भगवान से कम नहीं।

जब हम पितरों को श्रद्धा और आशीर्वाद से याद करते हैं तो वे हमें सुख, समृद्धि और संतानों की वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

पितृ अमावस्या और श्राद्ध पक्ष इसी भावना से मनाए जाते हैं, कि हम अपने पितरों को देवता मानकर तृप्त करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

👉 इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित है कि पितृ हमारे भगवान होते हैं, क्योंकि देवताओं की तरह ही वे भी हमारे रक्षक और मार्गदर्शक हैं।
#पितृपक्ष

🌺 भगवान शिव और गणेश जी की अनसुनी अद्भुत कथाप्राचीन काल की बात है। कैलाश पर्वत की गोद में हिम और बर्फ के बीच भगवान शिव सम...
20/09/2025

🌺 भगवान शिव और गणेश जी की अनसुनी अद्भुत कथा

प्राचीन काल की बात है। कैलाश पर्वत की गोद में हिम और बर्फ के बीच भगवान शिव समाधि में लीन थे। माता पार्वती भी ध्यानमग्न होकर तपस्या कर रही थीं। चारों ओर शांति का साम्राज्य था, केवल मंद-मंद बहती वायु और गूंजती दिव्य ध्वनियाँ।

किन्तु उस समय तीनों लोकों में एक विचित्र समस्या उत्पन्न हुई।
आसमान में एक "कालवायु" नामक अदृश्य दैत्य जन्मा था। यह दैत्य किसी शरीर से बंधा नहीं था, केवल वायु की तरह बहता और जहाँ जाता, वहाँ रोग, असंतोष और मतभेद फैलाता।

देवता, असुर और मनुष्य – सभी उसकी शक्ति से परेशान थे। वह युद्ध भी नहीं करता था, बस मनुष्यों के हृदयों में भ्रम और डर भर देता। कोई उससे लड़ नहीं सकता था, क्योंकि वह अदृश्य था।

देवताओं की प्रार्थना

सभी देवता कैलाश पहुँचे और भगवान शिव से प्रार्थना की –
“महादेव! यह अदृश्य दैत्य हमारी शक्तियों से परे है। इसका न कोई रूप है, न कोई सीमा। आप ही इसका अंत कर सकते हैं।”

शिवजी ने आँखें खोलीं, किंतु बोले –
“हे देवताओं! यह कार्य मेरी शक्ति से भी कठिन है। क्योंकि अदृश्य को शस्त्र से मारा नहीं जा सकता। इसका समाधान केवल एक ही कर सकता है – गणेश।”

देवता चकित हुए – “गणेश जी क्यों?”

शिव मुस्कराए –
“क्योंकि गणेश में वह बुद्धि है जो अदृश्य का रहस्य पकड़ सकती है। जहाँ मेरी त्रिशूल की शक्ति नहीं पहुँचती, वहाँ मेरे पुत्र की चतुराई और निश्चल भक्ति काम करती है।”

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गणेश जी की यात्रा

गणेश जी को बुलाया गया। वे अपने मस्तक को प्रणाम कर बोले –
“पिताश्री! मुझे आज्ञा दें, मैं इस कालवायु दैत्य का रहस्य ढूँढ निकालूँगा।”

गणेश ने न किसी रथ का उपयोग किया, न कोई सेना ली। उन्होंने केवल अपनी मूषक वाहन और अपने ज्ञान का शस्त्र साथ लिया।

वे तीनों लोकों में घूमे। जहाँ-जहाँ कालवायु जाता, लोग आपस में लड़ने लगते, भाइयों में दरार पड़ती, राजाओं के राज्य टूट जाते।
गणेश जी ने सोचा –
“यदि यह अदृश्य है, तो इसका पता केवल उसके प्रभाव से ही चल सकता है। मुझे इसके पीछे का मूल जानना होगा।”

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अद्भुत रहस्य

गणेश जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह कालवायु दैत्य वास्तव में भय से जन्मा एक विचार है। जब किसी प्राणी के मन में भय या संदेह उत्पन्न होता है, तब वह विचार वायु की तरह निकलकर एक स्वरूप ले लेता है और हजारों मन में प्रवेश कर जाता है।

यानी दैत्य असली नहीं था – वह तो लोगों की भय की सामूहिक ऊर्जा से बना था।

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गणेश जी की योजना

गणेश जी समझ गए कि इस दैत्य को शस्त्र से नहीं, बल्कि भक्ति और विश्वास की शक्ति से मिटाया जा सकता है।

उन्होंने सभी लोकों में एक अद्भुत उत्सव आरंभ करवाया।

मनुष्यों को कहा – "संगीत गाओ।"

देवताओं को कहा – "नृत्य करो।"

असुरों को कहा – "अपने क्रोध को छोड़ हँसी का अनुभव करो।"

गणेश जी ने ढोल, मृदंग और वीणा बजवाई। चारों ओर हँसी, उल्लास और भक्ति का वातावरण फैल गया।
जब सब लोग एक साथ आनंद में डूबे, तब कालवायु की शक्ति कमजोर होने लगी।

आख़िरकार, गणेश जी ने अपने करकमलों से एक प्रणव मंत्र (ॐ) उच्चारित किया। उस ध्वनि ने सारे भय को जला दिया और कालवायु दैत्य स्वयं उसी वायु में विलीन हो गया, जिससे वह जन्मा था।

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शिवजी का आशीर्वाद

जब गणेश जी विजयी होकर लौटे, तो भगवान शिव ने उन्हें गले लगाया और बोले –

“वत्स! आज तुमने यह सिद्ध कर दिया कि शक्ति से बड़ी चीज़ है बुद्धि और विश्वास। तुमने न केवल दैत्य को हराया, बल्कि तीनों लोकों को यह सिखाया कि भय अदृश्य होता है, और उसका नाश केवल प्रेम और विश्वास से होता है।”

माता पार्वती ने गणेश जी को अपने आंचल से ढक लिया और आशीर्वाद दिया –
“आज से तुम्हारा नाम होगा ‘विघ्नहर्ता’ – क्योंकि तुमने भय और विघ्न का नाश किया।”

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🌟 कथा का संदेश

यह कथा हमें सिखाती है –

अदृश्य शत्रु हमेशा बाहर नहीं, कभी-कभी हमारे मन के भीतर होते हैं।

भय और संदेह से बड़ा कोई दैत्य नहीं।

हँसी, भक्ति और विश्वास ही वह शस्त्र हैं जो किसी भी अंधकार को मिटा सकते हैं।
#जयश्रीगणेश #जयभोलेनाथ🙏❤️🙏❤

🌺 अलौकिक परीक्षा की शुरुआतएक रात ब्रह्मांड में अज्ञात लोक से एक रहस्यमयी दानव “कालग्रह” प्रकट हुआ। उसका बल यह था कि वह स...
20/09/2025

🌺 अलौकिक परीक्षा की शुरुआत

एक रात ब्रह्मांड में अज्ञात लोक से एक रहस्यमयी दानव “कालग्रह” प्रकट हुआ। उसका बल यह था कि वह सिर्फ देवताओं की शक्तियाँ चुरा लेता था।
वह अयोध्या पहुँचा और रामजी पर मायावी जाल डाल दिया। अचानक श्रीराम का धनुष, बाण और उनकी तेजस्वी शक्ति लुप्त हो गई। समूची अयोध्या अंधकारमय हो उठी।

प्रजा भयभीत हो गई—“हे प्रभु! अब हमारा क्या होगा?”

राम मुस्कुरा रहे थे, पर भीतर से उन्होंने अनुभव किया कि उनका दिव्य बल जैसे कहीं छिप गया है।

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🌟 हनुमान जी का आगमन

हनुमान जी दौड़ते हुए आए और बोले—
“प्रभु! कौन है जिसने आपके तेज को छिपाया? मुझे आज्ञा दीजिए, मैं उसे ब्रह्मांड के पार जाकर भी ढूँढ लाऊँगा।”

राम ने कहा—
“पवनपुत्र, यह समय तुम्हारे पराक्रम को प्रकट करने का है। जिस कालग्रह ने मेरी शक्ति को चुराया है, उसका वध केवल तुम कर सकते हो। पर ध्यान रखना—वह मायावी है, उसके पास ब्रह्मांड को उलटने की सामर्थ्य है।”

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🌀 मायावी लोक की यात्रा

हनुमान जी ने तुरंत अपने विशाल स्वरूप का आह्वान किया और आकाश में उड़ चले। वे सूर्य से भी आगे, सप्तऋषि मंडल को पार करते हुए एक अज्ञात लोक में पहुँचे।
वहाँ कालग्रह अपने मायावी महल में श्रीराम का दिव्य तेज़ बंदी बनाकर बैठा था।

कालग्रह हँसते हुए बोला—
“वानर! तुम्हारे राम अब साधारण मनुष्य हैं। यदि तुमने उनका तेज वापस लेना चाहा, तो तुम्हें समय के बंधन से गुजरना होगा। तुम भी नष्ट हो जाओगे।”

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⚡ हनुमान जी की लीला

हनुमान जी ने मन ही मन “राम-राम” जपना प्रारंभ किया और अपने हृदय में श्रीराम को विराजमान किया।
तुरंत उनका शरीर इतना तेजस्वी हो गया कि कालग्रह की मायावी शक्ति पिघलने लगी।
फिर हनुमान बोले—
“हे दानव! तू समझता है कि तूने राम का तेज चुराया? मूर्ख! राम का तेज उनके भक्तों के हृदय में बसा रहता है। उसे कोई छीन नहीं सकता।”

इतना कहते ही हनुमान जी ने अपनी छाती चीर दी।
भीतर से दिव्य राम और सीता का स्वरूप प्रकट हुआ, जो कालग्रह की ओर देखकर जलते हुए सूर्य समान चमकने लगा।

उस तेज को देखकर कालग्रह स्वयं राख हो गया और रामजी का दिव्य बल पुनः हनुमान जी के हृदय से निकलकर श्रीराम के पास पहुँच गया।

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🌈 अयोध्या में उत्सव

हनुमान जी वापस लौटे। राम मुस्कुराते हुए बोले—
“पवनसुत, तुमने सिद्ध कर दिया कि मेरी शक्ति बाहर से नहीं, मेरे भक्तों के हृदय से आती है। जब तक तुम हो, मुझे कोई पराजित नहीं कर सकता।”

सीता जी भाव-विह्वल होकर बोलीं—
“आज मैंने जान लिया कि हनुमान जी ही राम की शक्ति का असली आधार हैं। प्रभु और भक्त का यह संबंध अद्वितीय है।”

अयोध्या में फिर से उत्सव मनाया गया और उस दिन से यह कथा गुप्त रूप से कही जाने लगी कि—
जब राम की शक्ति को किसी ने छीन लिया, तब हनुमान ने अपने हृदय से राम को प्रकट कर संसार को बचाया।

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✨ इस प्रकार यह अलौकिक कथा भक्तों को यह सिखाती है कि भगवान की शक्ति उनके सच्चे भक्तों में ही सुरक्षित रहती है।

#जयश्रीरराम राम🚩 #जयहनुमान

20/09/2025

कभी मंगल तो कभी शनि
कभी राहु भारी है,
हर किसी के जीवन में
इक संघर्ष जारी है.
#ॐशनिदेवाय नमः

जय शनि देवाय नमः   #शनि  #शनीशिंगणापूर  #शनिवार  #शनिवारस्पेशल
20/09/2025

जय शनि देवाय नमः
#शनि #शनीशिंगणापूर #शनिवार #शनिवारस्पेशल

हंसते रहो और हंसाते रहो।। #हंसाते  #हास्यास्पद #और  #रहो  #रहो
19/09/2025

हंसते रहो और हंसाते रहो।।
#हंसाते #हास्यास्पद

#और #रहो #रहो

सुकून का रहस्यबहुत समय पहले, पहाड़ों से घिरे एक छोटे से गाँव में दो अलग-अलग बाबाओं का डेरा था। दोनों की शोहरत दूर-दूर तक...
19/09/2025

सुकून का रहस्य

बहुत समय पहले, पहाड़ों से घिरे एक छोटे से गाँव में दो अलग-अलग बाबाओं का डेरा था। दोनों की शोहरत दूर-दूर तक फैली हुई थी, लेकिन दोनों के जीने और सोचने का तरीका बिल्कुल अलग था।

पहला बाबा – वैभव बाबा

पहले बाबा का नाम लोग वैभव बाबा रखते थे। उनका डेरा बहुत बड़ा था, चारों ओर ऊँची दीवारें और शानदार गेट बना हुआ था। अंदर सोने-चाँदी के बर्तन, महँगे कपड़े, कीमती कालीन, और भक्तों से मिली ढेरों भेंटें रखी थीं। हर सुबह सैकड़ों लोग बाबा के दरबार में आते, नारियल और फूल चढ़ाते और बदले में बाबा से “सुकून” पाने की दुआ माँगते।
लेकिन असली सच्चाई यह थी कि वैभव बाबा खुद कभी चैन की नींद नहीं सो पाते थे। उन्हें डर था कि कहीं उनकी दौलत चोरी न हो जाए, कहीं लोग उनका नाम भूल न जाएँ। हर समय मन में बेचैनी और असुरक्षा बनी रहती थी।

दूसरा बाबा – संतोषी बाबा

गाँव के किनारे, नदी के पास एक बहुत छोटा-सा आश्रम था। वहाँ रहते थे संतोषी बाबा। उनका जीवन बेहद साधारण था। उनके पास न सोने-चाँदी की थालियाँ थीं, न ही बड़ी हवेली। एक टूटी खाट, एक चटाई और दो जोड़ी कपड़े ही उनका सब कुछ था। लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। गाँव वाले जब उनके पास आते, तो बाबा उन्हें प्यार से बैठाकर बातें करते, कहानियाँ सुनाते और उनके दुख बाँटते।

मिलन का दिन

एक दिन गाँव के कुछ लोग आपस में बहस करने लगे—
“असली सुकून तो वैभव बाबा के पास है, क्योंकि उनके पास सबकुछ है।”
दूसरे बोले, “नहीं, असली सुकून तो संतोषी बाबा के पास है, क्योंकि उनके पास चैन की नींद और मुस्कान है।”

यह सुनकर गाँव वालों ने तय किया कि दोनों बाबाओं को आमने-सामने बैठाकर पूछा जाए—
“सुकून का असली रहस्य क्या है?”

सवाल का जवाब

गाँव के चबूतरे पर दोनों बाबा आकर बैठे। वैभव बाबा ने कहा:
“सुकून तब मिलता है जब आपके पास ढेर सारी दौलत हो। जब लोग आपकी पूजा करें, जब हर चीज़ आपके क़ाबू में हो। यही असली सुख है।”

फिर संतोषी बाबा मुस्कराए और बोले:
“नहीं भाइयों, असली सुकून तब मिलता है जब दिल में लोभ, क्रोध और डर न हो। जब आप जो पास है उसमें संतोष करना सीखो। जब आपकी नींद किसी ताले की चाबी पर निर्भर न हो, बल्कि आपके मन की शांति पर हो। दौलत से भूख मिट सकती है, पर चैन नहीं।”

घटना जिसने सच दिखाया

उस रात अचानक गाँव में आग लग गई। आग सबसे पहले वैभव बाबा के बड़े आश्रम तक पहुँची। उनकी सोने-चाँदी की पेटियाँ, महँगे कपड़े सब राख हो गए। वैभव बाबा रोने लगे, सिर पकड़कर चिल्लाने लगे—
“मेरा सब कुछ चला गया! अब मैं कैसे जीऊँगा?”

इधर, संतोषी बाबा नदी किनारे अपनी चटाई पर बैठे थे। गाँव वाले घबराकर उनके पास दौड़े, तो बाबा मुस्कुराते हुए बोले—
“अरे भई, जल तो वही सकता है जिसे हमने जमा किया है। जो कुछ भी पास है, अगर वह चला जाए तो दुख होना स्वाभाविक है। लेकिन सुकून उस चीज़ का नाम है, जो आग, चोरी, या समय कभी छीन नहीं सकता—और वह है मन की शांति।”

गाँव वाले यह सुनकर गहरी सोच में पड़ गए। उन्होंने देखा कि एक तरफ दौलत वाला बाबा रो-रोकर बेचैन था और दूसरी तरफ खाली हाथ संतोषी बाबा चैन की साँस ले रहे थे।

सच्चाई का एहसास

अगली सुबह गाँव वालों ने फैसला किया कि वे असली सुकून के रहस्य को मानेंगे। उन्होंने वैभव बाबा से कहा:
“बाबा, आपके पास सबकुछ था, पर आप बेचैन थे। संतोषी बाबा के पास कुछ नहीं है, पर वे खुश हैं। असली सुकून संतोष में है, न कि वैभव में।”

वैभव बाबा को भी यह एहसास हो गया और उन्होंने संतोषी बाबा से सीखने की ठानी।

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कहानी का संदेश

सच्चा सुकून न दौलत में है, न शोहरत में।
सुकून का रहस्य संतोष, प्रेम और शांति में छिपा है।
#जिंदगीकीसच्चाई #जिंदगीकीसीख

19/09/2025

आखिर मां दुर्गा ने क्यों किया था महिषासुर का वध? जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा
#जयमांदुर्गे

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