19/09/2025
सुकून का रहस्य
बहुत समय पहले, पहाड़ों से घिरे एक छोटे से गाँव में दो अलग-अलग बाबाओं का डेरा था। दोनों की शोहरत दूर-दूर तक फैली हुई थी, लेकिन दोनों के जीने और सोचने का तरीका बिल्कुल अलग था।
पहला बाबा – वैभव बाबा
पहले बाबा का नाम लोग वैभव बाबा रखते थे। उनका डेरा बहुत बड़ा था, चारों ओर ऊँची दीवारें और शानदार गेट बना हुआ था। अंदर सोने-चाँदी के बर्तन, महँगे कपड़े, कीमती कालीन, और भक्तों से मिली ढेरों भेंटें रखी थीं। हर सुबह सैकड़ों लोग बाबा के दरबार में आते, नारियल और फूल चढ़ाते और बदले में बाबा से “सुकून” पाने की दुआ माँगते।
लेकिन असली सच्चाई यह थी कि वैभव बाबा खुद कभी चैन की नींद नहीं सो पाते थे। उन्हें डर था कि कहीं उनकी दौलत चोरी न हो जाए, कहीं लोग उनका नाम भूल न जाएँ। हर समय मन में बेचैनी और असुरक्षा बनी रहती थी।
दूसरा बाबा – संतोषी बाबा
गाँव के किनारे, नदी के पास एक बहुत छोटा-सा आश्रम था। वहाँ रहते थे संतोषी बाबा। उनका जीवन बेहद साधारण था। उनके पास न सोने-चाँदी की थालियाँ थीं, न ही बड़ी हवेली। एक टूटी खाट, एक चटाई और दो जोड़ी कपड़े ही उनका सब कुछ था। लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। गाँव वाले जब उनके पास आते, तो बाबा उन्हें प्यार से बैठाकर बातें करते, कहानियाँ सुनाते और उनके दुख बाँटते।
मिलन का दिन
एक दिन गाँव के कुछ लोग आपस में बहस करने लगे—
“असली सुकून तो वैभव बाबा के पास है, क्योंकि उनके पास सबकुछ है।”
दूसरे बोले, “नहीं, असली सुकून तो संतोषी बाबा के पास है, क्योंकि उनके पास चैन की नींद और मुस्कान है।”
यह सुनकर गाँव वालों ने तय किया कि दोनों बाबाओं को आमने-सामने बैठाकर पूछा जाए—
“सुकून का असली रहस्य क्या है?”
सवाल का जवाब
गाँव के चबूतरे पर दोनों बाबा आकर बैठे। वैभव बाबा ने कहा:
“सुकून तब मिलता है जब आपके पास ढेर सारी दौलत हो। जब लोग आपकी पूजा करें, जब हर चीज़ आपके क़ाबू में हो। यही असली सुख है।”
फिर संतोषी बाबा मुस्कराए और बोले:
“नहीं भाइयों, असली सुकून तब मिलता है जब दिल में लोभ, क्रोध और डर न हो। जब आप जो पास है उसमें संतोष करना सीखो। जब आपकी नींद किसी ताले की चाबी पर निर्भर न हो, बल्कि आपके मन की शांति पर हो। दौलत से भूख मिट सकती है, पर चैन नहीं।”
घटना जिसने सच दिखाया
उस रात अचानक गाँव में आग लग गई। आग सबसे पहले वैभव बाबा के बड़े आश्रम तक पहुँची। उनकी सोने-चाँदी की पेटियाँ, महँगे कपड़े सब राख हो गए। वैभव बाबा रोने लगे, सिर पकड़कर चिल्लाने लगे—
“मेरा सब कुछ चला गया! अब मैं कैसे जीऊँगा?”
इधर, संतोषी बाबा नदी किनारे अपनी चटाई पर बैठे थे। गाँव वाले घबराकर उनके पास दौड़े, तो बाबा मुस्कुराते हुए बोले—
“अरे भई, जल तो वही सकता है जिसे हमने जमा किया है। जो कुछ भी पास है, अगर वह चला जाए तो दुख होना स्वाभाविक है। लेकिन सुकून उस चीज़ का नाम है, जो आग, चोरी, या समय कभी छीन नहीं सकता—और वह है मन की शांति।”
गाँव वाले यह सुनकर गहरी सोच में पड़ गए। उन्होंने देखा कि एक तरफ दौलत वाला बाबा रो-रोकर बेचैन था और दूसरी तरफ खाली हाथ संतोषी बाबा चैन की साँस ले रहे थे।
सच्चाई का एहसास
अगली सुबह गाँव वालों ने फैसला किया कि वे असली सुकून के रहस्य को मानेंगे। उन्होंने वैभव बाबा से कहा:
“बाबा, आपके पास सबकुछ था, पर आप बेचैन थे। संतोषी बाबा के पास कुछ नहीं है, पर वे खुश हैं। असली सुकून संतोष में है, न कि वैभव में।”
वैभव बाबा को भी यह एहसास हो गया और उन्होंने संतोषी बाबा से सीखने की ठानी।
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कहानी का संदेश
सच्चा सुकून न दौलत में है, न शोहरत में।
सुकून का रहस्य संतोष, प्रेम और शांति में छिपा है।
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