12/10/2025
पर–निंदा👈👈👈✍️✍️
“पर-निंदा” का अर्थ होता है — दूसरों की निंदा करना, बुराई करना या उनके दोषों को फैलाना।
यह एक बहुत सूक्ष्म लेकिन गंभीर बुराई है जो व्यक्ति के चरित्र, मानसिक शांति, और आध्यात्मिक उन्नति — तीनों को नष्ट कर देती है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं 👇
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🌿 पर-निंदा का अर्थ
“पर” का अर्थ है दूसरा व्यक्ति और “निंदा” का अर्थ है बुराई करना या दोष बताना।
इस प्रकार “पर-निंदा” का मतलब है —
किसी अन्य व्यक्ति की अनुपस्थिति में या सामने ही उसके दोषों को उछालना, मज़ाक उड़ाना या गलत बातें कहना।
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🌸 शास्त्रों में पर-निंदा की निंदा
हिंदू धर्मग्रंथों में पर-निंदा को बहुत बड़ा पाप बताया गया है।
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं —
✍️पर-निंदा रसि रुचि जिन पाई।
तिन्हहि न राम भक्ति सुख दाई॥”
(सुंदरकांड)
अर्थ: जो लोग दूसरों की निंदा करने में आनंद पाते हैं, उन्हें कभी भी श्रीराम भक्ति का सुख नहीं मिल सकता।
भगवद्गीता (अध्याय 16) में भी कहा गया है कि
निंदा, द्वेष, अहंकार आदि गुण “असुर-स्वभाव” का परिचय हैं।
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🌼 पर-निंदा के दुष्परिणाम
🌺मन की शांति नष्ट होती है:
निंदा करने वाला व्यक्ति हमेशा अशांत रहता है।
🌺सत्कर्मों का नाश होता है:
जितने पुण्य कर्म करता है, वह निंदा से धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।
🌺समाज में विश्वास कम होता है:
लोग ऐसे व्यक्ति से दूरी बना लेते हैं।
🌺आध्यात्मिक प्रगति रुक जाती है:
निंदा करने से मन में द्वेष, ईर्ष्या और अहंकार बढ़ता है।
ये सभी गुण ध्यान और भक्ति में बाधा डालते हैं।
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🌷 पर-निंदा से बचने के उपाय
🌺सकारात्मक सोच विकसित करें।
हर व्यक्ति में कुछ अच्छाइयाँ होती हैं, उन्हें देखने की आदत डालें।
🌺मौन का अभ्यास करें।
जहाँ निंदा चल रही हो, वहाँ मौन रहना या विषय बदल देना श्रेष्ठ है।
🌺सहानुभूति रखें।
जो गलतियाँ दूसरों में दिखती हैं, वे हममें भी कभी न कभी हो सकती हैं।
🌺सत्संग करें।
संत-महात्माओं की संगति निंदा के भाव को मिटा देती है।
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🌻 सुंदर उदाहरण
एक साधु से किसी ने पूछा —
“महात्मा जी, आप हर किसी की अच्छाई ही क्यों बताते हैं?”
साधु ने मुस्कुराकर कहा —
“मक्खी हमेशा घाव पर बैठती है, और मधुमक्खी फूल पर।
मैंने ठान लिया है कि मुझे मधुमक्खी बनना है।”
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🌞 जो दूसरों की निंदा करता है, वह अपना ही पुण्य खोता है।
जो दूसरों की अच्छाई देखता है, वही ईश्वर के निकट पहुँचता है 🌼
आपका अपना JDTIWARI ✍️ ⏩