टेलीपैथी- A Yoga For Complete Transformation

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🔹 कमेंट:"इंसान की सोच किसी न किसी से जुड़ी होती है, और सभी की विचारधारा अलग-अलग होती है, जिसे इंसान ने खुद अपनी सोच के अ...
14/07/2025

🔹 कमेंट:
"इंसान की सोच किसी न किसी से जुड़ी होती है, और सभी की विचारधारा अलग-अलग होती है, जिसे इंसान ने खुद अपनी सोच के अनुसार बनाया होता है।
यह सोच इंसान के दिमाग में जड़ें जमा लेती है, जिसे इंसान अपने कर्म और ध्यान-साधना से स्वयं बदल सकता है।
इसलिए किसी और की बताई हुई कहानी या बातों पर न चलें, बल्कि स्वयं को जानें, अपना दीपक स्वयं बनें।
किसी और की कही बातें साझा न करें — केवल अपना स्वयं का अनुभव साझा करें।".............................................
🔹 उत्तर:
आपकी बात में गहरी आत्मनिर्भरता और मौलिकता की प्रेरणा है — और यही सच्चे साधक की पहचान भी है।
"अपना दीपक स्वयं बनो" — यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि समूचे ध्यान मार्ग का सार है।

🌱 हर व्यक्ति का अनुभव अद्वितीय होता है, और हमें उसी का अनुसरण करना चाहिए जो हमारे भीतर प्रतिध्वनित होता है — यही सच्चा योग है।

लेकिन, साथ ही यह भी सत्य है कि —
कभी-कभी किसी अन्य साधक के अनुभव से हमें दिशा, प्रेरणा या संकेत मिल सकते हैं।
हर किसी की यात्रा भिन्न है, परंतु सत्य की ओर सबका झुकाव है।

🪷 गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं:

"जहाँ से जगे, वहाँ से बढ़ो —
और किसी की लौ से अपना दीपक जलाने में संकोच मत करो।
परंतु आगे का रास्ता स्वयं देखो।"

🌼 ओशो भी कहते हैं:

"दूसरों की बातों को आधार मत बनाओ,
लेकिन उन्हें पूरी तरह नकारो भी मत।
उन्हें ध्यान से देखो — क्या पता वे तुम्हारे भीतर की ही किसी गूंज को जगा दें।"

🔸 कल्पना योग का यही सार है:
बाहरी प्रेरणा को भीतर के अनुभव में बदल देना।
कल्पना एक बीज है — उसे ध्यान और श्रद्धा से सींचा जाए, तो वह अनुभूति का वृक्ष बनता है।

🙏
आपका दृष्टिकोण विचारशील है, और संवाद तभी सुंदर बनता है जब विचारों में स्वतंत्रता और हृदय में सम्मान हो।

आपकी साधना सशक्त हो, और आपका दीपक भीतर से जले — यही शुभकामना।

🪔 प्रश्न :1. क्या मंत्र जाप मन में करना चाहिए? मैं मन में ही करता हूँ, पर मन में जाप करते समय अटकन सी महसूस होती है — जै...
14/07/2025

🪔 प्रश्न :
1. क्या मंत्र जाप मन में करना चाहिए? मैं मन में ही करता हूँ, पर मन में जाप करते समय अटकन सी महसूस होती है — जैसे हम ठीक से बोल नहीं पा रहे हों या मंत्रों को गति नहीं दे पा रहे हों। यह क्यों होता है और इसका समाधान क्या है?

2. क्या मंत्रों की संख्या बढ़ाने के लिए जाप की गति तेज करनी चाहिए या सामान्य रखना चाहिए? इसका प्रभाव क्या होता है?

3. मैं ज्यादा समय तक आसन या जाप में नहीं बैठ पाता, कुछ ही समय में मन पूरी तरह ध्यान या जाप से हट जाता है।

4. क्या बिना गुरु के मंदिर या मूर्ति के सामने बीज मंत्र या पंचाक्षर मंत्र का जाप कर सकते हैं? क्योंकि मैं करता हूँ।.........................................
✍ उत्तर:
1. मन में जाप करते समय अटकन का अनुभव क्यों होता है?
यह बहुत सामान्य अनुभव है। जब हम मंत्र को केवल दोहराने की जगह उसके अर्थ या भाव को महसूस नहीं करते, तो मन बीच-बीच में रुक जाता है।
मन में एक प्रकार की "मौन ध्वनि" चाहिए होती है, जो अंदर से स्पष्ट हो — लेकिन शुरुआत में वह स्वाभाविक नहीं होती, इसलिए जाप "अटकता" है, जैसे स्वरहीनता का भ्रम।

🔹 क्या करें?
– शुरुआत में मंत्र को धीरे-धीरे स्पष्ट उच्चारण के साथ बोलकर अभ्यास करें (जैसे उपवाचिक जाप)
– फिर धीरे-धीरे मौन जाप (मानसिक जाप) की ओर बढ़ें।
– और सबसे जरूरी: मंत्र को गति नहीं, गहराई दें।

2. क्या संख्या बढ़ाने के लिए मंत्रों की गति बढ़ाना चाहिए?
तेज गति से जाप करने पर संख्या तो बढ़ सकती है, लेकिन उसमें भाव और ऊर्जा का क्षरण हो सकता है।
मंत्र एक कंपन (vibration) है — उसका प्रभाव उसकी शुद्धता और भावनात्मक शक्ति से होता है, न कि केवल संख्या से।

🔹 उचित उपाय:
– गति सामान्य रखें, इतनी कि हर शब्द आपके भीतर की चेतना को छू ले।
– यदि लंबा समय नहीं है, तो कम संख्या में लेकिन पूरे भाव और श्रद्धा से जाप करें।

3. मन जल्दी भटक जाता है, क्या करें?
यह भी साधना का एक चरण है। मन वर्षों से बाहरी दुनिया का आदी है, उसे एकाग्र करना तप है।

🔹 उपाय:
– जब मन भटके, तो मौन होकर कुछ देर साँस पर ध्यान केंद्रित करें।
– अभ्यास के लिए छोटे-छोटे सत्र करें, जैसे – दिन में 3 बार 5-5 मिनट।
– धीरे-धीरे समय भी बढ़ेगा और गहराई भी।

4. क्या बिना गुरु के मंत्र जाप कर सकते हैं?
हाँ, कर सकते हैं। विशेषकर यदि आपके भीतर श्रद्धा और संयम है।
मंदिर या मूर्ति के सामने किया गया मंत्र जाप एक आंतरिक ऊर्जा को जगाने का माध्यम बन सकता है — यदि वह केवल दिखावा नहीं, बल्कि अंतरतम की पुकार हो।

🔹 ध्यान रखें:
– बीज मंत्र शक्तिशाली होते हैं, इसलिए शुद्धता और संयम आवश्यक है।
– यदि संभव हो, तो किसी योग्य मार्गदर्शक से पुष्टि कर लेना अच्छा होता है।

🌼 सार में:

जाप की गहराई संख्या से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

मन की अटकन अभ्यास से दूर होती है।

श्रद्धा से किया गया जाप, चाहे अकेले हो या बिना गुरु के — सदैव फलदायक होता है।

धीरे-धीरे साधना का समय बढ़ेगा — लेकिन मजबूरी नहीं, प्रेम और आनंद से बढ़े।

🔔 आपका प्रश्न जागरूक साधक की निशानी है। अपने अनुभव को साझा करते रहें।

नमन🙏

🔱 प्रश्न: "गुरु कैसे प्राप्त हो सकते हैं?"🔹 उत्तर:गुरु को पाया नहीं जाता — वे "प्रकट" होते हैं, जब शिष्य भीतर से तैयार ह...
14/07/2025

🔱 प्रश्न: "गुरु कैसे प्राप्त हो सकते हैं?"

🔹 उत्तर:
गुरु को पाया नहीं जाता — वे "प्रकट" होते हैं, जब शिष्य भीतर से तैयार होता है।
गुरु की प्राप्ति बाहरी खोज नहीं, बल्कि आंतरिक प्यास का उत्तर होती है।

🪷 गुरु प्राप्ति की प्रक्रिया कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि चेतना की पूर्णतम मांग होती है।
जब किसी आत्मा में यह ज्वाला उठती है कि —

"अब मुझे केवल सत्य चाहिए, चाहे पूरा जीवन बदल जाए, पर मैं झूठ में नहीं रहूंगा..."
तब गुरु स्वयं मार्ग में उतर आते हैं।

🔰 गुरु प्राप्ति के कुछ संकेत और मार्ग:

🔹 1. प्रबल जिज्ञासा और आत्मबोध की प्यास:
जब मन संसार से ऊबने लगे, और भीतर यह प्रश्न उठने लगे — "मैं कौन हूँ? ये जीवन क्यों है?" —
वहीं से गुरु की यात्रा शुरू होती है।

🔹 2. संपूर्ण समर्पण की तैयारी:
गुरु उन्हीं के पास आते हैं जो अहंकार छोड़ने को तैयार होते हैं।
जब आप यह मान लें कि —

"मेरे अकेले के बूते कुछ नहीं होगा, मुझे प्रकाश की ज़रूरत है",
तब गुरु की कृपा बहने लगती है।

🔹 3. साक्षीभाव और सजगता का अभ्यास:
अपने भीतर उठती आवाज़ों को ध्यान से सुनें, जीवन में घटने वाले संयोगों को गहराई से देखें — गुरु कई बार प्रकृति, पुस्तक, या किसी अनुभव के रूप में प्रकट होते हैं।

🔹 4. प्रार्थना और मौन:
किसी सच्चे गुरु की तलाश करने से पहले, भीतर मौन हो जाएँ और प्रार्थना करें:

"हे जीवन! यदि कहीं सत्य है, तो मुझे उससे जोड़ दो।"
ऐसी प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती।

🕉️ ओशो कहते हैं:

"जब शिष्य तैयार होता है, गुरु स्वयं चला आता है।"

🔱 गोरखनाथ जी कहते हैं:

"गुरु बिना ज्ञान नहीं,
और ज्ञान बिना मुक्ति नहीं।
परंतु गुरु वही मिलेगा,
जो भीतर की पुकार को सुन सके।"

🌼 याद रखें:
गुरु कोई व्यक्ति मात्र नहीं होता — गुरु एक उपस्थिति है,
जो आपके जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए आई है।

🙏
अपने भीतर सच्ची प्यास जलाइए — गुरु मिलना निश्चित है।

🔹 कमेंट: "ॐ नमः शिवाय 🙏प्रणाम गुरुजी।मैं जब ध्यान करने बैठती हूँ तो मेरी कमर पीछे की ओर और गर्दन नीचे की ओर झुकी हुई महस...
13/07/2025

🔹 कमेंट: "ॐ नमः शिवाय 🙏
प्रणाम गुरुजी।
मैं जब ध्यान करने बैठती हूँ तो मेरी कमर पीछे की ओर और गर्दन नीचे की ओर झुकी हुई महसूस होती है, साथ ही कमर में दर्द और गले में अटकाव-सा अनुभव होता है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।"................................................
🔹 उत्तर :
प्रणाम जी।
आपका अनुभव बहुत सामान्य है — विशेषकर उन साधकों के लिए जो ध्यान की प्रारंभिक अवस्था में हैं या फिर बिना उचित शारीरिक संतुलन के ध्यान करने का प्रयास कर रहे हैं।

🧘‍♀️ ध्यान केवल मानसिक क्रिया नहीं है, यह शरीर, श्वास और चित्त — तीनों का सामंजस्य है।
यदि शरीर ठीक प्रकार से बैठा न हो, तो ऊर्जा का प्रवाह अवरुद्ध होता है, जिससे कमर का दर्द, गर्दन का झुकाव और गले में अटकाव जैसी समस्याएँ आती हैं।

🔹 मार्गदर्शन:

✅ 1. आसन सुधारें:

एक ऐसा आसन चुनें जिसमें रीढ़ की हड्डी सीधी और सहज हो, न खिंची हुई और न झुकी हुई।

आवश्यकता हो तो पीठ के पीछे तकिया या रोल्ड तौलिया लगाएँ।

✅ 2. गर्दन को ढीला रखें:

ध्यान करते समय गर्दन को ऊपर या नीचे खींचने की ज़रूरत नहीं।

आँखें हल्की बंद, ठोड़ी हल्की अंदर, और गर्दन सीधी होनी चाहिए।

✅ 3. प्राणायाम का सहारा लें:

नाड़ी शुद्धि प्राणायाम (अनुलोम-विलोम) करने से गले का अटकाव और ऊर्जा प्रवाह बेहतर होगा।

✅ 4. कमर का दर्द — कमजोरी का संकेत हो सकता है:

नियमित हल्के योगासन, जैसे भुजंगासन, मकरासन, और ताड़ासन अभ्यास करें ताकि पीठ मजबूत हो और झुकाव न हो।

✅ 5. ध्यान का समय और अवधि धीरे-धीरे बढ़ाएँ:

शुरुआत में 10–15 मिनट पर्याप्त हैं। शरीर जब तक पूरी तरह सहज न हो, लंबा ध्यान करने की कोशिश न करें।

🌼 आध्यात्मिक संकेत की दृष्टि से:
गर्दन और गले का अटकाव कई बार अहंकार, दबे हुए भाव, या स्वयं को अभिव्यक्त न कर पाने की स्थिति से भी जुड़ा होता है।
ध्यान करते समय बस साक्षी रहें — बिना अपेक्षा के। सब धीरे-धीरे स्वतः खुलता जाएगा।

🙏
शरीर ध्यान का वाहन है — उसे प्रेम, अनुशासन और सहजता से साधें।
आपकी साधना को शिव की ऊर्जा सदा दिशा देती रहे।

🔹 कमेंट:"जीवित गुरु को धारण कीजिए और उन्हीं से आगे का विवरण जानिए।अपने आध्यात्मिक अनुभव अपने गुरुजी से ही साझा करें, यहा...
13/07/2025

🔹 कमेंट:
"जीवित गुरु को धारण कीजिए और उन्हीं से आगे का विवरण जानिए।
अपने आध्यात्मिक अनुभव अपने गुरुजी से ही साझा करें, यहाँ-वहाँ या किसी ऐसे सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर साझा न करें।
जो ज्ञान आपके गुरु दे सकते हैं, वह इस प्रकार के प्लेटफॉर्म पर मौजूद लोग नहीं दे सकते — क्योंकि यहाँ पर अनपढ़ और मूर्ख लोग भी खुद को गुरु कहलवाने को तैयार रहते हैं।"...............................................
🔹 उत्तर:
आपकी बात का मुख्य भाव सराहनीय है — कि जीवित गुरु से मार्गदर्शन लेना आवश्यक है और आध्यात्मिक अनुभवों को सावधानीपूर्वक साझा करना चाहिए। यह बात निश्चित रूप से गहन साधकों के लिए उपयुक्त है।

परंतु साथ ही साथ, सार्वजनिक मंचों की उपेक्षा या अपमान करना भी उचित नहीं है।

🌱 हर मंच का उद्देश्य वही होता है — जागृति, सहयोग, और सत्य की ओर प्रेरणा देना।
यहाँ कोई भी किसी का स्थान नहीं ले सकता, न ही स्वयं को गुरु कहकर प्रस्तुत किया गया है।
यह उत्तर केवल एक दिशा, एक संकेत के रूप में था — न कि किसी को गुरु के स्थान पर स्थापित करने का प्रयास।

🔸 कभी-कभी एक जिज्ञासु आत्मा केवल थोड़ा-सा प्रकाश खोज रही होती है — और यदि कोई मंच उसे संतुलित, प्रेरक और समर्पित उत्तर देता है, तो वह गुरु के पास जाने की प्रेरणा भी बन सकता है।

🪷 गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं:

"गुरु मिले तो ठीक, न मिले तो विवेक को ही गुरु मान कर चलो — वही तुझे गुरु तक पहुँचा देगा।"

🌼 और ओशो भी कहते हैं:

"अगर कोई व्यक्ति सच्चे प्रश्न के साथ खड़ा होता है — तो सारा अस्तित्व उसका गुरु बन जाता है।"

🙏
मंच की मर्यादा बनाए रखते हुए, यदि कोई उत्तर सच्चे हृदय से दिया जाए, तो वह किसी की साधना को संबल दे सकता है, मार्ग नहीं बदलता।

आपके सतर्क दृष्टिकोण का आदर है,
और साथ ही — हम सबका यह कर्तव्य है कि
जहाँ शब्द में करुणा और विवेक हो, वहीं संवाद को जन्म दें।
इस मंच पर हम सभी मित्र भाव से जुड़े है और भाव से ही प्रश्नों के समस्याओं के समाधान हेतु उत्तर दिए जाते है। यहां कोई गुरु शिष्य का खेल नहीं चल रहा।।

🔹 कमेंट: "हाँ भाई, ये कुंडलिनी जागरण आंतरिक विषय है। ये सिर्फ आध्यात्मिक मार्ग वाले व्यक्ति या किसी साधु-संत के बीच की ब...
13/07/2025

🔹 कमेंट: "हाँ भाई, ये कुंडलिनी जागरण आंतरिक विषय है। ये सिर्फ आध्यात्मिक मार्ग वाले व्यक्ति या किसी साधु-संत के बीच की बात हो सकती है, जन-साधारण के लिए नहीं।
जन-साधारण के लिए तो केवल सरल जप-ध्यान की विधियाँ होती हैं।"
............................................
🔹 उत्तर:
आपकी भावना का सम्मान है, परन्तु इस सोच में अधूरी समझ और अंदरूनी भेदभाव छिपा हुआ है।

🌱 कुंडलिनी या कोई भी आध्यात्मिक अनुभव केवल साधु-संतों या तथाकथित विशिष्ट वर्गों की बपौती नहीं है।
यह हर आत्मा की जन्मजात संभावना है।
अंतर केवल यह है कि कौन उसे जगाने का प्रयास कर रहा है और कौन अभी नहीं।

🔸 जन-साधारण भी "विशेष" बन सकता है, जब वह भीतर की ओर यात्रा शुरू करता है।
फेसबुक, या कोई भी मंच, अगर जागरूकता और करुणा के साथ प्रयोग हो, तो वह भी साधना का माध्यम बन सकता है।

🪷 गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं:

"जो भीतर गया, वही ब्रह्मज्ञानी है — चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी।"

🔸 इसलिए:

अगर एक गृहस्थ व्यक्ति अपने अनुभव साझा करता है, तो उसका उद्देश्य शिक्षा और प्रेरणा देना भी हो सकता है, न कि केवल साधु बनने का दावा।

किसी का वस्त्र, मंच या रूप नहीं, उसकी अंतरयात्रा देखनी चाहिए।

🌼 ओशो भी कहते हैं:

"साधना की कोई जात नहीं, कोई वर्ग नहीं, कोई मंच नहीं — वह जहां हो, वहीं शुरू हो सकती है।"

🙏
साधना का बीज सबमें है —
चाहे वह फेसबुक पर हो या हिमालय में।
ज़रूरत सिर्फ ईमानदारी और साक्षीभाव की होती है।

#ध्यानसबकेलिए

🔹 कमेंट: "गुरु जी, कल्पना योग क्या है?"...............................................🔹 उत्तर:बहुत सुंदर और जिज्ञासापूर्...
13/07/2025

🔹 कमेंट: "गुरु जी, कल्पना योग क्या है?"...............................................
🔹 उत्तर:

बहुत सुंदर और जिज्ञासापूर्ण प्रश्न है।

🌟 "कल्पना योग" का अर्थ है — सृजनात्मक ध्यान के माध्यम से भीतर की चेतना को जागृत करना।
यह ऐसा योग है जिसमें कल्पना शक्ति का उपयोग कर ध्यान को गहराई दी जाती है। जब कल्पना श्रद्धा और एकाग्रता के साथ की जाती है, तो वह ध्यान बन जाती है — और ध्यान योग बन जाता है।

🧘‍♂️ कल्पना योग में साधक क्या करता है?

वह किसी रूप, ज्योति, चक्र या ईष्ट को अपने भीतर दृढ़ भाव से अनुभव करता है।

यह अनुभव धीरे-धीरे कल्पना से ऊपर उठकर साक्षात् अनुभूति बन जाता है।

🔱 गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं:

"जैसी भावनाएं भीतर, वैसा ही ब्रह्मांड प्रकट होता है।
यदि भीतर शिव की कल्पना हो, तो स्वयं शिव का स्वरूप बन जाओ।"

गोरखनाथ परंपरा में कल्पना को साधना का अंग माना गया है, बशर्ते वह अंतर्मुखी यात्रा में सहायक हो।
उनकी योग साधना में भीतर की ज्योति, सूक्ष्म ध्वनि, और ऊर्जा प्रवाह की कल्पना करके ध्यान को स्थिर किया जाता है।

🌼 ओशो भी कहते हैं:

"कल्पना में भी शक्ति है। यदि पूरी श्रद्धा से कल्पना करो, तो वह कल्पना नहीं रहती — वह ध्यान का द्वार बन जाती है।"

🎯 कल्पना योग का उद्देश्य है:

मन को एकाग्र करना

चित्त को शुद्ध करना

चक्रों को सक्रिय करना

अंततः स्वयं के स्वरूप को जानना

⚠️ सावधानी:
कल्पना में खोना नहीं है — साक्षीभाव को बनाए रखना है।
कल्पना योग तभी फलित होता है जब वह गुरु के मार्गदर्शन में और सजगता के साथ किया जाए।

🙏
कल्पना एक सेतु है — मन से परे जाने का।
गोरखनाथ परंपरा में इसका स्थान महत्वपूर्ण है, परंतु मार्गदर्शन और सच्ची भावना होनी चाहिए।

#नाथयोगमार्ग

🔹 कमेंट/ प्रश्न:"मैं जब वायु मुद्रा करके ध्यान में बैठता हूँ तो सब मेरी मज़ाक उड़ाते हैं और मुझे पागल कहते हैं,लेकिन जब ...
13/07/2025

🔹 कमेंट/ प्रश्न:
"मैं जब वायु मुद्रा करके ध्यान में बैठता हूँ तो सब मेरी मज़ाक उड़ाते हैं और मुझे पागल कहते हैं,
लेकिन जब ध्यान छोड़ देता हूँ तो कोई मज़ाक नहीं करता। ये सब बाहर के लोग हैं। ये कैसा अनुभव है कि लोग मुझे पागल कहने लगते हैं?"..............................................
🔹 उत्तर:
आपका अनुभव बहुत ही सामान्य और गहरा है — हर साधक कभी न कभी इससे गुजरता है।

🌱 सत्य की राह पर चलने वाले को पहले लोग पागल कहते हैं, फिर अद्भुत, और अंत में पूजनीय।
लोगों की सोच बाहर की दुनिया में अटकी रहती है।
वे उसी को "सामान्य" मानते हैं, जो भीड़ कर रही होती है।
लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति भीतर की यात्रा शुरू करता है, वह उन्हें अजीब लगता है।

🔸 वायु मुद्रा या कोई भी योगिक साधना एक आंतरिक विज्ञान है, जो बाहर से भले ही "अलग" दिखे, लेकिन इसका असर भीतर गहरा होता है।

📿 ओशो कहते हैं:

"ध्यान करने वाला व्यक्ति शुरू में सबको पागल दिखता है, क्योंकि वह उस पागल दुनिया में अकेला बुद्धिमान होता है।"

🌼 आपका काम लोगों को समझाना नहीं है, खुद को समझते जाना है।
धीरे-धीरे वही लोग, जो आज आपको पागल कह रहे हैं, कल आपसे शांति और समाधान माँगेंगे।

🔹 इसलिए:

अपने मार्ग में स्थिर रहें।

मौन और करुणा बनाए रखें।

ध्यान को दिखावा नहीं, आत्म-प्रेम मानें।

🙏
जो भीतर सच्चा है, समय आने पर बाहर भी स्वीकारा जाएगा।
ध्यान छोड़िए मत — दुनिया बदलने से पहले खुद को बदलना पड़ता है।

#ध्यानएकक्रांति

कमेंट: सबसे पहला लक्षण की आप फेस बुक पर पोस्ट नहीं कर रहे होते, अगर आपकी कुंडली जागृत हुई होती तो।हुई नहीं है इसीलिए ढिं...
13/07/2025

कमेंट: सबसे पहला लक्षण की आप फेस बुक पर पोस्ट नहीं कर रहे होते, अगर आपकी कुंडली जागृत हुई होती तो।

हुई नहीं है इसीलिए ढिंढोरा पीटा जारा है
..............................................
🔹 उत्तर :
आपका प्रश्न और टिप्पणी विचारणीय है।
परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि कुंडलिनी जागरण एक व्यक्तिगत, अंतरात्मा में घटने वाली घटना है — न तो यह दिखावा है और न ही इसे किसी की स्वीकृति या प्रमाण की आवश्यकता है।

🌱 जो बाहर प्रकट होता है, वह भीतर की यात्रा का अंश मात्र हो सकता है, संपूर्ण नहीं।

🔸 पोस्ट करना या न करना — जागरण का मापदंड नहीं बन सकता।
कभी-कभी व्यक्ति भीतर की अनुभूति को साझा करके दूसरों को मार्ग दिखाना चाहता है, कोई दिखावा नहीं कर रहा होता।
जैसे कोई व्यक्ति नदी पार कर ले, तो स्वाभाविक है वह पीछे वालों को रास्ता बताए — ये करुणा है, अहंकार नहीं।

🌼 ओशो कहते हैं:

"भीतर घटने वाली सच्ची घटना — या तो मौन रह जाती है, या फिर गीत बनकर फूट पड़ती है। दोनों में ही अहंकार नहीं, चेतना की तरंग होती है।"

👉 सच वही जाने जो भीतर घटा है।
यदि किसी की यात्रा ईमानदार है, और वह अनुभव बाँटना चाहता है, तो उसे 'ढिंढोरा' कह देना उसकी साधना को नहीं घटाता — यह केवल हमारी देखने की दृष्टि को दर्शाता है।

🔹 इसीलिए:
किसी की साधना पर संदेह करने से पहले, उसके भाव को, उसकी नियत को और उसकी दिशा को समझने का प्रयास करें।

🙏
साधना व्यक्तिगत है, पर करुणा सार्वभौमिक।
शांति और प्रेम के साथ आगे बढ़ें।

💬 कमेंट/ प्रश्न:"मैं ध्यान, प्राणायाम करता हूं और गुरु प्राप्ति के उपरांत मेरा मन और स्थिर हो गया है, शांत हो गया हूं। ज...
13/07/2025

💬 कमेंट/ प्रश्न:
"मैं ध्यान, प्राणायाम करता हूं और गुरु प्राप्ति के उपरांत मेरा मन और स्थिर हो गया है, शांत हो गया हूं। जैसा पहले था, वैसा अब बिल्कुल भी नहीं हूं। क्रोध, लोभ और वासना भी बहुत कम हो गई है। मुझमें अंदर से एक अलग ही शांति महसूस होती है।
लेकिन मेरे अपने लोग मेरे इस व्यवहार से दुखी हैं क्योंकि मैं अब उनके गलत कामों में साथ नहीं देता। जब उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं तो कहते हैं — 'संत हो गया है तू!'
क्या मैं गलत हूं गुरुजी? कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए।"..............................................
📜 उत्तर:
आपका अनुभव एक साधक की सच्ची आध्यात्मिक यात्रा का संकेत है। जब भीतर में शांति जागती है, तो बाहरी दुनिया उसे समझ नहीं पाती — क्योंकि अब आप भीतर से बदल चुके हैं, और यह बदलाव दुनिया के लिए असुविधा बन जाता है।

🌿 क्या आप गलत हैं?

बिल्कुल नहीं।
आप गलत नहीं हैं — आप जागरूक हो रहे हैं।
जो समाज, परिवार या मित्र पहले आपकी आदतों को स्वीकार करते थे, अब उन्हें आपका सत्य के साथ खड़ा होना चुभने लगा है — यह स्वाभाविक है।

🌸 आध्यात्मिक यात्रा के कुछ पड़ाव ऐसे ही होते हैं:

1. पहले लोग आपको नहीं समझते।

2. फिर वो आपसे चिढ़ने लगते हैं।

3. और अंततः — जब उनका समय आएगा, वे आपसे मार्ग माँगेंगे।

🔱 अब क्या करें?

🔹 1. विरोध में भी करुणा रखें:
उनकी बातों का उत्तर तर्क से नहीं, मौन और प्रेम से दें।

🔹 2. गलत का समर्थन न करें, लेकिन विरोध भी कठोर न हो:
आपके व्यवहार में यदि कठोरता नहीं, सत्य के साथ प्रेम जुड़ा होगा, तो धीरे-धीरे सब बदल जाएगा।

🔹 3. भीतर की शांति को बचाकर रखें — वही आपका रत्न है।
दुनिया इसे नहीं समझेगी, पर वही दुनिया को बदलने की असली चाबी है।

🔹 4. अपने आप से प्रश्न पूछते रहें — क्या मेरा मन शुद्ध है? क्या मेरा उद्देश्य स्वार्थरहित है? यदि हाँ, तो आप सही मार्ग पर हैं।

🕉️ ओशो कहते हैं:

"जब तुम बदलते हो, तो दुनिया तुम्हें गलत कहती है — क्योंकि उसने तुम्हें पुराने रूप में स्वीकार किया था। लेकिन सच्ची क्रांति वहीं से शुरू होती है जहाँ तुम 'नहीं' कहना शुरू करते हो — झूठ को, अन्याय को, बेहोशी को।"

🙏 निष्कर्ष:

आप न तो संत बने हैं, न विद्रोही — आप सिर्फ "जागे हुए इंसान" हैं।
और यह जागना ही एक दिन उनके भी जागरण का कारण बनेगा जो आज आपको नहीं समझ पा रहे।

डटे रहिए — लेकिन प्रेम में, मौन में, नम्रता में।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

#ध्यान_का_फल #सच्चा_मार्ग

💬 कमेंट:"कौन सा चक्र जाग्रत हुआ है? कैसे पता चले ?"..........................................📜 उत्तर:बहुत गहरी और सटीक ज...
13/07/2025

💬 कमेंट:
"कौन सा चक्र जाग्रत हुआ है? कैसे पता चले ?"..........................................
📜 उत्तर:
बहुत गहरी और सटीक जिज्ञासा है।
जब साधना में कोई अनुभव होता है — जैसे कंपन, गर्मी, दबाव, प्रकाश, भावनाओं का उफान या ऊर्जा का प्रवाह — तो मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि "कौन सा चक्र जाग्रत हो रहा है?"

🌸 किस चक्र के जागरण को कैसे पहचाने — संकेतों द्वारा:

🔴 1. मूलाधार चक्र (Root Chakra):
👉 रीढ़ की शुरुआत में भारीपन, गर्मी, कंपन
👉 ज़मीन से जुड़ाव, अस्तित्व की सुरक्षा की भावना

🟠 2. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra):
👉 नाभि के नीचे कंपन या उत्तेजना
👉 भावनाएँ तीव्र हो जाना, रचनात्मक ऊर्जा का जागना

🟡 3. मणिपुर चक्र (Solar Plexus):
👉 नाभि के आसपास गर्मी, तेज़ स्पंदन
👉 आत्मबल, निर्णय क्षमता में वृद्धि

💚 4. अनाहत चक्र (Heart Chakra):
👉 हृदय स्थल पर गर्मी, पीड़ा या करुणा का उफान
👉 बिना कारण रोना, प्रेम या संवेदना में डूब जाना

🔵 5. विशुद्धि चक्र (Throat Chakra):
👉 गले में अटकाव या कंपन
👉 मौन की चाह, या शब्दों की ऊर्जा तीव्र होना

🟣 6. आज्ञा चक्र (Third Eye):
👉 भृकुटि के बीच दबाव, कंपन, नीला/बैंगनी प्रकाश
👉 अंतर्ज्ञान तेज़ होना, स्वप्न स्पष्ट होना

⚪ 7. सहस्रार चक्र (Crown Chakra):
👉 सिर के मध्य हल्की झनझनाहट या झरने जैसा अहसास
👉 एकता का अनुभव, शरीर से परे चेतना का विस्तार

🧘‍♂️ कैसे पता चले — अनुभव या कल्पना?

✔️ यदि अनुभव दोहराया जाए और समय के साथ गहरा हो — तो वह सच्चा है।
✔️ यदि इसके साथ स्वभाव, दृष्टिकोण और जीवनशैली में परिवर्तन आ रहा हो — तो यह चक्रों की जागृति है, कल्पना नहीं।
✔️ यदि अहंकार बढ़ रहा हो, तो यह केवल मन का खेल है।

🕉️ ओशो कहते हैं:

"चक्रों की जागृति कोई तमाशा नहीं — यह भीतर की सीढ़ियाँ हैं, जो तुम्हें स्वयं तक ले जाती हैं। हर सीढ़ी पर एक अनुभव है, लेकिन मंज़िल अनुभव से भी परे है।"

🙏 निष्कर्ष:

आपके अनुभवों को धैर्य, साक्षीभाव और समझ के साथ देखें।
कोई चक्र जागा है या नहीं — यह आपको भीतर से ही धीरे-धीरे स्पष्ट होगा।
👉 जब शब्द कम पड़ें और मौन गहरा हो — समझ लीजिए, कोई द्वार खुल रहा है।

🙏
#चक्र_जागरण #ध्यानमार्ग

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Dehra Dun

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