12/10/2023
"तथ्य" और "प्रमाण" नकारे नहीं जा सकते ...
पहले आदिगुरु शंकराचार्य और उनके बाद महारानी अहिल्याबाई होलकर। इन दो महान विभूतियों को कौन नहीं जानता। देश की चारों दिशाओं में मठ-मंदिरों का निर्माण कर भारत को एकसूत्र में बांधने का श्रेय इन्हें ही जाता है। दोनों ने ही सनातन धर्म के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अब मंदिरों का पुनरोद्धार कर इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।
सनातन धर्म के पुनरोद्धारक आदिगुरु शंकराचार्य का जन्म (केरल के कालड़ी ग्राम में 788 ई॰ में) ऐसे समय में हुआ था, जब धार्मिक दुराचरण का बोलबाला था। नैतिकता तथा सदाचार धार्मिक केन्द्रों से दूर होने लगा था। सामाजिक अन्धविश्वास और कुरीतियां धर्म को छिन्न-भिन्न रही थीं। ऐसे समय में आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की चार दिशाओं में मैसूर में श्रुंगेरी पीठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ, द्वारिका में द्वारका पीठ, बद्रीनाथ में ज्योति पीठ की स्थापना कर लोगों को धर्म का सही रूप बताया और उन्हें एकसूत्र में बांधा। मान्यता है कि आठवीं शदाब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने उत्तराखण्ड में ही केदारनाथ समेत तमाम मंदिरों की स्थापना की थी। उनके बाद मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी अहिल्याबाई होलकर (31 मई 1725-13 अगस्त 1795) ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में मन्दिर, घाट, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया था।
भारत की विरासत, संस्कृति और शक्ति को समृद्ध करने में महारानी अहिल्याबाई होल्कर का महत्वपूर्ण योगदान है। अपने लोक कल्याणकारी कदमों की वजह से वह 18वीं सदी की महान विभूति के रूप में जानी जाती हैं। महारानी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण कराया। ध्वस्त हो चुके सोमनाथ मंदिर के समीप दो मंजिला मंदिर बनवाया। उत्तराखण्ड में केदारनाथ समेत तमाम तीर्थ स्थानों पर महारानी ने निर्माण कार्य करवाए ताकि यहां आने वाले यात्रियों को सुविधाएं मिल सकें। मंदिरों के पुनरोद्धार को लेकर ठीक वैसी ही समानताएं मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों में देखी जा सकती हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन ऐतिहासिक सफलता है, मोदी काशी ‘विश्वनाथ कॉरिडोर’ का निर्माण करवा रहे हैं। चारधाम परियोजना के साथ-साथ केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिर परिसरों का कायाकल्प भी हो रहा है। गंगोत्री और यमुनोत्री के सौन्दर्यीकरण की योजना को भी वह स्वीकृति दे चुके हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी सरकार ने कई देशों में फैली सांस्कृतिक विरासत को फिर हासिल कर संरक्षित करने के सफल प्रयास किए हैं। उन्होंने बहरीन की राजधानी में 200 साल पुराने नाथजी मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य का उद्घाटन किया। उनके प्रयासों से ही यूएई ने अबूधाबी में स्वामीनारायण मंदिर के तौर पर पहले परंपरागत हिंदू मंदिर निर्माण की अनुमति दी। मोदी सरकार का भारत से चोरी करके ले जायी गयी भारतीय स्वाभिमान की प्रतीक धरोहरों को वापस लाने का प्रयास भी उल्लेखनीय है। 1976 से 2013 तक कुल 13 वस्तुएं वापिस आयी थीं जबकि 2014 के उपरांत अब तक भारतीय धरोहर की प्रतीक 235 वस्तुओं की वापसी हुई है। यह विश्व भर में बढ़ते भारत के प्रभाव का लक्षण है। हाल ही में सेंगोल की संसद में प्रतिष्ठा ने प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित किया है।
वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का फोकस अयोध्या में राममंदिर के निर्माण और उत्तराखण्ड के चारों धाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के पुनरोद्धार पर है। लगभग 250 करोड़ की लगात से केदारनाथ का पुनर्निर्माण हो चुका है। इसके दूसरे चरण में लगभग 150 करोड़ के निर्माण कार्य चल रहे हैं। भू-बैकुण्ठधाम के कायाकल्प के लिए 424 करोड़ की 'बदरीनाथ महानिर्माण योजना' स्वीकृत है, जिसके प्रथम चरण का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ में आदिगुरु शंकराचार्य की मूर्ति उनके समाधिस्थल में स्थापित कर दी है। अब मोदी उत्तराखण्ड में ‘केदारखण्ड कॉरीडोर’ की तर्ज पर ‘मानसखण्ड कॉरीडोर’ के विकास को रफ्तार देने पिथौरागढ़ आ रहे हैं। आध्यात्मिक नगरी जागेश्वर और आदि कैलाश की उनकी इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी यह भगीरथ प्रयास भारत के ‘सांस्कृतिक गौरव’ को फिर से पुनर्स्थापित कर रहा है।
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