Rohit duklan UK

Rohit duklan UK कूड़े से खाना बीनते बच्चे जब तक दिखते रहेंगे
हकीकत को सिर्फ और सिर्फ हकीकत लिखते रहेंगे
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🍂 हरियाली और खुशहाली का पर्व ‘हरेला’🍂     🌳‘हरेला’ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं🌳🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬लोकपर्व हरेला दे...
16/07/2025

🍂 हरियाली और खुशहाली का पर्व ‘हरेला’🍂
🌳‘हरेला’ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं🌳
🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬

लोकपर्व हरेला देवभूमि उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार है। श्रावण शुरू होने से नौ या दस दिन पहले घरों में जो हरेला बोया जाता है,उसे श्रावण मास की कर्क संक्रांति को काटा जाता है।भारतीय पंचांग के अनुसार,जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है,तो उसे कर्क संक्रांति कहते हैं। तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण भी यह पर्व एक दिन आगे-पीछे हो जाता है।अंग्रेजी तारीख के अनुसार, यह त्यौहार हर वर्ष सोलह जुलाई को होता है।लेकिन किसी विशेष कारण से कभी-कभी इसमें एक दिन का अंतर हो जाता है।

प्रातःकाल से ही पूरे परिवार के लोग हरेला पर्व की तैयारी में लग जाते हैं।बड़े और बुजुर्ग लोग अपने से छोटे लोगों को आशीर्वाद देते हुए हरेला लगाते हैं। इस मौके पर माताएं और बुजुर्ग महिलाएं परिवारजनों को दीर्घायु,बुद्धिमान और शक्तिमान होने की शुभकामनाएं देती हैं और अपने पुत्र-पौत्रों को संघर्षपूर्ण जीवन-रण में ‘विजयी भव’ होने का आशीर्वाद देते हुए स्थानीय भाषा में कहती हैं-

“जी रये, जागि रये, तिष्टिये,पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,।
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंगज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव,धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।”

अर्थात् “हरेला तुम्हारे लिए शुभ होवे, तुम जीवन पथ पर विजयी बनो, जागृत बने रहो, समृद्ध बनो, तरक्की करो, दूब घास की तरह तुम्हारी जड़ सदा हरी रहे, बेर के पेड़ की तरह तुम्हारा परिवार फूले और फले। जब तक कि हिमालय में बर्फ है, गंगा में पानी है, तब तक ये शुभ दिन, मास तुम्हारे जीवन में आते रहें। आकाश की तरह ऊंचे हो जाओ, धरती की तरह चौड़े बन जाओ, सियार की सी तुम्हारी बुद्धि होवे, शेर की तरह तुम में प्राणशक्ति हो”

-ये ही वे आशीर्वचन और दुआएं हैं जो हरेले के अवसर पर घर के बड़े बूढ़े व बजुर्ग महिलाएं बच्चों, युवाओं और बेटियों के सिर में हरेले की पीली पत्तियों को रखते हुए देती हैं।दूर प्रवास में रहने वाले परिजनों को भी वर्ष भर हरेले की इन पीली पत्तियों का इन्तजार रहता है कि कब चिट्ठी आए और कब वे हरेले की इन पत्तियों के रूप में अपने बुजुर्गों का शुभ आशीर्वाद शिरोधार्य कर सकें।

हरेला हो या फूलदेही या फिर घी संक्रांत हमें बरबस अपनी जड़ों को सींचने, उनमें खुशबू भरने के लोक पर्व हैं। इन्हें मनाने में हमको आनंद की अपार अनुभूति इसलिए होती है क्योंकि हम अपनी लोकसंस्कृति की गागर से अपनी जड़ों को पानी दे रहे होते हैं और हम स्वयं को तरो ताजा भी अनुभव कर रहे होते हैं वरना उपभोक्तावाद का जीवन जीते जीते हम एक दिन किसी भीड़ में खो जाएंगे। लोक संस्कृति हमारे हृदय में बसती है कस्तूरी की तरह वह हमारी सांसों और संस्कारों में रची बसी है। हम जहां भी रहें यह संस्कृति हमें ऊर्जा प्रदान करती है। हम लोक संस्कृति के गागर से अपनी जड़ों को सींचते रहेंगे तो उसी में अपार सुख है, जीवन का मधुमय रस है, मातृभूमि की गोद में बैठ कर वात्सल्य भाव पाने की जीवन शैली है।

हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख सांस्कृतिक त्योहार होने के साथ साथ यहां की परंपरागत कृषि से जुड़ा सामाजिक और कृषि वैज्ञानिक महोत्सव भी है। उत्तम खेती, हरियाली, धनधान्य, सुख -संपन्नता आदि से इस त्यौहार का घनिष्ठ सम्बंध रहा है। माना जाता है कि जिस घर में हरेले के पौधे जितने बड़े होते हैं, उसके खेतों में उस वर्ष उतनी ही अच्छी फसल होती है। हरेला उगाने के लिए पांच अथवा सात अनाज गेहूं, जौ, मक्का, सरसों, गौहत, कौंड़ी, धान और भट्ट आदि के बीज घर के भीतर छोटी टोकरियों अथवा लकड़ी के बक्सों में बोये जाते हैं, और प्रतिदिन नियमानुसार सुबह-शाम पूजा के बाद पानी दिया जाता है। धूप की रोशनी न मिलने के कारण ये अनाज के पौधे पीले हो जाते हैं।10वें दिन संक्रान्ति को हरेला काटा जाता है। घर के मन्दिरों और गृह द्वारों में सबसे पहले हरेला चढ़ाया जाता है और फिर घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग लोग बच्चों, युवाओं, पुत्र, पुत्रियों, नाती, पोतों के पांवों से छुआते हुए ऊपर की ओर शरीर पर स्पर्श कराते हुए हरेले की पत्तियों को शिर में चढ़ाते हैं तथा “जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये” बोलते हुए आशीर्वाद देते हैं।

‘हरेला’ महोत्सव मात्र एक संक्राति नहीं बल्कि कृषि तथा वानिकी को प्रोत्साहित करने वाली हरित क्रान्ति का निरन्तर रूप से चलने वाला वार्षिक अभियान भी है जिस पर हमारी जीवनचर्या टिकी हुई है तथा उत्तराखंड राज्य की हरियाली और खुशहाली भी।इसलिए हरित क्रान्ति के इस अभियान पर विराम नहीं लगना चाहिए। हरेले का मातृ-प्रसाद हमें साल में एक बार संक्राति के दिन मिलता है परन्तु धरती माता की हरियाली पूरे साल भर चाहिए।यही कारण है कि उत्तराखंड कृषि प्रधान प्रदेश होने के कारण हमारे पूर्वजों ने साल में तीन बार हरेला बोने और काटने की परंपरा का सूत्रपात किया और सबसे पहले धान की खेती के आविष्कार का श्रेय भी इन्हीं उत्तराखंड के आर्य किसानों को मिला। हरेला उत्तराखंड के आर्य किसानों का पहाड़ी और पथरीली धरती में हरित क्रान्ति लाने की नव ऊर्जा भरने का लोकपर्व भी है। किसी जमाने में हरेला पर्व से ही आगामी साल भर के कृषि कार्यों का शुभारम्भ धरती पर हुआ करता था। सावन-भादो के पूरे दो महीने हमें प्रकृति माता ने इसलिए दिए हैं ताकि बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना सकें, उसे शाक-सब्जी उगा कर हरा भरा रख सकें। धान की रोपाई और गोड़ाई के द्वारा इन बरसात के महीनों का सदुपयोग किया सकता है। समस्त उत्तराखंड आज जल संकट और पलायन की विभीषिका को झेल रहा है उसका कारण यह है कि परंपरागत खाल,तालाब आदि जलभंडारण के स्रोत सूख गए हैं उन्हें भी इन्हीं बरसात के मौसम में पुनर्जीवित किया जा सकता है।

आइए ! हरेले के इस पावन अवसर पर उत्तराखंड में हरित क्रांति के संदेश को जन जन तक पहुंचाएं और देवभूमि उत्तराखंड को खुशहाल और उपजाऊ बनाने में अपना योगदान दें। हरेले के इस पावन पर्व पर सभी देशवासियों और उत्तराखण्डवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

“जी रया, जागि रया, तिष्टिया,पनपिया ” !!
-© डा.मोहन चन्द तिवारी 🌳🌳🌳

दुःखद : 2मासूम बच्चों सहित 8की चली गयी जान पिथौरागढ़पिथौरागढ़ जिले के थल-मुवानी मोटर मार्ग पर एक दर्दनाक सड़क हादसा सामने...
15/07/2025

दुःखद : 2मासूम बच्चों सहित 8की चली गयी जान
पिथौरागढ़
पिथौरागढ़ जिले के थल-मुवानी मोटर मार्ग पर एक दर्दनाक सड़क हादसा सामने आया है। मुवानी क्षेत्र में भंडारी गांव के पास यह दुर्घटना हुई, जिसने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया।
पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) रेखा यादव ने हादसे की पुष्टि करते हुए बताया कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन — मैक्स (वाहन संख्या UK05TA0193) — मुवानी से बोकटा की ओर जा रहा था। लेकिन गंतव्य तक पहुंचने से कुछ ही किलोमीटर पहले वाहन अनियंत्रित होकर सड़क से फिसल गया और सीधे नदी में जा गिरा।
घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस और राहत-बचाव दल मौके पर रवाना हो गए। स्थानीय ग्रामीणों की मदद से राहत कार्य शुरू किया गया। हालांकि वाहन पूरी तरह से नदी में समा गया, जिससे बचाव कार्य में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

प्रदेश की स्वास्थ्य ब्यवस्था नानी नतीण दोनों को ले गयी, लोकगायक भाई पर टूटा दुखों का पहाड़, ये नोट पढ़े जरा 🙏 गणेश मतलब मे...
15/07/2025

प्रदेश की स्वास्थ्य ब्यवस्था नानी नतीण दोनों को ले गयी, लोकगायक भाई पर टूटा दुखों का पहाड़, ये नोट पढ़े जरा 🙏

गणेश मतलब मेरा प्रिय मित्र और उत्तराखंड की सबसे मीठी आवाज़ों में से एक गणेश मरतोलिया (Ganesh Martolia). वही जिसका गाया ‘पंचाचूली देश’ इन दिनों अपार लोकप्रियता हासिल कर रहा है.

गणेश के परिवार का ताल्लुक उस जोहार-मुनस्यारी से है सदियों से जिसकी प्राकृतिक सुन्दरता को “सौ संसार एक मुनस्यार“ जैसी किंवदंतियों में जगह मिली है.

मुनस्यारी इलाके के धापा गाँव में गणेश का ननिहाल है जहाँ पिछले कुछ हफ्तों से उसकी नानी और छोटी बहन गर्मियों के महीने बिताने की नीयत से आए हुए थे. दो-तीन दिन पहले बदक़िस्मती से दोनों ने जो जंगली मशरूम खाए वे जहरीले निकले और दोनों की तबीयत बिगड़ना शुरू हुई.

मुनस्यारी के इकलौते सरकारी अस्पताल में, जहाँ उन्हें ले जाया गया, इलाज की पर्याप्त सुविधाएं नहीं रही होंगी. इसके बावजूद उन्हें दो दिनों तक कामचलाऊ उपचार के सहारे वहीं में रखा गया. जिस रात दोनों अस्पताल के वार्ड में भर्ती थे, गणेश बताता है, वहाँ डाक्टर तो छोड़िए एक नर्स भी न थी जो उन्हें लगाई गई ड्रिप तक को ठीक से देख पाती.

जैसी कि समूचे राज्य के सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों की परंपरा बन चुकी है, कल सुबह जब अस्पताल के कर्ताधर्ताओं को यह समझ में आया कि दोनों की हालत बहुत नाज़ुक हो चुकी है तब जाकर उन्हें पिथौरागढ़ रेफर किया गया. फिर पिथौरागढ़ से हल्द्वानी.

तब तक बहुत सारा बेशकीमती समय जाया किया जा चुका था.

कल देर दोपहर हल्द्वानी में रह रहे गणेश ने अपने तमाम साथियों-परिचितों को फ़ोन करना शुरू किया कि किसी भी तरह एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने में उसकी मदद करें. मौसम ख़राब होने के हवाले से सभी ने हाथ खड़े कर दिए.

बहन को एंबुलेंस से लाया जा रहा था, नानी को टैक्सी से. सितारगंज और हल्द्वानी के बीच कहीं बहन ने आख़िरी साँस ली. आज सुबह नानी भी चल बसी.

आज सुबह जब मेरी उससे आखिरी बार बात हुई, गणेश देर रात से सुबह तक अस्पताल और थाने के चक्कर लगा रहा था कि किसी तरह कोई सरकारी अधिकारी इस बात की इजाज़त दे दे कि दोनों के शरीर बगैर पोस्टमार्टम के उसे सौंप दिए जाएँ.

हर भावुक बेटे की तरह उसे अपने साथ रहने वाली अपनी माँ की फ़िक्र है कि उसे एक साथ अपनी माँ और बेटी के चीरे-फाड़े शरीर देखने की यातना न भोगनी पड़े. उसके पिता इस वक़्त जोहार घाटी के अपने सुदूर पैतृक गाँव मरतोली में हैं जहाँ, कोई फ़ोन नहीं चलते. दयालु फ़ौजियों के वायरलेस तंत्र की मदद से उन तक यह दुःखभरी खबर पहुँचाने की कोशिश चल रही है.

मुझे नहीं मालूम गणेश और उसका परिवार जीवन भर “यूँ होता तो क्या होता“ जैसे कितने पछतावों से अभिशप्त रहेगा. मुझे नहीं मालूम इस खबर से किसी भी व्यवस्था में कोई बदलाव आएगा या नहीं क्योंकि यह इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है. मुझे यह भी नहीं मालूम कि दोष किसका है - मुनस्यारी और धापा जैसी अनगिनत जगहें हमारे राज्य में छितरी पड़ी हैं जहाँ से हर घंटे कोई न कोई मरणासन्न मरीज़ हायर सेंटर में रेफर किया जा रहा है. मुझे नहीं मालूम अगर गणेश के परिवार में कोई ऊँची रसूख रखने वाला सदस्य होता क्या तब भी हेलीकॉप्टर की व्यवस्था नहीं हो पाती?

मुझे इतना पता है कि गणेश की नानी मुनस्यारी से दिखने वाली पंच चूली की उन चोटियों और इलाके के असंख्य सदानीरा धारों को कभी नहीं देख सकेंगी जिनके अतुलनीय सौन्दर्य और संपन्नता के चलते यह मुहावरा चलता है कि सारी दुनिया एक तरफ़ और अकेला मुनस्यार एक तरफ़ और जिसका लैण्डस्केप ख़ुद गणेश के गीतों का विषय बनता है.

उसकी प्यारी बहन के लिए बनवाया गया दुल्हन का वह जोड़ा देख कर परिवार कितने गहरे ग़म में डूब जाएगा जिसे इस बरस जाड़ों में पहनने की हौस उस युवा लड़की के मन में उजाला भर देती थी.

अपार दुख की इस घड़ी में हम सब तुम्हारे साथ खड़े हैं, प्यारे गणेश!

आख़िरकार हम सब ने हारना है. इकट्ठे हारेंगे...
Post copy of ashok pande ji

15/07/2025
15/07/2025

◆वासुकीताल (केदारनाथ) : वासुकीनाग का घरवासुकीताल उच्च हिमालय में स्थित सुन्दर,साफ, स्वच्छ मीठे पानी की झील है l वासुकीता...
14/07/2025

◆वासुकीताल (केदारनाथ) : वासुकीनाग का घर
वासुकीताल उच्च हिमालय में स्थित सुन्दर,साफ, स्वच्छ मीठे पानी की झील है l वासुकीताल केदारनाथ से 8 km ट्रेक करने के बाद पहुँचते है l यह ट्रेक कठिन श्रेणी का ट्रेक है l और एक दिन में ही केदारनाथ से जाकर केदारनाथ आना होता है l वासुकिताल समुन्द्र तल से 14,200 फिट पर स्थित है l वासुकिताल,पूजनीय वासुकी नाग का निवास स्थान माना जाता है l वासुकीनाग ऋषि कश्यप जी के पुत्र है l वासुकीनाग को ही मंद्राचल पर्वत पर लपेटकर देव - दानव ने समुन्द्रमंथन किया था l वासुकिताल में ब्रह्मकमल बहुतायत में पाये जाते है l वासुकीताल पहुँचकर आत्म शांति व अदभुत अनुभूति प्राप्त होती है l प्राकृतिक रूप से वासुकीताल में हिमालय अपने पूर्ण वैभव व राजसी रूप से आपको मंत्रमुग्ध कर देता है l
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बरसात जल्दी लग गया, ककड़ी, मुंगरी भी जल्दी हो गयी
13/07/2025

बरसात जल्दी लग गया, ककड़ी, मुंगरी भी जल्दी हो गयी

✴️ब्रह्मकमल - हेमकुंड साहिब✴️ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है। ब्रह्मकमल 3000-5000 ...
13/07/2025

✴️ब्रह्मकमल - हेमकुंड साहिब✴️
ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं। ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।
सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते स्थानीय निवासी कठिन डगर पार कर हिमालय की उंचाई पर स्थित हेमकुंड व फुलों की घाटी से राज्य पुष्प ब्रह्मकमल लाकर मां नंदा को अर्पित करते हैं। भाद्र शुक्लपक्ष में होने वाली नंदा अष्टमी इस क्षेत्र में विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार आस-पास गांवों के लोग भाद्र शुद्धि के साथ ब्रह्मकमल को चुनने के लिए रवाना होते हैं।
भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को लोग मां नंदा के मंदिरों में ब्रह्मकमल चढ़ाते हैं। मां नंदा को ब्रह्मकमल काफी प्रिय हैं।
Click
PL : Hemkund, Chamoli, Uttarakhand
DOP : Aug 2017
ek JAJABOR !
✍ My Tour Dairy SAFARNAMA !!
©Dr.S.K.Chakraborty🇮🇳
🔳Divine Paradise - UTTARAKHAND🔳
🇮🇳 Proud to be INDIAN - वंदे मातरम्
🙏 HelpSaveNat🍃ure 🙏
We break,We buy.We pollute,We die.
Less pollution is the best solution.
Join the revolution,stop the pollution!
🌲Think green,live green.🌍

एशिया की सबसे लम्बी पैदल धार्मिक यात्रा,माँ नंदा ( गौरा ) को उसके ससुराल कैलाश भेजने की यात्रा नंदा देवी राजजात 2026 को ...
12/07/2025

एशिया की सबसे लम्बी पैदल धार्मिक यात्रा,माँ नंदा ( गौरा ) को उसके ससुराल कैलाश भेजने की यात्रा नंदा देवी राजजात 2026 को मिला पहला व बहुत बड़ा शुभ संकेत, हर 12साल बाद राजजात से ठीक कुछ समय पहले जन्म लेने वाला चौसिंग्या (चार सींग वाला ) खाडू (male भेड़ ) चमोली जनपद के कोटी गाँव मे हरीश लाल जी के घर जन्मा, यात्रा को मिली हरी झंडी ❤️, आपको बता दे चौसिंहग्या खाडू को माँ का देवरथ माना जाता है, यात्रा के अंतिम पड़ाव मे, खाडू को छोड़ दिया जाता है जो अकेले कैलाश के बादलों मे संदेश वाहक बनकर कैलाश चला जाता है, इस खबर के बाद से पूरे प्रदेश मे खुशी की लहर है, नंदा देवी गढ़कुमो की आराध्य देवी है,
जय माँ नंदा ❤️

**कोटी गांव में जन्मा माँ नंदा का देव रथ — चौसिंग्या खाडू, नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की पवित्र शुरुआत**🚩 *जय माँ नंदा...
11/07/2025

**कोटी गांव में जन्मा माँ नंदा का देव रथ — चौसिंग्या खाडू, नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की पवित्र शुरुआत**

🚩 *जय माँ नंदा देवी राजराजेश्वरी* 🚩

उत्तराखंड की लोकआस्था और परंपरा से जुड़ी विश्वविख्यात **नंदा देवी राजजात यात्रा 2025** को लेकर एक शुभ संकेत सामने आया है। इस बार माँ नंदा के **देव रथ** के रूप में माने जाने वाले **चौसिंग्या खाडू (चार सींगों वाला भेड़)** का जन्म हो चुका है। यह दुर्लभ और पवित्र खाडू **चमोली जिले के कर्णप्रयाग ब्लॉक** स्थित **कोटी गांव** में श्री **हरीश लाल** के घर जन्मा है।
कोटी गांव वही स्थान है जहाँ नंदा देवी यात्रा का **पाँचवाँ पड़ाव** भी आता है, और अब यही गाँव इस बार के खाडू के जन्म का सौभाग्य प्राप्त कर गौरवान्वित है।

चौसिंग्या खाडू को **माँ नंदा देवी का रथ** माना जाता है। जनविश्वास है कि यह दिव्य भेड़ केवल हर **12 वर्षों में जन्म लेता है**, और यह देवी माँ के **गहनों, वस्त्रों तथा पूजन सामग्री** को अपनी पीठ पर लादकर **कैलाश पर्वत** तक ले जाता है।
यात्रा के अंतिम पड़ाव **होमकुंड** में खाडू की विशेष पूजा-अर्चना होती है, और इसके बाद इसे **अकेले ही कैलाश की ओर विदा किया जाता है**, जहाँ इसे देवी माँ का संदेशवाहक माना जाता है।

# # # 🙏 लोक आस्था का प्रतीक

नंदा देवी राजजात को “**उत्तराखंड की कुंभ यात्रा**” भी कहा जाता है। यह यात्रा माँ नंदा (गौरा) को उनके मायके (उत्तराखंड) से उनके ससुराल (कैलाश) विदा करने की प्रतीकात्मक पदयात्रा है। सैकड़ों किलोमीटर लंबी यह पदयात्रा ऊँचे पर्वतीय मार्गों से होकर गुजरती है और इसमें हजारों श्रद्धालु हर बार भाग लेते हैं।

गुजरात के वड़ोदरा मे टूटा पुल, 1ट्रक 2बुलेरो नदी मे गिरे एक टेंकर ऊपर लटक गया, 9लोगो की दुःखद मौत, कई लापता
09/07/2025

गुजरात के वड़ोदरा मे टूटा पुल, 1ट्रक 2बुलेरो नदी मे गिरे एक टेंकर ऊपर लटक गया, 9लोगो की दुःखद मौत, कई लापता

🙏माँ कसार देवी - अल्मोड़ा🙏शक्ति के आलोकिक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन उत्तराखंड देवभूमि में होता है। उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा ज...
09/07/2025

🙏माँ कसार देवी - अल्मोड़ा🙏
शक्ति के आलोकिक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन उत्तराखंड देवभूमि में होता है। उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले के निकट “कसार देवी” एक गाँव है।जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 km की दुरी पर काषय पर्वत में स्थित है। यह स्थान “कसार देवी मंदिर” के कारण प्रसिद्ध है | यह मंदिर, दूसरी शताब्दी के समय का है।
माँ कसार देवी की शक्तियों का एहसास इस स्थान के कण कण में होता है। अल्मोड़ा बागेश्वर हाईवे पर “कसार” नामक गांव में स्थित ये मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है। कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा साक्षात प्रकट हुयी थी। मंदिर में माँ दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप “देवी कात्यायनी” की पूजा की जाती है।
इस स्थान में ढाई हज़ार साल पहले “माँ दुर्गा” ने शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो राक्षसों का वध करने के लिए “देवी कात्यायनी” का रूप धारण किया था। माँ दुर्गा ने देवी कात्यायनी का रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया था। तब से यह स्थान विशेष माना जाता है। स्थानीय लोगों की माने तो दूसरी शताब्दी में बना यह मंदिर 1970 से 1980 की शुरुआत तक डच संन्यासियों का घर हुआ करता था। यह मंदिर हवाबाघ की सुरम्य घाटी में स्थित है। कहते है कि स्वामी विवेकानंद 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनो के लिए इस स्थान में आये थे। अल्मोड़ा से करीब 22 km दूर काकडीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी। इसी तरह बोद्ध गुरु “लामा अन्ग्रिका गोविंदा” ने गुफा में रहकर विशेष साधना करी थी। यह क्रैंक रिज के लिये भी प्रसिद्ध है, जहाँ 1960-1970 के दशक में “हिप्पी आन्दोलन” बहुत प्रसिद्ध हुआ था। उत्तराखंड देवभूमि का ये स्थान भारत का एकमात्र और दुनिया का तीसरा ऐसा स्थान है जहाँ ख़ास चुम्बकीय शक्तियाँ उपस्थित है।कसारदेवी मंदिर की अपार शक्ति से बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी हैरान हैं।
दुनिया के तीन पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शनों के साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। जिनमें अल्मोड़ा स्थित “कसार देवी मंदिर” और दक्षिण अमरीका के पेरू स्थित “माचू-पिच्चू” व इंग्लैंड के “स्टोन हेंग” में अद्भुत समानताएं हैं। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति के केंद्र भी हैं। यह क्षेत्र ‘चिड’ और ‘देवदार’ के जंगलों का घर है। यह न केवल अल्मोड़ा और हवाबाघ घाटी के दृश्य प्रदान करता है। साथ ही साथ हिमाचल प्रदेश सीमा पर बंदरपूंछ शिखर से नेपाल में स्थित ‘एपी हिमल’ हिमालय के मनोरम दृश्य भी प्रदान करता है। इस जगह में कुदरत की खूबसूरती के दर्शन तो होते ही हैं, साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। यह स्थान ध्यान ओर योग करने लिऐ बहुत ही उचित है। भक्तो को सैकडों सीढ़ियां चढ़ने के बाद भी थकान महसूस नही होती है। यहां आकर श्रद्धालु असीम मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। यह जगह अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारण और प्रभावों पर जांच कर रहे है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पूरा क्षेत्र “वैन ऐलन बेल्ट” है। इस जगह में धरती के अन्दर विशाल चुम्बकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कहते है। यह वह पवित्र स्थान है जहां अनूठी मानसिक शांति मिलने के कारण देश-विदेश से कई पर्यटक आते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा में (नवम्बर-दिसम्बर) को कसार देवी का मेला लगता है।

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