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22/06/2025
10/06/2024

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टाटा-मर्सिडीज बेंज समझौता समाप्त होने के बाद 1969 में टाटा के अपने लोगो के साथ लॉन्च किए गए पहले बैच के वाहनों की तस्वीर...
17/05/2024

टाटा-मर्सिडीज बेंज समझौता समाप्त होने के बाद 1969 में टाटा के अपने लोगो के साथ लॉन्च किए गए पहले बैच के वाहनों की तस्वीर।

Anmol Pehchan #इतिहास

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27/07/2023

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06/04/2023
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07/06/2022

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17/07/2021

श्री अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम | व्यापार विकास लाभ और धन के लिए मंत्र

श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

देव्युवाच
देवदेव! महादेव! त्रिकालज्ञ! महेश्वर!
करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ॥
अष्टोत्तर शतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ॥

ईश्वर उवाच
देवि! साधु महाभागे महाभाग्य प्रदायकं ।
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥
सर्वदारिद्र्य शमनं श्रवणाद्भुक्ति मुक्तिदम् ।
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्-गुह्यतरं परं ॥
दुर्लभं सर्वदेवानां चतुष्षष्टि कलास्पदम् ।
पद्मादीनां वरांतानां निधीनां नित्यदायकम् ॥
समस्त देव संसेव्यं अणिमाद्यष्ट सिद्धिदं ।
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकं ॥
तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाश्शृणु ।
अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ॥
क्लीं बीज पदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी ।
अंगन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ॥

ध्यानम्
वंदे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां
हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैः नानाविधैः भूषितां ।
भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां
पार्श्वे पंकज शंखपद्म निधिभिः युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गंधमाल्य शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीदमह्यम् ॥


प्रकृतिं, विकृतिं, विद्यां, सर्वभूत हितप्रदां ।
श्रद्धां, विभूतिं, सुरभिं, नमामि परमात्मिकाम् ॥ 1 ॥

वाचं, पद्मालयां, पद्मां, शुचिं, स्वाहां, स्वधां, सुधां ।
धन्यां, हिरण्ययीं, लक्ष्मीं, नित्यपुष्टां, विभावरीम् ॥ 2 ॥

अदितिं च, दितिं, दीप्तां, वसुधां, वसुधारिणीं ।
नमामि कमलां, कांतां, क्षमां, क्षीरोद संभवाम् ॥ 3 ॥

अनुग्रहपरां, बुद्धिं, अनघां, हरिवल्लभां ।
अशोका,ममृतां दीप्तां, लोकशोक विनाशिनीम् ॥ 4 ॥

नमामि धर्मनिलयां, करुणां, लोकमातरं ।
पद्मप्रियां, पद्महस्तां, पद्माक्षीं, पद्मसुंदरीम् ॥ 5 ॥

पद्मोद्भवां, पद्ममुखीं, पद्मनाभप्रियां, रमां ।
पद्ममालाधरां, देवीं, पद्मिनीं, पद्मगंधिनीम् ॥ 6 ॥

पुण्यगंधां, सुप्रसन्नां, प्रसादाभिमुखीं, प्रभां ।
नमामि चंद्रवदनां, चंद्रां, चंद्रसहोदरीम् ॥ 7 ॥

चतुर्भुजां, चंद्ररूपां, इंदिरा,मिंदुशीतलां ।
आह्लाद जननीं, पुष्टिं, शिवां, शिवकरीं, सतीम् ॥ 8 ॥

विमलां, विश्वजननीं, तुष्टिं, दारिद्र्य नाशिनीं ।
प्रीति पुष्करिणीं, शांतां, शुक्लमाल्यांबरां, श्रियम् ॥ 9 ॥

भास्करीं, बिल्वनिलयां, वरारोहां, यशस्विनीं ।
वसुंधरा, मुदारांगां, हरिणीं, हेममालिनीम् ॥ 10 ॥

धनधान्यकरीं, सिद्धिं, स्रैणसौम्यां, शुभप्रदां ।
नृपवेश्म गतानंदां, वरलक्ष्मीं, वसुप्रदाम् ॥ 11 ॥

शुभां, हिरण्यप्राकारां, समुद्रतनयां, जयां ।
नमामि मंगलां देवीं, विष्णु वक्षःस्थल स्थिताम् ॥ 12 ॥

विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं, नारायण समाश्रितां ।
दारिद्र्य ध्वंसिनीं, देवीं, सर्वोपद्रव वारिणीम् ॥ 13 ॥

नवदुर्गां, महाकालीं, ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकां ।
त्रिकालज्ञान संपन्नां, नमामि भुवनेश्वरीम् ॥ 14 ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरंगधामेश्वरीं ।
दासीभूत समस्तदेव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥
श्रीमन्मंद कटाक्ष लब्ध विभवद्-ब्रह्मेंद्र गंगाधरां ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां वंदे मुकुंदप्रियाम् ॥ 15 ॥

मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!
श्री विष्णु हृत्-कमलवासिनि! विश्वमातः!
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!
लक्ष्मी! प्रसीद सततं समतां शरण्ये ॥ 16 ॥

त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेंद्रियः ।
दारिद्र्य ध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्-ययत्नतः ।
देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतं ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 17 ॥

भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकं ।
अष्टैश्वर्य मवाप्नोति कुबेर इव भूतले ॥
दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमंबापरं शतं ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 18 ॥

भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अंते सायुज्यमाप्नुयात् ।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्व दुःखोप शांतये ।
पठंतु चिंतयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् ॥ 19 ॥

इति श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं संपूर्णम्

17/07/2021

पुरुष का प्रेम समुंदर सा होता है। गहरा, अथाह पर वेगपूर्ण लहर के समान उतावला। हर बार तट तक आता है, स्त्री को खींचने, स्त्री शांत है मंथन करती है, पहले ख़ुद को बचाती है इस प्रेम के वेग से, झट से साथ मे नहीं बहती। पर जब देखती है लहर को उसी वेग से बार बार आते तो समर्पित हो जाती है समुंदर में गहराई तक, डूबने का भी ख़्याल नहीं करती, साथ में बहने लगती है। समुंदर अब शांत है, उछाल कम है, स्त्री उसके पास है। पर स्त्री मचल उठती है इतना प्रेम देख प्रतिदान के लिए, वो उड़कर बादल बन जाती है, अपना प्रेम दिखाने को तत्पर हो वो बरसने लगती है, पहले हल्की हल्की, समुंदर को अच्छा लगता है वो भी बहने लगता है, कभी कभी वेग से उछलता है प्रेम पाकर, फिर शांत हो जाता है। पर स्त्री बरसती रहती है लगातार झूमकर दो दिन, तीन दिन, बहुत दिन तक। मगर अब पुरुष से इतना प्रेम समेटना मुश्किल होने लगता है। उसे सब देखना है, आते जाते जहाज, उगता डूबता सूरज, तट पर लोग। मगर स्त्री प्रेम के उन्माद में बरस रही है, अंदर तक घुलने को व्याकुल, जब समुंदर से संभलता नहीं तो वो रुकने कहता, किसी और देश जाने कहता। पर प्रेम में समर्पित स्त्री को रोकना असंभव है, जब देखती है कि समंदर अब नहीं चाहता तो वो दर्द के आवेग में बरसती है पास बुलाने को, स्त्री के आँसू ख़तरनाक होते हैं, बाढ़ आने लगती, पुल टूटने लगते, पानी घरों में जाने लगता, सब तहस नहस होने लगता। फिर धीरे धीरे बादल ख़त्म होने लगते हैं, आँसू सूख जाते हैं, सूखा, अकाल आ जाता है, स्त्री पत्थर हो जाती है। पर स्त्री का स्वभाव समर्पण है, वो फिर किसी समुंदर किनारे खड़ी कर दी जाती है, एक नई लहर आवेग में आती है, स्त्री बचती है पर फिर बह जाती है समर्पित होने के लिए अंदर तक।

जिन पुरुषों के अंदर की स्त्री जीवित है उनको भी समर्पित...

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