17/06/2025
पराए पुरूष से लगाव मेरा गोरा रंग, बोलती आंखें, कंधों तक बलखाते बाल, चौड़ी छाती, पतली कमर और चिकनी सुडौल जांघे सभी को लुभाती थी। पुरुष मेरे सौंदर्य को देखकर कहते-‘यह लड़की तो किसी रसगुल्ले से कम मुलायम और रसदार नहीं है। इसे देखने मात्र से ही जन्नत की सैर हो जाती है। मैं सुन्दर थी। मेरी देह-यष्टि आकर्षक थी। मैं पुरुषों के मुंह से ऐसे शब्द सुनते ही नारी स्वाभाववश खिल जाती और मुझे अपनी खूबसूरती का बरबस ही आभास होने लगता। मैं बुदबुदाए बिना न रह पाती-‘मुझ पर तुम सब मरते हो तो मरो, मैं किसी के हाथ नहीं आने वाली… मैं तो आग हूं, आग। मुझे पकड़ने के लिए पानी बनना होगा। मैं सुन्दर हूं, पर इतनी भोली नहीं हूं कि अपनी प्रशंसा सुनते ही तुम्हारी बाहों में समा जाऊंगी।‘ मैं अभी सोच ही रही थी, कि मां की आवाज ने मुझे चौंका दिया। मैं जैसे सोते से जाग उठी। मां मेरे सामने खड़ी मुस्करा रही थी। मेरी मां मुझसे कहीं अधिक खूबसूरत थी। वह एक प्रौढ़ महिला थी, लेकिन देखने में इक्कीस-बाइस की ही लगती थी। वह अपने सौंदर्य और स्वास्थ्य के प्रति हरदम सजग रहती थी। वह अपने मुंह से कुछ कहती तो नहीं थी, किन्तु उसके मन के भाव से अक्सर ही मुझे लगता कि वह वेदान्त अंकल को पसन्द करती है और पापा उसके अनुकूल नहीं हैं। वेदान्त अंकल कहां से आते थे और मम्मी से उनका संबंध कब से था, इससे मेरा कोई मतलब नहीं था। इतने में मम्मी चहकती हुई बोली-‘बेटी, तुम आज स्कूल नहीं गई?’ ‘आज तो छुट्टी है।’ मैंने यह कहकर मम्मी की ओर देखा। आज उसने गुलाबी साड़ी बांध रखी थी। मम्मी पर गुलाबी कपड़े बहुत ही खिलते थे। उसका रूप उनमें और अधिक दमक उठता था। मुझे जहां तक मालूम था, मम्मी सजती-संवरती तभी थी, जब वेदान्त अंकल घर पर होते थे या आने वाले होते थे।