29/01/2025
पूनमजी, आप को बहुत सारा प्रेम भेज रही हूँ; इसलिए नहीं कि आप लगातार किताब की प्रशंसा कर रही हैं, बल्कि इसलिए कि आपको लौ लगी है— लगन लगी है आपको।
मेरा प्रेमिल प्रणाम स्वीकार कीजिए।
_____________________________
रस्सियों पर करतब दिखाते कलाकारों को देखा है न, ठीक वैसे ही ग़ज़ब का संतुलन बनाते हुए इश्क़ा और इल्हाम का अनूठा, कभी आध्यात्मिक, कभी रूहानी, कभी दुनियावी प्रेम पाठक को ऐसी सुंदर दुनिया में ले जाता है जहाँ से लौटने का मन नहीं करता। दोनों एक दूसरे से पत्रों से जुड़े हैं, सोचिए, जहाँ आज की दुनिया में प्रेम बस एक I love you, में सिमट कर रह गया है, वहाँ दोनों पत्र लिख रहे हैं, हर पत्र में एक-दूसरे को एक से एक मुग्ध करने वाले संबोधन के साथ! ऐसे पत्र कभी किसी ने किसी को नहीं लिखे होंगे।पत्रों में दिल के हाल लिखे जा रहे हैं,एक उदास होता है, दूर बैठे दूसरे का दिन अपने आप ही ख़राब बीतने लगता है,ऐसा है दोनों का प्रेम!
दोनों मिलते भी हैं, फिर दूर होते हैं, फिर पत्र लिखते हैं, ख़ूबसूरत सिलसिला चलता रहता है। किताब पढ़कर प्रेम और जीवन-दर्शन से जुड़े कितने ही सवालों के जवाब लेखिका ने पाठकों को यूँ ही दे दिए हैं जैसे कोई माँ काम करते हुए अपने बच्चे को कोई खिलौना पकड़ा देती है। कभी बहुत गहरे से, कभी आम से, एक दूसरे को प्रेमिल ताने मारते इश्क़ा और इल्हाम, उनसे कहीं ऊपर अनंत जिसके सामने आते ही सब पीछे रह जाता है। जब अनंत सामने होता है, ऐसा लगता है कि इल्हाम के साथ साथ हमारी भी पूरी नज़र अनंत के हावभाव पर है।
लेखिका अद्भुत हैं, ऐसा लगता है कि वे सब जानती हैं, उन्होंने जीवन को समझ लिया है। लौ रचकर उन्होंने पात्रों के पत्रों के माध्यम से पाठकों को एक उपहार दिया है। किताब की खुमारी जल्दी उतरने वाली नहीं!
लौ धीरे-धीरे अपने अंदर उतारी है,पढ़ने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की, ख़ुद के भीतर समेट कर रखने वाली क़िताब है।..
लौ मेरी अब तक पढ़ी गई सबसे अच्छी दस किताबों में से एक है।..
रुख़ पब्लिकेशन को इतनी सुंदर किताब प्रकाशित करने के लिए हार्दिक बधाई।
_________________________
पूनम अहमद