
17/07/2025
दास दास सब कोइ कहे, दास न जाने कोय।
सतगुरु के आधीन जो, दास कहावै सोय।।
#कबीर दासा तन हिरदय नहीं, नाम धराये दास।
पानी के पीये बिना, मिटे न जिव के प्यास।।
गरीब आधीनी के पास है, पूरण ब्रह्म दयाल।
मान बड़ाई मारियो, बेअदबी सिर काल।।
कबीर लेने को सतनाम है, देने को अन्न दान।
तरने को आधीनता, डूबन को अभिमान।।
गरीब लख #चौरासी बंध से, सतगुरु लेत छुड़ाय।
जो उर अंदर नाम हो, जोनी बहुत न आय।।
कहते दास कबीर, साहिब की सुरति बिसारी।
#मालिक के दरबार, मिलै तुमको दुखभारी।।
कबीर चिंता है सतनाम की, और न चितवै #दास।
चिन्ता करै कोइ और की, तो चढ़ै काल की फांस।।
तेरे जुगन जुगन के बंध छुड़ाऊं, तूं कर परतीति हमारी।
गरीब दास #सतगुरु से मिला दूं, काल के कागज फारी।।
"सत साहिब जी''
♥️ #चित्र