22/10/2025
गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनायें
मैं क्या क्या वस्फ़ कहुं, यारो उस श्याम बरन अवतारी के
श्रीकृष्ण, कन्हैया, मुरलीधर मनमोहन, कुंज बिहारी के
गोपाल, मनोहर, सांवलिया, घनश्याम, अटल बनवारी के
नंद लाल, दुलारे, सुन्दर छबि, ब्रज, चंद मुकुट झलकारी के
कर घूम लुटैया दधि माखन, नरछोर नवल, गिरधारी के
बन कुंज फिरैया रास रचन, सुखदाई, कान्ह मुरारी के
हर आन दिखैया रूप नए, हर लीला न्यारी न्यारी के
पत लाज रखैया दुख भंजन, हर भगती, भगता धारी के
नित हरि भज, हरि भज रे बाबा, जो हरि से ध्यान लगाते हैं
जो हरि की आस रखते हैं, हरि उनकी आस पुजाते हैं
जो भगती हैं सो उनको तो नित हरि का नाम सुहाता है
जिस ज्ञान में हरि से नेह बढ़े, वह ज्ञान उन्हें खु़श आता है
नित मन में हरि हरि भजते हैं, हरि भजना उनको भाता है
सुख मन में उनके लाता है, दुख उनके जी से जाता है
मन उनका अपने सीने में, दिन रात भजन ठहराता है
हरि नाम की सुमरन करते हैं, सुख चैन उन्हें दिखलाता है
जो ध्यान बंधा है चाहत का, वह उनका मन बहलाता है
दिल उनका हरि हरि कहने से, हर आन नया सुख पाता
हरि नाम के ज़पने से मन को, खु़श नेह जतन से रखते हैं
नित भगति जतन में रहते हैं, और काम भजन से रखते हैं
जो मन में अपने निश्चय कर हैं, द्वारे हरि के आन पड़े
हर वक़्त मगन हर आन खु़शी कुछ नहीं मन चिन्ता लाते
हरि नाम भजन की परवाह है, और काम उसी से हैं रखते
है मन में हरि की याद लगी, हरि सुमिरन में खुश हैं रहते
कुछ ध्यान न ईधर ऊधर का, हरि आसा पर हैं मन धरते
जिस काम से हरि का ध्यान रहे, हैं काम वही हर दम करते
कुछ आन अटक जब पड़ती है, मन बीच नहीं चिन्ता करते
नित आस लगाए रहते हैं, मन भीतर हरि की किरपा से
हर कारज में हरि किरपा से, वह मन में बात निहारत हैं
मन मोहन अपनी किरपा से नित उनके काज संवारत हैं
नज़ीर अकबराबादी