Deepika Jaswal

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देर रात को सूर्य उगाने का अद्भुत ढंग याद रहेगा जब तक जिंदा हो तुमको (पाकिस्तान) ये सिंदूरी रंग याद रहेगा
07/05/2025

देर रात को सूर्य उगाने का अद्भुत ढंग याद रहेगा
जब तक जिंदा हो तुमको (पाकिस्तान) ये सिंदूरी रंग याद रहेगा

11/03/2025

Be Beautiful 🥰
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हां कुछ स्त्रियां स्वांग नहीं रचती..
अपने व्यक्तित्व का..
वह अपनी मर्यादा भी समझती है,
और हक पर अपनी चुप्पी भी तोड़ती है..
स्त्री सशक्तिकरण के लिए सिर्फ,
मोर्चा और नारों में विश्वास नहीं रखती है ।।

वह सिर्फ कपड़ों में नहीं बांधती..
अपनी परिधि को...
सो कॉल्ड "फेमिनिज्म" के नाम पर
अपने कपड़े नहीं बदलती हैं..
अपने अस्तित्व को,
पांच मीटर की साड़ी पहन कर भी,
ऊंचा रखती है ।।
वह माथे पर पल्लू लेकर भी,
आगे बढ़ जाती है...
वह गोद में बच्चा लेकर भी,
जिंदगी के जंग में झांसी की रानी की तरह,
कूद जाती है ।।

वह दुनिया में सुधार करने के पहले,
खुद को अपने घर को बदलती है.
वह चोरों की तरह हमला नहीं करती,
शेरनी की तरह बात करती है।

वह लोगों को सहारे देती है..
सहारा ढूंढती नहीं,
वो जानती है..
उसका अस्तित्व उसकी सोच से ,
उसके वजूद से है ..
अपना वजूद खुद बनाती है।।

लोग जब सिर्फ बातें कर रहे होते हैं ..
नारी सशक्तिकरण की
वो इसका खुद उदाहरण बन जाती है।।

_किरण "मर्म"
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पोस्ट के सारे अधिकार किरण "मर्म"द्वारा सुरक्षित है... मूल लेखिका का नाम हटाकर कॉपी पेस्ट करने की कोशिश ना करें!!🙏🏼

𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀 𝐖𝐈𝐍𝐒 𝐈𝐂𝐂 𝐂𝐇𝐀𝐌𝐏𝐈𝐎𝐍𝐒 𝐓𝐑𝐎𝐏𝐇𝐘 𝟐𝟎𝟐𝟓!
09/03/2025

𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀 𝐖𝐈𝐍𝐒 𝐈𝐂𝐂 𝐂𝐇𝐀𝐌𝐏𝐈𝐎𝐍𝐒 𝐓𝐑𝐎𝐏𝐇𝐘 𝟐𝟎𝟐𝟓!

07/02/2025

अच्छी थी, पगडंडी अपनी,
सड़कों पर तो, जाम बहुत है
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो,
सबके पास, काम बहुत है।

नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब,
हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है
उजड़ गए, सब बाग बगीचे,
दो गमलों में, शान बहुत है।

मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं,
कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है
पीते हैं, जब चाय, तब कहीं,
कहते हैं, आराम बहुत है।

बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री,
व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है
झुके-झुके, स्कूली बच्चे,
बस्तों में, सामान बहुत है।

नही बचे, कोई सम्बन्धी,
अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है
सुविधाओं का,ढेर लगा है यार.
पर इंसान, परेशान बहुत है।।

कविता गढ़ने वाले का नाम अपुष्ट है , किसी को पुष्ट जानकारी तो जरूर बताएं ।

#अनकहेअलफ़ाज़

Ink your FINGER
05/02/2025

Ink your FINGER

31/01/2025

अभिलाषाओं के
दिवास्वप्न पलकों पर बोझ हुए जाते
फिर भी जीवन के चौसर पर साँसों की बाज़ी जारी है।

हारा जीता
जीता हारा मन सम्मोहन का अनुयायी।
हालाँकि लगा
यह बार बार सब कुछ पानी में परछाई।

हर व्यक्ति
डूबता जाता है परछाई को छूते छूते
फिर भी काया नौका हमने भँवरों के बीच उतारी है।

जो कुछ
लिख गया कुंडली में वह टाले कभी नहीं टलता।
जलता है
अहंकार सबका सोने का नगर नहीं जलता।

हम रोज
जीतते हैं कलिंग हम रोज बुद्ध हो जाते हैं
फिर भी इच्छाओं की गठरी अन्तर्ध्वनियों पर भारी है।

अंकित काव्यांश

नव वर्ष, नव चेतना, मुदित हृदय, नव है प्रेरणानेत्र पुलकित, करो यतननव मार्ग, नव लक्ष्य साधनाअतीत बीता, कुछ स्मरण कुछ भूलान...
01/01/2025

नव वर्ष, नव चेतना,
मुदित हृदय, नव है प्रेरणा
नेत्र पुलकित, करो यतन
नव मार्ग, नव लक्ष्य साधना
अतीत बीता, कुछ स्मरण कुछ भूला
नव प्रसंग प्रारंभ,
जैसे मात्र दिनांक नहीं, नव जीवन आरंभ
नव वर्ष का सुंदर आलिंगन
नव भोर तुम्हारा करे सुस्वागतम 😊

ज़माना कर ना सका उसके कद का अंदाजा वो आसमान था सर झुका के चलता था 🙏
27/12/2024

ज़माना कर ना सका उसके कद का अंदाजा
वो आसमान था सर झुका के चलता था
🙏

25/12/2024

"मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन जीते जाते हैं"

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