
14/08/2025
एक ख़्वाब था...
छोटा सा, मासूम सा,
न कोई हद, न कोई दायरा,
बस एक एहसास सा।
सोचा था—
थोड़ा वक्त मिले तो जी लेंगे,
थोड़ा सुकून हो तो पूरा कर लेंगे।
मगर वक्त ने दौड़ना बंद न किया,
हम ठहरते रहे, ख़्वाब बहता रहा।
कभी हालात रोके,
कभी मजबूरियाँ,
कभी दुनिया हँसी,
कभी अपनी ही कमज़ोरियाँ।
फिर एक दिन...
वो ख़्वाब आँखों से गिरकर
ज़मीन पर टूट गया,
हम सोचते ही रह गए—
और सफ़र आगे बढ़ गया...