
15/10/2024
किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना - डॉ. सुधीर आज़ाद
'किसी शहर में बचे हुए जंगल उस शहर की मनुष्यता के पर्याय हैं।'
किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना की सभी कविताओं में सुधीर आज़ाद ने जिन संवेदनाओं को उकेरा है वे मनुष्य के मनुष्य बने रहने के लिए अनिवार्य हैं।
पेड़ों का भारतीय सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक सन्दर्भ जिस तरह से यहाँ प्रस्तुत हुआ है; वह अद्भुत है।
पेड़ों को जितनी तरह देखा, सुना और कहा जा सकता है; यह सब इसमें हैं। इन कविताओं में रहनेवाली अनुभूतियाँ हमारे बहुत पास हैं और बहुत खास हैं। मैं सुधीर आज़ाद की इस बात से सहमत हूँ कि-'किसी मनुष्य में सत्य, प्रेम, परोपकार और शान्ति का भाव स्थायी हो जाना उसका पेड़ हो जाना। इसलिए किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना उसकी मनुष्यता के विकास का चरम है।... किसी मनुष्य का पेड़ हो जाना में मैं स्पष्ट रूप से यह कहना चाहता हूँ कि प्रकृति संरक्षण का विचार हमारी जीवनशैली में समाहित होना चाहिए। हमें अपनी नयी पीढ़ी को पेड़, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। संवेदनाओं के इसी सम्बन्ध से हम अपनी प्रकृति को उसके सुन्दरतम रूप में वापस ला सकेंगे ।'
काव्य-संग्रह की इन पंक्तियों में पूरी किताब सामने आ जाती है कि-
'कोई शहर कितना ज़िन्दा है
या उस शहर में कितने सभ्य
या कितने संवेदनशील लोग रहते हैं
अगर यह देखना
तो उस शहर के जंगल देखना ।
किसी शहर में
बचे हुए जंगल
उस शहर की मनुष्यता के पर्याय हैं।'
-परी जोशी
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर पीएच.डी. करने वाले डॉ. सुधीर आज़ाद एक नौजवान फ़िल्मकार, लेखक और प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ बुनियादी तौर पर संवेदनाओं और सम्भावनाओं का समुच्चय हैं। 'नदी का कवि' कहलाने वाले सुधीर आज़ाद का रचनाकर्म उनकी साहित्यिक प्रतिबद्धता को कहने के लिए पर्याप्त है।
अचर्चित और असमीक्षित के प्रति उनका प्रबल आग्रह है। चाहे किताबें हों, डॉक्युमेंट्रीज़ हों, शॉर्ट फ़िल्म्स हों या फ़ीचर फ़िल्म्स हों; उनके विषय और पात्र आज के समय की अनिवार्यता हैं।
कृतियाँ : मैं खुदीराम त्रैलोक्यनाथ बोस (एकांकी); मैं भारत हूँ (बाल-कविताओं का संग्रह); नदी, मैं तुम्हें रुकने नहीं दूँगा (कविता-संग्रह); किताब का नाम उसको रखना था (नज़्म-संग्रह); शहीद-ए-आज़म (महाकाव्य); भोपाल... सहर बस सुबह तक, भोपाल... अंटिल द डान (अंग्रेज़ी अनुवाद) (उपन्यास); विश्वनायक (समीक्षा-ग्रन्थ); क्रान्तिमना, क्रान्तिसन्त (बाल नाटक); शेर-ए-सिन्ध (नाटक)।
फ़िल्म्स : 'पानी नहीं है', 'टेंक नं. 610', 'मेरा गाँव मेरा तीर्थ', 'हिन्दी हैं हम' (डॉक्युमेंट्री फ़िल्म); 'द लास्ट वुड', 'द डार्क लाइट', 'द ट्रेन बिहाइंड द वाल', 'द लॉस्ट लैटर', 'मैं भारत', 'थैंक यू' एवं 'अननोन' शॉर्ट फ़िल्म्स का लेखन और निर्देशन । 'माई : द लाइफ लाइन ऑफ़ मध्य प्रदेश' माँ नर्मदा पर आधारित डॉक्युमेंट्री फ़िल्म निर्माण की प्रक्रिया में।
पुरस्कार एवं सम्मान : 'राष्ट्रीय युवा सम्मान' (2010), 'विशिष्ट प्रतिभा सम्मान' (2016), 'म.प्र. साहित्य अकादमी सम्मान' (2019), 'सेवा सम्मान' (2021), 'योद्धा सम्मान' (2022), 'नेमा दर्पण सम्मान' (2022), 'नर्मदा साहित्य सम्मान' (2023), 'सतपुड़ा साहित्य सम्मान' (2023), 'पोएट ऑफ़ द ईयर' (2023), 'जयपुर बाल-साहित्य सम्मान' (2023), 'कोलकाता लिटररी कॉर्निवाल' (2024)।
ℹ️ अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
📧 [email protected] | [email protected]
🌐 http://vaniprakashan.in
📞 011-23273167, 23275710
📲 +91-9643331304
.SudhirAzad #अपनीभाषाअपनागौरव