
20/02/2024
सादी के 12 घण्टे बाद बनी लड़की मां अनोखी हिंदी कहानी
part 1
“सुहानी तुम मां बनने वाली हो सुहानी तुम सुन रही हो ना मेरी बात
सुहानी को धीरे धीरे होश आने लगा था, तभी डॉक्टर प्रियंका के ये शब्द सुनते ही 19 वर्ष की सुहानी की कमज़ोर लाल आँखें एकदम से चौड़ी हो गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो आखिर pregnant कैसे हो सकती है?
अभी तो उसकी शादी को 12 घंटे भी नही हुए थे और न ही उसकाआज तक बॉयफ्रेंड था ना ही किसी लड़के ने आज तक उसे छुआ था। सुहानी यही सोच रही थी की फिर वो "pregnant" कैसे हो सकती है? जितनी shocked सुहानी थी, उतने ही shocked उसके पापा थे, जो वहीं डॉक्टर की केबिन में रखी एक कुर्सी में बैठे थे और आने वाले तूफ़ान को भांप रहे थे।
तभी डॉक्टर प्रियांका ने राजीव से कहा, "देखिए, mr. राजीव , मैं जानती हूँ कि आप दोनों इस वक्त बहुत ज्यादा परेशान होंगे। लेकिन मैं आप लोग को पहले ही बता दू कि प्रेगनेंसी 4 महीने पार हो चुकी है, so abortion is out of the question.”
सुहानी को लग रहा था कि हो न हो डॉक्टर प्रियांका से ज़रूर कोई न कोई गलती हुई होगी, इसलिए नर्स के सपोर्ट से खड़ी होते हुए कमजोर सुहानी ने थोड़ी ताक़त जुटाकर डॉक्टर को डांट दिया, "ये आप क्या कह रहे हैं। ये नामुमकिन है।"
लेकिन डॉक्टर प्रियांका के कुछ बोलने से पहले ही राजीव गुस्से से तिलमिलाकर सुहानी के पास आए और उसे ज़ोरदर से थप्पड़ जड़ दिया। और बोले, "इसका जवाब डॉक्टर को नहीं, तुम्हें देना है बेशरम लड़की !
हैलेट से बाहर निकलने के कुछ देर बाद, अक्सर कार की बैकसीट पर बैठने वाले राजीव आज सुहानी को कर की बैक सीट पर पीछे बिठा कर खुद ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठ गए थे, मानो ऐसा करके वो अपनी बेटी को अपनी नाराज़गी जता रहे हो! सुहानी ये बात जानती थी की एक बेटी होने के नाते आज उसने अपने बाप को दुनिया का सबसे बड़ा दुःख दिया है एक बिन-बियाही माँ बन कर! इतना दुख उन्हें उसकी मां के गुजरने पर भी नही हुआ होगा। लेकिन ये सब जानते हुए भी सुहानी फिलहाल कुछ भी करने के लिए physically या mentally सामर्थ्य नहीं थी, और उसका शरीर कार की बैक सीट पर मानो कमज़ोरी के साथ - साथ शर्म से जम गया था।
मुम्बई भारत का एक बेहद खुबसूरत शहर है। यहां देश-विदेश से आए टूरिस्ट्स के कारण शहर में चाका चौंध लगी रहती है। मगर सुहानी को ऐसा लग रहा था, मानो आज मुंबई का हर शक्श उसे अपनी बड़ी नजरों से बस एक ही सवाल पूछ रहा हो, कि "आखिर कौन है इस बच्चे का पिता" लेकिन इसका जवाब तो सुहानी को भी पता नहीं था!
वो बस नम आँखों से एक ही बात सोच जा रही थी, कि जब आज तक उसे किसी लड़के ने छूआ तक नहीं, तो वो प्रेगनेंट कैसे हो सकती थी? सुहानी इसी उलझन में खोई थी, तभी उसकी कार उसके घर के बहुत ही बड़े और आलीशान गेट से अंदर एंटर होती है, वो gate बहुत ही पुराना था और उसमे सुंदर चित्र भी बना हुआ था।
शर्मा हाउस ब्रिटिश के ज़माने का मकान था। कहा जाता था यहाँ ब्रिटेन के अधिकारी छूटी मनाने आते थे। मकान में पुराने मगर शानदार एंटिक्स, बड़ा गार्डन, और बीच में तालब बना था। लेकिन अच्छी देखभाल न करने की वजह से पिछले कुछ सालों से मकान थोड़ा खंडार सा लगने लगा था। राजीव शर्मा ने घर में घुसते ही सुहानी के रिपोर्ट्स कार्ड को ग़ुस्से से जमीन पर फेंका और अपने सर पे हाथ रखकर सोफे में बैठा गया
सुहानी अपने कमजोर शरीर और भारी कदमों के साथ राजीव के पीछे पीछे घर के अंदर आई , आज सुहानी को उसका शरीर रोज़ के मुताबिक कुछ ज़्यादा ही भारी लग रहा था। वैसे तो सुहानी का वजन उसकी उम्र की लड़कियों से कम से कम 4 गुना ज़्यादा था। गोल फूला सा चेहरा, मोटा पेट, और ठुड्डी इतनी वजनदार थी कि सुहानी की पूरी गर्दन छिप जाती। 130 किलो की सुहानी की तुलना लोग अनाज की भरी हुई बोरी से किया करते थे
लेकिन सुहानी का शरीर जितना मोटा था, उसकी शक्ल उतनी ही मासूम और प्यारी थी! चेहरे के दोनो तरफ़ एक एक रसगुल्ला लगा हो वैसे गुलाबी मुलायम सफ़ेद गाल, गुस्से की वजह से हमेशा लाल रहती उसकी नाक और पूरे इस जहां कि मासूमियत को समेट कर बनाई गयी हो वैसी उसकी दो प्यारी आँखें! लेकिन आज तक किसी को उसका ये मासूम चेहरा नहीं दिखा । दिखा था तो बस उसका मोटा और निराकार शरीर। बिन माँ की बच्ची सुहानी को आज सब से ज़्यादा किसकी जरुरत थी तो उसके पापा के प्यार की।
इसलिए सुहानी नम आँखों के साथ राजीव की तरफ बढ़ी ही थी की राजीव भारी आवाज में उस पर गरज पडे, की “मुश्किल से हमे एक मौका मिला था हमारी ज़िन्दगी को थोड़ा बेहतर बनाने का, खुसकिस्मत थी तुम जो सक्सेना खानदान के एक लौते वारिस अभिजीत सैक्सेना से तुम्हारी शादी हुई थी।
तुम जानती भी हो कितने पावरफुल लोग है वो ? मुम्बई का सबसे पावरफुल खानदान सेक्ससाना ! हमारे सारे कर्ज, पेंडिंग कोर्ट केस, हमारी हर एक मुसीबत से हमें बाहर निकाला था उन लोगो ने। लेकिन शादी के 12 घंटे बाद ही तुमने हमारी ज़िन्दगी वापस नर्क बना दी। जब तुम्हारे इस कालीकरतू के बारे में पता चलेगा तो पता नहीं क्या करेंगे वो ? और तुम्हारी छोटी बहन निशा ? उसके साथ भला कौन शादी करेगा? भले ही वो तुम्हारी सौतेली बहन है , लेकिन तुम्हारे इस कारनामे की वजह से उसकी भी तो बदनामी होगी। नहीं नहीं , जब तक ये मामला ख़तम नहीं हो जाता है तब तक मैं तुम्हारी छोटी बहन निशा को और तुम्हारी नयी माँ प्रियांका को उसके भाई के घर भेज देता हूं।”
कुछ सोच कर वो बोले, राजीव फिर बोल पड़े “लेकिन आज नहीं तो कल , सब को पता चल ही जायेगा।" ये बोलते हुए राजीव अपना सर पकड़ कर सोफे पर टिका दिया अब उनकी आवाज़ में गुस्सा कम , और डर ज़्यादा सुनाई दे रहा था।
लेकिन राजीव के आंसू मानो कठोर शब्द का रूप लेकर उनके मुँह से निकल रहे थे, "तेरा पति अभिजीत तो शादी करने के एक घंटे के अंदर ही दिल्ली चला गया था , अब इस प्रेग्नेंसी के बारे में जब तेरे ससुराल वालों को पता चलेगा तो भगवन जाने वो लोग क्या करेंगे! समाज में उनकी इज्जत तो उछलेगी ही, मगर हम फिर से उसी कीचड़ में फंस जाएंगे जहाँ से निकाल कर वो लोग हमे ले थे काश तुम भी अपनी माँ के साथ ही......”
राजीव अपनी बात कहते हुए रुक गया था, लेकिन सुहानी वो सुन चुकी थी जो राजीव कहते कहते रुक गए थे। सुहानी को कड़वे शब्द सुनने की आदत तो पहले थी ही, मगर आज सवाल उठा था उसके चरित्र पर, उसकी पवित्रता पर। सुहानी इस चक्रव्यूह से जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहती थी मगर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें क्या नहीं । वो सोच रही थी कि जो कुछ भी हो रहा है, अगर वो सब झूठ था, तो फिर उसके पेट में सांस लेने को उत्सुक ये सच क्या है
दूसरे दिन राजीव ने घर में लगे सारे सीसीटीवी कैमरे की पिछले 6 महीने की फुटेज मांगवाई और सही से देखने के बाद वो ये जानकर हैरान रह गया था कि पिछले 6 महीनों से छोटी मोटी बीमारी के चलते सुहानी घर के बाहर कहीं आई गई भी नहीं थी! इसे देख कर राजीव का गुस्सा अब आश्चर्य में बदल गया था। उसको इतना तो समझ में आ ही गया था कि कहीं कुछ तो गड़बड़ थी, लेकिन उससे कई ज़्यादा चिंता उसे इस बात की थी की अब सैक्सेना परिवार के करेगा
जल्द ही सुहानी की देखभाल के लिए एक नर्स रखी गई, लगातार देखभाल और दवाइयों से सुहानी की तबियत में सुधार आ रहा था लेकिन साथ ही उसे ये बात रोमांचित कर रही थी कि उसके अंदर एक नन्हा सा जीव सांस ले रहा था। सुहानी की उम्र भले ही कच्ची थी मगर उसके अंदर की एक माँ जल्द ही जन्म लेने को उत्सुक थी! उसकी जिंदगी में आखिरकार वो आने वाला ही था जो सिर्फ और सिर्फ उसका होगा।
चार महीने बीत चुके थे, सुहानी अपनी प्रेगनेंसी में लगभग सब कुछ भूल चुकी थी, ना वो किसी से मिलती, न कोई उससे मिलता, सिर्फ वो अपने अंदर पल रही उस नन्ही सी जान से बातें करती रहती! ऐसे में एक दिन सुहानी पाइप से अपने घर के बाहर के गार्डन में पानी डाल रही थी, तभी उसने अपने पैरों के नीचे कुछ हलचल महसूस की। वो कुछ समझ पाती, की उसके पहले ही उसके घर के मेन गेट से एक बाइक अंदर आई।
मशीन गन से जैसे गोलियां निकलती है, वैसे ही बाइक की आवाज़ सुनकर ऐसा लगा मानो बॉर्डर पर जंग शुरू हो गई हो। बाइक की आवाज़ सुनकर सुहानी ने पानी का पाइप छोड़ दिया, और उसने जल्दी से दोनों हाथों से अपना पेट पकड़ लिया, जैसे कि वो अपने डरे हुए बच्चे को अपने आँचल में छुपा रही हो। बाइक आकर बंगले के पास रुकी।
लेदर शूज, टाइट जीन्स, डार्क ब्लैक शर्ट, और चेहरे पर लगे काले चश्मे के आर पार लड़के की गहरी लाल आंखें साफ दिखाई दे रही थी। सुहानी ने जैसे ही उस लड़के को देखा, उसकी धड़कन मानो डर और टेंशन से तेज हो गई। ये लड़का और कोई नहीं, बल्कि सुहानी का पति अभिजीत सैक्सेना था जो 21 साल का था। अभिजीत अपनी नजर सुहानी पर गढ़ाए हुए बड़े ही स्टाइल के साथ बाइक से उतर कर सुहानी की तरफ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।
सुहानी और अभिजीत, दोनों ही एक-दूसरे को देख रहे थे। अभिजीत की शादी सुहानी से भले ही उसकी मर्ज़ी के खिलाफ करवाई गई थी, लेकिन अपनी बीवी की पेट में किसी और का बच्चा देखना कोई भी शायद बर्दाश्त न कर पाए! अभिजीत शादी के बाद, मंडप से सीधा दिल्ली अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने चला गया था, और वहां पहुँच कर शादी के दूसरे दिन उसे सुहानी की प्रेगनेंसी की खबर मिली थी। सुहानी उस दिन से लगभग रोज़ सोचती थी, कि जिस दिन उसका सामना अभिजीत से होगा, उस दिन न जाने वो कैसे रियेक्ट करेगा। आज जब अभिजीत उसके सामने आ रहा था तब पता नहीं क्यों, निर्दोष होने के बावजूद डर और शर्म के मारे सुहानी को एक अलग सी बेचैनी महसूस हो रही थी।
सुहानी तुरंत अपने पापा को फ़ोन लगाती है, लेकिन उनका फ़ोन नहीं लग रहा था। अभिजीत को अपनी और बढ़ता देख, सुहानी की घबराहट इतनी बढ़ गई थी कि वो डर के मारे बड़बड़ाने लगी।
“वो, पापा तो नहीं है, घर पे।”
अभिजीत सुहानी के सामने आ कर एक्टिट्यूड के साथ खड़ा था। वो सुहानी को ऊपर से नीचे तक देख रहा था, सुजा हुआ चेहरा, 7 महीने की प्रेगनेंसी वाला मोटा पेट, गद्दी जैसे मोटे हाथ और पांव। प्रेग्नेंसी की वजह से सुहानी पहले से भी ज्यादा मोटी नजर आ रही थी,
सुहानी को देख कर अभिजीत ने अपने होंठों को कसके दबाया और एक गहरी सांस लेकर, ज़ोर से जमीन पर थूक दिया।
ये देखते ही सुहानी की कमजोरी मानो अचानक से वापस आ गई हो। वो ठिक से अपने पैरों पर खड़ी नहीं रह पा रही थी, मानो जैसे उसे खुद का शरीर बोझ लग रहा हो, अभिजीत गुस्से में घूरते हुए जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे सुहानी एक डरे सहमे बकरी के बच्चे की तरह घबराकर पीछे होती जा रही थी, ऐसा लग रहा था मानो अभिजीत के नुकीले लेदर शूज किसी भी वक्त सुहानी के नंगे मुलायम पाँव को कुचल देंगे।
तभी मेन गेट से राजीव की कार अंदर आकर रुकती राजीव कार से उतरकर भाग कर अभिजीत के पास आया जैसे कोई सेक्रेटरी अपने बॉस के पीछे भाग रहा हो।
राजीव, अभिजीत के पास आकर उसको कहता है, "अरे अभिजीत बेटा, आज अचानक कैसे और तुमने फ़ोन भी नही किया कि तुम आ रहे हो, तुम्हारी कॉलेज की छुट्टियाँ शुरू हो गई क्या?"
अभिजीत ने गुस्से से बोला, "पूरे 5 महीने बाद आया हूँ, आप ऐसा बोल कर अपने दामाद का स्वागत करोगे? वैसे, काफी कुछ बदल गया है यहाँ पे।"
अभिजीत ने सुहानी के पेट की ओर देख कर अपनी जेब से शराब की बोतल निकाली और मुह से लगा ली। वो आया था तब से उसकी नजर सुहानी के पेट पर ही जमी हुई थी।
माहौल को थोड़ा ठीक करने के लिए राजीव ने अभिजीत से कहा, "आओ अभिजीत बेटा, अंदर चल कर बात करते हैं।"
लेकिन राजीव की बात को अनसुना करते हुए, शराब के घूंट लिए और सुहानी के पेट को घूरता रहा। राजीव को भी थोड़ा अजीब तो लग रहा था, लेकिन कहीं न कही वो अभिजीत के मन की बात को समझ रहा था।
इसलिए बड़े ही सहजता से राजीव ने अभिजीत से कहा, "देखो अभिजीत अगर तुम ये शादी तोड़ना चाहते हो, तो मैं समझ सकता हूँ।"
ये सुनते ही अभिजीत चिल्ला उठा, "जो बात तुम समझ सकते हो, वो बात मेरे बुढ़े दादाजी नहीं समझ सकते ना, उन्होंने जबरदस्ती इस मोटी के साथ मेरी शादी करवाई और अब वो चाहते हैं कि इसके नाजायज बच्चे को भी मैं अपना नाम दूं। एक तो इसे देखता हूं तो ऐसा लगता है जैसे मुझे किसी ऐसे गुनाह की सजा दी जा रही है जो मैंने किया ही नहीं है! शादी के मंडप से तुरंत इसीलिए भागा था मैं, ताकि मुझे इसके साथ एक पल भी न रहना पड़े!"
बोलते बोलते अभिजीत की सासें फूलने लगी थी, जैसे कि वो महीनों से अपने अंदर भरी हुई गुस्सा निकाल रहा हो। सुहानी और राजीव , दोनों ही अभिजीत की बात सुन कर ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे अभी के अभी यह धरती फट जाए और दोनों बाप-बेटी उसके अंदर समा जाए।
अभिजीत का क्रोध अपनी चरम सीमा पर था। अब भी कोई कसर बाकी रह गई हो, इस तरह उसने सुहानी की तरफ इशारा करते हुए आगे कहा, "देखो, इस बेशरम लड़की को, शादी के फेरे लेते समय पेट में किसी और का बच्चा लिए घूम रही थी। और इतना होने के बाद भी आज मेरे सामने ऐसे बेशर्मों की तरह खड़ी है! क्या लगा तुम्हे कि मैं इस बच्चे को अपना नाम दे दूंगा? अभिजीत सैक्सेना का नाम? पता नहीं किस नाली का कीड़ा है ये।"
ये बोलते हुए वो गुस्से में सुहानी की ओर आगे बढ़ता है, मानो जैसे वो गुस्से में पता नहीं सुहानी को क्या कर देगा, लेकिन तभी शराब की वजह से अभिजीत के पैर लड़खड़ाए और वह अपना बैलेंस खो बैठा, लेकिन तुरंत राजीव ने आगे आकर अभिजीत को पकड़ कर संभाल लिया।
सुहानी अभिजित की बातें सुनकर जितना ज़्यादा हर्ट थी, उतनी ही ज़्यादा गुस्से में भी थी। वो भले ही अपने मोटापे की वजह से ऐसी सब बातें सुनने की आदी थी, मगर अब उसे इस बात पर अभिजीत से ज़्यादा खुद पर घिन आ रही थी, कि कोई उसके होने वाले बच्चे को गाली दे रहा था और वो मजबूर खड़ी सुन क्यों रही थी? बच्चे का ख्याल आते ही नजाने कैसे, अचानक सुहानी के अंदर अजीब सी ताकत आ गई और बिना कुछ सोचे समझे , वो बोल पड़ी, "मैं इस शादी को नहीं मानती।"
ये सुनकर राजीव और अभिजीत, दोनों शॉक्ड थे। अभिजीत सोच रहा था कि कल की आई फिद्दी सी लड़की में इतनी ताकत कहाँ से आ गई कि वो मेरे, यानी अभिजीत सैक्सेना के सामने ऐसे बोली? लेकिन इससे पहले कि वो कुछ रिएक्ट कर पाता, राजीव ने बात को संभालते हुए अभिजीत से कहा, "इस वक्त सुहानी की तबियत ठीक नहीं है, इसलिए तुम उसकी बातों पर ध्यान मत दो और रहा सवाल बच्चे का, तो होते ही उसे सुहानी से हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा, मेरा यकीन करो।"
पापा की ये बात सुनकर सुहानी को ऐसा लगा जैसे किसी बड़े से ट्रक ने उसे पीछे से टक्कर मार दी हो और वो जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रही हो। टेंशन में सुहानी की सांसें फूलने लगी और एक पल के लिए वो सांस लेना भूल गई। ठीक उसी पल में अचानक से सुहानी के पेट में जोर से दर्द शुरू हो गया था । दर्द के मारे सुहानी एक झटके से अपने पीठ के बल जमीन गिरी, और बेहोश होती आँखों से उसने देखा कि राजीव दौड़ कर उसके पास आ रहा था।
राजीव ने हड़बड़ी में फ़ोन करके एम्बुलेंस को बुला लिया था, लेकिन ये सब देखकर भी अभिजीत वही खड़ा बेशर्म और बेसुध बनकर शराब के घुट मार रहा था। जैसे उसे किसी भी चीज़ से कोई फरक नहीं पड़ रहा हो। शाम की मध्यम रौशनी सुहानी के सामने धुंधली हो रही थी, उसे बस एक छोटी बच्ची की आवाज़ सुनाई दे रही थी, “मम्मी मम्मी उठो न मम्मी।”
देखते ही देखते आज 7 साल बीत चुके थे लेकिन आज भी वही आवाज़ सुहानी के कानो में गूंज रही थी,
“मम्मी, उठो मम्मी, प्लेन लैंड होने वाला है।” फ्लाइट के बिज़नस क्लास की आरामदायक सीट पे सोयी सुहानी की आंखें एक झटके से खुली, और सामने थी उसकी 6 साल की बेटी प्रिया!
प्रिया का मासूम चेहरा और उसकी खूबसूरत कत्थई आंखें देख कर सुहानी की जान में जान आई, उसका गुजरा हुआ कल कोई बुरे सपने से कम नहीं था! आज सुहानी अपनी बेटी प्रिया के साथ इलाहाबाद से मुम्बई 7साल बाद लौट रही थी। प्रिया ने अपना गेमिंग टेबलेट मां के पर्स में रखते हुए बड़े प्यार से सुहानी से पूछा, "मोम , क्या हम मेरे पापा को ढूंढने मुंबई आए है "
सुहानी ने बड़े ही सरल तरीके से उसे समझाया, "मैंने तुमसे कितनी बार कहा है तुम्हारे कोई पिता नहीं है।"
इस पर प्रिया जवाब देते हुए कहती है, "ओह कम ऑन मोम, स्कूल में हमें टीचर कहती हैं कि हर बच्चे के मां-बाप होते हैं, अब मेरे गेमिंग दुनिया के कैरेक्टर्स की तरह मैं किसी दूसरी दुनिया से तो आयी नहीं हूँ न, तो ऑफकोर्स मेरे पापा भी तो होंगे ही! या किसी जादूगर ने मुझे अपनी हैट में से बाहर निकाला है? आबरा का डाबरा, प्रिया बाहर आ जा।"
प्रिया की ये बात पर माँ-बेटी दोनों ही ज़ोर से हंस पड़े।
अपनी हँसी पे काबू पाते हुए प्रिया ने दूसरा सवाल पूछा, "तो क्या हम यहाँ मेरे भाई को ढूंढने आए हैं?"
प्रिया का ये सवाल सुनकर सुहानी एक गहरी सोच में डूब गई, उसे याद आ गया कि कैसे 7 साल पहले अस्पताल में उसने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था, और सुहानी के पापा की कद काठी के एक आदमी ने उसके दोनों बच्चों को उससे छीनने की कोशिश की थी, सुहानी ने बड़ी हिम्मत से उस आदमी का सामना किया और प्रिया को तो बचा लिया था, मगर अफसोस की वो अपने बेटे को नहीं बचा पाई, और वो आदमी उसके बेटे को लेकर भाग निकला था।
इस हाथापाई में सुहानी को चोट भी लगी थी, चोट इतनी गहरी थी कि उसका बचना लगभग नामुमकिन था, और इसी वजह से सुहानी की मौसी उसे अपने साथ इलाहाबाद ले गई थी, जहां सुहानी का इलाज हुआ था। हालांकि इन 7 सालों में सुहानी पूरी तरह से बदल चुकी थी, हार्मोनल इम्बैलेंस की वजह से बढ़ा उसका शरीर, अब एकदम सामान्य था, घने लम्बे कमर तक के बाल, काली नुकीली आंखें, गोरे गोरे गालों के साथ गुलाबी पंखुड़ी जैसे नरम होंठ और सुराही सी लम्बी गर्दन, शिफॉन की लाल साड़ी में सुहानी की कमर ऐसी लग रही थी, मानो कोई नदी समंदर से मिलने के लिए करवट ले रही हो।
फ्लाइट अटेंडेंट हो या फ्लाइट के अन्य यात्री सब लोग आते जाते सुहानी पर एक नजर जरूर डालते। मासूमियत से सवाल कर रही प्रिया को ये नहीं पता था कि सुहानी के मुम्बई लौटने का एक मुख्य कारण ये था कि पिछले 6 वर्षो में अभिजीत के दादाजी किसी भी हालत में सुहानी और अभिजीत की शादी तोड़ने की मंज़ूरी नहीं दे रहे थे, लेकिन 6 साल बाद आखिरकार अभिजीत की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा, और वो ये शादी तोड़ने को राजी हो गए। मुंबई वापस जाकर वो डाइवोर्स पेपर्स पर साइन करने के साथ-साथ अपने खोए हुए बेटे को भी ढूंढना चाहती थी।
थोड़ी ही देर में फ्लाइट ने लैंड किया! मुंबई की जमीन पर कदम रखते ही न जाने क्यों सुहानी की बाईं आंख फड़कने लगी, उसे ऐसा लगा कि आगे जरूर कुछ बुरा होने वाला था, वो ये सोच कर लगेज काउंटर की तरफ बढ़ ही रही थी। तभी उसकी नजर पीछे की तरफ पड़ी, जहां फ्लाइट के सभी लोग मुस्कुरा कर उसी को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे, मानो सब उसकी खूबसूरती में गुम होकर उसके पीछे - पीछे चले आ रहे हो, सुहानी थोड़ी conscious होकर और प्रिया को सँभालते हुए फटाफट आगे चलने लगी।
लगेज काउंटर पर से जैसे ही सुहानी अपना लगेज लेने के लिए झुकी, फटाक से 3 और लोग भागकर आए और उसका लगेज उठाकर सुहानी को देने लगे। मानो सब इसी बहाने सुहानी से बात करने की कोशिश करना चाहते हो, सुहानी चुपचाप अपना लगेज ट्राली पर डालकर और प्रिया का हाथ पकड़ कर एयरपोर्ट के बाहर की तरफ निकलने लगी, तभी उसके फोन पर उसके पापा राजीव का फ़ोन आया।
सुहानी के फ़ोन उठाते ही राजीव ने बिना कोई खैर खबर पूछे सीधे सुहानी से कहा, "अभिजीत तुम्हें लेने एयरपोर्ट आ रहा है , उसके साथ सीधे घर आ जाना। यहाँ तुम्हे दो पेपर साइन करने हैं, एक डिवोर्स पेपर्स और दूसरे वो.."
इतना कहकर राजीव चुप हो गया और फिर कुछ सोच कर वो आगे कहा, "खैर तुम घर आओ , मैं तुम्हे सब बताता हूं।"
सुहानी ने भी बिना कुछ कहे ही फोन काट दिया। जैसा की राजीव ने कहा था, अभिजीत एयरपोर्ट के बहार बड़ी ही बेसब्री से सुहानी का वेट करते हुए खड़ा था ,7 सालो में अभिजीत भी काफी बदल चूका था, अब वो एक स्टूडेंट नहीं, बल्कि एक बिजनेसमैन था।
ब्लैक कलर का कड़क सूट, शार्पली कटे हुए और जेल से सेट किये हुए बाल और ट्रिम की हुई दाढ़ी में अभिजीत की पर्सनालिटी तो निखर रही थी मगर उसके तेवर अब भी वही थे , रूड और अर्रोगंस से भरपूर। वो तो सुहानी का इंतज़ार भी सिर्फ इसलिए कर रहा था क्यूंकि उसे जल्द से जल्द सुहानी से मुक्ति चाहिए थी। अभिजीत का एक पैर ज़मीं पर तो दूसरा पैर रेलिंग पर टिकाया हुआ था ,
exit door की तरफ देखते हुए अभिजीत ने बड़ी ही बेसब्री से अपने ड्राइवर से कहा , "आज तक इस दुनिया में किसी भी मर्द को डिवोर्स मिलने की इतनी ज्यादा खुशी नहीं हुई होगी, किसी भी कीमत पर आज ही उस मोटी से मैं डाइवोर्स पेपर्स पर साइन करवा ही लूंगा।“
अभिजीत के ड्राइवर रामू ने बीड़ी फूकते हुए कहा, "आप फिक्र मत कीजिये , आज सुबह-सुबह मैं माता के दर्शन करके निकला हूं, मैंने भगवान से प्रार्थना भी की h है कि आज आपकी सालो पुरानी ये मनोकामना पूरी हो , आज पक्का पेपर्स साइन हो ही जायेंगे। "
ये सुन कर अभिजीत ने बड़े ही कटीले अंदाज़ में कहा, "अबे सिर्फ डिवोर्स थोड़ा चाहिए , सुहानी की कंपनी भी तो चाहिए , जो उसकी मरी हुई मां उसके नाम करके गई थी।"
रामू जिसने अपने हाथ में सुहानी के नाम का बोर्ड पकड़ा हुआ था वो उस बोर्ड को सीधा करते हुए बोला है, “अरे वो फैक्ट्री भी मिल जाएगी, फ़िक्र नॉट।"
तभी अभिजीत के दिमाग में कुछ आता है और वो ड्राइवर से कहता है, "अच्छा सुन , उसको देखते ही हमेशा मेरा मूड ऑफ हो जाता है और आज इतने अच्छे दिन पर मैं अपना मूड ख़राब नहीं करना चाहता इसलिए मैं उल्टा घूम के खड़ा हो जाता हूँ , ठीक है? तूने भले ही उसे न देखा हो , लेकिन तेरे हाथ में उसके नाम का बोर्ड देख कर वो तेरे पास आ ही जाएगी।"
अभिजीत आलस लेते हुए उल्टा घूमने ही वाला होता है, कि तभी अचानक उसकी नजर एयरपोर्ट के गेट पर पड़ी और कुछ देख कर उसकी नजर वही अटक गयी। कुनाल ने एयरपोर्ट से बाहर आते हुए एक लड़की को देखा, तो वो देखता ही रह गया, मानो जैसे उसने आज से पहले किसी खूबसूरत लड़की को देखा ही नही था
उस लड़की को देख कर अभिजीत के मुँह से निकल जाता है, "यार इतनी खूबसूरत लड़की तो मुंबई में कभी दिखी ही नहीं थी
ड्राइवर रामू ने भी उसकी बात में हामी भरी।
अभिजीत बिना वक्त गवाए, रेलिंग कूदकर उस लड़की की ओर दौड़ पड़ा, और अचानक से वो उस लड़की के सामने आकर खड़ा हो गया और उसका रास्ता रोक लिया। ये खूबसूरत लड़की और कोई नहीं, बल्कि अभिजीत की पत्नी सुहानी थी। अभिजीत इस बात से बिल्कुल अनजान था। अचानक अभिजीत को अपने सामने देखकर सुहानी हैरान थी और उसे एक ही पल में वो सब कुछ याद आ गया जो वो हमेशा से भूलना चाहती थी।
सुहानी एक पल के लिए सहम गई, उसको लगा कि कहीं पहले की तरह अभिजीत फिर से उसकी इंसल्ट न कर दे, और इसलिए सुहानी सीधा अभिजीत को थप्पड़ जड़ देना चाहती थी, मगर वो अपनी बेटी प्रिया के सामने कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी।
तभी अभिजीत बोल पड़ा, "हेलो मिस आप मनाली में पहली बार आई लगती हैं, क्योंकि अगर पहले आई होती तो ये तो पॉसिबल ही नहीं है कि अब तक आप मेरी नजरों से unnoticed रहती।"
सुहानी को पहले तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन अगले ही पल वो समझ गई कि अभिजीत उसे पहचान नहीं पाया था, सुहानी ने प्रिया की तरफ देखा, तो वो अपने टेबल में वीडियो गेम खेलने में मस्त थी, और क्योंकि उसने हेडफ़ोन पहने थे उसे आस-पास की कोई बात सुनाई नहीं दे रही थी, ये देख कर सुहानी को राहत मिली, सुहानी अभिजित की बात को अवॉयड करते हुए वहां से साइड होकर टैक्सी को आवाज़ देने लगी, "टैक्सी . टैक्सी"
सुहानी नहीं चाहती थी की अभिजीत उसे पहचाने, लेकिन अभिजीत भी हार मानने वालो मे से थोड़ी था।
अभिजीत ने उसकी तरफ भाग कर फिर से उसका रास्ता रोक दिया, "अरे अरे, टैक्सी की क्या जरूरत है, मैं अपनी गाड़ी में आपको जहां चाहे छोड़ देता हूं न और एक मिनट, ये नन्ही गुड़िया कौन है?"
ये कहते हुए उसने प्रिया की तरफ इशारा किया, और उसके गाल पर हाथ फिराया, लेकिन प्रिया जब टेब पर गेम खेल रही होती है तब उसे कोई डिस्टर्ब करे वो उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता इसलिए टेब से बिना ऊपर देखे, उसने अपना गाल जट्टक लिया। ऐसा करने में प्रिया के कान से हैडफ़ोन निचे की तरफ स्लाइड होकर गिर के उसके कंधे पर आ गया था. लेकिन अभी भी उसका ध्यान वीडियो गेम खेलने में ही था।
सुहानी टैक्सी ढूंढने में बिजी हो गयी लेकिन अभिजीत पीछे - पीछे आकर उससे एक नहीं तो दूसरे तरीके से बात करने की कोशिश करता रहा,
अभिजीत ने कहा, "ओह, समझ गया ये आपकी छोटी बहन है है ना?”
ये सुनकर प्रिया ज़ोर ज़ोर से हंस पड़ी, तभी अभिजीत को वापस राजीव का फ़ोन आया, अभिजीत ने जैसे ही फ़ोन उठाया, राजीव ने पूछा, "क्या तुम्हें सुहानी दिखी?"
अभिजीत ने बड़ा ही तीखा जवाब देते हुए कहा, "ना दिखने के लिए आपकी बेटी कोई सुई तो है नहीं,जब वो गेट से बाहर आएगी तो सिर्फ वो ही दिखेगी उसके पीछे खड़े लोग भी दिखना बंद हो जाएंगे huhh " और वो रूडली फ़ोन काट देता है।
अभिजीत की बात सुन कर सुहानी को अंदाज़ा आ गया था कि वो पक्का उसी के बारे में बात कर रहा था, सुहानी को अभिजीत पर बहुत ही ज़यादा गुस्सा आ रहा था, लेकिन उसे बस अब जल्दी से टैक्सी चाहिए थी।
वो पूरे जोश और गुस्से के साथ जोर से चिल्लायी, “टैक्सी।”
ये सुनकर अभिजीत और ज़्यादा इम्प्रेस हो गया और बडे ही मीठे अंदाज में बोला, "सुनिए मिस मैं आपको छोड़ देता हूं ना, वैसे भी मैं जिसे लेने आया था लगता है वो आई ही नहीं। आप अगर मुम्बई की फ्लाइट में आई है तो आपने फ्लाइट में किसी बेहद मोटी औरत को देखा होगा।"
ये सुनकर सुहानी एक पल को रूकी और उसने अभिजीत की तरफ मूड कर देखा,अभिजीत आगे कहता है, "दरअसल 7 साल पहले वो 120 किलो की थी, अब 7 साल में तो उसने पक्का डबल सेंचुरी पार कर ही ली होगी।"
सुहानी बिना कुछ बोले अभिजीत की बाते सुनकर सोच रही थी की ये पता नहीं क्या क्या सोच रहा है उसके बारे में।
अपनी बातो को सुनते हुए अभिजीत सुहानी तो देखता है तो वो उसे इम्प्रेस करने के चक्कर में और उसे हंसाने के लिए आगे कहता है, "वैसे मुझे लगता है की फ्लाइट वालों ने उसे बिठाने से मना कर दिया होगा, कहा होगा कि अगर तुम बैठोगी तो फ्लाइट कैसे उड़ेगी?"
कहते हुए वो खुद भी हस्ता है और उम्मीद करता है की उसके जोक से सुहानी को भी हंसी आएगी, लेकिन सुहानी बड़े ही ठन्डे तरीके से उसको देखती रही।
सुहानी को हँसता हुआ ना देख कर अभिजीत ने भी अपनी हंसी रोकी और बोला "अजी छोड़िए मैं भी किसकी बातें लेकर बैठ गया, कहां आप और कहां वो?"
तभी एक टैक्सी सुहानी के पास आकर रुक गई, दूसरी ओर, पीछे से अभिजीत का ड्राइवर हाथ में सुहानी शर्मा का बोर्ड लेकर दौड़ा चला आ रहा था, वो आकर अभिजीत के बाजु में खड़ा हो गया, मानो वो अभिजीत को कुछ बताने आया हो। सुहानी ने जल्दी-जल्दी में प्रिया को टैक्सी में बिठाया और खुद जब टैक्सी में बैठने जा रही थी।
तब अभिजीत ने थोड़ा मायूस होते हुए कहा, "वैसे आपको मुम्बई में किसी भी चीज की जरूरत हो तो सिर्फ एक ही नाम याद रखिएगा, अभिजीत सैक्सेना। किसी से भी मेरा नाम पूछिएगा, मेरे घर तक छोड़ जाएगा आपको।"
टैक्सी वहाँ से निकलने ही वाली थी कि तभी अभिजीत ने टैक्सी रोकी, और विंडो के पास झुककर बड़े ही flirty अंदाज में कहा, "अरे मिस, मिस, अपना नाम तो बताती जाओ।"
इसके सुनकर सुहानी ने अभिजीत को देखते हुए अपनी आंखों से काला चश्मा निकाला, और बड़े ही तेज और कटीली नजर से अभिजीत को देखते हुए, बिना किसी भी हावभाव के धीरे से कहा, "सुहानी शर्मा"
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