27/03/2024
Sir Syed Ahmed Khan (17 October 1817–27 March 1898)
हिंदुस्तान का एक ऐसा ता'लीम का इदारा AMU जो अपने आप में एक मिसाल है, इसके साये में हर शख्स पलना फूलना चाहता है, इसकी शुरुआत सर सैयद अहमद खान साहब ने की थी और कहा था.....
"ऐ हिंदू और मुसलमानों!
तुम हिंदुस्तान के रहने वाले नहीं हो ?
क्या इसी ज़मीन पर तुम दोनो नहीं रहते ?
क्या इसी ज़मीन के खाट पर जलाए नहीं जाते.?
इस पर मरते हो और इसी पर जीते हो याद रखो हिंदू-मुसलमान एक मज़हबी (धार्मिक) लफ्ज़ है वरना हिन्दू-मुसलमान और ईसाई भी जो इसी मुल्क में रहते हैं इस एतबार से एक ही कौम हैं."
-सर सैयद अहमद खान
"ऐ मेरी कौम के लोगों अपने अज़ीज़ और प्यारे बच्चों को गारत न करो, उनकी परवरिश करो उनकी आइन्दः ज़िन्दगी अच्छी तरह बसर होने का सामन करो. मुझको तुम कुछ भी कहो, मेरी बात सुनो या न सुनो, मगर याद रखो की अगर तुम एक कौमी तालीम के तौर पर उनको तालीम न दोगे तो वह आवारा और ख़राब होंगे, तुम उनकी बत्तर हालत को देखोगे और बेचैन होगे, तुम अगर मर जाओगे तो अपने औलाद की ख़राब ज़िन्दगी देख कर तुम्हारी रूहें क़बरों में तड़पेंगी और तुमसे कुछ न हो सकेगा, अभी वक़्त है और तुम सब कुछ कर सकते हो, मगर याद रखो मैं यह पेशीन-गोई (भविष्य वाणी) करता हूँ कि अगर और चंद रोज़ तुम इसी तरह गाफिल रहोगे तो एक ज़माना ऐसा आएगा की तुम चाहोगे की अपने बच्चों को तालीम दो, उनकी तरबियत करो, मगर तुमसे कुछ न हो सकेगा, मुझको कुछ भी कहो, मैं तुमसे खुदा के वास्ते कुछ शिफारिश नहीं चाहता, मैं तुमसे अपनी शफ़ाअत के वास्ते ख़्वास्त-गार न हूँ गा. मैं जो कुछ कहता हूँ तुम्हारे बच्चों की बेहतरी के लिए कहता हूँ, तुम उन्हीं पर रहम करो, और ऐसा कुछ करो कि आइन्दः को पछताना न पड़े...."
-सर सैयद अहमद खान