
13/03/2022
#समीक्षा
बहुत देर तक वह समुद्र के उमड़ने और उतरने को देखा किया और उसकी अगाध रहस्यमयता को....
इस पंक्ति से पुस्तक खत्म होती है.....और शुरू होता है समुद्र में डुबकी लगाने का सिलसिला जिसमें ज्वार से पहले की शिथिलता भी होती है और ज्वार की भीषणता भी...
शेखर एक द्रोही है, द्रोही समाज का द्रोही स्वयं का...क्योंकि शेखर को पता है कि द्रोही होना ही एकमात्र उपाय है...एक मात्र विकल्प है....
जो स्वतंत्रता को जानता है या जानने की उत्सुकता रखता है...उसे द्रोही होना ही पड़ता है।
इस किताब में शेखर कहता है कि....
जिस प्रकार घोंघे के भीतर रहने वाला जीव तभी बाहर निकलता है, जब वह भूखा होता है या जब वह प्रणई खोजता है और तृप्त होकर फिर घोंघे के भीतर घुस जाता है, उसी प्रकार असंतुष्ट और अतृप्त होकर शेखर भी बाहर निकला हुआ था।
विद्रोह के बारे में वाह कहता है कि...
विद्रोह हृदय की एक विशेषता है कि वह अपने विकास में फैलते हुए इसीलिए विचारों को अपनाकर भी विद्रोही ही रह जाता है, क्योंकि वह अपने काल के अग्रणी लोगो ने भी आगे रहता है...
वह आगे कि....
एक आदर्श विद्रोही को उत्पन्न करके ही एक समूची शताब्दी... बल्कि एक समूची संस्कृति सफल हो जाती है...
शेखर में मानो आत्मशोधन की आग है...वह हर वक्त आत्मशोधन ही करता रहता है...
वह कहता है कि...
साहित्य का निर्माण मानों जीवित मृत्यु का आह्वान है। साहित्यकार को निर्माण करके और लाभ भी तो क्या, रचयिता होने का सुख भी नहीं मिलता, क्योंकि काम पूरा होते ही वह देखता है, कि अरे यह तो वह नहीं है जो मैं बनना चाहता था, वह मानों क्रियाशील का नारद ही है, उसे कहीं रुकना ही नहीं है उसे सर्वत्र भड़काना है, उभरना है, जलाना है, और कभी शांत नहीं होना है, कहीं रुकना नहीं है।
शेखर एक जीवनी पूरी किताब ही आत्मशोधन और आत्मअवलोकन पर चलती रहती है। जिसकी कहानी शेखर जो स्वयं अज्ञेय ही हैं के इर्द गिर्द कम भीतर ज्यादा गोते लगती है।
पुस्तक को जरूर पढ़ा जाना चाहिए...
पुस्तक -शेखर एक जीवनी (प्रथम भाग)
लेखक - अज्ञेय
पृष्ठ - २४०
अज्ञेय
Rajkamal Prakashan Samuh