22/10/2024
"आचार संहिता के बहाने जनता के अधिकारों का दमन: कब रुकेगा प्रशासनिक अन्याय?"
जनता द्वारा प्रस्तुत की गई समस्या बहुत गंभीर है और भुक्तभोगियों के अधिकारों से जुड़ी है। आचार संहिता के लागू होने से कई प्रशासनिक गतिविधियों में रुकावट आती है, लेकिन जन्म प्रमाण पत्र जैसे अनिवार्य सेवाओं को रोका जाना अनुचित और अवैध है। इस पर एक आर्टिकल लिखा जा सकता है जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं को प्रमुखता से शामिल किया जा सकता है:
आचार संहिता और जनता की समस्याएं: प्रशासनिक कार्यों में बाधा
1. आचार संहिता क्या है?
आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के समय लागू की जाने वाली दिशा-निर्देशों की एक श्रृंखला है, जिसका उद्देश्य सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखना होता है। लेकिन यह प्रशासनिक सेवाओं में बाधा नहीं बननी चाहिए। यह जनता के बुनियादी अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकती।
2. जनता के आवश्यक कार्यों में रुकावटें
जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, पेंशन, राशन कार्ड, आधार आदि अनिवार्य दस्तावेज़ होते हैं जो नागरिकों के जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं। ऐसे कार्यों में देरी या रुकावट आचार संहिता का उल्लंघन नहीं हो सकता। अगर किसी कार्यालय में इसके कारण रुकावट आई है, तो यह प्रशासनिक कुप्रबंधन का संकेत है।
3. दूर-दराज़ से आए लोगों की निराशा
जब लोग लंबी दूरी तय कर प्रशासनिक कार्यालयों में अपने कार्य करवाने आते हैं और उन्हें बिना किसी सूचना या कारण के लौटा दिया जाता है, तो यह उनके समय, धन और ऊर्जा की बर्बादी है। खासकर महिलाएं, गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इस प्रकार के शोषण के शिकार होते हैं, जिनके पास सीमित संसाधन होते हैं।
4. सूचना के अभाव में जनता के साथ अन्याय
सरकारी कार्यालयों में सूचना पट्ट का न होना या किसी कार्य स्थगन का सार्वजनिक रूप से आदेश न देना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। इससे जनता को अनावश्यक परेशानी झेलनी पड़ती है। यह राज्य और केंद्र सूचना आयोग का भी उल्लंघन है, जिनके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को सही और समय पर जानकारी प्राप्त हो।
5. प्रशासन की जवाबदेही और जनता के अधिकार
किसी भी परिस्थिति में प्रशासन को नागरिकों की सेवा प्रदान करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। आचार संहिता का बहाना बनाकर ऐसी सेवाओं में देरी जनता के शोषण को दर्शाती है। प्रशासनिक कार्यों में तेज़ी लाने की जगह सुस्ती दर्शाता है कि सरकार या प्रशासन जनता की जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं है।
6. राज्य और केंद्र सूचना आयोग की भूमिका
इस मामले को राज्य और केंद्र सूचना आयोग तक ले जाया जाना चाहिए, ताकि प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सके और जनता के साथ हो रहे अन्याय का समाधान हो। सूचना का अधिकार कानून (RTI) के तहत भी ऐसी घटनाओं की जानकारी मांगी जा सकती है और इसे जनहित याचिका (PIL) के रूप में भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
7. आचार संहिता के दौरान सेवाओं में सुधार की मांग
जब आचार संहिता लागू होती है, तो यह उम्मीद की जाती है कि प्रशासन जनता के बुनियादी कामों में तेज़ी लाए, ताकि चुनावी प्रक्रियाओं के साथ-साथ जनहित के कार्य भी सुचारू रूप से चलें। लेकिन यदि इसके उलट होता है, तो यह चुनाव आयोग और प्रशासनिक प्रणाली की जिम्मेदारी है कि वे इसे सही करें।
प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनावों के दौरान भी जनता के अधिकारों का हनन न हो। जन्म प्रमाण पत्र जैसी आवश्यक सेवाओं में रुकावट सिर्फ जनता के प्रति अन्याय ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का भी अपमान है। इसे तत्काल सुधारने की आवश्यकता है, और इस तरह के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए मीडिया, नागरिक समाज और न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।