
16/07/2025
अलवर भरतपुर रियासतों के वारिसों ने कभी मेवात से माफी मांगना भी मुनासिब नहीं समझा
सितंबर 1947 की हवा में अजीब सन्नाटा था। रिमझिम बरसते सावन में अलवर और भरतपुर रियासतों की ज़मीन गर्म नहीं थी, लेकिन गुस्से से भरी हुई थी। देश को आज़ादी मिल चुकी थी, लेकिन इन रियासतों में मेव मुसलमानों के लिए वह आज़ादी मौत की सजा बन चुकी थी। कोई लिखित आदेश नहीं आया, कोई सरकारी घोेषणा नहीं हुई, लेकिन गांव-गांव में यह खबर फैल चुकी थी कि "रियासत मेवो को बाहर निकाल रही है, चाहे जैसे भी हो।"
अलवर रियासत के किशनगढ़ बास में एक पुरानी हवेली थी, जहां 100 से ज़्यादा मेव औरतों और बच्चों को बंद कर दिया गया। बाहर से दरवाजे पर ताले जड़े गए, खिड़कियों पर लकड़ी ठोंकी गई, और फिर आग लगा दी गई। भीतर से रोने-चिल्लाने की आवाज़ें आईं, लेकिन किसी ने ताले नहीं तोड़े। यह घटना ‘The Statesman’ अखबार में 23 सितंबर 1947 को दर्ज हुई, और बाद में जस्टिस सिद्दीकी आयोग (1949) की रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया: “यह पूरी तरह से सुनियोजित हत्याकांड था।”
इसी तरह गोठड़ा में, जो भिवाड़ी के पास है, मस्जिद में सजदे में झुके हुए लोगों को गोलियों से भून दिया गया। कोई चेतावनी नहीं, कोई मुकाबला नहीं — सिर्फ़ सीधे गोली, पीठ में, सर में, छाती में। India League Delegation की रिपोर्ट (1948) में इस बात की पुष्टि की गई कि “यह धर्म-आधारित सफ़ाया था, ना कि कोई दंगा।”
बानसूर और कठूमर क्षेत्र के गांवों में सैंकड़ों लोगों को जबरन निकाला गया। महिलाएं खेतों में भागी, लेकिन कई को वहीं पकड़ लिया गया। कुछ को मंदिरों में ले जाकर जबरन शादी की रस्में निभाईं गईं, और हिंदू नाम दे दिए गए। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी किताब ‘India Divided’ (1948) में लिखा: “यह मानवता के सबसे काले अध्यायों में से एक है, जहां महिलाओं को उनकी पहचान के साथ मारा गया।”
भरतपुर के डीग, नगर और कामां इलाकों में ट्रकों में भरकर मेव मुसलमानों को ले जाया गया। उन्हें कहा गया कि उन्हें पाकिस्तान भेजा जाएगा, लेकिन रास्ते में ही गोली मार दी गई। शवों को पहाड़ियों और झाड़ियों में फेंक दिया गया। कोई गिनती नहीं, कोई रिकॉर्ड नहीं। गांधी जी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘Harijan Weekly’ (28 सितंबर 1947) में लिखा: “अगर ये खबरें सच हैं, तो अलवर और भरतपुर को भारत का हिस्सा बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।”
लेकिन उस नरसंहार की सबसे खौफनाक परत तब खुली, जब अलवर की एक पहाड़ी — आज भी खामोश खड़ी — खून से लथपथ हो गई। अलग-अलग गांवों के पांच हज़ार से ज़्यादा मेव पुरुषों को एकत्र किया गया, और कहा गया कि उन्हें पाकिस्तान भेजा जाएगा। उन्हें एक खुले मैदान में खड़ा किया गया, और अलवर राज्य की सेना ने पूरी व्यवस्था के साथ गोली चलानी शुरू कर दी। एक कतार, फिर दूसरी, फिर तीसरी। शाम ढलते-ढलते उस पहाड़ी की ढलान लहू से लाल हो चुकी थी। किसी को कब्र नहीं मिली। सबको ज़मीन ने सीधा निगल लिया।
Muslim League के दस्तावेज़ (Vol. 5, National Archives) और Indian Relief Committee की रिपोर्ट (October 1947) में इस नरसंहार का संक्षिप्त विवरण आता है, लेकिन कोई सरकारी पुष्टि नहीं। शायद इसलिए कि इस सच्चाई का बोझ खुद सरकार भी नहीं उठा पाई।
और फिर था नोगावा — एक ऐसा गांव जो मुसलमानों की घनी आबादी के लिए जाना जाता था। वहां न केवल लोगों को मारा गया, बल्कि पूरे गांव को आग लगा दी गई। खेत, मस्जिद, घर — कुछ भी नहीं छोड़ा गया। गांव के कुछ लोग आज भी याद करते हैं कि “हमने खिड़कियों से बाहर आग को अंदर आते देखा। हमारी सांसें रुक चुकी थीं, और दौड़ने की कोई दिशा नहीं थी।” नोगावा का नाम आज भी मेवात के सबसे बड़े घावों में दर्ज है, लेकिन किसी इतिहास की किताब में उसका जिक्र तक नहीं।
बच्चू सिंह (भरतपुर) और महाराज तेज सिंह (अलवर) ने कभी माफ़ी नहीं मांगी। दीवान राजेंद्र प्रसाद, जिन्हें गांधी ने कड़ी आलोचना का पात्र बताया, अपने पद से हटा दिए गए लेकिन कभी अदालत में नहीं बुलाए गए। सरदार पटेल को रिपोर्ट भेजी गई, नेहरू को ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन देश उस वक़्त अपने ही बंटवारे से घायल था — किसी और के घाव की मरहम बनना शायद उसके लिए संभव नहीं था।
आज जो लोग बच गए, वे चुप रह गए। उनकी ज़बानों पर डर था, उनकी आंखों में धुआं। कुछ पाकिस्तान चले गए, कुछ दिल्ली के राहत शिविरों में आकर भीख मांगते रह गए। और जो मेव आज मेवात में हैं, वो उस इतिहास को लेकर जीते हैं जिसे किसी स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता।
कहते हैं, इंसान की सबसे बड़ी त्रासदी यह नहीं होती कि उसे मार दिया जाए,
बल्कि यह होती है कि उसके मारे जाने को कोई याद न रखे।
आज के मेवात की युवा पीढ़ी को ये तय करना हे, की 1947 जेसे हालात भविष्य मे फिर से पैदा ना हो, युवा वर्ग को दूसरे समुदाय के युवाओं के साथ प्रेम, भाईचारे वाले संबंध बनाने चाहिए, नफरती ताकत चाहे वो किसी भी धर्म से जुडी हो उनका विरोध करना हे, सांप्रदायिकता जेसी सोच से बिल्कुल दूर रहना हे और संप्रदायिक विचारधारा के लोगो से भी दूरी बनाकर रखनी हे, ताकी मेवात का आपसी प्रेम, भाईचारा, सर्वधर्म स्वभाव बरकरार रहे।
गांधी के मेवात को अहिंसा का मेवात बनाना हम सबका लक्ष्य होना चाहिए।
📚 संदर्भ सूची:
1. Justice S.M. Siddiqui Commission Report, 1949
2. Harijan Weekly, 28 September 1947 (महात्मा गांधी का वक्तव्य)
3. India League Delegation Report to Mewat, 1948
4. The Statesman, 23 September 1947
5. India Divided, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, 1948
6. Muslim League Documents, Volume 5, National Archives
7. The Wire, "Forgotten Genocide: Mew Muslims of Alwar & Bharatpur", 2018
8. Indian Relief Committee Report to Prime Minister Nehru, Oct 1947
9. Eyewitness oral testimonies, documented by field researchers (2010–2018)
Content Courtesy : Shifat Khan