डाउन टू अर्थ

डाउन टू अर्थ पर्यावरण, विकास, स्वास्थ्य और विज्ञान से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित पत्रिका

भारत से बाहर, दुनिया के अनेक देशों ने इन संभावनाओं को साकार करने का सफल प्रयास किया। वर्ष 2018 में पूर्वी अफ्रीका के एक ...
02/10/2025

भारत से बाहर, दुनिया के अनेक देशों ने इन संभावनाओं को साकार करने का सफल प्रयास किया। वर्ष 2018 में पूर्वी अफ्रीका के एक महत्वपूर्ण देश - एथोपिआ में एक सशक्त और अधिकार-सम्पन्न मंत्रालय का गठन हुआ जिसे 'शांति मंत्रालय' नाम दिया गया।

एथोपिआ का यह शांति मंत्रालय, मूलतः शांति, लोकतंत्र और विकास जैसे विषयों पर नये दृष्टिकोण के साथ कार्य करने हेतु बनाया गया। इस महत्वपूर्ण मंत्रालय की कमान, मुफ़ीरियत क़ामिल जैसी मजबूत और दूरदर्शी महिला को दी गई, जिन्होंने जनता और सरकार के मध्य राजनैतिक एकता बनाने की ऐतिहासिक पहल प्रारंभ की।

इस शांति मंत्रालय की पहल से ही एथोपिआ के मेटिकल क्षेत्र में शांति और सुलह के प्रयास हुये और वर्ष 2020 में शांति समझौता हुआ, जिसके पलस्वरूप सूडान के ब्लू नील और एथोपिआ के बेनिशांगुल-गुमुज प्रान्त में 'संयुक्त विकास' का सर्वमान्य प्रारूप तैयार हुआ। दिलचस्प है कि शांति मंत्रालय के माध्यम से इस सफल प्रयास की नेतृत्वकर्ता मुफ़ीरियत क़ामिल - महात्मा गांधी को अपना एक प्रेरणास्रोत मानती हैं। पूरा लेख पढ़ें -
https://hindi.downtoearth.org.in/development/spirit-and-possibility-of-the-ministry-of-peace

अध्ययन से पता चला है कि इंसानी गतिविधियों ने जंगल की आग के मौसम को औसतन 40 दिन बढ़ा दिया है। अब आधे से ज्यादा जंगलों में...
02/10/2025

अध्ययन से पता चला है कि इंसानी गतिविधियों ने जंगल की आग के मौसम को औसतन 40 दिन बढ़ा दिया है। अब आधे से ज्यादा जंगलों में आग उस समय लग रही है जब प्राकृतिक रूप से नहीं लगनी चाहिए थी

जंगलों में धधकती आग के लिए अब सिर्फ प्रकृति ही कसूरवार नहीं, इंसानी गतिविधियों ने तो इसके मौसम को ही बदल डाला है। मत...

रावी, ब्यास और सतलुज में उफनाईं इस भीषण बाढ़ में खड़ी फसलों के साथ सब्जियों के खेत भी बर्बाद हुए। नदी किनारों पर डूब क्ष...
01/10/2025

रावी, ब्यास और सतलुज में उफनाईं इस भीषण बाढ़ में खड़ी फसलों के साथ सब्जियों के खेत भी बर्बाद हुए। नदी किनारों पर डूब क्षेत्र और उसके आसपास मौजूद खेतों में बाढ़ का पानी उतर रहा है और नदियों के किनारे रेत में डूबे हुए सैकड़ों ट्यूबवेल के मुंह दिखाई पड़ रहे हैं। यह ट्यूबवेल इस बात की निशानी भी हैं कि पंजाब में इन्हीं नदियों के किनारे पानी इतना कम रहता था कि लोगों को सिंचाई की जरूरत पड़ती थी।

बाढ़ का पानी भले ही उतर रहा हो लेकिन रबी सीजन के लिए नाउम्मीदी पसर चुकी है।

फिरोजपुर के दिनेके गांव में अजीत सिंह की छह एकड़ का खेत सतलुज में समा गया। वह सतलुज दरिया के तट से दो किलोमीटर दूर धूंसी बांध के पास रहते हैं।

उनके खेतों में आठ फुट की रेत भरी हुई है। एक नजर में हजारो एकड़ खेत जैसे रेगिस्तान का एक छोटा सा हिस्सा दिखाई देता है। इसी रेत में उनके धान और गन्ने के खेत पूरी तरह नष्ट हो गए। वह कहते हैं कि 2023 की बाढ़ के बाद 3.5-4 लाख रुपए खर्च करके खेतों को तैयार किया था। अब यह आफत इतनी बड़ी है कि इस बार कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।

इस रेत में घर और खेत के बीच रास्ता बनाने के लिए उन्होंने अपने पैसे से पांच हजार रुपए खर्च करके जेसीबी लगाया है। वह कहते हैं, कि इतना बालू कोई किसान कैसे हटा पाएगा। अब यहां फिलहाल कुछ नहीं होगा।

बाढ़ के बाद पंजाब की हालत पर ग्राउंड रिपोर्ट की एक और कड़ी - पढ़ें https://hindi.downtoearth.org.in/climate-change/punjab-after-the-floods-sand-dunes-turn-into-fields

शहरों में बढ़ते ओजोन पर एनजीटी में सुनवाई, डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट पर लिया संज्ञान
01/10/2025

शहरों में बढ़ते ओजोन पर एनजीटी में सुनवाई, डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट पर लिया संज्ञान

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 26 सितंबर 2025 को प्रदूषण से जुड़े दो मामलों को एक साथ जोड़ने का निर्देश दिया है। यह म.....

अक्टूबर 2016 से शुरु हुआ डाउन टू अर्थ, हिंदी का सफर अनवरत जारी है। हम आज दसवें साल में प्रवेश कर गए हैं। पर्यावरण व विज्...
01/10/2025

अक्टूबर 2016 से शुरु हुआ डाउन टू अर्थ, हिंदी का सफर अनवरत जारी है। हम आज दसवें साल में प्रवेश कर गए हैं। पर्यावरण व विज्ञान के साथ-साथ विकासात्मक पत्रकारिता में हिंदी पत्रिका की जगह भरने का काम कर रही डाउन टू अर्थ पत्रिका को पाठकों का स्नेह लगातार मिल रहा है। उम्मीद है यह स्नेह यूं ही मिलता रहेगा।
अक्टूबर 2025 का वार्षिकांक जल्द ही आपके हाथ में होगा। इस बार का अंक और भी खास है। अपनी टिप्पणियों से हमारे उत्साह बनाए रखें।

अल नीनो से भारत में बदल रहा मानसून का चरित्र, सूखे में कमी, नम क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश
30/09/2025

अल नीनो से भारत में बदल रहा मानसून का चरित्र, सूखे में कमी, नम क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश

भारत में मानसून पर अल नीनो के असर को अब तक सूखा और बारिश की कमी से जोड़ा जाता रहा है। आमतौर पर माना जाता है कि अल नीनो ....

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2023 में कृषि क्षेत्र में 10,786 आत्मह...
30/09/2025

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2023 में कृषि क्षेत्र में 10,786 आत्महत्याएं हुई हैं। इनमें 4,690 आत्महत्याएं किसानों और 6,096 आत्महत्याएं कृषि श्रमिकों ने की

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया 2023 रिपोर्ट के अ....

अमृतसर शहर से रावी के तट की ओर उत्तरी दिशा में बढ़ने पर करीब 20 किलोमीटर दूरी पार करते ही समूचे खेत पानी में ही नजर आते ...
30/09/2025

अमृतसर शहर से रावी के तट की ओर उत्तरी दिशा में बढ़ने पर करीब 20 किलोमीटर दूरी पार करते ही समूचे खेत पानी में ही नजर आते हैं। त्रासदियों के निशान राह चलते हुए गांव-गांव में फैले हुए हैं। धूंसी बांध टूटने के कारण बाढ़ का पानी 10 से 12 किलोमीटर दूर तक फैला। रावी तट के सबसे नजदीक करीब चार किलोमीटर दूर माछीवाल और घोनेवाला गांव इस त्रासदी के सबसे बड़े शिकार हुए हैं। यहां, प्रमुख तौर पर धान और गन्ना की फसलें पूरी तरह तबाह हो गईं।

घोनेवाला गांव के किसान अतर सिंह के घर में दो-दो फुट गाद भरी है। पूरा घर रहने लायक नहीं रह गया है। उन्होंने कुल 10 एकड़ में इस बार दो एकड़ धान और आठ एकड़ गन्ना लगाया था। अभी उनके खेतों में पानी भरा हुआ है और फसलें सड़ गई हैं।

अतर सिंह बताते हैं यह पहली बार नहीं है। 2023 में भी फसलों की ऐसी ही स्थिति हुई थी, मुआवजे की बात कही गई लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला। वह शक जाहिर करते हैं कि उन्हें इस बार भी मुआवजा मिलेगा। गिरदावरी में छोटे किसानों के फसलों के नुकसान को नहीं लिखा जाता। भ्रष्टाचार के कारण किसानों को घूस देना पड़ता है और असल प्रभावित किसान रह जाता है।

घोनेवाला गांव के ही जोबन सिंह एक बड़ा बयान देते हैं, “हम किसान पूरे 10 साल पीछे चले गए हैं।” वह अपनी आप-बीती साझा करते हैं, मैं चार एकड़ खेत का मालिक हूं। 2019 में पहले बाढ़ आई फिर 2023 में आई। दोनों बार फसलें नष्ट हुई। 2023 की बाढ़ का उन्हें सिर्फ 1500 रुपए मुआवजा मिला।” वह आगे कहते हैं, करीब दो साल उनके खेतों में फसल नहीं आएगी।
और पढ़ें - https://hindi.downtoearth.org.in/climate-change/punjab-floods-aftermath-farmers-pushed-back-by-a-decade

समाजशास्त्री जिग्मंड बोमेन लिखते हैं- ‘प्रोक्रासटिनेशन इज दी प्रोडक्ट ऑफ दी केप्टिलिज्म’; यानि ये आलस, और टाल-मटोल की प्...
30/09/2025

समाजशास्त्री जिग्मंड बोमेन लिखते हैं- ‘प्रोक्रासटिनेशन इज दी प्रोडक्ट ऑफ दी केप्टिलिज्म’; यानि ये आलस, और टाल-मटोल की प्रवृति पूंजीवाद की उपज है I इससे पहले इस स्तर पर आलस का उत्सव नहीं मनाया जाता था I यह पहली बार है जब अनुत्पादकता और निष्क्रियता विधिसम्मत घोषित की गई है- और आराम का दिन निर्धारित किया गया है I

हमारे पूर्वजों के लिए सारे दिन समान थे I सारे दिन आनंद के थे- आराम के थे I सारे दिन उत्पादन के थे I इसलिए आनंद के दिन ‘वीकेंड’ या रविवार या कोई अन्य बंदी का दिन नहीं हुआ करता था I यह तो हमारे अतीत का हिस्सा शायद ही रहा हो I वे खेतों में काम करते हुए भी सामाजिक जीवन का सुख ले रहे होते थेI अर्थ-व्यवस्था उनके जीवन के अन्य आयामों से अलग नहीं थी I

पूरा लेख पढ़ें - https://hindi.downtoearth.org.in/health/the-culture-of-the-weekend-or-the-rational-solution-to-capitalism

वैज्ञानिकों की चेतावनी: ग्लोबल वार्मिंग के बाद आ सकता है हिमयुग!
29/09/2025

वैज्ञानिकों की चेतावनी: ग्लोबल वार्मिंग के बाद आ सकता है हिमयुग!

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड (यूसीआर) के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के प्राकृतिक कार्बन चक्र में एक ...

आंकड़ों की जुबानी
29/09/2025

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