
15/07/2025
रात के करीब 11 बजे की बात है...रमेश को तेज़ी से दवाई चाहिए थी। मेडिकल स्टोर तक जाना था – उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं थी। उसने अपनी पुरानी सेडान उठाई और सीधे उस सड़क की ओर निकल पड़ा, जहां निकलते हाल ही में नया ब्रिज बना था।
ब्रिज के ठीक नीचे की दीवार पर पेड़ की छाया और थोड़ी मुस्कुराहट जैसी खूबसूरती वाली पेंटिंग थी — एक सुरंग खुली हुई जैसे अलकाटरा की सड़क से होकर जा रही हो। रमेश ने सोचा, “वाह! पुल के नीचे से एक छोटी सुरंग है, इससे गली बच जाएगी” — और पिछले गुज़रते ट्रैफ़िक से बचने का यही रास्ता समझ बैठा।
गाड़ी तेज़ की, और “बीप बीप!” करते ही वह उस 'सुरंग' में घुस गया…
लेकिन धड़ाम!! — दरअसल वहाँ कोई सुरंग नहीं थी, बस दीवार पर नकली सुरंग की पेंटिंग थी! रमेश की गाड़ी बीच में जाकर सीधी टकरा गई।
उसके सिर से जैसे बिजली गिर गई हो। गाड़ी की बंपर अलग थी, हेडलाइट फुट गई थी, और रमेश कुछ सेकंड के लिए बीमार महसूस कर रहा था। बाहर निकला, देखा: दीवार पर बनी पेंटिंग अभी भी वैसी ही चमक रही थी, जैसे उसने मज़ाक में सबको मात खाई हो।
रात में वहाँ फोन की लाइट जलकर आई—पास में खड़ी एक बाइक वाला आदमी चिल्लाया, “भाई, ये टू-डी सड़क नहीं, सिर्फ गालिब की दीवार है।”
रमेश ने सिर पकड़ लिया और बस एक ही शब्द निकला — “मम्मी…”