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रिया अभी भी छत पर लेटी थी, हवा में ठंडक थी लेकिन उसके शरीर पर पसीने की परत जम चुकी थी। उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था...
20/09/2025

रिया अभी भी छत पर लेटी थी, हवा में ठंडक थी लेकिन उसके शरीर पर पसीने की परत जम चुकी थी। उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि उसे लगा, छत की ईंटें भी उस आवाज़ को सुन सकती हैं। जतिन चला गया था — लेकिन उसका स्पर्श, उसकी फुसफुसाहट, उसकी नज़दीकियां अब भी हवा में मौजूद थीं, जैसे किसी अदृश्य बंधन की तरह उसे जकड़े हुए।

रिया की आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन एक तेज़ आँधी की तरह सोचों से भरा था। "क्या सच में ये अभी हुआ? क्या जतिन ने... और अगर मम्मी की खाँसी न सुनाई दी होती, तो...?"

उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं, फिर धीरे से उठी और सीढ़ियों से नीचे उतर आई। उसकी चाल लड़खड़ा रही थी। रात के अंधेरे में वह खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही थी — **अपने ही घर में**। वह सीधे अपने कमरे में चली गई और दरवाज़ा बंद कर लिया।

रातभर रिया सो नहीं सकी। हर बार जब वह आंखें बंद करती, तो जतिन की आवाज़, उसका स्पर्श, उसका “ये हमारा राज़ रहेगा” दोहराता हुआ चेहरा सामने आ जाता।

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# # # # **अगली सुबह**

सुबह की रोशनी कमरे में भर चुकी थी, लेकिन रिया को कोई उजाला महसूस नहीं हो रहा था। उसने खुद को बिस्तर पर कंबल में छिपा रखा था। माँ ने बाहर से आवाज़ दी, “रिया, उठ गई बेटा? नाश्ता कर लो।”

रिया ने जवाब नहीं दिया। माँ ने सोचा, शायद वह थकी हुई है, और चली गईं।

कुछ देर बाद रिया ने खुद को खींचते हुए बाथरूम में ले जाकर चेहरा धोया। आईने में उसने खुद को देखा — वही चेहरा था, लेकिन अब आंखों में मासूमियत नहीं, **डर और अविश्वास** बैठ चुका था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके घर का ही एक सदस्य, जिसे वह भाई की तरह मानती थी, इतना **नीच** हो सकता है।

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# # # # **भ्रम और द्वंद्व**

दिन भर रिया सामान्य रहने की कोशिश करती रही, लेकिन जतिन जब भी सामने आता, उसकी साँसे थम जातीं। जतिन ऐसे पेश आ रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मुस्कुराता, बात करता, माँ के सामने ‘अच्छे दामाद’ की तरह व्यवहार करता। यही सबसे ज्यादा डरावना था — कि वह **नॉर्मल एक्टिंग** कर सकता था।

रात को रिया ने खुद से सवाल किया:

* क्या मुझे कुछ कहना चाहिए?
* क्या माँ मेरी बात मानेगी?
* अगर सबने मुझे ही दोषी ठहरा दिया तो?
* अगर जतिन कह दे कि मैं झूठ बोल रही हूँ?

ये सवाल उसके मन में ऐसे घूम रहे थे जैसे कांच के टुकड़े — हर बार काटते, लहूलुहान करते।

लेकिन फिर उसने खुद से पूछा:
**"अगर मैं चुप रही... और वो किसी और के साथ भी ऐसा करे तो?"**

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# # # # **हिम्मत की शुरुआत**

अगले दिन रिया अपनी स्कूल की एक सीनियर मैडम से मिली — जो अब एक काउंसलर थीं। रिया ने उन्हें सब कुछ बताया। काउंसलर ने उसे ध्यान से सुना, बीच में नहीं टोका, न ही कोई सवाल पूछे जो उसे और असहज करे। फिर उन्होंने कहा:

**"तुमने जो किया, वो बहुत हिम्मत वाला कदम है। चुप रहना आसान था, बोलना मुश्किल — और तुमने वो मुश्किल रास्ता चुना।"**

उन्होंने रिया को समझाया कि उसे मानसिक स्वास्थ्य की मदद लेनी चाहिए और यह भी बताया कि ऐसे मामलों में क्या-क्या कानूनी अधिकार होते हैं।

रिया ने पहली बार थोड़ी राहत महसूस की।

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# # # # **परिवार को बताना**

काउंसलर के मार्गदर्शन से, रिया ने एक प्लान बनाया। सबसे पहले उसने माँ को अलग कमरे में बुलाया और उन्हें धीरे-धीरे सब कुछ बताया। माँ को पहले तो यकीन नहीं हुआ। आँखों में आँसू थे, लेकिन झिझक भी थी।

“जतिन? वो तो ऐसा नहीं है…”

रिया ने माँ की आँखों में देखा और कहा:

**“माँ, मैं झूठ क्यों बोलूँगी? क्या आपको मुझसे ज़्यादा उस पर भरोसा है?”**

यह सवाल माँ के दिल में उतर गया। उन्होंने रिया को गले लगा लिया और कहा, “माफ कर देना बेटा... मुझे समझने में देर हो गई।”

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# # # # **जतिन का सामना**

रिया और माँ ने मिलकर यह बात परिवार के बाकी सदस्यों को बताई। शुरू में कुछ लोगों ने सवाल उठाए, लेकिन माँ रिया के साथ खड़ी थीं — यह बहुत बड़ी बात थी।

जतिन जब घर आया, तो सभी के सामने रिया ने उससे पूछा:

**“क्या तुम्हें शर्म नहीं आती? जिस घर ने तुम्हें अपनाया, उसी घर की बेटी को तुमने डर में जीने को मजबूर कर दिया।”**

जतिन हक्का-बक्का रह गया। वह बहाने बनाने लगा, “रिया झूठ बोल रही है... मैं तो बस मज़ाक कर रहा था...”

लेकिन अब कोई उसकी बातों में नहीं आया। परिवार ने साफ कह दिया: **या तो पुलिस केस होगा, या तू खुद ये घर छोड़ दे।**

जतिन ने अगले ही दिन शहर छोड़ दिया। लेकिन रिया जानती थी, कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई थी — यह तो शुरुआत थी।

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# # # # **नई शुरुआत**

रिया ने मनोचिकित्सक से इलाज लेना शुरू किया। उसे PTSD यानी ट्रॉमा के लक्षण थे — बुरे सपने, फ्लैशबैक, घबराहट। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह हर सेशन में जाती, बातें करती, अपने जज़्बातों को समझने की कोशिश करती।

वह अब खुद को **शिकार (victim)** नहीं बल्कि **योद्धा (survivor)** मानने लगी थी।

उसने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लिखना शुरू किया — गुमनाम रूप से। उसने ऐसे लोगों की कहानियाँ पढ़ीं जो उसके जैसे हालात से गुज़रे थे। धीरे-धीरे वह एक सपोर्ट नेटवर्क का हिस्सा बन गई।

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# # # # **अंतिम मोड़**

एक साल बाद, रिया ने अपने अनुभवों पर एक ब्लॉग पोस्ट लिखा:
**"चुप्पी अब नहीं: मेरी कहानी"**
वह गुमनाम थी, लेकिन उसकी आवाज़ सैकड़ों लड़कियों तक पहुँची।

उसी पोस्ट पर एक लड़की ने कमेंट किया:
*"मैं भी उसी दर्द से गुज़र रही थी, लेकिन तुम्हारी कहानी ने मुझे आवाज़ दी। शुक्रिया रिया।"*

रिया ने स्क्रीन को देखा और उसकी आँखें भर आईं।
**उसने जो दर्द सहा, वह अब किसी और के लिए उम्मीद बन चुका था।**

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# # # **सीख और संदेश**

> **रिया की तरह, हर लड़की, हर महिला, जो ऐसे किसी अनुभव से गुज़री है — उसे ये जानने की ज़रूरत है कि वह अकेली नहीं है। उसकी आवाज़ मायने रखती है। चुप्पी, अपराधी को ताकत देती है — लेकिन हिम्मत, उसे बेनकाब करती है।**

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अगर आप चाहें, तो इस कहानी को किसी प्रोजेक्ट, सामाजिक अभियान या रचनात्मक लेखन के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
आपको इस पर आधारित कहानी का पोस्टर, टाइटल डिज़ाइन, या कोई और हिस्सा चाहिए तो बताइए — मैं मदद करूँगा।

आपने बहुत सही फैसला किया कि आपने कहानी को सशक्त रूप में आगे बढ़ाने का विकल्प चुना।👏

20/09/2025

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चमेली और धूल की खुशबू से भरी रात की हवा, दिन की भीषण गर्मी से थोड़ी ही राहत दे रही थी। रिया छत पर चारपाई पर लेटी हुई थी,...
19/09/2025

चमेली और धूल की खुशबू से भरी रात की हवा, दिन की भीषण गर्मी से थोड़ी ही राहत दे रही थी। रिया छत पर चारपाई पर लेटी हुई थी, एक पतली चादर मुश्किल से उसे ढके हुए थी, बीच-बीच में आती हल्की हवा में सुकून ढूँढ़ रही थी। उसकी पलकें भारी लग रही थीं, थकान से बंद हो गई थीं, हर साँस उमस भरी शांति के खिलाफ एक हल्का खिंचाव थी। दूर से एक कुत्ता भौंका, एक शोकपूर्ण आवाज़ विशाल सन्नाटे में दब गई।
उस पर एक साया पड़ा, चाँद का नहीं, बल्कि किसी नज़दीकी, भारी चीज़ का। उसकी रीढ़ में एक चुभन दौड़ गई, उसकी नींद के गहरे कोनों में एक अवचेतन खतरे की घंटी बज उठी। एक हाथ, गर्म और कठोर, उसकी पीठ के निचले हिस्से पर आ गया, एक पंख-सा हल्का सा स्पर्श जो उसके कुर्ते के पतले कपड़े के माध्यम से अभी भी महसूस हो रहा था। उसकी साँस अटक गई। वह जम गई, उसकी हर मांसपेशी अकड़ गई, और भी गहरी नींद का नाटक कर रही थी। हाथ रुका, फिर धीरे-धीरे, जानबूझकर ऊपर की ओर सरकने लगा, उसकी कमर के वक्र को छूता हुआ, उंगलियाँ उसकी सलवार के इलास्टिक को छू रही थीं।
उसका खून बर्फ में बदल गया। वह उस स्पर्श को जानती थी। वह उसकी खुरदरी त्वचा, उसके सस्ते तंबाकू और पसीने की जानी-पहचानी गंध को जानती थी। जतिन। उसका देवर। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन पलकों के नीचे, वे अंधेरे को समझने, उस खामोश भयावहता को समझने की कोशिश में तेज़ी से आगे बढ़ रही थीं। हाथ आगे बढ़ा, उसकी पसलियों पर एक साहसिक यात्रा, उसके वक्ष के उभार के पास। उसका दिल उसकी पसलियों से टकरा रहा था, मानो पिंजरे में फँसा एक उन्मत्त पक्षी। *हिलना मत, हिलना मत,* उसका मन चीखा।
हाथ रुक गया। एक लंबा, पीड़ादायक क्षण खिंच गया, जिसमें केवल झींगुरों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। फिर, एक धीमी आह, लगभग अगोचर, उसके मुँह से निकली। हाथ पीछे हटा, धीरे-धीरे, जानबूझकर, उसकी बगल से नीचे, उसके कूल्हे के पास से होते हुए, अंततः हट गया। रिया ने अपनी साँस रोक ली, प्रतीक्षा करती रही, पीछे हटते कदमों की आहट का, परछाई के गायब होने की प्रार्थना करती रही।
इसके बजाय, कपड़े की एक हल्की सरसराहट। उसकी चारपाई के किनारे पर एक बोझ सा आ गया। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसने उसकी उपस्थिति महसूस की, उससे निकलती एक घुटन भरी गर्मी। हवा अनकहे इरादे से घनी हो गई। एक धीमी, कर्कश और मुश्किल से सुनाई देने वाली फुसफुसाहट उसके कान से टकराई।
"तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो, रिया।"
उसका पूरा शरीर तनावग्रस्त हो गया, एक खामोश चीख उसके गले में अटक गई। वह अपने गाल पर उसकी साँसों को महसूस कर सकती थी, गर्म और भारी। उसके पेट में दहशत की एक गांठ कस गई।
"कितना शांत," उसने जारी रखा, उसकी आवाज़ धीमी, अब और करीब आ गई थी। "एक फ़रिश्ते की तरह सो रहा है।"
एक सिहरन ने उसके शरीर को झकझोर दिया, लेकिन उसने उससे संघर्ष किया, उसे एक सूक्ष्म बदलाव में, नींद की एक स्वाभाविक हलचल में बदल दिया। *नाटक करते रहो, नाटक करते रहो।* उसकी उँगलियों ने, आश्चर्यजनक रूप से कोमल, उसके चेहरे से बालों की एक बिखरी हुई लट को हटा दिया। उस भाव की अंतरंगता, जो उसके संदर्भ से विकृत थी, ने उसके अंदर मतली की एक नई लहर दौड़ा दी।
"किसी को जानने की ज़रूरत नहीं है," उसने बड़बड़ाया, उसके शब्दों में एक ठंडी सी मिठास थी। "बस हमारे बीच एक छोटा सा राज़ है।"
जैसे ही वह झुका, उसने महसूस किया कि खाट और नीचे धँस गई। उसकी बासी साँसों की एक हल्की सी गंध, जिसमें कुछ कसैला और मीठा मिला हुआ था, उसके नथुनों में भर गई। उसका मन तेज़ी से दौड़ने लगा, भागने की, कोई योजना बनाने की, किसी भी चीज़ की, एक बेचैनी। उसका शरीर पीछे हटने, उसे दूर धकेलने के लिए चीख़ रहा था, लेकिन इस डर ने उसे जकड़ रखा था कि इससे क्या भड़केगा।

फिर, नीचे से एक हल्की सी सरसराहट। एक खाँसी। उसकी माँ का जाना-पहचाना गला साफ़ करने का स्वर। जतिन अकड़ गया। खाट से बोझ उतर गया। रिया ने तेज़, दबी हुई क़दमों की आहट, लकड़ी की सीढ़ियों की हल्की चरमराहट सुनी। वह जा चुका था।

वह वहीं लेटी रही, आँखें बंद, अपने ही दिल की तेज़ धड़कन सुन रही थी। चमेली की खुशबू अब फीकी लग रही थी, रात की हवा दमघोंटू। धीरे-धीरे, सावधानी से, उसने अपनी आँखें खोलीं। चाँदनी, अब बिना किसी रुकावट के, छत पर लंबी, भयावह परछाइयाँ डाल रही थी। वह अकेली थी। लेकिन उसके हाथ का काल्पनिक स्पर्श, उसके शब्दों की गूँज, उसकी हड्डियों में एक ठंडा खौफ़ भर गया। रात, जो कभी एक शरणस्थली थी, अब एक पिंजरा बन गई थी। उसने पतली चादर को अपने चारों ओर और कस लिया, लेकिन उससे न तो कोई गर्मी मिली, न ही उस ठंड से कोई सुरक्षा जो उसके भीतर गहराई तक समा गई थी। उसकी नींद टूट गई, उसकी जगह एक कच्चे, कुतरते डर ने ले ली। रात का सन्नाटा अब मानो किसी शिकारी की मौजूदगी का इंतज़ार कर रहा हो।

गर्मी की रात की उमस भरी गर्मी सीमा को छत पर भी जकड़े हुए थी। एक पतली सूती चादर तपती हवा में ज़्यादा आराम नहीं दे रही थी,...
18/09/2025

गर्मी की रात की उमस भरी गर्मी सीमा को छत पर भी जकड़े हुए थी। एक पतली सूती चादर तपती हवा में ज़्यादा आराम नहीं दे रही थी, लेकिन खुला आसमान ताज़ी हवा की साँस का वादा कर रहा था, जो नीचे के घुटन भरे कमरों ने नहीं दी थी। वह आधी नींद में बह रही थी, दूर शहर लोरी गुनगुना रहा था। एक साया उसके ऊपर पड़ा, चाँद का नहीं, बल्कि कुछ घना, पास का। एक हाथ, खुरदुरा और कठोर, उसकी पीठ पर टिक गया, एक चौंकाने वाला दखल। उसकी साँसें अटक गईं, एक खामोश आह उसके गले में फँस गई। वह बिल्कुल निश्चल पड़ी रही, हर नस चीख रही थी, एक हताश तीव्रता के साथ नींद का नाटक कर रही थी। हाथ वहीं रहा, एक भारी बोझ, फिर धीरे-धीरे, सोच-समझकर ऊपर की ओर खिसकने लगा, उसकी कमर के मोड़ को छूते हुए।
उसका दिल उसकी पसलियों से टकरा रहा था, मानो पिंजरे में फँसा एक उन्मत्त पक्षी। उसने अपनी साँसों की लय पर ध्यान केंद्रित किया, उथली, एक समान, प्रार्थना करते हुए कि यह उस गहरी नींद की नकल करे जिसका वह दिखावा कर रही थी। हाथ रुक गया, उसकी स्थिरता की परीक्षा लेते हुए। कोई कंपन नहीं, कोई झिझक नहीं। उसकी स्पष्ट बेहोशी से उत्साहित होकर, वह फिर से हिला, इस बार ज़्यादा साहस के साथ, उसके कुर्ते के किनारे के नीचे धीरे-धीरे। एक अनैच्छिक सिहरन, उसे धोखा देने की धमकी दे रही थी। उसने उसे जकड़ लिया, उसकी मांसपेशियाँ सख्त हो गईं। खुरदरी उंगलियाँ उसके पेट की नंगी त्वचा से टकराईं, जिससे उसकी नसों में बर्फ़ का एक झटका सा दौड़ गया। कपड़े की एक हल्की सरसराहट, फिर एक धीमी घुरघुराहट, लगभग एक म्याऊँ, उसके ऊपर मंडराते साये से निकली।
"आराम से सो रही हो, है ना, छोटी चिड़िया?"
एक खतरनाक परिचितता से भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई। यह उसका देवर, राजेश था। उसका पेट मरोड़ उठा। उसने बासी शराब और सस्ते तंबाकू की गंध पहचान ली, एक ऐसी गंध जो हमेशा मुसीबत से पहले आती है। हाथ, अब ज़्यादा साहस के साथ, आगे बढ़ा, उसके वक्ष के कोमल उभार तक पहुँच गया। उसका शरीर विरोध में चीख उठा, लेकिन उसने खुद को कैद कर रखा था, आतंक से गढ़ी हुई एक मूर्ति। उसने अपने गाल पर उसकी साँसों की गर्माहट महसूस की, सड़ांध भरी और बंद।
"कितना मुलायम," वह बुदबुदाया, उसकी उंगलियाँ पतले कपड़े में से उसके शरीर को मसल रही थीं। "पके फल की तरह।"
उसके ऊपर मतली की एक लहर दौड़ गई। उसने उसकी आँखों की कल्पना की, गहरी और शिकारी, उसकी कमज़ोरी का लुत्फ़ उठा रही थीं। उसकी पकड़ मज़बूत होती गई, कपड़े को खींचती गई, जिससे उसकी त्वचा ठंडी रात की हवा और उसके जलते हुए स्पर्श के संपर्क में और ज़्यादा आ गई। एक सिसकी निकलने की आशंका थी, लेकिन उसने उसे निगल लिया, अपने होंठ तब तक काटती रही जब तक उसे खून का स्वाद नहीं आ गया। उसे स्थिर रहना था, दिखावा करना था। अगर वह हिली, अगर वह चीखी, तो क्या? इस विचार ने उसे स्तब्ध कर दिया।
वह हिल गया, उसका वज़न उसके शरीर पर दबाव डाल रहा था। उसकी पतलून का कपड़ा उसकी नंगी टाँगों से टकराया, खुरदुरा और दमघोंटू। हवा में एक धातु की गंध भर गई, डर की गंध, उसकी अपनी। उसका दूसरा हाथ उसकी जांघ पर चला गया, एक चौंकाने वाली ताकत से उसके पैरों को अलग कर रहा था। जैसे ही उसने उसके पजामे के डोरी से छेड़छाड़ की, एक तीखा दर्द उसके अंदर दौड़ गया। गांठ एक हल्की *थप* के साथ खुल गई, एक ऐसी आवाज़ जो खामोश रात में गोली की आवाज़ जैसी गूँजी।
"अब आराम से," उसने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ इच्छा से भारी हो गई थी। "बस थोड़ा सा स्वाद।"
उसकी उंगलियाँ, जो पहले तो आश्चर्यजनक रूप से कोमल थीं, उसकी भीतरी जांघ की रेखा को छू रही थीं, जिससे उसकी त्वचा पर रोंगटे खड़े हो गए। फिर वे ऊपर की ओर बढ़ीं, ढीले कपड़े को एक तरफ धकेलते हुए, उसकी टांगों के बीच गर्माहट ढूँढ़ने लगीं। उसके पेट में एक घिनौना डर ​​पनप उठा। उसने अपने लेबिया पर उसके अंगूठे का स्पर्श महसूस किया, एक ऐसा गहरा उल्लंघन जिसने उसकी साँसें रोक लीं। उसकी मांसपेशियाँ सिकुड़ गईं, खुद को बचाने की एक हताश, निरर्थक कोशिश।
"अम्म, पहले से ही बहुत गीली है," उसने घुरघुराहट के साथ कहा, उसके शरीर की भयभीत प्रतिक्रिया को गलत समझते हुए। "तुम यही चाहती हो, है ना? तुम जानती हो कि तुम चाहती हो।"
उसकी उंगलियाँ ज़ोर से दब गईं, उसकी तहों को अलग करते हुए, और गहराई में उतर गईं। उसके मुँह से एक आह निकली, एक घुटी हुई, अनैच्छिक आवाज़। वह रुक गया, उसका शरीर तनाव में था, सुन रहा था। उसका दिल रुक गया। क्या उसने खुद को उजागर कर दिया था? क्या उसका नाटक विफल हो गया था?
"वह क्या था?" उसने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ तीखी और संदेह से भरी हुई थी।
उसने अपनी साँस रोक ली, अपने शरीर को आराम करने के लिए मजबूर किया, मानो वह नींद में ही हिली हो। पसीने की एक बूँद उसकी कनपटी से टपकी, उसकी त्वचा को गुदगुदा रही थी। वह पल लंबा, पीड़ादायक, अंतहीन था। वह इंतज़ार कर रहा था, उसकी साँसें उखड़ी हुई थीं, उसकी उंगलियाँ अभी भी उसके भीतर गड़ी हुई थीं। उसने उसकी हथेली से निकलती गर्मी, अवांछित दबाव, विचित्र आक्रमण को महसूस किया।
फिर, धीरे-धीरे, लगभग अगोचर रूप से, उसकी पकड़ ढीली पड़ गई। ऐसा लगा जैसे उसने उसकी शांति, उसकी बनावटी नींद को स्वीकार कर लिया हो। उसके मुँह से एक आह निकली, राहत की आवाज़ और नए दृढ़ संकल्प की। उसने अपनी उंगलियाँ हिलाना शुरू कर दिया, एक धीमा, जानबूझकर किया गया दुलार जिससे उसके पेट में मरोड़ उठने लगी। उसका शरीर अजनबी, अलग-थलग महसूस हो रहा था, मानो यह भयावह घटना किसी और के साथ हो रही हो। उसने ऊपर तारों पर, दूर शहर की रोशनियों पर, उसके स्पर्श की वास्तविकता से बचने के लिए कुछ भी करने पर ध्यान केंद्रित किया।
वह उसके और करीब झुका, उसके होंठ उसके कान को छू रहे थे। "चिंता मत करो, छोटी चिड़िया। मैं तुम्हें अच्छा महसूस कराऊँगा।"
उसके शब्द, जो उसे आश्वस्त करने के लिए थे, उसके डर को और गहरा कर रहे थे। उसने उसके लिंग के सिरे को महसूस किया, कठोर और आग्रहपूर्ण, उसके प्रवेश द्वार पर दबाव डालते हुए, एक गर्म, धड़कती उपस्थिति। उसकी आँखें, सिकुड़ी हुई, अनछुए आँसुओं से जल रही थीं। उसने महसूस किया कि वह लड़खड़ा रहा है, खुद को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा है। दबाव बढ़ता गया, एक सुस्त दर्द उभरता गया

उसने मेरे गीले बालों को हटाया और धीरे से मेरे गाल को छुआ। मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। एक पल के लिए, जैसे समय थम गया हो। मु...
17/09/2025

उसने मेरे गीले बालों को हटाया और धीरे से मेरे गाल को छुआ। मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। एक पल के लिए, जैसे समय थम गया हो। मुझे कुछ समझ नहीं आया, बस उसके स्पर्श में एक ऐसी ताजगी और नर्मीयत थी, जो मेरे भीतर कहीं गहरे तक महसूस हो रही थी। वह मुझे देखकर मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में कोई ऐसा रहस्य था, जिसे मैं समझ नहीं पा रही थी।

"तुम ठीक हो?" उसकी आवाज़ में एक गहरी चिंता थी।

मैंने सिर हिलाया, लेकिन मेरे मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाए। उसकी नज़रों में कोई ऐसा अपनापन था, जिसे मैंने कभी महसूस नहीं किया था। क्या यह वही पल था, जो मैं हमेशा से ख्वाबों में देखती थी? क्या ये वह प्यार था, जिसे मैं अपने दिल में वर्षों से संजोए बैठी थी?

वह थोड़ा करीब आया, और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जैसे वह मेरे भीतर की बेचैनी को समझ रहा हो। "तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है," उसने धीरे से कहा।

उसकी आवाज़ में कोई ऐसा ठहराव था, जो मुझे शांति दे रहा था। मैं बमुश्किल अपने हाथों को काँपने से रोक पा रही थी। वह अब मेरे सामने खड़ा था, और हम दोनों के बीच कुछ था, जो शब्दों से कहीं ज्यादा गहरा था। उसके पास खड़े होने से मुझे एक अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था, जैसे सारी दुनिया का बोझ सिर्फ उसे देखकर हल्का हो गया हो।

उसने फिर धीरे से मेरे हाथ को पकड़ा और मुझे अपने पास खींच लिया। "मैं तुमसे बहुत कुछ कहना चाहता हूँ," उसने धीरे से कहा। उसके शब्द मेरे दिल में गूंज रहे थे, लेकिन मेरा मस्तिष्क अभी भी इस पल को समझने की कोशिश कर रहा था।

"क्या तुम मुझसे डरती हो?" उसकी आँखों में एक सवाल था।

मैंने उसकी ओर देखा, और मेरे भीतर की सारी बेचैनी जैसे किसी एक पल में खत्म हो गई। "नहीं," मैंने कहा, "मुझे तुमसे डर नहीं लगता।"

वह मेरी बातों पर मुस्कुराया और फिर मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा ले आया। "तुमसे कुछ कहना है, क्या तुम सुनोगी?"

मैंने सिर हिलाया, और वह फिर मेरे करीब आया। उसकी साँसों की गरमी मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी। "मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहता हूँ," उसने कहा, और उसके शब्द मेरे दिल की गहराइयों तक उतर गए।

उसके शब्दों ने मेरे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार किया। यह वह पल था, जिसका मैंने हमेशा ख्वाब देखा था। मुझे लगा जैसे मेरे सारे डर और संकोच कहीं खो गए थे। अब मैं सिर्फ उस रिश्ते में डूबना चाहती थी, जो वह मुझे देने की कोशिश कर रहा था।

उसकी बाहों में मुझे एक ऐसी सुरक्षा महसूस हुई, जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता। मैं जानती थी कि यह सिर्फ एक शुरुआत है, लेकिन मेरे भीतर की खुशी ने मुझे यकीन दिलाया कि अब मैं तैयार हूँ इस नए सफर के लिए।

good night friends
12/09/2025

good night friends

कुछ बोलना चाहते हो
10/09/2025

कुछ बोलना चाहते हो

अगर आपको मौका दिया जाए तो आप मेरा पपीता खाओगे या तरभुज
07/05/2025

अगर आपको मौका दिया जाए तो आप मेरा पपीता खाओगे या तरभुज

कोई तो होगा जो मुझसे शादी करेगा
06/05/2025

कोई तो होगा जो मुझसे शादी करेगा

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