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नोएडा स्थित "आनंद निकेतन वृद्धाश्रम" से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया है। वृ...
27/06/2025

नोएडा स्थित "आनंद निकेतन वृद्धाश्रम" से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया है। वृद्धाश्रम में रेस्क्यू किए गए बुजुर्गों को तहखानों में रस्सियों से बांधकर बंद कमरों में कैद करके रखा गया था। पुरुष बुजुर्गों को बिना कपड़ों के या गंदे, आधे-अधूरे वस्त्रों में पाया गया, जबकि महिलाओं की हालत भी अत्यंत दयनीय थी। उनके कपड़े मल-मूत्र से सने हुए थे और कई को बेहद अस्वास्थ्यकर स्थिति में पाया गया।

यह आश्रम उन बुजुर्गों का ठिकाना बना था जिन्हें उनके अपने ही ‘सभ्य और संपन्न’ बच्चे छोड़ गए थे, इस उम्मीद में कि उन्हें यहां सम्मानपूर्वक जीवन मिलेगा। लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट निकली। चौंकाने वाली बात यह है कि यहां एक बुजुर्ग को रखने के लिए प्रति व्यक्ति 2.5 लाख रुपये डोनेशन लिया जाता है, और साथ ही खाने-पीने और रहने के लिए 6,000 रुपये मासिक शुल्क भी वसूला जाता है।

यह मामला अब प्रशासन और सोशल मीडिया दोनों पर गंभीर चर्चा का विषय बन चुका है। सवाल उठ रहे हैं—क्या ये आधुनिक वृद्धाश्रम हैं या सजा के नए ठिकाने?

बेतिया राज का इतिहास : महज चार सौ वर्ष पुराना है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. लेकिन बेतिया राज के संबंध में जो प्रमाण म...
27/06/2025

बेतिया राज का इतिहास : महज चार सौ वर्ष पुराना है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. लेकिन बेतिया राज के संबंध में जो प्रमाण मौजूद है या जो अतीत में मिले हैं, उसके मुताबिक बेतिया राज के शासकों ने काफी उथल-पुथल व परेशानियों के बावजूद भी बेतिया राजघराने के कार्यकाल को काफी स्वर्णिम व गौरवशाली बनाये रखा था. लेकिन वर्तमान में उस अतीत को सहेजने का प्रयास किसी स्तर पर नहीं किया जाना बेतिया राज के गौरवशाली इतिहास को अपमानित करता नजर आ रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार बेतिया पूर्व में वेत्रवती (बेंत) का वन हुआ करता था. जिसे बेतवनिया के नाम से भी जाना जाता रहा है. इसके बाद मुगलों के दरबारी गंगेश्वर देव के पूर्वजों ने सन् 1627 में सुगांव के ठाकुर वंशीय राजा को पराजित कर और आसपास के दर्जनों गांवों को जीत कर अपना अधिपत्य जमाया. इस वंश के पहले उपाधिप्राप्त राजा • उग्रसेन ने अपनी राजधानी बेंत के जंगलों को कटवाकर बेतिया में स्थापित की. राजा उग्रसेन ने सन् 1627 से 1629 तक राज किया. इसके बाद बेतिया राज के दूसरे राजा के रूप में उनके पुत्र गज सिंह ने 1629 से 1694 तक, तीसरे राजा दिलीप सिंह ने 1694 से 1715 तक राज किया. बेतिया राज के चौथे राजा ध्रुव सिंह 1715 से 1762 तक अपना अधिपत्य जमाये रहे. लेकिन राजा ध्रुव सिंह को कोई संतान नहीं होने की वजह से उस जमाने में बेतिया राज के उत्तराधिकारी की खोज होने लगी. फिर ध्रुव सिंह ने यूपी के अपने एक रिश्तेदार के पुत्र युगल किशोर सिंह को अपना उत्तराधिकारी के नियुक्त किया, जो बेतिया राज में पांचवें राजा के रूप में स्थापित हुए और इनका कार्यकाल 1762 से 1783 तक रहा. इनके पुत्र वीर किशोर सिंह ने 1783 से 1816 तक राज किया. बेतिया राज के सातवें राजा के रूप में 1816 में आनंद किशोर सिंह ने बेतिया राज की गद्दी संभाली और इनकी कार्य शैली व प्रजा प्रिय होने के कारण ही इस्ट इंडिया कंपनी के गर्वनर सर विलियम वेन्टिंग ने 30 सितंबर 1830 को तत्कालीन राजा आनंद किशोर सिंह को बेतिया महाराज की उपाधि से नवाजा. इनका कार्यकाल 1832 तक रहा. उसी समय इनकी महारानी चंद्रावती के नाम पर बेतिया के लिए व्यवसायिक हब का मार्ग मानी जाने वाली नदी का नाम भी चंद्रावत पड़ा. बेतिया राज में महाराजा नवल किशोर सिंह ने 1832 से 1855 व महाराजा • राजेंद्र किशोर सिंह ने 1855 से 1884 तक राज किया. राजेंद्र किशोर के 16 पुत्र व 2 पुत्रियां हुई. लेकिन सभी पुत्रों में अधिक योग्यता रखने के कारण महाराजा राजेंद्र किशोर ने अपनी गद्दी 1884 में हरेंद्र किशोर सिंह को सौंप दी. हरेंद्र किशोर बेतिया के अंतिम महाराज रूप में उभरकर सामने आये, जिन्होंने 1893 तक बेतिया राज की कमान संभाली. इतने कम समय में वे काफी लोकप्रिय और प्रजापालक के रूप में ख्यातिप्राप्त महाराज बने रहे. संतान की चाह में उन्होंने दो शादियां की. लेकिन संतान नहीं हुआ. 1893 में उनके देहावसान के बाद इनकी पहली महारानी शिवरतन कुंअर ने राजकाज का काम देखना शुरू कर दिया और 1896 तक बेतिया राज की सिंहासन पर • आसीन रही. इसके बाद बेतिया राज के अंतिम वारिस के रूप में अंतिम महाराज की दूसरी महारानी जानकी कुंअर 1897 तक बेतिया राज की कमान संभाली और बात में अंग्रेजी हुकूमत से आजिज हो उन्होंने अपने पूरे
राज्य की संपत्ति को शापित कर काशी में प्रवास ले लिया. उपरोक्त प्रमाण गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले गोपाल सिंह नेपाली के सहोदर भाई बम बहादुर सिंह नेपाली मगन की पुस्तक चंपारण, चंपारण गजेटियर, पर्यावरण शिक्षक देवीलाल की पुस्तक चंपारण की नदियां सहित चंपारण के भ्रमण के उपरान्त मिली है. वर्तमान परिवेश में उस इतिहास को सहेजनें का प्रयास किसी स्तर पर नहीं किया जा रहा. आलम यह है कि यहां की समस्त धरोहरें एक-एक कर धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं और यही स्थिति रही तो शायद यहां का अतीत और वर्तमान अब इतिहास के पन्नों में ही देखने को मिल सकता है.

27/06/2025

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