23/04/2025
अनंतनाग के पहलगाम में आतंकियों ने मासूम लोगों को शहीद कर दिया. लेकिन अभी भी आतंकवादियों को आतंकवादी कहने में कुछ लोगों को शर्म आ रही है. आतंकवाद को जाति और मज़हब के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है. अगर एक जगह पर धर्म और नाम पूछ कर गोली मारने की घटना आतंकी वारदात है. तो फिर यही परिभाषा सार्वभौमिक होनी चाहिए. कपड़े देखकर पहनाने वाले भी आतंकी है. ट्रेन में नाम पूछकर गोली मारने वाला वर्दीधारी भी आतंकवादी है. मणिपुर से लेकर उड़ीसा तक धर्म के आधार पर हत्या और बलात्कार करने वाले सब के सब आतंकी माने जाएंगे. धर्म के आधार कठुआ में रेप करने वाले भी आतंकवादी है. कब्र खोद कर महिलाओं से रेप की वकालत करने वाले भी आतंकवादी है. धर्म के आधार पर बिल्किस और उसके परिवार के बलात्कारी और कातिल भी आतंकवादी हैं. बलात्कारी और हत्यारे को संस्कारी कहने वाले भी आतंकवादी हैं. और हर वो शख्स और उसका संगठन आतंकवादी और आतंकी संगठन है जो धर्म देखकर हिंसा की अपील और समर्थन करता है.
देश की सुप्रीम कोर्ट ने हेच स्पीच के खिलाफ एक्शन लेने के निर्देश दिए हैं. लेकिन हेट सिर्फ एक कानूनी टर्म है. हेट स्पीच में हत्या का आह्वान, रेप की अपील और जबरन धर्मांतरण की धमकी देने की घटनाएं भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. धर्म देखकर शरबत का बहिष्कार करने वाले भी आतंकवादी माने जाएंगे. इसके लिए किन्तु, परन्तु, इफ, बट जैसी शब्दावाली शुद्ध रुप से नाटकबाज़ी मानी जाएगी. मणिपुर अब शांत नहीं हुआ. बतौर पत्रकार हमें मालूम है कि टीवी और अखबारों में सूत्रों के हवाले से साप्रादायिक एजेंडा कैसे फैलाया जाता है. लेकिन धर्म के नाम पर हत्या, बलात्कार, घर तोड़ने की घटनाओं को संस्कारी नहीं कहा जा सकता. मीठा मीठा गप-गप और कड़वा कड़वा थू-थू नहीं होना चाहिए. सूत्रों के हवाले नफरत परोसने वाले न्यूज़ चैनल भी संस्कारी नहीं माने जाएंगे. अनंतनाग की आतंकी घटना को आतंकी ही कहा जाएगा. आतंकियों ने हिन्दू और मुसलमान दोनों की हत्या की है. फिर आप आतंकियों को मुसलमान कह कर सांप्रदायिक आतंकवाद को मान्यता दी जा रही है. फिर आपकी ज़बान क्यों लरस तब क्यों लरस जाती है जब धर्म देखकर निशाना बनाया जाता है. फिर दिल खोल कर कहिए कि, मोबलिंचिंग करने वाले भी आतंकवादी है. गौहत्या का आरोप लगाकर अखलाक, पहलू खान, जुनैद के कातिल भी आतंकवादी है.
धर्म के आधार पर घर तोड़ने वाले और उनके घर के बाहर हथियार लहराने वाले भी आतंकवादी हैं. किसी भी निर्दोष की हत्या करने वाले को आतंकवादी ही कहा जाएगा. आतंकवादी को आतंकवादी कहने में ज़बान को क्यों काठ मार जाता है. हम इस तरह की घटनाओं को आतंकवादी घटना कह सकते हैं. ऐसी घटनाओं को आतंकवादी कृत्य कहने से अगर किसी मनो रोगी को दिक्कत है. तो फौरन की किसी डॉक्टर से मिलकर दिमाग का इलाज कराइए. ये नहीं हो सकता कि उर्दू अरबी फारसी वाला शख्स अगर किसी घटना को अंजाम देता है तो उसे आतंकवादी कहा जाएगा. और अगर हिन्दी, संस्कृत और इंग्लिश नाम वाला शख्स उसी घटना को अंजाम देता है तो संस्कारी माना जाएगा. सांप्रादायिक आतंकवादियों की यही दिक्कत है कि वो हर घटना को धर्म के आधार पर परिभाषित करता है. लेकिन उस परिभाषा में खुद की गिनती नहीं करता.
इसी धरती के एक भू-भाग पर पहचान और धर्म के आधार लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. पर पूरी दुनियां को संस्कार सिखाने वाले केवल गाल बजा रहे और चुपके से उनके हथियारों की खेप भी पहुंचा रहे हैं. भाई चारे का संदेश देने वाले बड़े बड़े संस्कारी एक चूं तक नहीं बोलते, उल्टा आतंकवादी देशों की तारीफ और हिमायत करते हैं. इसलिए पहले आप अपने लिए आतंकवाद की एक नैतिक परिभाषा तय कर लीजिए. चीखने चिल्लाने और धर्म को खतर में बताने की ज़रुरत नहीं है. पुलावामा आतंकी घटना आज भी सवालों के घेरे में है. देश सुरक्षित हाथों में जैसे डॉयलॉग सिर्फ चुनावी रैलियों में अच्छे लगते हैं. क्योंकि यहां तो एक लिस्ट गिनाई जा सकती है. उसी लिस्ट में अनंतनाग की घटना भी शामिल हो गई है. खुफिया इनपुट था जैसे शब्द अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बनाया गया है.