29/11/2025
*अमेरिका और इजराइल ने बनवाई थी "मोदी सरकार" केतकर:*
कुमार केतकर कहा 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी हार को मुख्यतः विदेशी खुफिया एजेंसियों (CIA और मोसाद) की साजिश और डेटा-आधारित ऑपरेशन का नतीजा बताया, न कि भारतीय मतदाताओं के स्वाभाविक जनादेश का परिणाम।
केतकर ने क्या कहा?
• केतकर ने मुंबई में संविधान दिवस पर कांग्रेस के एक कार्यक्रम में कहा कि 2004 में कांग्रेस के 145 और 2009 में 206 सीटें आने के बाद स्वाभाविक रुझान यह था कि 2014 में कांग्रेस 200–250 सीटें ला सकती थी, लेकिन सीटें अचानक 44 पर आ जाना सामान्य जनादेश नहीं बल्कि सुनियोजित हस्तक्षेप का नतीजा है।
• उनका आरोप है कि अमेरिकी CIA और इज़राइल की मोसाद ने भारत के हर राज्य और हर लोकसभा क्षेत्र का अत्यंत बारीक डेटा तैयार कर, चुनावी माहौल और परिणामों को इस तरह प्रभावित किया कि कांग्रेस दोबारा स्थिर सरकार न बना सके।
• वे यह भी संकेत देते हैं कि इन एजेंसियों का लक्ष्य भारत में ऐसी सरकार लाना था जो उनकी रणनीतिक और विदेश-नीति प्राथमिकताओं के अनुकूल हो, जबकि स्थिर UPA सरकार उनके हस्तक्षेप की क्षमता सीमित कर सकती थी।
राजनीतिक व तथ्यात्मक मूल्यांकन
• यह दावा “कंस्पिरेसी थ्योरी” के दायरे में आता है, क्योंकि अब तक किसी स्वतंत्र जांच, आधिकारिक दस्तावेज या विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय संस्था ने 2014 के चुनावों में CIA/मोसाद की सीधी साजिश या ऑपरेशन को प्रमाणित नहीं किया है।
• 2014 में कांग्रेस की हार के लिए देश के भीतर के कई ठोस कारक—जैसे भ्रष्टाचार के आरोप, नीतिगत जड़ता की धारणा, नेतृत्व की छवि, और नरेंद्र मोदी का आक्रामक चुनाव अभियान व संगठनात्मक तैयारी-लगातार विश्लेषणों में प्रमुख कारणों के रूप में सामने आते रहे हैं, जिनका केतकर के बयान में अपेक्षाकृत गौण या न के बराबर उल्लेख है!
बयान के राजनीतिक निहितार्थ
• इस तरह के बयान कांग्रेस समर्थक वर्ग की “आत्म-संतोषी” व्याख्या को मजबूत कर सकते हैं, जिसमें हार की जिम्मेदारी संगठनात्मक कमजोरी या नेतृत्व की गलतियों की बजाय बाहरी ताकतों पर डाली जाती है; इससे आत्ममंथन की प्रक्रिया कमजोर पड़ने का खतरा रहता है।
• बीजेपी और उसके समर्थकों ने इसे तुरंत “बहानेबाज़ी” व “मतदाताओं का अपमान” बताकर यह तर्क दिया है कि ऐसे आरोप आम जनता की परिपक्व राजनीतिक समझ को नकारते हैं और चुनावी लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर अविश्वास पैदा करते हैं।
विश्लेषण: तर्क की कमजोरियाँ
• केतकर का मुख्य आधार “ट्रेंड” (145→206→संभावित 250) पर है, जबकि चुनावी राजनीति में रुझान अक्सर अचानक टूटते हैं; केवल पिछले दो चुनावों की वृद्धि से तीसरे चुनाव में निश्चित वृद्धि निष्कर्षित करना सांख्यिकीय और राजनीतिक, दोनों दृष्टि से सरलीकरण है।
• वे विदेशी एजेंसियों द्वारा डेटा जुटाने और माहौल बनाने की बात तो करते हैं, पर न तो कोई ठोस दस्तावेज़ी प्रमाण, न विश्वसनीय गवाह, और न ही स्वतंत्र अनुसंधान का स्पष्ट संदर्भ देते हैं; इसलिए उनके तर्क को “राजनीतिक भाषण” या “अविश्वसनीय दावा” के रूप में ही देखा जा रहा है, न कि स्थापित तथ्य के रूप में।
निष्कर्ष: बयान का समग्र मूल्यांकन
• केतकर का बयान राजनीतिक विमर्श में “विदेशी साजिश” वाले नैरेटिव को पुनर्जीवित करता है, लेकिन उपलब्ध सार्वजनिक साक्ष्य के आधार पर इसे तथ्यात्मक विश्लेषण की बजाय अधिकतर राजनीतिक आरोप और अनुमानों का मिश्रण कहा जा सकता है।
• लोकतांत्रिक दृष्टि से यह रुख समस्या पैदा कर सकता है, क्योंकि इससे मतदाताओं की स्वायत्तता, भारतीय चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और घरेलू राजनीतिक जवाबदेही—तीनों पर अनिवार्य रूप से संदेह खड़ा होता है, जबकि किसी भी गंभीर आरोप के लिए अभी तक प्रमाणन का न्यूनतम स्तर भी सामने नहीं आया है।