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विभाजन विभीषिका स्मृति दिवसअखण्ड भारत संकल्प दिवस 14 अगस्तआज का दिन हमें उस भयानक त्रासदी की याद दिलाता है, जब 1947 में ...
14/08/2025

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
अखण्ड भारत संकल्प दिवस
14 अगस्त

आज का दिन हमें उस भयानक त्रासदी की याद दिलाता है, जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ।
लेकिन यह सिर्फ ज़मीन का नहीं, बल्कि हिन्दू समाज के स्वाभिमान, संस्कृति और अस्तित्व का भी विभाजन था।

करोड़ों हिन्दू परिवारों को अपने ही घरों से बेघर किया गया।
हजारों बहनों-माताओं की इज्ज़त लूटी गई, मंदिर तोड़े गए, संतों को मारा गया।

और यह सब धर्म के नाम पर हुआ – “क्योंकि वे हिन्दू थे।”
कहीं कोई मानवाधिकार संगठन नहीं बोला,
कोई अंतरराष्ट्रीय आंसू नहीं बहा –
क्योंकि पीड़ित हिन्दू था, और हिन्दू आज भी सबसे चुप्प है।

लेकिन अब समय आ गया है, जब हम इतिहास को सिर्फ याद न करें,
बल्कि उससे सीख लेकर भविष्य की दिशा तय करें।

🙏 आज हम न केवल उन पीड़ितों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं,
बल्कि संकल्प लेते हैं कि –
"एक दिन भारत फिर अखण्ड होगा।"
क्योंकि अखण्ड भारत केवल भूगोल नहीं,
बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और सनातन धर्म का प्रतीक है।

ना भूलेंगे विभाजन की पीड़ा
ना छोड़ेंगे अखण्डता का सपना

#विभाजनविभीषिका_स्मृति_दिवस
#अखण्डभारत_संकल्पदिवस


13/08/2025

जलालुद्दीन पर चुप्पी, प्रेमानंद महाराज पर हल्ला बोल?
नए टूलकिट गैंग का है ये पूरा झोल

12/08/2025

वाराणसी में कांग्रेस की ओर से कथित वोट चोरी के आरोप पर अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती जी ने कहा - कांग्रेस का यह आरोप सनातन हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्माचार्यों को बदनाम करने की साजिश है। इस तरह के सुनियोजित प्रयास के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगी अखिल भारतीय संत समिति।।

गुरुगुल के छात्रों, ब्रह्मचारी या संत परंपरा के लोगों के आधार कार्ड और वोटर आई कार्ड में पिता की जगह उनके गुरु का नाम होता है। यह सनातन परंपरा है। इसको जाने बिना कांग्रेस अनाप शनाप आरोप लगाकर सनातन परंपरा और हिन्दू धर्माचार्यों को बदनाम करने की कोशिश कर रही है।

इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग पर पाकिस्तान की ओछी राजनीति! पाकिस्तान सरकार ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग की गैस, ...
12/08/2025

इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग पर पाकिस्तान की ओछी राजनीति!

पाकिस्तान सरकार ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग की गैस, पानी और अख़बार जैसी मूलभूत सुविधाएँ जानबूझकर बंद कर दी हैं। यह कदम राजनयिक परंपराओं और Vienna Convention का खुला उल्लंघन है।

📌 भारतीय राजनयिकों और उनके परिवारों को इन सुविधाओं से वंचित करना सिर्फ़ कूटनीतिक नियमों का ही नहीं, बल्कि मानवता का भी अपमान है।

भारत द्वारा आतंकीयो को मारे जाने से बौखलाया पाकिस्तान आतंकियों के मरने का बदला ले रहा है।

देश का किसान जटिल परिस्थितियों में देश व सरकार के साथ खडा रहेगा - भारतीय किसान संघ
10/08/2025

देश का किसान जटिल परिस्थितियों में देश व सरकार के साथ खडा रहेगा

- भारतीय किसान संघ

09/08/2025

*भारत के संदर्भ में अप्रासंगिक है 09 अगस्त विश्व मूलनिवासी दिवस*

नेटिव अमेरिकन यानि अमेरिका के मूल निवासियों में किसी एक नायक का भी नाम उभरकर नहीं आता। हम उनकी याद में एक दिन मनाने को आतुर हैं, जबकि हमारे वनवासी नायकों की लंबी सूची में से हम कोई एक दिन चुन सकते हैं, जब हम उनके शौर्य, साहस और वीरता को प्रणाम करते हुए अपने गौरवशाली इतिहास में झांक सकते हैं। लेकिन हमें इतना दिग्भ्रमित कर दिया गया है कि हम सही-गलत को न तो समझते हैं, ना ही समझना चाहते हैं।

कोलंबस दिवस के विरोध की परिणिति है विश्व मूलनिवासी दिवस

इसकी नींव में है नेटिव अमेरिका के नरसंहार की यादें।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 दिसंबर 1994 को अपने प्रस्ताव में निर्णय लिया कि हर साल 9 अगस्त को “इंटरनेशनल डे ऑफ द वर्ल्ड इंडिजिनयस” मनाया जाएगा। हिंदी में इसे अनुवादित करें तो यह 'विश्व मूलनिवासी/स्वदेशी दिवस' कहलाएगा। लेकिन भारत में इसे अति उत्साह से 'विश्व आदिवासी दिवस' के नाम से पुकारा जाता है।

इसे ऐसे प्रदर्शित किया गया है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा दुनिया भर के आदिवासियों के हितों को लेकर गंभीर है। इसका परिणाम यह हुआ कि विश्व के दूसरे देशों समेत भारत में भी इसे जोर-शोर से मनाया जाने लगा। लेकिन दुनिया से इस बात को छुपाया गया कि वास्तव में विश्व आदिवासी दिवस की नींव कोलंबस दिवस के विरोध में अमेरिका में रखी गई थी। वही कोलंबस, जो 1492 में अमेरिका पहुंचा था और उसने अमेरिका के मूल निवासियों का सफाया कर दिया था।

वास्तव में इस दिन का विश्व के दूसरे देशों से कोई संबंध नहीं है, भारत से तो कतई नहीं, क्योंकि यह दिन जनजातीय या वनवासी लोगों के लिए नहीं, बल्कि केवल अमेरिका के मूलनिवासियों की याद में तय किया गया है।


अमेरिका में हर वर्ष 12 अक्टूबर को कोलंबस दिवस मनाया जाता है। वहां के मूलनिवासियों का मानना था कि कोलंबस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधि था, जिसने नैटिव अमेरिकन्स का नरसंहार किया। इसी कोलंबस दिवस के विरोध में आदिवासी दिवस मनाने की मांग उठी।

हमें यह समझना होगा कि अंग्रेजी में नेटिव (native) या इंडिजिनस (indigenous) शब्द मूलनिवासियों के लिए प्रयुक्त होता है। लेकिन अंग्रेजी के ट्राइबल (tribal) शब्द का अर्थ मूलनिवासी नहीं होता, बल्कि ट्राइबल शब्द का अर्थ होता है जनजातीय।

अमेरिका के संदर्भ में मूलनिवासी शब्द शायद ठीक हो सकता है, क्योंकि जिस अमेरिका में इसकी शुरुआत हुई, वहां की स्थिति दो फाड़ है। कहने का तात्पर्य यह कि कुछ आबादी मूलनिवासियों की है, जो कोलंबस के आने के बाद अपने अस्तित्व को बचाने के संकट से ही घिर गई थी। बाकी आबादी उपनिवेशिक काल के दौरान बाहर से अमेरिका पहुंचे लोगों की है।

मूलनिवासी शब्द का अमेरिका के लिए महत्व हो सकता है, लेकिन भारत में मूलनिवासी शब्द का अस्तित्व ही नहीं है। भारत के इतिहास में नेटिव अमेरिका जैसा कोई संघर्ष ही नहीं हुआ। फिर भी भारत में मूलनिवासी शब्द का उपयोग करना केवल एक षड्यंत्र मात्र है।



हम भारतीय भी कोलंबस के द्वारा किए गए जनसंहार को विश्व की निकृष्टतम घटना मानते हैं और अमेरिका के मूलनिवासियों के लिए संवेदना भी व्यक्त करते हैं। लेकिन भारत में जिस तरह से मूलनिवासी शब्द और विश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने का प्रचलन शुरू हो गया है, उसका कोई तारतम्य नहीं है।


भारत में लगभग 705 जनजातियां हैं। इन जनजातियों का अपना गौरवशाली व समृद्ध इतिहास है। भारत में वर्ण व्यवस्था के तहत सभी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया है। भारत में कई शूरवीर आदिवासी राजा व रानी हुए, जिनमें रानी दुर्गावती, भील राजा डूंगर बंरडा, शंकरशाह, कुँवर रघुनाथ शाह, रानी गाइदिन्ल्यू, राजा भभूत सिंह, राजा मेदिनी राय जैसे नामों की लंबी सूची है। भारत बिरसा मुंडा की भूमि है।

यहां टंट्या भील जैसे शूरवीरों ने जन्म लिया। यहां शहीद गुंडाधुर की गाथाएं आज भी गाई जाती हैं। तिलका मांझी, रानी सुबरन कुंवर जैसे वनवासी वीरों की बातें आज भी प्रासंगिक मानी जाती हैं। हमने ब्रिटिश राज से संघर्ष किया, लेकिन अमेरिका में घटी घटनाओं से हमारा कोई साम्य नहीं बैठता है।
“नेटिव अमेरिकन यानि अमेरिका के मूल निवासियों में किसी एक नायक का भी नाम उभरकर नहीं आता। हम उनकी याद में एक दिन मनाने को आतुर हैं, जबकि हमारे वनवासी नायकों की लंबी सूची में से हम कोई एक दिन चुन सकते हैं, जब हम उनके शौर्य, साहस और वीरता को प्रणाम करते हुए अपने गौरवशाली इतिहास में झांक सकते हैं। लेकिन हमें इतना दिग्भ्रमित कर दिया गया है कि हम सही-गलत को न तो समझते हैं, ना ही समझना चाहते हैं।”

भारत में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक गोरे, काले, सांवले, और गेहूंवे रंग के लोग रहते हैं। एक ही परिवार में कोई काला है तो कोई गोरा, एक ही समाज में कोई काला है तो कोई गोरा। सभी वर्गों में सभी तरह के रंग के लोग आपको मिल जाएंगे।

इस तरह हम भारतीयों के नाक-नक्ष की बात करें तो वह चीन और अफ्रीका के लोगों से बिल्कुल भिन्न है। यदि रंग की बात करें तो भारतीयों का रंग यूरोप या अफ्रीका के लोगों से पूर्णत: भिन्न है। अमेरिकी और यूरोप के लोगों का गोरा रंग और भारत के लोगों के गोरे रंग में भी बहुत फर्क है। इसी तरह अफ्रीका के काले और भारत के काले रंग में भी बहुत फर्क है।

क्या है विश्व आदिवासी दिवस की पृष्ठभूमि

अमेरिका में पिछले कुछ दशकों में कोलंबस दिवस के तहत होने वाली परेड में विरोध प्रदर्शन होने लगा। कोलंबस को कक्षा के पाठ्यक्रम से हटाने की मांग तेजी से उठी थी। वर्ष 1991 की शुरुआत में अमेरिका के दर्जनों शहरों और कई राज्यों ने अमेरिका के मूलनिवासी लोगों के दिवस को मनाना शुरू किया। यह एक ऐसा अवकाश था, जो कोलंबस के बजाय मूल अमेरिकियों के इतिहास की याद में मनाया जाता है।

1980 के दशक में कई अमेरिकियों ने कोलंबस दिवस का विरोध करना शुरू कर दिया। अमेरिका में अक्टूबर के दूसरे सोमवार को, जिस दिन कोलंबस दिवस मनाया जाता था, उसी दिन मूलनिवासी दिवस मनाने की शुरुआत की गई। कोलंबस दिवस को मूल निवासियों के सम्मान में एक दिन से बदलने का पहला मौका 1990 में साउथ डकोटा में तय हुआ था।

1992 में, कैलिफोर्निया में मूल अमेरिकियों ने अमेरिका में कोलंबस के उतरने की 500वीं वर्षगांठ मनाने की योजना के विरोध में नैटिव अमेरिकन लोगों की याद में एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। लेकिन इसे वैश्विक बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 अगस्त को इसे पूरी दुनिया में मनाने का प्रस्ताव पारित किया।

गुलामों का व्यापार करने वाला क्रूर कोलंबस

वर्ष 1492 में कोलंबस स्पेन से भारत के लिए रवाना हुआ था, लेकिन वह कभी भारत पहुंचा ही नहीं। जब कोलंबस क्यूबा, हिस्पानियोला और कैरिबियन के अन्य द्वीपों पर पहुंचा तो उसने क्रूर और नरसंहारकारी नीतियों की शुरुआत की, जिसने नेटिव अमेरिकियों की आबादी को तेजी से खत्म कर दिया। वह गुलामों का व्यापारी भी था।

कोलंबस ने स्पेन के राजा से बहुत से गुलामों को वापस भेजने का अपना वादा पूरा किया, लेकिन ज़्यादातर गुलाम ट्रांसअटलांटिक यात्रा के दौरान या स्पेन पहुँचने के तुरंत बाद ही मारे गए। इसलिए उसने अपनी ऊर्जा सोना इकट्ठा करने में लगा दी।

हैती में, उसने आदेश दिया कि 14 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोग हर तीन महीने में सोने का एक कोटा जमा करें। कोलंबस ने जितनी मात्रा में सोने की कल्पना की थी, उतनी मात्रा में वहां सोना मौजूद नहीं था। जो स्थानीय लोग कोटा पूरा नहीं करते थे, उनके हाथ काट दिए जाते थे और उन्हें खून से लथपथ कर मार दिया जाता था।

जब लोगों ने बड़ी संख्या में प्रतिरोध करना शुरू किया, तो स्पेनियों ने अपने हथियारों से उन्हें आसानी से हरा दिया। कैदियों को फांसी पर लटका दिया गया या जलाकर मार दिया गया। बाकी लोगों को गुलामों के रूप में इस्तेमाल करने के लिए इकट्ठा किया गया। उनसे इतनी बेरहमी से काम करवाया गया कि आठ महीने के भीतर एक तिहाई लोग थकावट से मर गए।

हताशा में, कई लोगों ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया और कुछ माताओं ने हताशा में अपने बच्चों को भी मार डाला। जो भाग गए उन्हें खोजकर मार दिया गया। कोलंबस स्पेन के राजा को खुश करने के लिए इतना उत्सुक था कि उसने नेटिव अमेरिकियों पर क्रूर अत्याचार किए। 1515 तक, हिस्पानियोला में ही, युद्ध और गुलामी ने 200,000 लोगों को मार डाला था।

09/08/2025

हम तीन ट्रिलियन इकोनॉमी बन जाए तो दुनियां के लिए कोई आश्चर्य नहीं है, कई देश बने है, हम भी बन जाएंगे। लेकिन हमें आध्यात्मिक भी बनना है जो कोई और नहीं बन सकता।

- डॉ मोहन भागवत जी, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

9 अगस्त/पुण्यतिथि दिल्ली के राजा वसंतराव ओकसंघ की प्रारम्भिक प्रचारकों में एक श्री वसंतराव कृष्णराव ओक का जन्म 13 मई, 19...
09/08/2025

9 अगस्त/पुण्यतिथि
दिल्ली के राजा वसंतराव ओक
संघ की प्रारम्भिक प्रचारकों में एक श्री वसंतराव कृष्णराव ओक का जन्म 13 मई, 1914 को नाचणगांव (वर्धा, महाराष्ट्र) में हुआ था। जब वे पढ़ने के लिए अपने बड़े भाई मनोहरराव के साथ नागपुर आये, तो बाबासाहब आप्टे द्वारा संचालित टाइपिंग केन्द्र के माध्यम से दोनों का सम्पर्क संघ से हुआ।
डा. हेडगेवार के सुझाव पर वसंतराव 1936 में कक्षा 12 उत्तीर्ण कर शाखा खोलने के लिए दिल्ली आ गये। उनके रहने की व्यवस्था 'हिन्दू महासभा भवन' में थी। यहां रहकर वसंतराव ने एम.ए. तक की पढ़ाई की और दिल्ली प्रांत में शाखाओं का जाल भी फैलाया। आज का दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, अलवर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश उस समय दिल्ली प्रांत में ही था। वसंतराव के परिश्रम से इस क्षेत्र में शाखाओं का अच्छा तंत्र खड़ा हो गया। वसंतराव के संपर्क का दायरा बहुत विशाल था। 1942 के आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही। गांधी जी, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, पुरुषोत्तमदास टंडन से लेकर हिन्दू महासभा, सनातन धर्म और आर्य समाज के बड़े नेताओं से उनके मधुर संबंध थे। कांग्रेस वालों को भी उन पर इतना विश्वास था कि मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मीकि मंदिर में होने वाली गांधी जी की प्रार्थना सभा की सुरक्षा स्वयंसेवकों को ही दी गयी थी।
10 सितम्बर, 1947 को कांग्रेस के सब बड़े नेताओं की हत्याकर लालकिले पर पाकिस्तानी झंडा फहराने का षड्यन्त्र मुस्लिम लीग ने किया था; पर दिल्ली के स्वयंसेवकों ने इसकी सूचना शासन तक पहुंचा दी, जिससे यह षड्यन्त्र विफल हो गया। आगे चलकर वसंतराव ने श्री गुरुजी और गांधी जी की भेंट कराई। उन दिनों वसंतराव का दिल्ली में इतना प्रभाव था कि उनके मित्र उन्हें ‘दिल्लीश्वर’ कहने लगे। संघ पर लगे पहले प्रतिबंध की समाप्ति के बाद उनके कुछ विषयों पर संघ के वरिष्ठ लोगों से मतभेद हो गये। अतः गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर वे दिल्ली में ही व्यापार करने लगे; पर संघ से उनका प्रेम सदा बना रहा और उन्हें जो भी कार्य दिया गया, उसे उन्होंने पूर्ण मनोयोग से किया।गोवा आंदोलन में एक जत्थे का नेतृत्व करते हुए उनके पैर में एक गोली लगी, जो जीवन भर वहीं फंसी रही। 1857 के स्वाधीनता संग्राम की शताब्दी पर दिल्ली के विशाल कार्यक्रम में वीर सावरकर का प्रेरक उद्बोधन हुआ। उन्होंने वसंतराव के संगठन कौशल की प्रशंसा कर उन्हें ‘वसंतराय’ की उपाधि दी। 1946 में उन्होंने ‘भारत प्रकाशन’ की स्थापना कर उसके द्वारा ‘भारतवर्ष’ और ‘आर्गनाइजर’ समाचार पत्र प्रारम्भ किये। विभाजन के बाद पंजाब से आये विस्थापितों की सहायतार्थ ‘हिन्दू सहायता समिति’ का गठन किया था। वसंतराव के भाषण काफी प्रभावी होते थे। मराठीभाषी होते हुए भी उन्हें हिन्दी से बहुत प्रेम था। 1955 में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ उन्हीं की प्रेरणा से प्रारम्भ हुआ। इसके लिए शास्त्री जी और टंडन जी ने भी सहयोग दिया। इसकी ओर से प्रतिवर्ष लालकिले पर एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन कराया जाता था, जो अब शासकीय कार्यक्रम बन गया है। 1957 में उन्होंने दिल्ली में चांदनी चौक से लोकसभा का चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा; पर कुछ मतों के अंतर से वे हार गये। 1966 के गोरक्षा आंदोलन में भी उन्होंने काफी सक्रियता से भाग लिया। बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद कांग्रेस और साम्यवादियों ने संघ के विरुद्ध बहुत बावेला मचाया। ऐसे में वसंतराव ने दिल्ली के प्रतिष्ठित लोगों से मिलकर उनके सामने पूरा विषय ठीक से रखा। इससे वातावरण बदल गया।
अप्रतिम संगठन क्षमता के धनी और साहस की प्रतिमूर्ति वसंतराव का नौ अगस्त, 2000 को 86 वर्ष की आयु में देहांत हुआ।

स्वावलंबन अभियान से जुड़े स्वदेशी अपनाये ।
08/08/2025

स्वावलंबन अभियान से जुड़े स्वदेशी अपनाये ।

खाचरौद - लव-जिहाद की बढ़ती घटनाओं के विरोध में सकल हिन्दू समाज का प्रदर्शन व महापंचायतचापानेर गाँव की एक बीस वर्षीय हिन्...
07/08/2025

खाचरौद - लव-जिहाद की बढ़ती घटनाओं के विरोध में सकल हिन्दू समाज का प्रदर्शन व महापंचायत

चापानेर गाँव की एक बीस वर्षीय हिन्दू युवती लापता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि डोडिया गाँव का दो बच्चों का पिता 24 वर्षीय युवक भी घर से गायब है। आरोपी युवक ही युवती को बहला-फुसलाकर ले गया है।
घटना से आक्रोशित सकल हिन्दू समाज ने थाने में एकत्र होकर तत्काल कार्रवाई की मांग की। साथ ही महापंचायत में समाज प्रमुखों और साधु-संतों ने लव-जिहाद के विरोध में आक्रोश व्यक्त किया।

यूपी: 15 साल से शामली के मंदिर में मजहब छिपाकर पुजारी बना हुआ था इमामुद्दीन, पुलिस ने किया गिरफ्तार• थानाभवन क्षेत्र के ...
04/08/2025

यूपी: 15 साल से शामली के मंदिर में मजहब छिपाकर पुजारी बना हुआ था इमामुद्दीन, पुलिस ने किया गिरफ्तार

• थानाभवन क्षेत्र के गाँव मंटी हसनपुर के शनि मंदिर का मामला
• पुलिस ने आरोपी के पास से उसका असली और फर्जी आधार कार्ड भी किया बरामद
• आरोपी प. बंगाल के अलीपुरद्वार जिले के कालचीनी थाना क्षेत्र का रहने वाला है

पुलिस अब आरोपी इमामुद्दीन के विरुद्ध आवश्यक कानूनी कार्रवाई कर रही है

#शामली
#इमामुद्दीन
#यूपीपुलिस





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