The Pratirodh द प्रतिरोध

The Pratirodh द प्रतिरोध प्रतिरोध जन की बात करने वाले संगठित युवाओं का खुला रचनात्मक मंच है।
हम करते हैं, सत्ता से सवाल।

31/07/2024

दिन रात दोपहर आ जाइए
आदर्श गाँव की विसंगति देखने
शहर आ जाइए

30/07/2024

मुखर्जी नगर में चल रहा व्यवस्था की मिलीभगत के विरुद्ध आंदोलन

11/06/2024

कितने नाम रोज़ लिखुंगा
कितनी बार बोलूंगा
इतनी सहूलियत, इतनी फुर्सत
कहाँ है मुझे?

कहना तो चीख के चाहता हूँ कि

बंद करो बलात्कार
शर्म करो
पर
इस देश की सीमा के भीतर
होते हैं
प्रतिदिन 86 बलात्कार
कितनी बार बोलूंगा!
महिलाओं पर अत्याचार के
दर्ज होते हैं 49 अपराध
प्रति घंटे की दर से
गौरतलब है पचास नहीं
गजब बात है

यह तो आम बात है
अखबार में बलात्कार की खबरें
रोज इसलिए भी छपती हैं
कि लोग अखबार पढें
शर्मा जी
और वर्मा जी भी
जो अपनी पत्नी को
दोस्त बनाना चाहते थे
दोनों मानते हैं
यह सही बात है

यह सही बात है
कि दोनों
उन खबरों को पढते वक्त
जानना चाहते हैं भर कि
कहाँ! कैस, कैसे! क्या हुआ!
पन्ना पलटते है
किसी के आते ही कि
वे घुस के पढ़ रहे थे
मसालेदार खबर
यह गलत बात है

यह गलत बात है
कि बलात्कार नहीं हुआ है
हुआ है,
पर एंगल नहीं है
न ही क्षेत्रीय, न ही राष्ट्रीय ना अंतरराष्ट्रीय
अपने जात, धर्म की स्त्री भी नहीं है
इसलिए बलात्कार में दम नहीं है
ये बोरिंग खबर है

बल्कि अगर कोई सुनाने आएगा
बलात्कार की खबर
तो गिना दूंगा
पिछले बलात्कार
हत्याओं में से हत्याएं घटा दूंगा
और नहीं सुनुंगा तबतक
जबतक किसी खबर में
किसी बलात्कार में
विरोधियों की जमानत
जब्त न हो जाए
तबतक उम्मीद करना
बकवास बात है

मुझे कोई खास
मतलब भी नहीं है
-रमेशवा

04/12/2023

हरिशंकर परसाई (1924-1990)
एक प्रासंगिक लेख

अंधविश्वास से वैज्ञानिक दृष्टि!

मेरे एक मित्र को पीलिया हो गया था। वे अस्पताल में भर्ती थे। प्रभावशाली आदमी थे। सब डॉक्टर लगे थे। एक दिन मैं देखने गया तो पाया कि वे पानी की थाली में हथेलियां रखे हैं, और एक पण्डित मंत्र पढ़ रहा है। कार्यक्रम खत्म होने पर मैंने कहा-आप तो दो-दो इलाज करवा रहे हैं। एक एलोपेथी को और दूसरा यह जो पता नहीं कौन-सी ‘पैथी’ है। उन्होंने कहा- दोनों ही कराना ठीक है। परम्परा से यह चला आ रहा है। एलोपेथी तो अभी की है। मैंने कहा-परम्परा इसलिए पड़ी कि तब कोई वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति थी नहीं। थी भी, तो लोग उससे डरते थे। विश्वास नहीं करते थे। पर अब पूरी वैज्ञानिक जांच के बाद आपका इलाज हो रहा है। मगर आप अवैज्ञानिक परम्परा का पालन भी करते जाते हैं। आपका विश्वास है किसमें? आप किस चिकित्सा से अच्छे होंगे?

मेरे उनके आत्मीय और खुले सम्बन्ध थे। वे बुद्धिमान आदमी थे। इसलिए इस तरह कह गया। वे सोचते रहे। फिर शान्ति से बोले-विश्वास तो मेरा कह लीजिए या अंधविश्वास- सब कुछ जानते हुए भी मेरे मन में यह खटका, शुरू से बना था कि कुछ यह भी करा लेना चाहिए।

मैं अस्पताल में भर्ती था। मेरे कमरे में दो बिस्तर थे। एक पर मैं पड़ा था और दूसरे पर एक युवा इंजीनियर। हम लोगों में अच्छी बातचीत होती। मरीज के पिता भी सम्पन्न और शिक्षित थे। एक दिन उस मरीज के पिता एक पुरोहित को ले आए। साथ में पूजा का सामान भी था। वहां छोटा सा अनुष्ठान होने लगा। मरीज के पिता मेरी तरफ देखकर कुछ झेंपे और बोले-दवा के साथ दुआ भी होनी चाहिए।

अनुष्ठान खत्म होने पर इन सज्जन में पुरोहित के हाथ में नोट दिए। उसने नोट गिने और उत्तेजित होकर कहा- यह क्या है? यह सत्तर रुपये हैं। आपने सवा सौ रुपये देने के लिए कहा था। इधर से ये तैश में बोले-कतई नहीं। आपने कहा था कि इच्छा अनुसार दे दीजिए। पुरोहित ने कहा- झूठ मत बोलिए। मैंने साफ कहा था कि सवा सौ लूंगा। दोनों काफी देर तक गर्म बहस करते रहे। आखिर 80 रुपये लेकर पुरोहित मुनमुनाते हुए चला गया।

मैंने उस सज्जन से कहा- पुरोहित ने पहले मंगलकामना की थी। पर रुपये कम मिलने से वह आपके अमंगल की कामना करता चला गया। दोनों में से उसकी कौन सी बात असर करेगी? वह सोचने लगे।

उनके लड़के ने बिस्तर पर से कहा- मैंने बाबू जी को बहुत समझाया कि यह मत कराइए। सज्जन ने भिन्न भाव से कहा- अरे बेटे, मैं क्या समझता नहीं हूं। हर मन में कहीं बात है कि यह भी करा लेना चाहिए।

जिसे वैज्ञानिक स्वभाव और वैज्ञानिक दृष्टि कहते हैं, उसके विकसित होने में यही एक अटक है। अविज्ञान के युग में जो विश्वास, संस्कार और मन की प्रयासहीन क्रियाएं पड़ गई हैं, वे विज्ञान के ऊपर जाकर तत्काल प्रतिक्रिया कर देती हैं।

विज्ञान के प्रोफेसर हैं। प्रयोगशाला में पूरी तरह वैज्ञानिक हैं। कोई अंध-विश्वास नहीं मानते। मगर प्रयोगशाला के बाहर सफलता के लिए साईं बाबा की भभूत, शनि-शांति, मंत्र-जाप कराते हैं। वैज्ञानिक तरीके से वे कार्य-कारण सम्बन्ध जानते हैं। वे पदार्थों के गुण जानते हैं। वे पदार्थों में परस्पर रासायनिक क्रिया जानते हैं। किसी वैज्ञानिक तरीके से वे भभूत और तरक्की का सम्बन्ध नहीं जोड़ सकते। वे खुद भी यह बता देंगे। पर फिर कहेंगे- भाई, संस्कारों से मन में यह बात पड़ी है कि इससे भी कुछ होता है। इस तरह विज्ञानी अविज्ञानी से लड़ता है और जीतता भी है। पर अंधविश्वास के मोर्चे पर विज्ञानी अविज्ञान से हार जाता है।

चमत्कार होते हैं। दैवीय भी और प्राकृतिक भी। यह आदमी शुरू से मानता आ रहा है। इनमें मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। दो साल पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान के पत्तों पर सांप के आकार बन गये थे। बात फैली कि नाग देवता पत्तों पर प्रकट हो गए हैं। वे सेवा मांगते हैं। नहीं करोगे तो काट लेंगे। तमाम लोग नाग से डरने लगे। उन पत्तों से डरने लगे। पत्तों के पास दूध के कटोरे रखे जाने लगे। भजन कीर्तन होने लगे। कहीं वनस्पति-विज्ञान की एक छात्रा ने सुन लिया। उसने बगीचे से उन्हीं नाग वाले पत्तों को तोड़कर सब्जी बनाकर परिवार को खिला दी। शाम को परिवार को बताया कि मैंने सबको नाग पकाकर खिला दिए और कुछ नहीं हुआ। तब कृषि विश्वविद्यालय के आचार्यों के बयान आये कि यह पत्तों की बीमारी है जिसमें सांप की आकृति बन जाती है।

अप्रत्याशित हो सकता है। चमत्कार हो सकता है। कोई रहस्य शक्ति है जो कुछ कर देगी। यह भावना आदिम मनुष्य ने प्रकृति की शक्तियों और अपने वातावरण से पाई थी, क्योंकि उसे सृष्टि का, पदार्थों की प्रकृति का, अपने परिवेश का और कार्य कारण का कोई ज्ञान नहीं था। विज्ञान ने बहुत कुछ समझा दिया। जिसे ग्रह-नक्षत्र और जीवित देवी-देवता नहीं, पदार्थों के पिंड है। अंतरिक्ष में इनका मार्ग और गति तय है। पर कई साल पहले एक दिन आया, जब आठ ग्रहों के एक ही कक्षा में होने का योग था। यह मात्र भौतिक संयोग था। इसमें दैवी कुछ नहीं था। पर महीने-भर पहले से पुरोहित-वर्ग ने हल्ला मचाया कि महाभारत के काल के बाद अब ये योग आया है। बड़ा अनिष्टकारी हो सकता है। महीने भर पूजा-पाठ, कीर्तन, भजन होते रहे। अंधविश्वासियों का कितना पैसा इस बहाने लूट लिया गया, कोई हिसाब नहीं। प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू ने इस सबको गलत और अवैज्ञानिक बताया। पर इसका कुछ असर नहीं हुआ। वैसे ही अनुष्ठान चलते रहे।

कुछ साल बाद इससे ज्यादा दिलचस्प घटना घट गई। एक अमेरिकी अंतरिक्ष प्रयोगशाला (स्काई लैब) मार्ग से भटक गई। वैज्ञानिकों ने घोषित किया कि स्काई लैब से सम्बन्ध टूट गया है और वह अनियंत्रित है। वह कहीं भी गिर सकती है। अनुमानित क्षेत्र भी वैज्ञानिक बता रहे थे पर हमारे यहां शाम से ही कीर्तन, भजन आदि होते रहे। लोग यह समझ रहे थे कि पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन से ‘स्काई लैब’ हमें छोड़कर कहीं और गिर जाएगी। अमेरिकी स्काई लैब हमारा आग्रह कैसे मान लेगी? स्काई लैब गिरी वायु की दिशा से, अंतरिक्ष की अपनी शक्ति से और पृथ्वी की आकर्षण की शक्ति से।

आरम्भ में मनुष्य को ज्ञान नहीं था। प्राकृतिक क्रियाओं को नहीं समझता था। वृक्ष भी उसके लिए रहस्यमय था। सूर्य, चंद्र आदि भी रहस्यात्मक थे।पदार्थों और उनकी परस्पर प्रतिक्रियाओं के बारे में नहीं मालूम था। हर घटना उसके लिए चमत्कार थी। वह कार्य-कारण सम्बन्ध नहीं जोड़ सकता था। वह आसाधारण घटना को उस शक्ति का किया हुआ मानता था, जिसे वह जानता ही नहीं है। उसने निष्कर्ष निकाला कि अलौकिक शक्तियां भला भी करती हैं और बुरा भी। इसलिए इन्हें प्रसन्न करो। इनके प्रतीक बनाओ। इस तरह अंधविश्वास चलता गया।

विज्ञान ने धीरे-धीरे रहस्य खोलना शुरू किया। प्रमाण, तर्क, प्रयोग पर जोर दिया। प्रकृति के रहस्य एक के बाद एक खोले। कार्य-कारण सम्बन्ध बताये। सृष्टि के पदार्थों की घटनाओं की तर्कपूर्ण जानकारी दी। केवल ऐसे चमत्कार या ऐसे अंधविश्वास नहीं है, जिनका सम्बन्ध धर्म से हो। धर्म से अलग भी ऐसे अंधविश्वास हैं, चमत्कार हैं जिन्हें आदमी मानता है। हर असामन्यता को या उस घटना को जो समझ में नहीं आती, चमत्कार मान लिया जाता है।

अन्धविश्वासियों को लेकर निहित स्वार्थ कायम हो गए थे। पूजा, दान आदि से कल्पित विपदा का श्रवण करके कर्मकांड चलाने वाले पुरोहित-वर्ग को इससे धन, सोना, दूसरी सामग्री मिलती थी। इस पुरोहित-वर्ग का प्रमुख आमदनी का जरिया अंधविश्वास हो गया। यह वर्ग इन्हें जीवित रखना चाहता था और उसने ऐसा किया। सामन्तवाद को भी प्रजा का अज्ञानी रहना फायदेमंद था। सामन्तवाद ने भी अंधविश्वासों का समर्थन किया। हर तर्क को, हर वैज्ञानिक समझ को ये वर्ग नकारने लगे।

साथ ही धर्म-सत्ता और परंपराओं के विश्वासों को कट्टरता से ग्रहण किया था। इस कट्टरता और अपरिवर्तनशील दृष्टि के दम पर धर्म सत्ता टिकी थी। ज्ञान, विज्ञान, अनुभव से ऊपर धर्म-सत्ता अपने को मानती थी, जिसका आधार था उसमें आरोपित दैवीय शक्ति और ज्ञान। जहां-जहां वैज्ञानिक अविष्कार हुए धर्म सत्ता ने इसका विरोध किया। सबसे अधिक यूरोप में हुआ। वैज्ञानिक के शोध का परीक्षण चर्च के पादरी करते थे। वे अपने माने हुए अटल सत्य को ही मानते थे। वैज्ञानिकों को दण्ड दिया जाता था। बूनी और गैलेलियो इसके उदाहरण हैं। मध्य युग में चर्च विज्ञान के विरोध में खड़ी रही। अब हमारे जमाने में चर्च की इस सत्ता को नहीं माना जाता।

इस तरह दुहरे व्यक्तित्व होने लगे। सोच वैज्ञानिक और आचरण अवैज्ञानिक। सोच भी अधबीच की। विज्ञान भी सही है और परम्परा से चली आती आस्था भी सही हो सकती थी। इसलिए पढ़े-लिखे भी वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न नहीं हो पाते।

वैज्ञानिक दृष्टि के प्रचार के लिए बाहर समाज में एक आन्दोलन चलना चाहिए। ऐसा ही एक आन्दोलन लंका के प्रोफेसर कोकर ने चलाया था। उन्होनें सारे चमत्कारी देव पुरुषों को चुनौती दी थी। कुछ सालों से विज्ञान-जत्था निकलता है। इसमें कम है। मैं खुश हुआ अखबारों में यह पढ़कर कि दो शहरों में अंधविश्वास निवारण आंदोलन चल रहा है। इन लोगों ने लोगों को अपने हाथ में से भभूत निकालकर बता दी। इसी तरह लोकशिक्षण आंदोलन से लोगों में वैज्ञानिक दृष्टि आएगी।

इसमें हमनें रामचरितमानस के उत्तर कांड के आधार पर राम कथा में जातिवाद पर शोध किया है। कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे...
24/09/2023

इसमें हमनें रामचरितमानस के उत्तर कांड के आधार पर राम कथा में जातिवाद पर शोध किया है। कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें

इस वीडियो में हमनें रामचरितमानस में राम के साथ ब्राह्मण और शूद्र की सामाजिक स्थिति सामने लाने का प्रयास किया है. इ.....

16/03/2023

वाह रे कानून का राज!
अयोध्या, उप्र।

29/12/2022

डेढ़ साल पहले अफगानिस्तान की इस छात्र ने दिल्ली के जंतर-मंतर से कहा था..

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी केंद्र और राज्य की 'डबल-इंजन' कही जाने वाली भाजपा सरकार द्वारा मनमानी फीस वृद्धि के...
26/09/2022

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी केंद्र और राज्य की 'डबल-इंजन' कही जाने वाली भाजपा सरकार द्वारा मनमानी फीस वृद्धि के विरोध में आमरण अनशन पर हैं। जिसमें आज छात्राओं की संख्याओं में बड़ी तादाद में वृद्धि हुई है। आगे और भी विद्यार्थियों के जुड़ने की संभावना है।
गौरतलब है कि देशभर में केंद्रीय विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थानों में हुई असामान्य फीस वृद्धि को सरकार की निजी करण की परियोजना का परिणाम माना जा रहा है। ऐसे में गरीब तबके के छात्र जो राशन पानी तक अपने घरों से लेकर आते हैं, उनके लिए इतनी ज्यादा फीस भरना संभव नहीं है। इसका परिणाम यह होगा कि बहुत से जरूरतमंद विद्यार्थी शिक्षा से वंचित रह जाएंगे

Pic via Manish kumar

Setback for BJP. MP Arjun Kumar joins TMC.
22/05/2022

Setback for BJP. MP Arjun Kumar joins TMC.

10/04/2022

इप्टा की "ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा" का दूसरा दिन
इप्टा के साथी आज़ादी के आंदोलन में भी और उसके बाद भी लगातार हर तरह के जुल्म और ज्यादती के खिलाफ़ आवाज बुलंद करते रहे हैं ।

देश में अमन कायम हो और प्रेम की संस्कृति का प्रसार हो यही इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा का उद्देश्य है ।
बिलासपुर। आजाद हिंदुस्तान का स्वप्न जिन्होंने भी देखा चाहे वो गाँधी हों, नेहरू हों, भगत सिंह हों, अम्बेडकर हों या देश की आज़ादी के लिए मर मिटने वाले लाखों अंजान देशभक्त सभी का स्वप्न एक भले न हो पर धारा एक थी कि समता, भाईचारा, न्याय और बंधुत्व की मूल भावना के साथ देश का निर्माण हो और इसी मार्ग पर चलते हुए देश आंगे बढ़े, लेकिन आज जब हम इन मानव मूल्यों को केंद्र में रखकर अपने देश की बात करते हैं तो हमें नफ़रत, साम्प्रदायिकता का बोलबाला दिखाई देता है।

इप्टा की यात्रा नफ़रत और साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ जनता के बीच प्रेम, मोहब्बत और भाईचारे का बीज बो रही है। यह बात झारखण्ड इप्टा के महासचिव शैलेन्द्र ने बिलासपुर के सिम्स आडीटोरियम में “इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा" के उद्देश्य को लेकर कही।

आज़ादी के 75वें साल के अवसर पर देश की जनता के बीच प्रेम, सद्भाव और भाईचारे की संस्कृति का संदेश देते हुए भारतीय जन नाट्य संघ ‘इप्टा’ द्वारा निकाली जा रही "ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा" दूसरे दिन रायपुर से दामाखेड़ा और सरगांव होते हुए बिलासपुर पहुंची।

इस मौके पर स्वतंत्रता आंदोलन में इप्टा की भूमिका को लेकर इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा ने कहा कि इप्टा से जुड़े कई स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी हुकूमत के अन्याय और अत्याचार का विरोध करते हुए कई बार जेल गए। बंगाल के भीषण अकाल के दौरान इप्टा ने देश भर में कला के माध्यम से अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए मदद जुटाने का काम किया। देश की जनता को बताया कि बंगाल भूखा है और यह दैवी प्रकोप के चलते नहीं बल्कि अंग्रेज सरकार की अमानवीयता के चलते, कालाबाजारी के चलते, आप अकाल पीड़ित जनों की मदद कीजिये। इप्टा के साथियों ने जनता को झकझोरने का काम किया, जगाने का काम किया।

राकेश वेदा ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी और नाटककार राजबली यादव को याद करते हुए बताया कि यादव 1942 में आज़ादी के आंदोलन में शामिल हुए और अंग्रेज सरकार ने भरी बरसात में उनका घर ढहा दिया गया और उनकी मा भींगती रहीं और गांव का कोई भी व्यक्ति उनकी सहायता के लिए नहीं आया। राजबली यादव पकड़े गए और बाद में जेल से छूटने के बाद भी उन्होंने लड़ाई जारी रखी। आज़ादी के बाद जमीदारी प्रथा के खिलाफ़ लड़ते हुए जेल गए। उन्होंने ‘धरती हमारी है नाटक’ की रचना की और सैकड़ों बार इस एकल नाटक का प्रदर्शन किया। इप्टा के दूसरे साथी राजेंद्र रघुवंशी से जुड़े किस्से के जिक्र के साथ राकेश ने बताया कि इप्टा के साथियों की एक लम्बी फेहरिस्त है आज़ादी के आंदोलन में अपना योगदान देने कि और आज़ादी के बाद भी लगातार हर तरह के जुल्म और ज्यादती के खिलाफ़ आवाज बुलंद करने की।

सिम्स आडीटोरियम में कार्यक्रम की शुरुआत यात्रा में चल रहे इप्टा के साथियों द्वारा जनगीत की प्रस्तुति के साथ हुई। इसके बाद किशोर कलाकार राघव दीक्षित ने छत्तीसगढ़ राजकीय गीत को बासुरी वादन के माध्यम से मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा स्मृति चिन्ह भेंटकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार का सम्मान किया गया। सूफी भजन गायक नरेन्द्र पाल ने भजनों की प्रस्तुति दी। रेखा देवार और उनके साथियों ने छत्तीसगढ़ी लोक गायन की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम के आखिर में नाचा थियेटर के साथियों ने गीतों और नृत्य व संवादों के संयोजन के साथ छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति का नाट्य रूप गुम्मत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन इप्टा बिलासपुर के सचिव सचिन शर्मा ने किया और बिलासपुर की इप्टा इकाई के समस्त साथियों द्वारा अतिथियों का आभार व्यक्त किया गया।

रायपुर से बिलासपुर के बीच में सांस्कृतिक यात्रा कबीर के धाम दामाखेड़ा और सरगांव में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देते हुए और जनता से संवाद करते हुए बिलासपुर पहुंची।

आज सीएमडी महाविद्यालय आडीटोरियम बिलासपुर में सुबह 9 बजे से इप्टा के वरिष्ठ साथी युवाओं के साथ बातचीत करेंगे और इसके बाद इप्टा के कलाकार प्रस्तुति देंगे। आपको बता दें कि रायपुर से 9 अप्रैल को शुरू हुई इप्टा की "ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा" झारखंड,बिहार,उत्तरप्रदेश से होते हुए मध्यप्रदेश पहुंचेगी और इंदौर में 22 मई को समापन होगा।

मृगेन्द्र



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