
05/08/2025
1526 की गर्मियों की एक सुबह, पानीपत का मैदान — जो कभी एक वीरान सा इलाका था — अब इतिहास की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक का गवाह बनने वाला था।
पानीपत का मैदान तैयार था।
एक तरफ इब्राहीम लोदी — जिसके पास क़रीब एक लाख की सेना थी, उसकी सेना में हाथी थे, घोड़े थे, लाखों सैनिकों की मौजूदगी थी, और उसकी सेना सत्ता के घमंड से भरी थी।
दूसरी ओर बाबर — जिसके जिसके पास सिर्फ 12 हज़ार सैनिक थे, न तो संख्या थी, न ही ज़मीन की जड़ें।
लेकिन… उसके पास था युद्ध का फन, वक़्त की नब्ज़, और तुर्की की तोपें।
बाबर जानता था —
सीधा टकराव करना आत्महत्या जैसा होगा।
तो उसने चुना वो रास्ता, जो हिंदुस्तान के लिए नया था… लेकिन उसके लिए पहचाना हुआ — तुर्क-मंगोल शैली की युद्ध रणनीति।
बाबर ने अपने शिविर को लड़ाई से कई दिन पहले ही जमाया।
उसने फौज को तीन हिस्सों में बांटा —
मध्य भाग, और दोनों तरफ पंखों की तरह फैले दो दल।
इस तकनीक को वो "तुलूग़मा" कहता था — जहाँ दुश्मन को सामने से उलझाकर, बाजू से घेर लिया जाता है।
लेकिन इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली थी — उसकी तोपख़ाना तकनीक।
बाबर ने अपनी तोपों को ऐसे खाईनुमा गड्ढों में गाड़ा, कि वो दुश्मन की नज़रों से छिपी रहें।
इन तोपों को उस्ताद अली क़ुली नामक तोपची चला रहा था — एक ऐसा योद्धा जो बारूद और लोहे की भाषा बोलता था।
फिर बनाई गई एक लकड़ी और बैलगाड़ियों की दीवार, जिन्हें रस्सियों से जोड़ा गया — जैसे एक बाड़।
इस "रस्सी से बंधे दुर्ग" के पीछे बाबर की फौज छिपी रही।
लोदी ने हाथियों से हमला करवाया —
गरजते हुए, भारी पैरों से ज़मीन कंपाते हुए हाथी आगे बढ़े।
लेकिन जैसे ही वो तोपों के दायरे में आए —
धरती काँपी, धुआं उठा, और लोदी की पंक्तियाँ टूट गईं।
हाथी बेकाबू हो गए, अपने ही सैनिकों को रौंदने लगे।
लोदी की सेना में भगदड़ मच गई।
अब बाबर ने अपने दोनों किनारों की फौज — बायाँ और दायाँ दल — को आदेश दिया:
"घेर लो!"
और इस तरह लोदी की फौज एक दायरे में फँस गई —
आगे से तोपें, पीछे से घुड़सवार, और बीच में फँसे सिपाही।
इब्राहीम लोदी का घमंड चकनाचूर हुआ।
ये कोई साधारण लड़ाई नहीं थी।
ये एक दिमाग़ की जीत थी।
एक ऐसा युद्ध, जहाँ बाबर ने साबित किया कि युद्ध की दिशा तलवारें नहीं, सोच तय करती है।
उसने बारूद से ज़्यादा बुद्धि पर यक़ीन किया।
और वही बना उसकी पहचान —
एक योद्धा नहीं, एक विजेता।
एक तैमूरी शहज़ादा नहीं, हिंदुस्तान का बादशाह।
~ Md Iqbal