13/07/2025
एक माँ की शुरुआत
सरोज, एक साधारण गाँव की महिला थीं। पति के असमय जाने के बाद, उन्होंने ईंटें उठाईं, बर्तन मांजे, खेतों में काम किया—लेकिन अपने बेटे नील की पढ़ाई कभी नहीं रुकने दी।
जब लोग कहते –
"इतनी पढ़ाई करवाकर क्या कर लेगा तेरा बेटा?"
सरोज सिर्फ मुस्कुराकर कहतीं –
"एक दिन अफसर बनेगा मेरा नील... और मैं गर्व से कहूँगी – ये मेरा बेटा है।"
---
📚 स्कूल से शहर तक का सफर
नील होशियार था, पढ़ाई में तेज़।
सरोज ने अपने गहने, खेत और यहाँ तक कि अपना छोटा सा घर भी गिरवी रख दिया, ताकि बेटा शहर के बड़े कॉलेज में पढ़ सके।
नील शहर तो पहुँच गया, लेकिन वहाँ की चकाचौंध में बदलने लगा।
अब उसे माँ के कपड़े पुराने लगते थे, उनका लहजा गंवार लगता था… और उनकी आवाज़ बोझ।
---
💔 माँ के दिल पर चोट
एक दिन नील ने फोन पर कहा —
"माँ, प्लीज़ मुझसे बात मत किया करो… लोग मेरा मज़ाक उड़ाते हैं, कहते हैं तेरी माँ गाँव की गँवार है।"
सरोज चुप रह गईं।
रातभर रोती रहीं… मगर अगली सुबह फिर मंदिर पहुंचीं और हाथ जोड़कर बोलीं –
"हे भगवान, मेरा बेटा खुश रहे… भले ही अब कभी मेरी आवाज़ न सुने।"
---
🩺 बीमारी और अकेलापन
कुछ साल बाद सरोज को कैंसर हो गया।
लेकिन उन्होंने नील को कुछ नहीं बताया —
"वो अब बड़ा हो गया है, उसकी ज़िंदगी शुरू हुई है... मैं बोझ नहीं बनना चाहती,"
वो राधा से बोलीं — पास की लड़की जिसने माँ का आख़िरी वक़्त संभाला।
उन्होंने एक चिट्ठी दी —
"अगर मेरा बेटा आए, तो उसे ये देना… शायद तब उसे मेरी अहमियत समझ आए।"
---
✈️ वापसी… लेकिन देर हो चुकी थी
एक दिन नील को गाँव से फोन आया –
"तेरी माँ अब नहीं रहीं..."
वो दौड़ा आया।
घर में माँ की टूटी चारपाई, दीवार पर टंगी उनकी फीकी तस्वीर, और कोने में रखे फटे चप्पल देख… वो बिखर गया।
राधा ने उसे चिट्ठी दी।
---
💌 माँ की आख़िरी चिट्ठी
> "मेरे प्यारे बेटे नील,
जब तू ये चिट्ठी पढ़ रहा होगा, मैं शायद इस दुनिया में नहीं रहूँगी।
मैंने तुझे बहुत तंग किया ना? माफ़ कर देना बेटा।
तेरे पापा के जाने के बाद, तू ही मेरी पूरी दुनिया बन गया था।
मैंने बस यही चाहा कि तुझे वो तकलीफ न हो, जो मैंने झेली।
जब तू मुझे 'गंवार' कहता था, तब भी मुझे बुरा नहीं लगता था।
क्योंकि मैं जानती थी — तू ऊँचाई पर जा रहा है, और मेरी छाया शायद तुझे भारी लगने लगी है।
लेकिन बेटा, एक बात याद रखना —
माँ वो दरख़्त होती है, जो खुद धूप में जलती है… मगर बेटे पर कभी छांव कम नहीं होने देती।
तू हमेशा खुश रह… यही मेरी आख़िरी दुआ है।
— तेरी माँ, सरोज।"
---
😢 पश्चाताप का भार
नील चिट्ठी को सीने से लगाकर फूट-फूटकर रो पड़ा।
आज उसे पहली बार समझ आया कि माँ की आँखें क्यों सूजी रहती थीं, हथेलियाँ क्यों फटी थीं… और पैरों में चप्पल क्यों नहीं थी।
वो मंदिर गया, माँ की वही पुरानी मुरझाई माला को देखा और बस फुसफुसा सका —
"माँ... माफ़ कर दो... बस एक बार..."
---
🧠 संदेश:
> माँ कभी थकती नहीं, बस चुप हो जाती है।
हम जितने भी बड़े हो जाएं, माँ की ममता कभी छोटी नहीं होती।
अपनी माँ को शर्मिंदा नहीं, गर्वित करें…
इतना ऊँचा उड़ें कि माँ का आँचल और ऊँचा लहराए।
---
अगर कहानी दिल छू गई हो तो एक ❤️ Like ज़रूर दें।
और कमेंट में लिखें — "माँ सबसे बड़ी है!" 🙏
@हाईलाइट