25/08/2025
नमस्कार दोस्तों🙏🏻🙏🏻
आज आपके लिए नए स्वाद के सफ़र पर हमारी स्वाद की गाड़ी पंहुची है “नजफगढ़”। नजफगढ़, दिल्ली का एक आवासीय क्षेत्र और बाजार है, जो दक्षिण पश्चिम दिल्ली जिले में स्थित है। यह दिल्ली के बाहरी इलाके में हरियाणा सीमा के पास स्थित है और यहाँ ग्रामीण और शहरी आबादी का मिश्रण है। और नजफगढ़ के बाज़ार में मिठाइयों की दुकान है “बंसी स्वीट्स”।
नजफगढ़ का नाम मिर्ज़ा नजफ़ ख़ान (1723-1782) के नाम पर रखा गया था, जो बादशाह शाह आलम द्वितीय के अधीन मुग़ल सेना के सेनापति थे । उन्होंने एक सैन्य चौकी स्थापित करने के लिए राजधानी शाहजहाँनाबाद से कई किलोमीटर की दूरी तय की। उन्होंने राजधानी शहर से परे उपनगरों में एक मजबूत किला बनवाया और यहाँ कुछ मुग़ल बसाए। उस किले का नाम बाद में नजफ़गढ़ रखा गया। नजफ़ ख़ान की मृत्यु के बाद, नजफ़गढ़ बाद में रोहिल्ला अफ़ग़ान ख़ान का एक मज़बूत गढ़ बन गया ।
1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान , और दिल्ली की घेराबंदी के एक भाग के रूप में , नजफगढ़ की लड़ाई 25 अगस्त 1857 को हुई थी, भारतीय विद्रोहियों और ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों के बीच। 1857 में मुगल सैनिकों की हार के बाद, दिल्ली 1858 में ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में आ गई। 1861 में, दिल्ली में उत्तर-पश्चिमी प्रांतों की शिक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया और पंजाब शिक्षा प्रणाली पर आधारित स्कूलों के लिए एक नई प्रणाली शुरू की गई थी। नरेला , नजफगढ़, महरौली और उनके उपनगरों में नए स्कूल खोले गए l। दिल्ली नॉर्मल स्कूल को 1911 में कश्मीरी गेट से नजफगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया। दिल्ली नॉर्मल स्कूल, एक छोटे से संलग्न मॉडल स्कूल के साथ, ने अपने शिक्षकों को उत्तरी भारत के किसी भी अन्य नॉर्मल स्कूल की तुलना में यूरोपीय विधियों के अधिक निकट प्रशिक्षित किया।
1947 में, नजफगढ़ स्वतंत्र भारत का हिस्सा बना और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का हिस्सा बन गया। नजफगढ़ विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1993 में हुई जब संविधान (69वाँ संशोधन अधिनियम, 1991) लागू होने के बाद दिल्ली विधानसभा की पुनर्स्थापना हुई। इसके साथ ही केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली घोषित किया गया। नजफगढ़ अब भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सबसे अधिक आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है । नजफगढ़ हरियाणा की सीमा से लगे 70 गाँवों से घिरा है। ये सीमाएँ मुख्य नजफगढ़ बाज़ार से 10 किलोमीटर से 15 किलोमीटर दूर हैं।
नजफगढ़ का इतिहास विकिपीडिया से उठाकर यहाँ लिखने का मेरा कोई ख़ास मकसद नहीं है। लेकिन जब भी मैं नजफगढ़ की कोई वीडियो बनाकर यहाँ डालता हूँ तो कमेंट सेक्शन में इस प्रकार के कमेंट्स की बाढ़ आ जाती है।
“तू हमें बताएगा नजफगढ़ के बारे में, मेरे दादा ने बसाया था नजफगढ़”
“नजफगढ़ में मेरे दादा ने प्लॉट-दुकान काटी थी, तू हमें अब नजफगढ़ दिखायेगा”
“नजफगढ़ के नाम मेरे परदादा ने रखा था, उनका बसाया हुआ है नजफगढ़, तू हमें क्या बताएगा”
“मेरा नजफगढ़ में ब्याह हुआ है, मेरे दादा-ससुर का बनाया हुआ है नजफगढ़, तू हमें क्या बता रहा है”
“नजफगढ़ में सरकारी स्कूल खुलते ही सबसे पहले मैं वहाँ पढ़ने गया था, तू नजफगढ़ हमें दिखाने चला है”
“मेरे दादा की नजफगढ़ में दूध की डेयरी है और इस दुकान पर दूध आज भी हमारी डेरी का जाता है मिठाई बनाने के लिए, तू मुझे नजफगढ़ के बारे में बता रहा है”
“80 साल पहले मेरे दादा ने नाम रखा था नजफगढ़ का, तू मुझे दिखानेचला है नजफगढ़”
और ऐसे अनर्गल ना जाने कितने ही कमेंट्स मेरी हर वीडियो पर आते हैं। ध्यान देने की ख़ास ज़रूरत तो नहीं लेकिन मुझे हैरानी होती है की या तो ये लोग मिर्ज़ा नजफ़ ख़ान के वंशज हैं या इन्हें अपनी पारिवारिक वंशावली का कोई ज्ञान नहीं। इसलिए मुझे नजफ़गढ़ का थोड़ा सा इतिहास लिखना पड़ा जिसके लिए किसी को काग़ज़ दिखाने की ज़रूरत नहीं, सभी साक्ष्य किताबों में मौजूद और इतिहास में दर्ज हैं। हँसी आती है ऐसे लोगों पर जो खुले तौर पर अपनी शिक्षा, ज्ञान और वंशावली का मज़ाक़ उड़ाते हैं। इनके ऐसे कमेंट्स इनके शिक्षा, ज्ञान, शिष्टाचार और सामाजिक संबंधों का प्रत्यक्ष आईना हैं।
खैर जाने दीजिए, हम पंहुचते हैं अपनी स्वाद की दुकान पर। ज़्यादातर लोग आज भी नजफगढ़ को दिल्ली गेट ही जानते हैं। जबकि दिल्ली गेट या यहाँ के मुख्य द्वार का नाम “वैद्य किशन लाल द्वार” है। और “वैद्य किशन लाल द्वारा” से 100 कदम अंदर आकर दायें हाथ पर कोने की दुकान है “बंसी स्वीट्स”।
“बंसी स्वीट्स” अपनी मिठाइयों के लिए बहुत ही मशहूर दुकान है और ग्रामीण और शहरी परिवेश के नजफगढ़ बाज़ार के ग्राहकों के बीच खासी प्रचलित है। इन्ही का एक अलग काउंटर, जो दुकान के कोने पर ही लगता है, और मशहूर है अपनी “आलू की सब्ज़ी और कचौड़ी” के लिए।
रवेदार, रसेदार, मसालेदार और तैरते लाल रोगन से सजी आलू-छोले की सब्ज़ी, उड़द दाल की पिट्ठी से भरी सुनहरी कचौड़ी और मसालेदार हरी मिर्च एक बेहतरीन स्वाद की पराकाष्ठा है। सुनहरी खस्ता कचौड़ी को चाँदी की चमचमाहट लिए दोने में बारीक तोड़कर, आलू-छोले की सब्ज़ी की तरी में भिगोकर और ऊपर से और सब्ज़ी के साथ मिर्च रखकर जब तक भैया आपके हाथ में ये स्वाद भरा दोना देते हैं, तब तक मुँह मे पानी अनायास ही आ चुका होता है। पहले ही निवाले से आपके चेहरे पर मुस्कुराहट और पसीना एक साथ आते हैं। बेमिसाल स्वाद आपके स्वाद-तन्तुओं तक पंहुचने की ख़ुशी और रोम-रोम खोल देने वाले मसाले की सांकेतिक गर्मी। पत्ता कब चट कर जाते हैं पता ही नहीं चलता।
20 रुपए की एक कचौड़ी की हाफ प्लेट या 40 रुपए की 2 कचौड़ी की फुल प्लेट स्वाद से सराबोर होती हैं। हाँ एक चीज़ का ध्यान रखिये की ये सिर्फ सुबह 7 बजे से 12 बजे तक ही उपलब्ध होती हैं और फिर उसके बाद ये काउंटर एक नया स्वाद, नया जायका आपको परोसता है जो किसी और वीडियो के माध्यम से आप तक ज़रूर पंहुचाऊँगा।
अगली बार किसी सुबह जब आप नजफगढ़ जायें तो “बंसी स्वीट्स” की दुकान पर ये कचौड़ी ज़रूर खाइए। स्वाद ऐसा है जो सब जगह नहीं मिलता।
“बंसी स्वीट्स” की बनायी गई मेरी वीडियो नीचे संलग्न है। और हाँ, कमेंट सेक्शन खुला हुआ है आपके प्यार भरे कमेंट्स के लिए