Kumar skumar

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अस्मद गुरुभयौ नमः, अस्मद सरस्वतयै नमः, अस्मद गणेशाय नमः।

कौशल्या कहि दोष न काहू ।
कर्म विवस दुख सुख क्षति लाहू।।
जय जय श्री सीताराम 🙏🙏



ॐ नमः परम हंसाय, स्वादित चरण कमल चिन मकरंदाय, भक्त जन मानस निवासाय श्री राम चन्द्राय।

शास्त्र की आज्ञा है वाणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।वांणिलेनिं करोति सम पुरुषा या संस्कृतं धारयते ।श्रीयंते खल भूषणान...
21/08/2025

शास्त्र की आज्ञा है वाणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।

वांणिलेनिं करोति सम पुरुषा या संस्कृतं धारयते ।
श्रीयंते खल भूषणानि सतम् वाक भूषणं भूषणं।।

हमारी वांणी ही सबसे मुख्य है प्रधान है
वांणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।

क्या आप जानते हैं कि हमारे मुख में क्या है ?
हमारे मुख में अगिनी है।
मुख में जीभ है। जिससे हम सारे रसों को लेते हैं।
मुख में वरुण देव भी रहते हैं।
मुख में ही भगवती सरस्वती का वास है।

जिस वांणी में हमारे अगिनी है, सरस्वती हैं और वरुण देवता हैं और उसी वांणी से जब हम किसी को गाली देते हैं अपशब्द बोलते हैं उस समय हमारे द्वारा तीनों देवताओं का सरस्वती,अगिनी और वरुण देव का भयंकर अपराध होता है जो अक्षम्य है

इसलिए कभी भी किसी को भूलकर भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।

बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानि।
हिये तराजू तौलकर तब मुख बाहर आनि।।

हृदय की तराजू में शब्दों को तौलकर के ही मुख से बाहर लाना चाहिए , शब्दों का कोई मोल नहीं होता शब्द अनमोल होते हैं।।

इस लिये भ‌ईया व्यक्ति को जीवन में हमेशा ही

दिमाग को मस्त ,शरीर को दुरुस्त ,
जेब को कड़क और आंखों में शालीनता ।

मुख में ठंड, हृदय में प्रेम,
क्रोध पर नियंत्रण और होटों पर मुस्कान,

करके देख लो जीवन बदल जायेगा।

रन वन व्याधि विपत्ति में जहां रहे यह देह।
तुलसी सीताराम सों लगयौ चाहिए नेह ।।

जय जय श्री सीताराम।।
श्री सीताराम जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩 ❤️

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Rabinder Pandit, Ram Kumar Shrivastava, ...
16/08/2025

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Rabinder Pandit, Ram Kumar Shrivastava, Balram Yadav

श्री राम: शरणं समस्त जगताम् रामम् बिना का गति।रामेणप प्रति हन्यते कलि मलम् रामस्य कार्यम् नमः।।श्लोक रामात्रस्यति काल भी...
16/08/2025

श्री राम: शरणं समस्त जगताम् रामम् बिना का गति।
रामेणप प्रति हन्यते कलि मलम् रामस्य कार्यम् नमः।।

श्लोक
रामात्रस्यति काल भीमभुजगो, रामस्य सर्वम् वसे।
रामे भक्तिर अखंडता भवतू में रामे त्वमेवाश्रय: ।।
वेद व्यास जी ने भगवान का स्मरण किया है और उसके बाद भगवान को संस्कृत व्याकरण की सारी विभूतियों में नमस्कार करते हैं।

*श्री राम: शरणं समस्त जगताम्*
मैं उन श्री राम जी की शरणागति को स्वीकार करता हूं।
भगवान श्री राम के चरणों में बारम्बार नमस्कार प्रणाम करता हूं जो श्री राम सारे संसार को शरण देने वाले हैं।
श्री राम जी केवल एक प्राणी मात्र के शरणय हैं ।

सुग्रीव जी, विभीषण जी, त्रसकृत होकर आकाश मार्ग से आकर के समुद्र के इस पार खड़े हो गए और विभीषण जी ने आवाज लगाकर कहा है।

श्लोक
रावणो नाम दुर्दन्तो राक्षसो राक्षसेश्वर: ।
तस्याहम् अनुजो प्राप्त: विभीषण इति श्रुतम्।।
मैं दुर्दान्त राक्षस और राक्षसों के स्वामी रावण का छोटा भाई हूं मेरा नाम विभीषण है
हे बन्दर भालुओं, *निवेदयत माम क्षिप्रम राघवाय महात्मने* ।
हे बन्दर भालुओं मेरा उस महात्मां श्री राम जी के चरणों में निवेदन करके कहना कि मैं श्री राम जी की शरण में आया हूं श्री राम जी शरणय हैं।
जो अपनी शरण में आए हुए जीव के दोषों पर बिना विचार किए ही उस अनगृह करता है , जीव को भय मुक्त करता है वही शरणय है।
इस लिये भगवान श्री राम, *राम: शरणं समस्त जगताम्*
इस लिये श्री राम जी ही समस्त प्राणी मात्र के शरणय हैं
सम्पूर्ण संसार में सभी के श्री राम का ही अनगृह है और श्री राम की कृपा के बिना संसार के समस्त प्राणियों की कोई गति नहीं है।
गति माने प्राप्ति
गति माने मोक्ष
गति माने चाल
इस लिये, रामं बिना का गति
श्री राम के बिना कोई गति नहीं है
सारे संसार में राम जी के बिना कोई आश्रय देने वाला नहीं है। और श्री राम जी ही समस्त संसार को शरण देने वाले हैं।।

जय जय श्री सीताराम

इस लिये, जन्मप व्याधि जरा विपत्ति , नाना प्रकार के संकट, तथा मृत्यु, ये जो उपद्रव हैं इन सबको बड़ी ही सहजता से मनुष्य पा...
12/08/2025

इस लिये, जन्मप व्याधि जरा विपत्ति ,
नाना प्रकार के संकट, तथा मृत्यु, ये जो उपद्रव हैं इन सबको बड़ी ही सहजता से मनुष्य पार करके भव सागर से सहज ही पार हो जाता है। और साकेताधीस भगवान श्री राम के चरणों का आश्रय प्राप्त कर लेता है।
इस लिये रामायण महाकाव्य संसार के समस्त रोगों का समन करने वाला है।

वेदों का तात्पर्य समझाने वाला प्रथम महाकाव्य है।

श्रीमद् रामायण महाकाव्य सबसे प्राचीन है ।
जैसा कि हम आप सब लोग जानते हैं हमारी संस्कृति और सनातन धर्म का यह वासंतिक नवरात्र के प्रथम वर्ष का प्रथम दिन वसंत पंचमी से ही शुरू होता है।
सबसे बड़ी बात है कि आज ही के दिन भारत राष्ट्र की आत्मां को , भारतीयता को भारतीय संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक ने आज ही के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई थी।

श्रीमद् रामायण में ही महर्षि बाल्मीकि कह रहे हैं
नतति भविता राष्ट्रम् यत्र रामो न भूपति।

वह राष्ट्र राष्ट्र नहीं है वह देश देश नहीं है जहां श्री राम राजा नहीं हैं ।
बाल्मीकि रामायण में आया है कि देवी कैकेई से गुरु देव वशिष्ठ जी ने कहा था ।

नतति भविता राष्ट्रम् यत्र रामो न भूपति।

जहां श्री राम राजा नहीं होंगे वह राष्ट्र राष्ट्र नहीं होगा वह राष्ट्र विनाश की ओर जायेगा।

तद वनं भविता राष्ट्रम् यत्र रामो निवस्यति।।

वह वन ही राष्ट्र होगा जिस वन में श्री राम निवास करेंगे।।

यानी, तहां अवध जहां राम निवासू ।
श्री राम ही राष्ट्र हैं श्री राम ही राष्ट्र की आत्मां हैं
इस लिये हमारे यहां कहा जाता है कि हमें श्री राम के आदर्शो अपने जीवन में उतारना चाहिए ।
हमारे यहां दो इतिहास गृंथ हैं वेद भगवान क्या कहना चाहते हैं इस को समझाने के लिए श्रुति भगवती कहती हैं।
इतिहास पुराणाभ्याम् वेदं समुप बृंगहे।
वेद भगवान अल्पश्रुत व्यक्ति से भयभीत होते हैं कि यह अल्पश्रुत है अग्यानी है मूढ़ है इसने गुरु जनों के चरणों में बैठकर के परम्परागत शास्त्रों का सम्यक अनुशीलन नहीं किया है ।
इस लिये यह वेद भगवान के हार्त को प्रकट करता है तो यह पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं कर सकता ।
इस लिये अल्पश्रुता व्यक्ति से वेद भगवान भी डरते हैं कि यह अर्थ का अनर्थ कर देगा।
इस लिये वेद भगवान के तात्पर्य को समझाने के लिए दो इतिहास और पुराण है ।

इतिहास पुराण से अधिक प्रामाणिक है क्योंकि कि इतिहास का पूर्व प्रयोग किया गया है।

इतिहास दो है
एक तो श्रीमद् रामायणं
और दूसरा है -महाभारत।।
अठारह पुराण तो आप जानते ही हैं।
जो श्रीमद् रामायण महाकाव्य है वह महाभारत से भी श्रेष्ठ है
क्यों कि महाभारत में भाई भाई का सब कुछ हड़प कर लेता है।
अपने गुरुओं के उपर शस्त्र का प्रयोग करता है।
अपने स्वजनों के साथ भयंकर युद्ध होता है।
जहां परस्पर द्वन्द है जहां परस्पर हिंसा है उसे महाभारत कहते हैं।

और जहां पर एक भाई अपने भाई के लिए अपना सर्वस्व सुख का त्याग कर देता है ।
श्री राम चौदह वर्ष के लिए वन में है तो श्री भरत जी महाराज चौदह वर्ष तक नन्दीग्राम में रहकर के गोमूत्र यावक वृत करते हैं।

जय जय श्री सीताराम।

शास्त्रों में व्याख्यान आया है। बहुत ही सुन्दर छ्न्द लिखा है जिसमें तुलसीदास जी की दीन दसा का वर्णन किया है।बालपन से ही ...
11/08/2025

शास्त्रों में व्याख्यान आया है। बहुत ही सुन्दर छ्न्द लिखा है जिसमें तुलसीदास जी की दीन दसा का वर्णन किया है।

बालपन से ही दुःख झेलते रहे ।
और साधू वेश में भी दुःख दैन्य के ही नाम हो गये ।
द्वार द्वार धाये बिललाये बार बार,
कभी मुठ्ठी भर पाये , कभी खाये बिन सो गये।।
भासकर मार मार कही पंडितों ने जिसे ,
पुस्तकें लिये - लिये फिरे कहां कहां गये।
धन्य धन्य तुलसी तुम्हारे उसी काव्य से तो,
आज लाखों लोग यहां लाखपति हो गये ।।
कोई एक घंटा बोलने का हजार दो हजार रुपए ले लेता है। बिना पैसे लिए लोग पारायण पाठ करने नहीं आते हैं।

और तुलसी को किसी ने रोटी भी नहीं दिया।

दिया नहीं रोटी दुनियां ने जिसे आदर से ,
नाम पे उसी के लाखों दानियों के खाते हैं ।

आज जहां देखो वहीं पर तुलसी ट्रस्ट बना हुआ है।

जिसे कहते थे कर्म हीन यों आचार भ्रष्ट ,
नाम ले उसी का आचार्य बन पुजवाते हैं।

जाने क्या रहस्य तुलसी की साधना का रहा,
संत लोग गांव गांव गली गली गाते हैं।।

राम नाम का आधार मिला जिन्हें जीवन में,
वे ही निराधार के आधार बन जाते हैं।।

इसीलिये तुलसीदास जी महाराज ने कहा है

ऐहिमां रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुराण श्रुति सारा।।

जय जय सीताराम।
श्री सीताराम जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩 ❤️

राम कथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु।तुलसी सुभग सनेह वन सिय रघुवीर विहारु।।राम जी की कथा स्वयं मन्दाकिनी गंगा है और गंगा ...
10/08/2025

राम कथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह वन सिय रघुवीर विहारु।।

राम जी की कथा स्वयं मन्दाकिनी गंगा है और गंगा का काम है लोगों को तारना।
वो जहां जहां से गुजरती है सबका कल्याण करती हुई जाती है।
वह स्नान करने वालों को भी तारती है
निमज्जन करने वाले को भी तारती है
दर्शन करने वालों को भी तारती है और प्रणाम करने वाले व्यक्ति को भी तार देती है।
ठीक उसी प्रकार श्री राम कथा गंगा है ना,
जो इसका श्रवण करता है उसको भी तार देती है ।
जो इसका निमज्जन करेगा उसे भी तारेगी।
जो इसका पान करेगा उसे भी तारेगी और जो व्यक्ति इसका रसपान करता है वह तो परम धन्य हो जाता है।।

वैसे तो मैं अक्सर कथा में कहता ही रहता हूं ।

जैसे राम जी की कथा मन्दाकिनी गंगा है
वैसे श्री राम की कथा भी गंगा है।
इस संसार में दो गंगा बड़ी ही प्रसिद्ध हैं ।
एक गंगा है कथा की गंगा।
और दूसरी है भागीरथी गंगा।

और दोनों गंगाओं की बड़ी ही विश्व विख्यात महिमा है त्रिलोक में, त्रिभुवन में यदि कोई गंगा महत्वपूर्ण साबित हुई तो इन्हीं दोनों गंगा जी की चर्चा है।

एक तो कथा रुपी गंगा है।
और दूसरी भगवान नारायण के चरणों से निकलने वाली भागीरथी गंगा है।
अगर भाव के साथ कथा को श्रवण करोगे मेरे भाई और बहनों तो दोनों गंगा कहां से निकली है इन दोनों गंगाओं का उदगम स्थल स्वयं नारायण हरि ही हैं ।
ये दोनों गंगा नारायण से ही निकलती है
जो भागीरथी गंगा है वह भगवान के चरणों से होकर निकलती है और
जो दूसरी कथा रुपी गंगा है वह भगवान नारायण की वाणी से इसका प्रादुर्भाव हुआ है।
और एक बड़े ही आनंद की बात है ये दोनों गंगा भगवान नारायण से निकल कर के भगवान शिव के पास में जाती हैं।
एक भगवान के चरणों से निकली तो विष्णु पदी कहलायीं।
और दूसरी गंगा विष्णु भगवान के मुख से निकली तो विष्णु मुखी कहलायीं।।

एक गंगा भगवान के चरणों से निकलकर भगवान शिव की जटाओं में समा गयी, कहने का मतलब है एक को भगवान शंकर ने अपनी जटाओं में धारण कर लिया। और जब बाद में प्रकट किया तो,

जटाशंकरी नाम परयौ है, त्रिभुवन तारन आयी ।
भज मन राम चरण सुखदाई।।
भज मन राम चरण सुखदाई।।
और एक का भगवान भोलेनाथ निरन्तर अपनी वाणी से गाते रहते हैं।

गावत संतत शम्भु भवानी।
अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी।।

एक को जटाओं से बहाते रहते हैं और दूसरी को वाणी से बहाते रहते हैं।
दोनों गंगा जी नारायण से निकलती हैं और दोनों को शिव जी धारण करते हैं।।

कथा का शेष भाग जैसी हरि इच्छा।
जय जय श्री सीताराम।
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🚩 ❤️
श्री गुरुदेव भगवान की जय हो 🙏 🚩 ❤️

जय जय श्री सीताराम।बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता हूं क...
07/08/2025

जय जय श्री सीताराम।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता हूं कि आप अपना भाव बनाए रखना प्रत्येक कथा से हमको कुछ न कुछ मिलता है
भावना में भाव न तो भावना बेकार है।
भावना में भाव है तो भव से बेड़ा पार है।।

शास्त्र में लिखा है मेरा भारत महान और यह बात सत्य है मेरा भारत देश महान है आओ जाने,

धन्य देश सो जहं सुरसुरी।
धन्य नारि पतिव्रत अनुसरी।।

वह देश धन्य है जिस देश में गंगा बहती है और नारी भी धन्य है जो अपने पातिव्रत धर्म में अपने आप को लगाये रखती है वही स्त्री,नारी धन्य है।

धन्य सो भूप नीति जो कर‌ई ।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टर‌ई ।।

जो राजा न्याय और नीति में निपुण हैं न्याय करना जानता है ऐसा राजा धन्य माना गया है
वो ब्राह्मण भी धन्य है जो तीनों अवस्था में अपने धर्म पर अडिग रहता है अपने धर्म को नहीं छोड़ता वही ब्राह्मण शास्त्रों में पूज्यनीय बताया गया है।
और धन कौन सा पूज्यनीय है ?

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।
धन्य पुन्य रति मति सोई पाकी ।।

ऐसा धन जो दान में खर्च किया जाय वही धन शास्त्रों में श्रेष्ठ माना गया है और वह मानव धन्य है जिसकी बुद्धि हमेशा ही पुण्य में लगी रहती है।

( शास्त्रों में धन की तीन गति बताई गई है प्रथम गति यानी उत्तम गति दान है, द्वितीय गति है भोग, जिसे मध्यम गति कहा गया है और तीसरी गति तो मेरे पागलों अपने आप हो जाती है जिसे नाश कहते हैं। )

धन्य घरी सोइ जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।

ऐसा समय धन्य है जिस समय हमको सत्संग मिलता है वही समय महान है

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।
श्री रघुवीर परायन जैहि नर उपजि विनीत।।

भगवान शंकर माता पार्वती से कह रहे हैं पार्वती वह कुल खानदान धन्य हो जाता है जिसमें एक वैष्णव भक्त जन्म लेता है वह अपनी इक्कीस पीढ़ियों को तार देता है भूत, भविष्य और वर्तमान,सात सात पीढ़ी।।

इस लिये कथा में अपना भाव बनाए रखना क्यों कि भगवान शिव जब माता पार्वती को कथा सुनाते हैं तब जग जननी भवानी जगदम्बा मां कथा को प्रेम से सुनती है और भगवान भोलेनाथ प्रेम से कथा को सुनाते हैं।।
औरहुं एक कहहूं निज चोरी।
सुन गिरिजा दृढ़ मति अति तोरी।

म‌ईया कहने लगी भोलेनाथ आप कब से चोरी करने लगे भगवान कृष्ण को तो चोरी करते सुना था मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि आप क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो, साफ साफ बताओ।
भोलेनाथ ने कहा पार्वती यह संसार वाली चोरी नहीं भगवान के दर्शनों की चोरी।
एक बार क्या हुआ,

काग भुसुनडि संग हम दोउ ।
मनुज रूप जाने नहिं कौउ।।

कागभुसुंडि जी है भगवान शिव के शिष्य।
हे देवी एक बार की बात है मैं और मेरा शिष्य कागभुसुंडि मनुष्य का भेष बनाकर के राम जी के बाल रूप के दर्शन के लिए अयोध्या जी में गए।
कहने लगे राजमहल में हर किसी का प्रवेश नहीं था।
मान लो आपको मुख्यमंत्री जी से मिलना है आपकी जान पहचान होगी तभी तो आप मुख्यमंत्री जी से मिल पाओगे नहीं तो कोई नहीं जाने देगा।
देवी राजभवन में हमारी कोई जान पहचान तो थी नहीं, फिर ----- कागभुसुंडि ने कहा गुरुदेव एक युक्ति है

आगे की कथा जैसी हरि इच्छा
जय जय श्री सीताराम ‌।।

Big shout out to my newest top fans! 💎 Mahendar Mishra, Ramsajivanyadav RamsajivanyadavDrop a comment to welcome them to...
06/08/2025

Big shout out to my newest top fans! 💎 Mahendar Mishra, Ramsajivanyadav Ramsajivanyadav

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जय जय श्री सीताराम।      बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता...
06/08/2025

जय जय श्री सीताराम।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान
की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता हूं कि आप अपना भाव
बनाए रखना प्रत्येक कथा से हमको कुछ न कुछ मिलता है

भावना में भाव न तो भावना बेकार है।
भावना में भाव है तो भव से बेड़ा पार है।।

शास्त्र में लिखा है मेरा भारत महान और यह बात सत्य है मेरा
भारत देश महान है आओ जाने,

धन्य देश सो जहं सुरसुरी।
धन्य नारि पतिव्रत अनुसरी।।

वह देश धन्य है जिस देश में गंगा बहती है और नारी भी धन्य है
जो अपने पातिव्रत धर्म में अपने आप को लगाये रखती है वही
स्त्री,नारी धन्य है।

धन्य सो भूप नीति जो कर‌ई ।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टर‌ई ।।

जो राजा न्याय और नीति में निपुण हैं न्याय करना जानता है ऐसा
राजा धन्य माना गया है
वो ब्राह्मण भी धन्य है जो तीनों अवस्था में अपने धर्म पर अडिग
रहता है अपने धर्म को नहीं छोड़ता वही ब्राह्मण शास्त्रों में पूज्यनीय बताया गया है।

और धन कौन सा पूज्यनीय है ?

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।
धन्य पुन्य रति मति सोई पाकी ।।

ऐसा धन जो दान में खर्च किया जाय वही धन शास्त्रों में श्रेष्ठ माना गया है और वह मानव धन्य है जिसकी बुद्धि हमेशा ही पुण्य में लगी रहती है।

( शास्त्रों में धन की तीन गति बताई गई है प्रथम गति यानी उत्तम गति दान है, द्वितीय गति है भोग, जिसे मध्यम गति कहा गया है और तीसरी गति तो मेरे पागलों अपने आप हो जाती है जिसे नाश कहते हैं। )

धन्य घरी सोइ जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।

ऐसा समय धन्य है जिस समय हमको सत्संग मिलता है वही समय महान है

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।
श्री रघुवीर परायन जैहि नर उपजि विनीत।।

भगवान शंकर माता पार्वती से कह रहे हैं पार्वती वह कुल
खानदान धन्य हो जाता है जिसमें एक वैष्णव भक्त जन्म लेता है वह
अपनी इक्कीस पीढ़ियों को तार देता है भूत, भविष्य और
वर्तमान,सात सात पीढ़ी।।

इस लिये कथा में अपना भाव बनाए रखना क्यों कि भगवान शिव
जब माता पार्वती को कथा सुनाते हैं तब जग जननी भवानी जगदम्बा
मां कथा को प्रेम से सुनती है और भगवान भोलेनाथ प्रेम से कथा को
सुनाते हैं।।

औरहुं एक कहहूं निज चोरी।
सुन गिरिजा दृढ़ मति अति तोरी।

म‌ईया कहने लगी भोलेनाथ आप कब से चोरी करने लगे भगवान
कृष्ण को तो चोरी करते सुना था मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि
आप क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो, साफ साफ बताओ।

भोलेनाथ ने कहा पार्वती यह संसार वाली चोरी नहीं भगवान के दर्शनों की चोरी।

एक बार क्या हुआ,

काग भुसुनडि संग हम दोउ ।
मनुज रूप जाने नहिं कौउ।।

कागभुसुंडि जी है भगवान शिव के शिष्य।
हे देवी एक बार की बात है मैं और मेरा शिष्य कागभुसुंडि मनुष्य
का भेष बनाकर के राम जी के बाल रूप के दर्शन के लिए अयोध्या
जी में गए।
कहने लगे राजमहल में हर किसी का प्रवेश नहीं था।
मान लो आपको मुख्यमंत्री जी से मिलना है आपकी जान पहचान
होगी तभी तो आप मुख्यमंत्री जी से मिल पाओगे नहीं तो कोई नहीं
जाने देगा।
देवी राजभवन में हमारी कोई जान पहचान तो थी नहीं, फिर -----
कागभुसुंडि ने कहा गुरुदेव एक युक्ति है

आगे की कथा जैसी हरि इच्छा
जय जय श्री सीताराम ‌।।

एक बहुत ही महत्वपूर्ण कथा लिख रहा हूं शायद आप लोगों को इसके बारे में पता है या नहीं, बहुत ही सुन्दर कथा।।     भगवान शंकर...
05/08/2025

एक बहुत ही महत्वपूर्ण कथा लिख रहा हूं शायद आप लोगों को इसके बारे में पता है या नहीं, बहुत ही सुन्दर कथा।।

भगवान शंकर को एक धारा में जलाभिषेक करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है शिव लिंग पर एक धारा में जल चढ़ाएं तभी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।।

शिव लिंग किसे कहते हैं ?
शिव ---- माने --- कल्याण और लिंग --- माने --- चिन्ह ।।
जो सबका कल्याण करने वाला चिह्न है वही शिव लिंग है।।

शिव लिंग पांच प्रकार के बताए गए हैं ।

1. स्वयंभु शिव लिंग :- जो शिव लिंग
अपने आप प्रकट होते हैं, जैसे कहीं पर खुदाई हो रही है और खोदते खोदते धरती से शिव लिंग निकल आवें तो उन्हीं को स्वयंभु शिव लिंग कहा जाता है।

2. बिन्दु शिव लिंग:- जैसे कहीं भगवान शिव
का चित्र बना है या फिर मोबाइल में फोटो है पीछे फोटो लगा है उसे बिन्दु शिव लिंग कहा जाता है।।

3. प्रतिष्ठित शिव लिंग :- जैसे किसी तीर्थ स्थल (अमर कंठक) से भगवान शंकर के शिव लिंग को लाकर के ब्राह्मणों के द्वारा प्रतिष्ठित कराना इसी को प्रतिष्ठित शिव लिंग कहते हैं।

4. चर शिव लिंग, चर शिव लिंग को हम लोग कही भी ले जाकर विराजमान कर देते हैं उसे चर शिव लिंग कहते हैं।। जैसे नर्मदेश्वर महादेव,
*नर्मदा का कंकड़ हर एक शंकर* नर्मदा कंकड़ भगवान शिव का ही स्वरूप है क्योंकि इनकी प्रतिष्ठा नहीं होती है नर्मदेश्वर महादेव स्वयं प्रतिष्ठित होते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को भगवान के निराकार रूप शालिग्राम भगवान
की पूजा करनी चाहिए उसी प्रकार से प्रत्येक घर में, प्रत्येक वैष्णव
के घर में नर्मदेश्वर महादेव भी होना चाहिए। अपने घर के मन्दिर में
कभी भी चार अंगुल से बड़े शिव लिंग नहीं रखने चाहिए जिस घर में
हम लोग रहते हैं उस घर में कभी चार अंगुल से बड़े शिव लिंग नहीं रखने चाहिए। यह शिव महापुराण के विंदेश्वर सगिता में बड़े ही विस्तार से बताया गया है चार अंगुल के शिव को हम लोग कही भी अपने साथ ले जा सकते हैं।

5. गुरु शिव लिंग :- अपने गुरु के दांये पैर का जो अंगूठा है उसे
धोना चाहिए।

क्यों धोना चाहिए ?
क्यों कि गुरुदेव के दांये पैर का अंगूठा ही गुरु शिव लिंग का रुप
है।।
बंद‌उं गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।।

अमिय मूरिमय चूरन चारु ।
समन सकल भव रुज परिवारु ।।

गुरु पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ।।

गुरु पद रज मृदु रज मंजुल अंजन।
नयन अमिय दृग दोष विभंजन ।।

गुरु बिन भवनिधि तर‌इ न कोई।
जो बिरंच शंकर सम होई ।।

इस लिये, अगर आप रोज शिव लिंग पर जलाभिषेक करते हैं अगर आप को कभी शिव लिंग न मिले तो आप अपने दाहिने हाथ के अंगुष्ठ को ही शिव लिंग मानकर के जल चढ़ा दे तो भगवान शिव उसी जल को स्वीकार कर लेते हैं ऐसा महाशिवपुराण में वर्णन आता है।।

बोलो शंकर भगवान की जय हो
उमापति महादेव की जय हो
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव।।
श्री सीताराम जी महाराज की जय हो
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो
श्री गुरुदेव भगवान की जय हो 🙏 🚩 🇮🇳 🔱 ❤️

जय जय श्री सीताराम।      बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता...
04/08/2025

जय जय श्री सीताराम।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आप सभी भक्तों की सेवा मैं । भगवान की कथा में सभी भक्तों से निवेदन करता हूं कि आप अपना भाव बनाए रखना प्रत्येक कथा से हमको कुछ न कुछ मिलता है

भावना में भाव न तो भावना बेकार है।
भावना में भाव है तो भव से बेड़ा पार है।।

शास्त्र में लिखा है मेरा भारत महान और यह बात सत्य है मेरा भारत देश महान है आओ जाने,

धन्य देश सो जहं सुरसुरी।
धन्य नारि पतिव्रत अनुसरी।।

वह देश धन्य है जिस देश में गंगा बहती है और नारी भी धन्य है जो अपने पातिव्रत धर्म में अपने आप को अपने मन को लगाये रखती है वही स्त्री,नारी धन्य है।

धन्य सो भूप नीति जो कर‌ई ।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टर‌ई ।।

जो राजा न्याय और नीति में निपुण हैं न्याय करना जानता है ऐसा राजा धन्य माना गया है
वो ब्राह्मण भी धन्य है जो तीनों अवस्था में अपने धर्म पर अडिग रहता है अपने धर्म को नहीं छोड़ता वही ब्राह्मण शास्त्रों में पूज्यनीय बताया गया है।
और धन कौन सा पूज्यनीय है ?

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।
धन्य पुन्य रति मति सोई पाकी ।।

ऐसा धन जो दान में खर्च किया जाय वही धन शास्त्रों में श्रेष्ठ माना गया है और वह मानव धन्य है जिसकी बुद्धि हमेशा ही पुण्य में लगी रहती है।

( शास्त्रों में धन की तीन गति बताई गई है प्रथम गति यानी उत्तम गति दान है, द्वितीय गति है भोग, जिसे मध्यम गति कहा गया है और तीसरी गति तो मेरे पागलों अपने आप हो जाती है जिसे नाश कहते हैं। )

धन्य घरी सोइ जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।

ऐसा समय धन्य है जिस समय हमको सत्संग मिलता है वही समय महान है

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।
श्री रघुवीर परायन जैहि नर उपजि विनीत।।

भगवान शंकर माता पार्वती से कह रहे हैं पार्वती वह कुल खानदान धन्य हो जाता है जिसमें एक वैष्णव भक्त जन्म लेता है वह अपनी इक्कीस पीढ़ियों को तार देता है भूत, भविष्य और वर्तमान,सात सात पीढ़ी।।

इस लिये कथा में अपना भाव बनाए रखना क्यों कि भगवान शिव जब माता पार्वती को कथा सुनाते हैं तब जग जननी भवानी जगदम्बा मां कथा को प्रेम से सुनती है और भगवान भोलेनाथ प्रेम से कथा को सुनाते हैं।।

औरहुं एक कहहूं निज चोरी।
सुन गिरिजा दृढ़ मति अति तोरी।

म‌ईया कहने लगी भोलेनाथ आप कब से चोरी करने लगे भगवान कृष्ण को तो चोरी करते सुना था मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि आप क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो, साफ साफ बताओ।
भोलेनाथ ने कहा पार्वती यह संसार वाली चोरी नहीं भगवान के दर्शनों की चोरी।
एक बार क्या हुआ,

काग भुसुनडि संग हम दोउ ।
मनुज रूप जाने नहिं कौउ।।

कागभुसुंडि जी है भगवान शिव के शिष्य।
हे देवी एक बार की बात है मैं और मेरा शिष्य कागभुसुंडि मनुष्य का भेष बनाकर के राम जी के बाल रूप के दर्शन के लिए अयोध्या जी में गए।
कहने लगे राजमहल में हर किसी का प्रवेश नहीं था।

मान लो आपको मुख्यमंत्री जी से मिलना है आपकी जान पहचान होगी तभी तो आप मुख्यमंत्री जी से मिल पाओगे नहीं तो कोई नहीं जाने देगा।
देवी राजभवन में हमारी कोई जान पहचान तो थी नहीं, फिर ----- कागभुसुंडि ने कहा गुरुदेव एक युक्ति है

आगे की कथा जैसी हरि इच्छा
जय जय श्री सीताराम ‌।।

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