Kumar skumar

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अस्मद गुरुभयौ नमः, अस्मद सरस्वतयै नमः, अस्मद गणेशाय नमः।

कौशल्या कहि दोष न काहू ।
कर्म विवस दुख सुख क्षति लाहू।।
जय जय श्री सीताराम 🙏🙏



ॐ नमः परम हंसाय, स्वादित चरण कमल चिन मकरंदाय, भक्त जन मानस निवासाय श्री राम चन्द्राय।

कबीर दास जी कहते हैं कि मन के मारे बन गये, मन तजि बस्ती मांहि।कह कबीर मन लालची, यह कहूं ठहरत नाहि।।मन के हारे हार है, मन...
16/09/2025

कबीर दास जी कहते हैं कि

मन के मारे बन गये, मन तजि बस्ती मांहि।
कह कबीर मन लालची, यह कहूं ठहरत नाहि।।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
मन ही मिलावत राम ते, मन ही करत फजीत।।

यह तो गति है अटपटी, झटपट लखे न कोय।
जो मन की खटपट मिटे, तो चटपट दर्शन होय ।।

आदमी का मन बड़ा ही प्रबल है बड़ा ही चंचल है चलायमान है कहीं एक भाव में नहीं ठहरता है।

तो, भाव बिना संसार की वस्तु मिले नहीं मोल।
भाव बिना हरि क्यों मिले तो राधे राधे बोल।।

इस लिये ,

एकहि साधे सब सधे सब साधे सब सून।
अंक गये कछू ना रहे तो अंक रहे दस गून।।

जय जय श्री सीताराम।
श्री हनुमान जी महाराज की जय 🙏🚩🇮🇳🔱
श्री गुरुदेव भगवान की जय 🙏🚩❤️🔱

Big thanks to Mahendar Mishra, Ramsajivanyadav Ramsajivanyadavfor all your support! Congrats for being top fans on a str...
12/09/2025

Big thanks to Mahendar Mishra, Ramsajivanyadav Ramsajivanyadav

for all your support! Congrats for being top fans on a streak 🔥!

बालेपन ते हरि भजे जग ते रहे उदास।तीरथ भी आशा करें कब आवे हरि दास।।              भक्त जब तीर्थ में जाकर स्नान करता है तो ...
12/09/2025

बालेपन ते हरि भजे जग ते रहे उदास।
तीरथ भी आशा करें कब आवे हरि दास।।

भक्त जब तीर्थ में जाकर स्नान करता है तो वहां का जल पवित्र हो जाता है
और जब आम साधारण मनुष्य जाकर स्नान करता है तो वही जल अपवित्र हो जाता है क्योंकि आम आदमी अपने पापों को उस जल में धोकर अपने आप को पवित्र करने के चक्कर में पवित्र होना चाहता है
( माता गंगा भी यही कहती हैं, राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते)
इस लिये,
तीरथ भी आशा करें कब आवें हरि दास।।

तीर्थ भगवान के भक्त की आशा करता है कि भगवान का भक्त कब आएगा, कब नहायेगा, कब स्नान करेगा और कब ये मेरी जल धारा पवित्र होगी।।

राम भक्ति जहां सुरसरि धारा।
सरसहिं बृहम् विचार प्रचारा ।।
*कर्म कथा रबि नंदन बरनी*

राम जी की भक्ति ही गंगा जी हैं जहां पर बृहम् ज्ञान की चर्चा हो वह मां सरस्वती हैं।
सूर्य पुत्री यमुना जी साक्षात करमों का लेखा जोखा रखने वाली है।।

संसार में हित करने वाले कम हैं
तुलसी जग जीवन अहित कतहू कोउ हित जानि।
सोषक भानु कृसानु महि पवन एक घन दानि ।।
जगत में अहित करने वाले तो बहुत लोग हैं जीवों का हित करने वाला तो कोई बिरला एकाध है
जिस प्रकार सूर्य, पृथ्वी, अग्नि और वायु सभी जल को सोकने वाले हैं सुखाने वाले हैं, देने वाला तो एक बादल ही है

जय जय सीताराम।
श्री सीताराम जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩

मनुष्य जीवन का बड़ा ही मार्मिक चित्रण, कौन कहां तक साथ जाता है कोई भी साथ नहीं जाता, ध्यान दें, जय श्री राम साथी हैं मित...
30/08/2025

मनुष्य जीवन का बड़ा ही मार्मिक चित्रण, कौन कहां तक साथ जाता है कोई भी साथ नहीं जाता, ध्यान दें, जय श्री राम

साथी हैं मित्र गंग के जल बिन्दु पान तक!
अर्धांगिनी चलेगी केवल मकान तक !!
परिवार के सब लोग चलेंगे श्मसान तक !
और बेटा भी हक निभाएगा केवल अग्नि दान तक !!

इसके बाद क्या होगा ?

इससे तो आगे सफर है अकेला,दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला ----- !!

जीवन के इस सत्य को हम और आप सभी भली-भांति जानते हैं ,जो भी जीव इस धरा धाम पर आया है वह एक दिन इस लोक से अवश्य ही जाता है।

जीव जब यहां से जाता है तो वह अपने करमों का अनुगमन करता है अर्थात उसके कर्म आगे आगे चलते हैं और जीव उसके पीछे पीछे जाता है । जैसा बोया वैसा ही पाया।।

इस सत्य को हम और आप सब जानते हैं रोजाना ऐसी सत्य
घटनायें हमें सुनने और देखने को अक्सर मिल जाती हैं।

लेकिन जब आप गहराई में उतर कर इन शब्दों को पढ़ेंगे, यह तो आपका मन ही जान पायेगा।। सभी प्रियजनों को सादर प्रणाम

यह संतों की बाणीं है।

चार दिनों की प्रीत जगत में, चार दिनों के नाते हैं।
पलकों के परदे गिरते ही, सब नाते मिट जाते हैं।।

घर के स्वामी के जाने पर, घर की शुद्धि कराते हैं।
पिंडदान कर प्रेतात्मां से ,अपना पिंड छुटाते हैं।।

चार दिनों की प्रीत जगत में, चार दिनों के नाते हैं।।

जो पिता जीवन भर अपने परिवार के लिए क्या क्या नहीं करता।
लैकिन आंखें बन्द होते ही, आप और हम सभी इस सत्य को भली
प्रकार से जानते हैं।

पत्नीं घर के दरवाजे तक ।

बेटा अग्नि दान तक ।

नाते रिश्तेदार गांव वाले केवल श्मशान तक।

इससे तो आगे सफर है अकेला।

हृदय विदारक शब्द हैं।।

गया आदि में पिंडदान करने के बाद यह कह कर आते हैं कि तुम
अब यहीं पर रहो वहां पर मत आना।।

जय श्री राम 🙏 🙏 🚩
जय हो श्री हनुमान जी महाराज 🚩 🔱 🙏 🙏 🚩

नरसिंह भगवान कहते हैं बेटा प्रहलाद तुम्हारे पिता ने तुमको कितने कष्ट दिए हैं !     बोले प्रभु प्यारे कोमल अंग तुम्हारे ह...
30/08/2025

नरसिंह भगवान कहते हैं बेटा प्रहलाद तुम्हारे पिता ने तुमको कितने कष्ट दिए हैं !

बोले प्रभु प्यारे कोमल अंग तुम्हारे हाय , असुर ने मारे मम नाम एक गाने में में !
गिरि से गिरायो हाय जल में डुबायो पुनि, अग्नि में जलायौ राखी कमी न सताने में!!
तुमने लगाई आस प्रभु में बार बार, करुणा स्वरुप ने करुणा यों कीन्ही !
मंजुल मुखारविंद चूम कहें बार बार, क्षमा करो पुत्र मुझे देर भ‌ई आने में !!
आज भगवान नरसिंह प्रहलाद जी से क्षमा मांग रहे हैं बेटा प्रहलाद मुझे आने में बहुत देर हो गई मुझे क्षमा कर दो !!

इस लिये भगवान भक्त के अधीन है भगवान भगत के वश में।।
इसलिए भगवान कहते हैं

निर्मल मन जन सो मोहि पावा !
मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!

भ‌ईया कपट करोगे तो ध्यान रखना, टपक जाओगे ।

जय जय श्री सीताराम ।
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🚩 🇮🇳
श्री गुरुदेव भगवान की जय हो 🙏🚩❤️🔱

बन्धुओं भागवत जी का पूरा नाम है श्रीमद् भागवत महापुराण तिलकम्।।श्री ------ लक्ष्मी और मद माने होता है अहंकार ।      मैं ...
28/08/2025

बन्धुओं भागवत जी का पूरा नाम है श्रीमद् भागवत महापुराण तिलकम्।।

श्री ------ लक्ष्मी
और मद माने होता है अहंकार ।

मैं बहुत ही सुन्दर बात रहा हूं ध्यान से पढ़ना , अगर किसी व्यक्ति को जीवन में , किसी वस्तु का अहंकार आ जाय जैसे किसी को अपने धन का किसी को अपनी विद्या का किसी को अपने सौंदर्य का, तो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए ?

शास्त्रों में बताया गया है कि अगर वह व्यक्ति अपने जीवन में एक बार भागवत जी की कथा को सुन लेता है तो उसका अहंकार समाप्त हो जाता है ।

श्रीमद् भागवत। भागवत जी के चार अक्षरों का कितना सुन्दर वर्णन है ।
भ ग व त , यह चार अक्षर कोई साधारण नहीं है इन्हीं चार अक्षरों से जीव का उद्धार हो जाता है ।

भ के कहे ते भाग्य उदय होत जीवन कौ , ग के कहे ते गुमान गिर जात है।
व के कहे ते वांणीं पवित्र होत, और त के कहे ते भव सिंधु तर जात है।।

इन्हीं चार अक्षरों में भागवत जी का सार छिपा है श्रीमद् भागवत महापुराण ।।

बोलिए श्रीमद् भागवत महापुराण की जय 🙏 🙏

श्री सूत जी महाराज और सौनिकादि रिषियों का संवाद है।।सौनिकादि रिषियों ने श्री सूत जी महाराज से कहा, कि हे भगवन इस घोर कलि...
26/08/2025

श्री सूत जी महाराज और सौनिकादि रिषियों का संवाद है।।
सौनिकादि रिषियों ने श्री सूत जी महाराज से कहा, कि हे भगवन इस घोर कलिकाल में दुख में पड़े हुए प्राणी के दुख का निवारण करने वाला, दुखों से छुटकारा दिलाने वाला कोई उपाय हो तो बतावें।।
कलयुग में वेद विदित मार्ग अदृश्य होते जा रहे हैं ऐसी दशा में प्राणियों के कल्यान के लिए कौन सा मार्ग है।
हे भगवन जीव किस सहज मार्ग का आश्रय लेकर के भवसागर से पार जा सकता
है।

सूत जी महाराज ने महर्षियों की बात को सुना और कहा, हे महर्षियों श्रीमद् रामायण महाकाव्य काव्य का श्रवण ही जीव के अनंत पापों को धोने वाला है।
कलि के मल का नाश करने वाला है और हर प्रकार से मंगल प्रदान करने वाला है ।

इस लिये
रामायणं महाकाव्यं सर्व वेदषू सम्मतं ।
सर्व पाप प्रणसनम् दुष्टक गृह निवारणं ।।

श्री रामायण महाकाव्य एक मात्र सर्व वेद सम्मत है।
चारों वेद भी श्री रामायण जी के ही रहस्यों से भरे हुए हैं।
और महर्षि बाल्मीकि जी ने श्री रामायण महाकाव्य में हम लोगों के लिए सुलभ किया है कि सभी पापों का नाश करने वाला,
गृहों के प्रतिकूल प्रभाव को नष्ट करने वाला अगर कोई गृंथ हैं तो वह श्री रामायण महाकाव्य है।।

सूत जी कह रहे हैं, हे महर्षियों कलि काल के प्राणियों का कल्याण करने वाला सबसे अच्छा और श्रेष्ठ मार्ग श्री रामायण महाकाव्य का श्रवण,गायन करना ही श्रेष्ठ उपाय है।
श्लोक
*रामायणं नाम परम तुकाव्यं , सुपुन्यदम् वैष्णतु: विजेन्द्रा:*
इस लिये, हे महर्षियों परम पुन्य को प्रदान करने वाला श्रीमद रामायण महाकाव्य है इसका श्रवण करो।।

श्री रामायण महाकाव्य को सुनने के लिए मुख्यतः तीन प्रधान महीना है।
वैसे तो इसको कभी भी पढ़ा और सुना जा सकता है लेकिन उचित फल की प्राप्ति के लिए शास्त्रों में तीन मुख्य महीना बताये गये हैं ।।
पहला है चैत्र महीना
दूसरा है कार्तिक महीना
और तीसरा महीना है माघ का महीना।।

चैत्र महीना में श्री रामायण महाकाव्य की नवाहन कथा शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से लेकर नौमी ( नवमी ) तक श्रवण करनी चाहिए।

कार्तिक महीना में श्री रामायण महाकाव्य की कथा को नौ दिनों तक कार्तिक के शुक्ल पक्ष में सप्तमीं से लेकर पूर्णिमां तक श्रवण करनी चाहिए।

माघ महीने में बसन्त पंचमी से लेकर पूर्णिमां तक ( नौ दिनों तक) श्रीमद रामायण महाकाव्य की कथा को श्रवण करना चाहिये।

श्री बाल्मीकि रामायण की कथा को इन्हीं तीन महीनों में संकल्प पूर्वक सुनना चाहिए, वैसे तो नित्य ही भगवान के चरित का गुणगान करते रहना चाहिए।
भगवान श्री राम के चरित से सम्बंधित श्री रामायण महाकाव्य है ।।
अभी तक हमने स्मरण किया सूत्र में बताया था।
अब कथा में प्रवेश, सबसे पहले भगवत नाम संकीर्तन।

मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं कि कथा शुरू होने से पहले नाम संकीर्तन क्यों किया जाता है।
संक्षेप में बता रहा हूं नाम संकीर्तन एक टिकट है जिस प्रकार से जब हम किसी बस से रेलगाड़ी से, हवाई जहाज से यात्रा करते हैं तो हमें सबसे पहले एक टिकट की आवश्यकता होती है क्योंकि कि बिना टिकट यात्रा नहीं कर सकते और उस टिकट को तव तक हम लोग संभाल कर रखते हैं जब हमारी यात्रा समाप्त नहीं हो जाती ।।
ठीक उसी तरह से यह राम नाम संकीर्तन भी हमारा परलोक यात्रा का टिकट है और जब हम लोग वहां पहुंचते हैं तो टिकट मांगा जाता है और आप सभी जानते हैं टिकट न होने पर कठोर दण्ड दिया जाता है ( *बिना टिकट यात्रा करना दण्डनीय अपराध है* )
यह राम नाम की टिकट हमारे पास अवश्य ही होनी चाहिये।
सूरदास जी महाराज कहते हैं
राम नाम चित धरतौ जो तू राम नाम चित धरतौ।
सूरदास बैकुंठ पैंठ में कोउ न फेंट पकरतौ,जो तु राम नाम चित धरतौ जो तू राम नाम चित धरतौ।
इस लिये यह राम नाम संकीर्तन परलोक यात्रा का टिकट है।

सततं विहाय भोगतव्यं सहस्रम् स्नानाचरेत।
लक्षं विहाय दातव्यम् कोटि जप्ता हरिं भजेत।।
सौ काम छोड़कर के पहले भोजन करना चाहिए और हजार काम छोड़कर के नहाना चाहिए और लाख काम छोड़कर के पहले दान करने का मौका मिले तो पहले दान करना चाहिए और उसके बाद करोड़ों काम छोड़कर के अगर भगवान की कथा भगवान का भजन भगवान का नाम संकीर्तन सुनने को मिल जाए तो करोड़ काम छोड़कर कर भगवान की कथा अम्रत का रस पान करना चाहिये।।

आगे की कथा जैसी हरि इच्छा।
जय जय श्री सीताराम।

शास्त्र की आज्ञा है वाणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।वांणिलेनिं करोति सम पुरुषा या संस्कृतं धारयते ।श्रीयंते खल भूषणान...
21/08/2025

शास्त्र की आज्ञा है वाणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।

वांणिलेनिं करोति सम पुरुषा या संस्कृतं धारयते ।
श्रीयंते खल भूषणानि सतम् वाक भूषणं भूषणं।।

हमारी वांणी ही सबसे मुख्य है प्रधान है
वांणी में सबसे बड़ा दोष माना गया है।

क्या आप जानते हैं कि हमारे मुख में क्या है ?
हमारे मुख में अगिनी है।
मुख में जीभ है। जिससे हम सारे रसों को लेते हैं।
मुख में वरुण देव भी रहते हैं।
मुख में ही भगवती सरस्वती का वास है।

जिस वांणी में हमारे अगिनी है, सरस्वती हैं और वरुण देवता हैं और उसी वांणी से जब हम किसी को गाली देते हैं अपशब्द बोलते हैं उस समय हमारे द्वारा तीनों देवताओं का सरस्वती,अगिनी और वरुण देव का भयंकर अपराध होता है जो अक्षम्य है

इसलिए कभी भी किसी को भूलकर भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।

बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानि।
हिये तराजू तौलकर तब मुख बाहर आनि।।

हृदय की तराजू में शब्दों को तौलकर के ही मुख से बाहर लाना चाहिए , शब्दों का कोई मोल नहीं होता शब्द अनमोल होते हैं।।

इस लिये भ‌ईया व्यक्ति को जीवन में हमेशा ही

दिमाग को मस्त ,शरीर को दुरुस्त ,
जेब को कड़क और आंखों में शालीनता ।

मुख में ठंड, हृदय में प्रेम,
क्रोध पर नियंत्रण और होटों पर मुस्कान,

करके देख लो जीवन बदल जायेगा।

रन वन व्याधि विपत्ति में जहां रहे यह देह।
तुलसी सीताराम सों लगयौ चाहिए नेह ।।

जय जय श्री सीताराम।।
श्री सीताराम जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩
श्री हनुमान जी महाराज की जय हो 🙏 🙏 🚩 ❤️

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Rabinder Pandit, Ram Kumar Shrivastava, ...
16/08/2025

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Rabinder Pandit, Ram Kumar Shrivastava, Balram Yadav

श्री राम: शरणं समस्त जगताम् रामम् बिना का गति।रामेणप प्रति हन्यते कलि मलम् रामस्य कार्यम् नमः।।श्लोक रामात्रस्यति काल भी...
16/08/2025

श्री राम: शरणं समस्त जगताम् रामम् बिना का गति।
रामेणप प्रति हन्यते कलि मलम् रामस्य कार्यम् नमः।।

श्लोक
रामात्रस्यति काल भीमभुजगो, रामस्य सर्वम् वसे।
रामे भक्तिर अखंडता भवतू में रामे त्वमेवाश्रय: ।।
वेद व्यास जी ने भगवान का स्मरण किया है और उसके बाद भगवान को संस्कृत व्याकरण की सारी विभूतियों में नमस्कार करते हैं।

*श्री राम: शरणं समस्त जगताम्*
मैं उन श्री राम जी की शरणागति को स्वीकार करता हूं।
भगवान श्री राम के चरणों में बारम्बार नमस्कार प्रणाम करता हूं जो श्री राम सारे संसार को शरण देने वाले हैं।
श्री राम जी केवल एक प्राणी मात्र के शरणय हैं ।

सुग्रीव जी, विभीषण जी, त्रसकृत होकर आकाश मार्ग से आकर के समुद्र के इस पार खड़े हो गए और विभीषण जी ने आवाज लगाकर कहा है।

श्लोक
रावणो नाम दुर्दन्तो राक्षसो राक्षसेश्वर: ।
तस्याहम् अनुजो प्राप्त: विभीषण इति श्रुतम्।।
मैं दुर्दान्त राक्षस और राक्षसों के स्वामी रावण का छोटा भाई हूं मेरा नाम विभीषण है
हे बन्दर भालुओं, *निवेदयत माम क्षिप्रम राघवाय महात्मने* ।
हे बन्दर भालुओं मेरा उस महात्मां श्री राम जी के चरणों में निवेदन करके कहना कि मैं श्री राम जी की शरण में आया हूं श्री राम जी शरणय हैं।
जो अपनी शरण में आए हुए जीव के दोषों पर बिना विचार किए ही उस अनगृह करता है , जीव को भय मुक्त करता है वही शरणय है।
इस लिये भगवान श्री राम, *राम: शरणं समस्त जगताम्*
इस लिये श्री राम जी ही समस्त प्राणी मात्र के शरणय हैं
सम्पूर्ण संसार में सभी के श्री राम का ही अनगृह है और श्री राम की कृपा के बिना संसार के समस्त प्राणियों की कोई गति नहीं है।
गति माने प्राप्ति
गति माने मोक्ष
गति माने चाल
इस लिये, रामं बिना का गति
श्री राम के बिना कोई गति नहीं है
सारे संसार में राम जी के बिना कोई आश्रय देने वाला नहीं है। और श्री राम जी ही समस्त संसार को शरण देने वाले हैं।।

जय जय श्री सीताराम

इस लिये, जन्मप व्याधि जरा विपत्ति , नाना प्रकार के संकट, तथा मृत्यु, ये जो उपद्रव हैं इन सबको बड़ी ही सहजता से मनुष्य पा...
12/08/2025

इस लिये, जन्मप व्याधि जरा विपत्ति ,
नाना प्रकार के संकट, तथा मृत्यु, ये जो उपद्रव हैं इन सबको बड़ी ही सहजता से मनुष्य पार करके भव सागर से सहज ही पार हो जाता है। और साकेताधीस भगवान श्री राम के चरणों का आश्रय प्राप्त कर लेता है।
इस लिये रामायण महाकाव्य संसार के समस्त रोगों का समन करने वाला है।

वेदों का तात्पर्य समझाने वाला प्रथम महाकाव्य है।

श्रीमद् रामायण महाकाव्य सबसे प्राचीन है ।
जैसा कि हम आप सब लोग जानते हैं हमारी संस्कृति और सनातन धर्म का यह वासंतिक नवरात्र के प्रथम वर्ष का प्रथम दिन वसंत पंचमी से ही शुरू होता है।
सबसे बड़ी बात है कि आज ही के दिन भारत राष्ट्र की आत्मां को , भारतीयता को भारतीय संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक ने आज ही के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई थी।

श्रीमद् रामायण में ही महर्षि बाल्मीकि कह रहे हैं
नतति भविता राष्ट्रम् यत्र रामो न भूपति।

वह राष्ट्र राष्ट्र नहीं है वह देश देश नहीं है जहां श्री राम राजा नहीं हैं ।
बाल्मीकि रामायण में आया है कि देवी कैकेई से गुरु देव वशिष्ठ जी ने कहा था ।

नतति भविता राष्ट्रम् यत्र रामो न भूपति।

जहां श्री राम राजा नहीं होंगे वह राष्ट्र राष्ट्र नहीं होगा वह राष्ट्र विनाश की ओर जायेगा।

तद वनं भविता राष्ट्रम् यत्र रामो निवस्यति।।

वह वन ही राष्ट्र होगा जिस वन में श्री राम निवास करेंगे।।

यानी, तहां अवध जहां राम निवासू ।
श्री राम ही राष्ट्र हैं श्री राम ही राष्ट्र की आत्मां हैं
इस लिये हमारे यहां कहा जाता है कि हमें श्री राम के आदर्शो अपने जीवन में उतारना चाहिए ।
हमारे यहां दो इतिहास गृंथ हैं वेद भगवान क्या कहना चाहते हैं इस को समझाने के लिए श्रुति भगवती कहती हैं।
इतिहास पुराणाभ्याम् वेदं समुप बृंगहे।
वेद भगवान अल्पश्रुत व्यक्ति से भयभीत होते हैं कि यह अल्पश्रुत है अग्यानी है मूढ़ है इसने गुरु जनों के चरणों में बैठकर के परम्परागत शास्त्रों का सम्यक अनुशीलन नहीं किया है ।
इस लिये यह वेद भगवान के हार्त को प्रकट करता है तो यह पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं कर सकता ।
इस लिये अल्पश्रुता व्यक्ति से वेद भगवान भी डरते हैं कि यह अर्थ का अनर्थ कर देगा।
इस लिये वेद भगवान के तात्पर्य को समझाने के लिए दो इतिहास और पुराण है ।

इतिहास पुराण से अधिक प्रामाणिक है क्योंकि कि इतिहास का पूर्व प्रयोग किया गया है।

इतिहास दो है
एक तो श्रीमद् रामायणं
और दूसरा है -महाभारत।।
अठारह पुराण तो आप जानते ही हैं।
जो श्रीमद् रामायण महाकाव्य है वह महाभारत से भी श्रेष्ठ है
क्यों कि महाभारत में भाई भाई का सब कुछ हड़प कर लेता है।
अपने गुरुओं के उपर शस्त्र का प्रयोग करता है।
अपने स्वजनों के साथ भयंकर युद्ध होता है।
जहां परस्पर द्वन्द है जहां परस्पर हिंसा है उसे महाभारत कहते हैं।

और जहां पर एक भाई अपने भाई के लिए अपना सर्वस्व सुख का त्याग कर देता है ।
श्री राम चौदह वर्ष के लिए वन में है तो श्री भरत जी महाराज चौदह वर्ष तक नन्दीग्राम में रहकर के गोमूत्र यावक वृत करते हैं।

जय जय श्री सीताराम।

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