
02/07/2025
सावन के महीने में शिव भक्तों द्वारा "कावड़ लाना" एक अत्यंत पवित्र और लोकप्रिय धार्मिक परंपरा है, विशेष रूप से उत्तर भारत में। यह परंपरा भगवान शिव की भक्ति से जुड़ी हुई है, और इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और भावनात्मक पहलू होते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं:
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🔱 कावड़ यात्रा क्या है?
कावड़ यात्रा में शिव भक्त (जिन्हें "कावड़िये" कहा जाता है) गंगा नदी से पवित्र जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और उस जल को अपने नजदीकी या किसी विशेष शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह विशेष रूप से सावन के महीने में होती है।
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📜 कावड़ लाने के पीछे के पौराणिक तथ्य:
1. समुद्र मंथन की कथा:
जब देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया, तो उससे विष (हलाहल) निकला, जिससे संपूर्ण सृष्टि को विनाश का खतरा था।
तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए वह विष पी लिया।
विष पीने से उनका गला नीला हो गया, इसलिए वे नीलकंठ कहलाए।
उस विष की ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया।
👉 इसी परंपरा के तहत आज भी भक्त सावन में गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं ताकि भगवान शिव को शीतलता मिले।
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2. श्रवण कुमार की कथा:
रामायण के अनुसार, श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कंधों पर कांवड़ में लेकर तीर्थ यात्रा पर निकले थे।
यह उदाहरण भक्ति, सेवा और त्याग का प्रतीक है।
इसी से "कांवड़" शब्द का प्रयोग शिवभक्तों की इस यात्रा में होने लगा।
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🙏 धार्मिक महत्व:
ऐसा माना जाता है कि सावन में भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है।
कांवड़ लाकर जल चढ़ाने से पापों का नाश होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
यह भक्ति, तपस्या और संयम का प्रतीक है।
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📅 सावन महीना क्यों विशेष है?
सावन महीना भगवान शिव का प्रिय मास है।
यह मास चंद्रमा की चाल के अनुसार श्रावण नक्षत्र में आता है, जो शिवजी से जुड़ा है।
सोमवार व्रत और कांवड़ यात्रा इसी महीने में विशेष रूप से की जाती है।
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💡 आज के संदर्भ में कांवड़ यात्रा:
उत्तर भारत में जैसे हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, सुल्तानगंज आदि से भक्त गंगाजल भरते हैं।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखंड और मध्य भारत में यह परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है।
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🔚 निष्कर्ष:
कांवड़ लाना सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि शिव भक्तों के लिए आस्था, तपस्या और सेवा का प्रतीक है। यह परंपरा भगवान शिव को प्रसन्न करने, पापों से मुक्ति पाने और आत्मिक शुद्धि के लिए की जाती है।