05/09/2022
हिंदुस्तान की बड़ी मस्जिदों में बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी उत्तर भारत में किसी मुस्लिम शासक द्वारा बनवाई गई प्रथम यादगार है। इस विशाल मस्जिद की नींव क़िले के अंदर 607 हिजरी सन् 1210 ईस्वी में बदायूं के गवर्नर शमसुद्दीन अल्तमश ने रखी थी और तत्पश्चात अल्तमश के भारतवर्ष का सुल्तान बन जाने के बाद 1223 ई० में बनकर तैयार हुई।
मस्जिद के बाहर चारों कोनों पर कुतुबमीनार की तरह चार मीनारें हैं इसी तरह मस्जिद में अंदर भी चार मीनारें बनी है जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि दिल्ली की क़ुतुब मीनार से नक़्शा लिया गया होगा मस्जिद का मुख्य दरवाज़ा लाल पत्थर का बना है। दरवाज़े पर पत्थर में अरबी भाषा में आयत खुदी हुई है। सबसे ऊपर दो छोटी मीनारें पत्थर तराश कर बनाई गई है। इस दरवाज़े पर बनी नक़्काशी, बनावट व भाषा शैली फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाज़े से मेल खाती है। यह दरवाज़ा मुग़ल हुकूमत में बना हुआ मालूम होता है। हालांकि कुछ इतिहासकारों ने ऐसे अंग्रेज़ शासन में बनवाया हुआ लिखा है जो कि ग़लत प्रतीत होता है। दरअसल अंग्रेज़ शासन में हिंदुस्तान में बनी इमारतों में पत्थर के इस्तेमाल की जगह ईंट का इस्तेमाल किया गया है। मस्जिद के अंदर मुख्य हॉल के बाहर पत्थर पर खुदे दो क़तबे(शिलालेख) लगे हैं जो मुग़ल हुकूमत के दौर के हैं।
सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश की बनवाई हुई इस जामा मस्जिद शम्सी के प्रथम इमाम हज़रत निजामुद्दीन औलिया महबूब ए इलाही के वालिद हज़रत सैयद अहमद बुख़ारी रहमतुल्ला थे।
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