
22/06/2024
भारत का संविधान विश्व के प्रत्येक नागरिक के जीवन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। भारतीय संविधान प्राचीन पाँच थ्योरियों के आधार पर लिखा गया था।
♻️ शिक्षा
♻️ न्याय
♻️ समान अधिकार
♻️ विकास
♻️ समृद्धि
01 theory | शिक्षा
भारत की पुरानी शिक्षा पद्धति के आधार पर विश्व के प्रत्येक देश के लोग सुखी और संतुष्ट जीवन का रहस्य समझे।
02 theory | न्याय
विश्व का प्रत्येक देश प्रकृति के पार्टो की रक्षा करें और पृथ्वी को विश्व के सभी देश सम्मान की दृष्टि से देखे।
03 theory | समान अधिकार
विश्व के प्रत्येक देश का पृथ्वी पर समान अधिकार रहे, ताकि सदियों तक किसी भी दो देशों के बीच तनाव और मनमुटाव उत्पन्न नहीं हो।
04 theory | विकास
विश्व के सभी लोगों का मानसिक विकास हो, ताकि विश्व के किसी भी परिवार की माँ की आँखो से आंसू बरसने की परिस्थितियां उत्पन्न नहीं हो।
05 theory | समृद्धि
विश्व के सभी लोगों का कल्याण हो, इसी को सेक्षप शब्दों में “समृद्धि” कहते हैं।
भारतीय संविधान गरिमा और यह पोस्ट मुख्य पाँच प्रश्नों के साथ समझेंगे।
1. शिक्षा का अर्थ क्या है?
2. संविधान की पाँच थ्योरियां परिवार में कैसे खुशियां और समृद्धि की मुख्य वजह बनती है?
3. संविधान की पाँच थ्योरियों के द्वारा युवाओं में सफलता की मानसिकता कैसे विकसित होती है?
4. हमें कैसे पता चले कि हम भारत के संविधान के अनुसार लाइफ स्पेंड कर रहे है?
5. भारत में कितने लोग संविधान के अनुसार लाइफ स्पेंड कर रहे है?
भारतीय संविधान विश्व के प्रत्येक परिवार की खुशहाली की फीलिंग से लिखा गया हैं। आज कई परिवारों के सदस्यों में आपसी विचार मैच नहीं होते हैं… क्योंकि इंसान की मेमोरी में अलग-अलग इंफॉर्मेशन स्टोर हो जाती है तो फिर एक दूसरे के विचार मैच नहीं होते हैं।
आज देश में भी कई बुद्धिजीवियों के विचार मैच नहीं होते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि बुद्धिजीवियों की मेमोरी में संविधान के प्रति गलत जानकारी स्टोर करवाई जाती हैं। इसलिए फिर कई बुद्धिजीवियों के आपसी विचार मैच नहीं होते हैं। क्योंकि जैसी मेमोरी में जानकारी स्टोर होगी वैसे ही सभी विचार उत्पन्न होंगे। लेकिन संविधान की पाँच थ्योरियों को सभी बुद्धिजीवियों ने मिलकर समझ लिया है तो फिर किसी भी बुद्धिजीवी वर्ग में आपसी मनमुटाव उत्पन्न नहीं हो सकता है और बुद्धिजीवियों के परिवार के सदस्यों में भी आपसी मनमुटाव दूर हो जाता हैं।
Axoim टीम पेज की सभी पोस्ट के वाक्य “सिर्फ पढ़ने से कोई विशेष फायदा” होने वाला नहीं है, लेकिन पढ़ने के साथ-साथ वाक्यों को समझ रहे है और वाक्यों के बैकग्राउंड की पॉजिटिव फीलिंग कैच कर रहे है तो फिर हमारी मानसिकता ऑटोमोड पर पॉजिटिव बनती जाएगी। फिर परिवार के सदस्यों के बीच आपसी मनमुटाव उत्पन्न हो ही नहीं सकता हैं।
प्रश्न 01 | शिक्षा का अर्थ क्या है?
शिक्षा का अर्थ वाक्य को पढ़ लेना नहीं है और पोस्ट को पढ़ लेना भी नहीं है…कई पुस्तकों को पढ़ लेना भी नहीं है, लेकिन शिक्षा का सही अर्थ यह है कि लिखे हुए वाक्यों को “ समझने “ की योग्यता विकसित जाए और लिखे हुए वाक्यों की फीलिंग कैच करना सीख जाए।
आपके शरीर की उम्र 22-25 साल की हो गई है और आप गवर्नमेंट रिकॉर्ड के अनुसार ग्रेजुएट हो गए है, लेकिन परिवार के सदस्यों से बात करते समय शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग add करना नहीं सीखा है….? तो फिर आप अभी तक गवर्नमेंट रिकॉर्ड के अनुसार शिक्षित व्यक्ति हो लेकिन आप खुद की नज़रों में ग्रेजुएट इन्सान नहीं हो… परिवार के सदस्यों की नज़रों में आप ग्रेजुएट नहीं हुए है…समाज की नज़रों में आप अभी तक ग्रेजुएट इंसान नहीं हुए हैं…
आपके अन्दर किसी से बात करते हुए या फिर किसी की बात सुनते समय उसके शब्दों और वाक्यों के बैकग्राउंड की फीलिंग कैच करने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर आप ग्रेजुएट होते हुए भी जीवन में हमेशा दुःखी और परेशान ही होंगे। क्योंकि फीलिंग कैच करने की योग्यता नहीं है तो फिर कोई भी नेगेटिव मानसिकता वाला ग्रेजुएट इन्सान आपके साथ फ्रॉड कर सकता हैं।
सभी पुस्तकों की सभी जानकारी मेमोरी में स्टोर कर ली है तो फिर आपको अच्छी जॉब तो मिल सकती है, लेकिन आपके अन्दर “समझ” विकसित हुई है या नहीं हुई है? यह क्लिकर रिपोर्ट तो आपके पेरेंट्स और जीवनसाथी से ही मिलेंगी। अगर आपके अवचेतन मन का 15% तक का हिस्सा विकसित नहीं हुआ है तो फिर आपका व्यवहार परिवार के सदस्यों के लिए नेगेटिव होगा और नेगेटिव विचारधारा के दोस्तों के लिए आपका व्यवहार पॉजिटिव होगा।
अवचेतन मन का हिस्सा 15% तक विकसित नहीं हुआ है तो फिर आपके शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग aad हो ही नहीं सकती हैं। जब शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग aad करने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर किसी से बात करते हुए वाक्यों में ऑटोमेटिक नेगेटिव फीलिंग add हो जाएगी और फिर उसी वाक्य से दोनों सदस्यों के बीच मतभेद उत्पन्न होता हैं ।वही वाक्य फिर परिवार में अशांति की मुख्य “वजह”बन जाता हैं ।
किसी से बात करते समय आपके शब्दों में नेगेटिव फीलिंग add हो गई है तो फिर पूरा वाक्य नेगेटिव बन जाएगा। यानी वॉइस बॉक्स (गले) से नेगेटिव फीलिंग add होकर वाक्य बाहर निकलेगा। फिर वही वाक्य आपके परिवार में सभी प्रोब्लम की मुख्य वजह बन जाता हैं । कई ग्रेजुएट इन्सान एक नेगेटिव वाक्य पर पूरी उम्र जम्पिंग करते ही रहते हैं।
कुछ ग्रेजुएट इन्सान परिवार के किसी एक सदस्य के नेगेटिव वाक्य से इम्प्रेस होकर और उसी वाक्य से चिपक-कर लाइफ टाइम तक घर व कोर्ट के बीच में जम्पिंग करते ही रहते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि शिक्षा के साथ-साथ “समझ” विकसित नहीं हुई हैं। शिक्षा लेते समय मैथ के सब्जेक्ट में बहुत ही कमजोर होंगे, इसलिए किसी गलत निर्णय का मल्टीप्लाई करना नहीं सीखा हैं। बाकी मैथ के सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लाए होते तो फिर नेगेटिव निर्णय का रिजल्ट पहले से ही हमारे पास विचारों के रूप में तैयार हो जाता हैं।
अगर हमारी समझ कमजोर है और परिवार का कोई सदस्य हमें पॉजिटिव निर्णय देगा तो भी हमें नेगेटिव व्यू से देखने की योग्यता विकसित हो जाएगी। यानी हम पॉजिटिव वाक्यों को भी नेगेटिव में कन्वर्ट करते हुए समझेंगे।
साधारण इन्सान के अंदर वाक्यों को पढ़ने और लिखने की योग्यता विकसित है, लेकिन दूसरों के साथ पॉजिटिव व्यवहार व्यवहार कैसे करना है? दूसरों को सकारात्मक निर्णय देने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर इन्सान पढ़ा-लिखा होते हुए भी भीतर से अनपढ़ ही हैं.. अशिक्षित ही हैं। ऐसे लोगों के पास बड़ी जॉब होगी तब भी वहाँ पर करपशन करेगा और देश के विकास में बाधाएं उत्पन्न करता ही रहेगा।
जो ग्रेजुएट इंसान सकारात्मक निर्णय नहीं दे सकता है, वह ग्रेजुएट नागरिक राजनीतिक पार्टी का सदस्य बना हुआ है तब भी वह अनपढ़ ही हैं। क्योंकि उम्र तो बढ़ गई है लेकिन समझ विकसित नहीं हुई है और सकारात्मक निर्णय देने की योग्यता विकसित नहीं हुई हैं।
आज ऐसे कुछ ग्रेजुएट नागरिकों की लाइन लगी हुई है जो कि देश में अशान्ति फैलाने का महान कार्य करते है और देश के भविष्य के साथ अन्याय करने के अपराध को ही अपना मुख्य कर्तव्य समझते हैं। जब इन्सान के अन्दर “समझ ब्लॉक” हो जाती है तो फिर वह निर्णय भी देश के भविष्य के लिए रिवर्स ही लेगा। फिर ऐसे अपराधी दूसरों के परिवारों को तोड़ने का महान कार्य करते है और कुछ उच्चे पद पर बैठे हुए बुद्धिजीवी भी तीन बंदर की भूमिका निभाते हैं। यानी बुरा मत देखो.. बुरा मत बोलो.. और.. बुरा मन सुनो.. लेकिन जब देश के ज़िम्मेदार इन्सान भी काल्पनिक बंदरों की कहानियों के द्वारा दूसरों को गुमराह करते है और पशुओं के व्यवहार की कॉपी करने लग जाते है तो फिर देश के विकास की नींव कमजोर हो जाती हैं। फिर देश का भविष्य भी गलत दिशा में मुड़ जाता हैं।
यह वाक्य हम गहराई से समझेंगे, जब परिवार के मुख्य सदस्य की ऐसी मानसिकता बन जाती है कि
♻️ बुरा मत देखो…
♻️ बुरा मत सुनो…
♻️ बुरा मत बोलो…
तो फिर परिवार की नींव कमजोर होना लगभग तय हो जाता हैं। यह 100% सच्चाई है कोई बुद्धिजीवी बनकर यह सच्चाई एक्सेप्ट नहीं कर सकता है…? यह अलग बात हैं। मगर यह सच्चाई जब रिजल्ट में कन्वर्ट होगी तो फिर एक्सेप्ट करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं रहता हैं।
अगर आप परिवार के मुख्य सदस्य हो और आप तीनों बंदरों की कहानी की कॉपी कर रहे है तो फिर परिवार की खुशियों को ही आप नष्ट करने का अपराध कर रहे हैं। लेकिन अभी एक प्रश्न हमारे अंदर उठ रहा है कि परिवार के दो सदस्यों के बीच में आपसी मनमुटाव उत्पन्न हो रहा है तो फिर हम क्या करें…?
आपको पाँच वाक्य गहराई से समझने अत्यंत जरूरी हैं।
1. बुरा मत सोचो..
2. बुरा मत सुनो..
3. बुरा मत देखो….
4. बुरा मत बोलो…
5. बुरा मत करो…
वाक्य 01 | बुरा मत सोचो
बुरा मत सोचो…बुरा मत बोलो.. बुरा मत देखो.. बुरा मत सुनो.. यह वाक्य दूसरों को बोलना बहुत ही आसान कार्य है… लेकिन खुद को बोलना बहुत ही महान कार्य हैं। ऐसे वाक्य दूसरों के आगे पॉलिटिकल थ्योरियों के साथ बोलना बहुत ही आसान कार्य है और पॉलिटिकल थ्योरियों के साथ दूसरों के लिए लिखना भी बहुत ही आसान कार्य हैं, लेकिन खुद के लिए “लिखना” सबसे “महान कार्य” हैं।
“बुरा मत सोचो” यह वाक्य समझना सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं। अगर यह वाक्य “बुरा मत सोचो” गहराई से समझ में आ गया है तो फिर आपके परिवार का सदस्य बुरा बोल भी नहीं सकता हैं। क्योंकि किसी को बुरा बोलने से पहले उसके लिए पहले “बुरा सोचा जाता “ हैं फिर बूरा बोलने की प्रकिया शुरू होती है।
इन वाक्यों को हम खुद के लिए समझेंगे तो फिर भीतर की नासमझी दूर होने लग जाऐगी और जब दूसरों के लिए समझेंगे तो फिर नासमझी की मानसिकता विकसित होने लग जाऐगी। लेकिन खुद के लिए “समझ” लिया है या फिर परिवार के सदस्यों के लिए पढ़कर “समझ” लिया है तो फिर “समझ” विकसित होनी शुरू हो जाती हैं। परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर समझ लिया है तो फिर फास्ट स्पीड से सभी की “समझ” विकसित होगी और जब “समझ” विकसित हो गई है तो फिर एक सदस्य दूसरे सदस्य के प्रति “बुरा सोच” भी नहीं सकता हैं।
दुनिया के सभी मनोवैज्ञानिक, विशेषज्ञ और फिलोसोफर ने यह स्वीकार किया हैं। यानी सिर्फ माना ही नहीं है.. स्वीकार भी किया है कि परिवार के सदस्यों के प्रति बुरी मानसिकता रखने पर ही दूसरों के लिए बुरे विचार उत्पन्न होते हैं। बुरी मानसिकता कैसे विकसित होती है….? बुरा देखने पर ही बुरी मानसिकता का निर्माण होता है.. बुरा सुनने पर ही बुरी मानसिकता का निर्माण होता है….मानसिकता बुरी (नेगेटिव) बनते ही मन से बुरे (नेगेटिव) विचार उत्पन्न होने लग जाते हैं।
हमार पेज की अन्य पोस्ट के द्वारा और हमारी हिन्दी पुस्तक “the reality of your mind” से भी आप खुद की मानसिकता की रिपोर्ट चेक कर सकते है और परिवार के सदस्यों की मानसिकता की रिपोर्ट भी चेक कर सकते हैं। नेगेटिव मानसिकता को कैसे कन्वर्ट किया जाता हैं…? यह भी बहुत ही आसान उपाय मिलेगा। लेकिन अभी कम शब्दों में यह समझते है कि परिवार के किसी सदस्य की मानसिकता नेगेटिव बनी हुई है तो फिर सिर्फ चार उपाय से ही तीन हफ्ते के अन्दर उसकी मानसिकता पॉजिटिव में कन्वर्ट कर सकते हैं।
पहला उपाय यह है कि परिवार के किसी सदस्य की नेगेटिव मानसिकता बनी हुई है तो फिर आपको उस सदस्य का दोस्त बनना होगा। यानी किसी के 16 साल के बेटे की मानसिकता नेगेटिव बनी हुई है तो फिर बच्चे और पापा को दोस्त बनने की ज़्यादा ज़रूरत हैं। अगर किसी के बेटेजी की 20-25 साल की उम्र हो गई है तब भी पापाजी को दोस्त बनने की ज़्यादा ज़रूरत हैं। क्योंकि जब आप सच्चा दोस्त बनोगे तभी आप नेगेटिव मानसिकता वाले “बेटेजी” की नेगेटिव मानसिकता डिलीट करने में कामयाब हो सकते हैं। अगर आप बॉस बनकर बेटेजी की नेगेटिव मानसिकता डिलीट करने की कोशिश करेंगे तो फिर आप हमेशा ही असफल होंगे और कई बुद्धिजीवी पापाजी तो आखिरी श्वास तक भी बेटेजी के दोस्त नहीं बन पाते हैं।
कई बेटे भी अपने पापा की आखिरी श्वास तक दोस्त नहीं बन पाते है, इसलिए परिवार की खुशियां बढ़ाना चाहते है तो फिर आज से ही अपने बच्चों को रिस्पेक्ट देने की शुरुआत करनी चाहिए। अगर बच्चे को कोई गलती से नेगेटिव आदत लग गई है तो फिर दोस्त बनकर रिस्पेक्ट के साथ हेल्प करनी चाहिए। किसी भी नेगेटिव आदत का रिजल्ट 8 से 10 स्टेप तक बच्चे को रिस्पेक्ट के साथ समझाएंगे तो फिर बच्चा हमेशा के लिए उस आदत से बाहर निकल जाएगा। अगर आप बॉस बनकर 20 स्टेप तक भी रिजल्ट समझाएंगे तो फिर आप हमेशा असफल ही होंगे।
बुद्धिजीवियों के काल्पनिक विचारों से खुद को और बच्चों को हमेशा दूर रहना चाहिए। यानी जो बुद्धिजीवी अपनी मनगढ़ंत कहानी के द्वारा आपके परिवार के सदस्य को “नश्वर” कहते है, उनके विचारों से हमेशा दूरी मेंटेन करनी अत्यंत ज़रूरी हैं। क्योंकि हमारी प्राचीन spiritual पुस्तकों में और भारतीय संविधान के अनुसार परिवार का सदस्य “नश्वर” होता है, ऐसा लिखा हुआ नहीं हैं।
हमारे परिवार के सभी सदस्य हमारे दादाजी के सुन्दर सपनो का हिस्सा हैं। दादाजी की सुन्दर दुनिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए ऐसे बुद्धिजीवी के विचारों से हमेशा दूरी मेंटेन करनी चाहिए। जो बुद्धिजीवी परिवार के आपसी रिश्तों में फूट-डालकर राजनीति करना चाहते है उनके विचारों से हमेशा दूर ही रहना चाहिए और अपने बच्चों के अन्दर भी यह “समझ” विकसित करनी चाहिए कि जो हमारे परिवार के सदस्यों को बुरा बोल रहा है, उससे हमेशा दूरी मेंटेन करनी चाहिए। क्योंकि बुद्धिजीवियों के विचार बच्चे की मेमोरी में स्टोर हो गए है तो फिर वह परिवार के सदस्यों से नफ़रत करने लग जाएगा।
बच्चों की “समझ” विकसित करने के लिए किसी भी बुद्धिजीवी का उदाहरण देकर आप उसकी “समझ” विकसित बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। अगर आप पूरे दिन बुद्धिजीवी बनकर घूमते ही रहे और बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता डेवलप करने में ध्यान नहीं दिया है तो फिर आपके ही बच्चे आपके लिए सभी परेशानी की मुख्य वजह बन जाएंगे। फिर आपके पास भी काल्पनिक बहाने बहुत होंगे कि ज़माना बहुत ही ख़राब है… वो ऐसा है.. वैसा है… उसने मेरे बच्चे को बिगाड़ दिया…..अरे सरजी बच्चे को आपने ही बिगाड़ा हैं….जब आप अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे तो फिर नेगेटिव व्यक्ति तो आपके बच्चों पर ध्यान देगा ही….यह बिलकुल सीधी मैथ हैं…क्योंकि जब आप खुद का कर्तव्य नहीं निभा रहे है तो फिर नेगेटिव व्यक्ति तो अपना कर्तव्य निभाएंगे ही….यह प्रकृति का सदियों से अटल सिद्धांत चल रहा हैं।
क्योंकि गलती शुरुआत में आपकी ही थी कि आप बुद्धिजीवी इन्सान बन गए थे और एक बुद्धिजीवी को दूसरा बुद्धिजीवी बहुत ही आसानी से मिल जाता हैं। फिर तीसरे दोस्त के लिए दोनों बुद्धिजीवियों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं। अगर आप कर्तव्यहीन बन गए है तो फिर कई दोस्त आपको आसानी से मिल जाएंगे और आपके अंदर नासमझी की मानसिकता विकसित करने में सभी दोस्त हेल्पर बनेंगे। क्योंकि आपके परिवार की नींव कमजोर करने में ही नेगेटिव दोस्तों को खुशियां मिलती हैं। इसलिए आप अपने बच्चों से प्रेम करते है तो फिर आपको अब “समझदार” बनना बहुत ही जरूरी है और बच्चों को बुद्धिजीवियों की काल्पनिक कहानियों से भी दूर रखना बहुत ही जरुरी हैं।
आज कई बुद्धिजीवियों का मुख्य उद्देश्य बन गया है और उन्होंने टारगेट लिया हुआ है कि आपके बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता जितनी जल्दी डैमेज होगी उतना ही उनका उद्देश्य जल्दी पूरा होगा। ऐसे बुद्धिजीवियों को देश के कई गद्दार नागरिक सपोर्ट भी करते है और दूसरों के अंदर नेगेटिव मानसिकता विकसित करने का अपराध भी करते हैं। इसलिए अपने बच्चों को “समझदार” बनाना परिवार के मुख्य सदस्य और दूसरे सदस्यों का भी मुख्य कर्तव्य हैं।
दूसरा उपाय यह है कि सकारात्मक सोच वाले परिवार के सदस्य का साथ देने की आदत बनानी होगी। यानी परिवार के किसी एक सदस्य की नेगेटिव मानसिकता बनी हुई है, वह खुद के प्रॉफिट के लिए नेगेटिव दोस्त के विचारों में ट्रैप होकर कोई गलत निर्णय ले रहा है तो फिर उसका साथ नहीं देना है और उनको दूर भी नहीं करना हैं। बल्कि “सम्मान” के साथ उनकी “समझ” विकसित करनी हैं। जब उनकी “समझ” विकसित हो गई तो फिर उनका निर्णय बदल जाएगा। ऐसा हमारी टीम के सदस्यों ने अपने बच्चों पर प्रैक्टिकल प्रयोग किया है और हमारे बच्चों में पॉजिटिव मानसिकता डेवलप होते हुए हम देख रहे हैं।
हमारे बच्चों में मानसिक डेवलपमेंट तेज़ी से हो रहा है और सही निर्णय लेने की ग्रोथ रेट बहुत ही तेज़ी से विकसित भी हो रही हैं। हमारे बच्चे कभी-कभी तो हमें भी सही निर्णय देते हैं। यानी जहाँ पर हम दोनों निर्णय नहीं ले सकते है, वहाँ पर बच्चे हमको आईडिया देते हैं। हमने सिर्फ उनको माइंड डेवलपमेंट की थ्योरियों के द्वारा पूरी लाइफ की पिक्चर समझाई हैं। साथ में यह भी क्लैरिटी से समझा दिया है कि जब सही निर्णय लेंगे तो आपका भविष्य कैसा होगा और गलत निर्णय लेंगे तो फिर आपका भविष्य कैसा होगा…?
सिर्फ इतना ही समझाया हैं। अगर आपका भी बच्चा 13-14 साल का है और उसके अन्दर सही निर्णय लेने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर आसान हिन्दी भाषा में लिखी हुई “the reality of your mind पुस्तक” के दो अध्याय आपके बच्चे के भविष्य में पॉजिटिव मानसिकता डेवलप करने में बहुत ही हेल्पर बन सकते हैं।
जो आप बच्चों को 10 साल मेहनत करते हुए “समझ” विकसित करने की कोशिश करेंगे या फिर जो बच्चे का माइंड डेवलप होगा…वही कार्य इस पुस्तक की सहायता से सिर्फ तीन महीने में पूरा हो जाएगा। लेकिन यह पुस्तक पहले पेरेंट्स को पढ़नी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। तभी आप बच्चों की नेगेटिव मानसिकता को पॉजिटिव में कन्वर्ट कर सकते हैं।
यह दूसरा उपाय बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। परिवार के सदस्यों को रिस्पेक्ट के साथ निर्णय लेने की आदत विकसित करनी होगी। सही का साथ देने की आदत बढ़ानी है और परिवार के नेगेटिव सदस्य को रिस्पेक्ट के साथ समझाना बहुत ही जरूरी हैं। यानी आप परिवार के मुख्य सदस्य है तो फिर सदस्यों के बीच न्याय करना सीखना अत्यंत ज़रूरी हैं। लेकिन हमारे एजुकेशन सिस्टम में परिवार के सदस्यों के साथ कैसे न्याय करना है, यह पढ़ाया ही नहीं जाता है…? जबकि परिवार में सबसे ज़्यादा तो इसी शिक्षा की ज़रूरत है कि दोनों सदस्यों में कभी आपसी मनमुटाव हो जाए तो कैसे दूर करना हैं…?
यानी हमारे एजुकेशन सिस्टम में न्याय शिक्षा और नीतिशास्त्र बहुत ही कम पढ़ाया जाता हैं। जबकि इन्सान की ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा जरूरत तो इसी शिक्षा की हैं। क्योंकि इन्सान को न्याय शिक्षा और नीतिशास्त्र की शिक्षा नहीं मिलती है तो फिर परिवार की छोटी प्रॉब्लम भी भविष्य में बड़ी प्रॉब्लम में कन्वर्ट हो जाती हैं। अगर इन्सान को परिवार के सदस्यों में न्याय करने की शिक्षा मिल गई है तो फिर भविष्य में प्रॉब्लम उत्पन्न होने से पहले ही ख़त्म हो जाती हैं।
यह महत्वपूर्ण जानकारी एजुकेशन सिस्टम में add नहीं होने की वजह से परिवार के दो सदस्य को ज़रा सी बात पर कोर्ट और घर के बीच में चक्कर लगाने पड़ते है और फिर ज़रा सी बात भी “बड़ी प्रॉब्लम “में कन्वर्ट हो जाती हैं।
परिवार के सदस्यों के बीच न्याय करने का अधिकार और परिवार के सदस्यों के बीच कैसे न्याय होता हैं? यह महत्वपूर्ण जानकारी एजुकेशन सिस्टम में क्यों अभी तक add नहीं हुई हैं…? या फिर गलती से add नहीं हुई थी….या फिर कुछ बुद्धिजीवी अपने पर्सनल फ़ायदे के लिए add करना नहीं चाहते थे….? यह हमारे पास अभी तक क्लियर रिपोर्ट नहीं हैं। अगर भविष्य में हमारे पास क्लिकर रिपोर्ट आ गई तो फिर हम इस पेज की पोस्ट पर देने की कोशिश करेंगे। लेकिन आपके पास यह क्लियर रिपोर्ट है तो फिर आप कमेंट बॉक्स में मर्यादित भाषा के साथ लिख सकते हैं। जो कि हमारे लिए और दूसरों के लिए ज्ञानवर्धक होगी। लेकिन कुल मिलाकर बात यह है कि गलत इन्सान को सम्मान के साथ-साथ गलत बोलने की योग्यता हमारे अन्दर विकसित होनी अत्यंत ज़रूरी हैं।
तीसरा उपाय यह है कि बच्चों के आगे हमारे परिवार की रियल हिस्ट्री बतानी चाहिए। यानी हमारे दादाजी के संघर्ष की कहानी बच्चों की मेमोरी में स्टोर करनी चाहिए। दादाजी के संघर्ष की कहानी से बच्चों की नेगेटिव मानसिकता में जबरदस्त परिवर्तन ला सकते हैं। दादाजी विपरीत परिस्थितियों में कैसे निर्णय लेते थे….? यह जानकारी बच्चों की मेमोरी में स्टोर करनी अभी अत्यंत जरूरी हैं। क्योंकि आज कुछ परिवारों के बच्चों में नेगेटिव मानसिकता ज़्यादा डेवलप हो रही हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि बच्चों ने “आदर्श” नेगेटिव मानसिकता के लोगों को बना दिया हैं। फिर जैसे नेगेटिव मानसिकता के लोग निर्णय लेते हैं, वैसे ही आपके परिवार के बच्चे भी नेगेटिव निर्णय लेते ही रहेंगे। अगर माइंड की प्रोग्रामिंग नेगेटिव विचारों के द्वारा हुई है तो फिर निर्णय भी ऑटोमोड पर नेगेटिव ही लेंगे और अपने पेरेंट्स के सपनों के विपरीत निर्णय लेना ही उनको पॉजिटिव कार्य लगेगा।
यह वाक्य कुछ बुद्धिजीवी ट्रांसलेट (अनुवाद) नहीं कर सकते है, लेकिन जिसके अन्दर थोड़ी “समझ” विकसित है, वह इन वाक्यों अच्छी तरह समझ सकते है और इन वाक्यों के बैकग्राउंड की फीलिंग भी अच्छी तरह से कैच कर सकते है कि हमारे परिवार के बुजुर्गों (दादाजी, दादीजी) के संघर्ष की कहानी बच्चों को सुनाने पर जो बच्चों में “समझ” विकसित होगी वैसी “समझ” विकसित तो हज़ारों मूवी, सीरियल या फिर वेब सीरीज देखने पर भी नहीं होगी।
दादी माँ और नानी माँ की पूरी ज़िन्दगी की कहानियाँ किसी “माँ” ने अपनी बेटी को सम्मान के साथ सुना दी है तो फिर हज़ारों सीरियल, बेव सीरीज, मूवी देखने से भी ज़्यादा बेट में “समझ” विकसित होगी। वह बेटी आपके परिवार का “नाम रोशन” करेगी और वह बेटी जिस घर में जाएगी उस घर में लाइफ टाइम तक सम्मान मिलता ही रहेगा।
यह हमारी टीम की एक सदस्य यह गारंटी ले रही हैं। लेकिन बेटी में सकारात्मक निर्णय लेने की योग्यता विकसित करने की मुख्य भूमिका “माँ” की रहती हैं। अगर माँ ही लापरवाही और कर्तव्यविमुख बनी हुई है तो फिर उस माँ की बेटी परिवार का कैसे नाम रोशन करती है….? यह महत्वपूर्ण जानकारी आप सोशल मीडिया के अन्य पेजो और रील्स के द्वारा विस्तार से प्राप्त कर सकते हैं।
चौथा उपाय है बच्चों के अन्दर खुद का कर्तव्य पूरा करने की “समझ” विकसित करनी बहुत ही ज़रूरी हैं। अगर बच्चों में खुद का कर्तव्य पूरा करने की समझ विकसित नहीं हुई है तो फिर जो भी आपने मेहनत करते हुए बैंक बैलेंस बनाया है….एक दो फ्लैट ख़रीदे है या फिर जो भी मेहनत से प्रॉपर्टी बनाई है, वह बच्चे सभाल ही नहीं पाएंगे। फिर आपको खुद के जीवन से नफ़रत होने लग जाऐगी ।इसलिए बैंक बैलेंस बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों की “समझ” भी बढ़ानी अत्यंत जरूरी हैं। तभी बच्चों में बैंक बैलेंस संभालने की योग्यता विकसित होगी और बैंक बैलेंस बढ़ाने की भी “समझ” विकसित होगी।
हमारे टीम के एक सदस्य ने रिपोर्ट तैयार की है कि 14-16 साल के बच्चों को नेगेटिव मानसिकता के लोग सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफ़ॉर्म के द्वारा बच्चों की मेमोरी में नेगेटिव जानकारी स्टोर करते हैं। फिर कुछ बच्चे 18-20 साल में पेरेंट्स के ख़िलाफ़ निर्णय लेते हैं। क्योंकि जैसी मेमोरी में जानकारी स्टोर होती है वैसे ही इन्सान के विचार उत्पन्न होते हैं। जैसे विचार उत्पन्न होंगे वैसे ही वह हर कार्य करेगा। यह सभी मनोचिकित्सक , बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों की क्लियर रिसर्च हैं।
आज सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफार्म के द्वारा ऐसे नेगेटिव मानसिकता के लोग कुछ पैसो की लालच में कई बच्चों के भविष्य के साथ धोखा करते हैं। जिस पेरेंट्स के बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय हुआ है उनको फिर कितनी ही सांत्वना दे दो.....या फिर कितना ही बड़ा पुरस्कार दे दो.....फिर भी उनके हृदय की पीड़ा ख़त्म नहीं होती हैं।
आज बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता को डैमेज करने का कार्य सोशल मीडिया और कुछ अन्य प्लेटफ़ॉर्म के द्वारा नेगेटिव मानसिकता के लोग तेज़ी से यह कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ आज कोई भी बुद्धिजीवी एक्शन लेने को तैयार नहीं हैं।
कुछ गवर्नमेंट के अधिकारी और बुद्धिजीवी नेताजी सिर्फ फॉर्मेलिटी के शब्दों से हेल्प करते हैं, लेकिन खुद का कर्तव्य नहीं निभाते हैं। देश का भविष्य डैमेज हो रहा हैं….फिर भी आँख बंद करते हुए देखते है और पॉलिटिकल शब्दों से हर जगह बचने का अपराध करते हैं। ऐसा अपराध क्यों करते हैं…? यह रहस्य अभी तक हमें समझ में नहीं आया हैं ।
आज कुछ बच्चों में तेज़ी से अपराधित मानसिकता विकसित हो रही है…? बच्चों के अंदर क्राइम करने का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा हैं। लेकिन हमारी टीम के एक सदस्य का मानना है कि पहले बच्चे मूवी, वेब सीरीज से नेगेटिव मानसिकता बच्चों के अंदर विकसित होती हैं। फिर मूवी से ही बच्चों को अपराध करने का आइडिया मिलता हैं। बच्चों में मूवी और वेब सीरीज के द्वारा नेगेटिव मानसिकता विकसित करने की स्वीकृति ऊँचे पद पर बैठे हुए लोग क्यों देते हैं…? यह रहस्य हमें अभी तक समझ नहीं आया हैं। जबकि बच्चे ही देश का भविष्य हैं। अगर 18 साल तक बच्चों में नेगेटिव विचारों के साथ मानसिकता की प्रोग्रामिंग हो गई है तो फिर ऐसे बच्चे कभी-भी दूसरों के साथ अमानवीय अपराध कर सकते हैं।
आज देश के बच्चों के और युवाओं के भविष्य की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं हैं…सिर्फ फॉर्मेलिटी और पॉलिटिकल थ्योरीयों के शब्दों के द्वारा जिम्मेदारी से बचने की योग्यता सभी के पास है…यानी आस्वाशन देना सभी को आता है, लेकिन आस्वाशन पूरा करना कई नेताजी को नेगेटिव कार्य लगता हैं।
आज कई युवा समय का सदुपयोग करते हुए…एजुकेशन सिस्टम पर भरोसा करते हुए….रात और दिन जो मेहनत करते है…उनको पाँच साल बाद समय और एनर्जी का रिफंड ही नहीं मिलता हैं। जिस युवा ने रात-दिन मेहनत की है….जिसने समय और एनर्जी खर्च की है….उसके ह्रदय की पीड़ा समझने वाला कोई नहीं हैं। ऐसे अपराध कब तक होते रहेंगे और कब तक बुद्धिजीवी आँख बंद करते हुए बैठे रहेंगे…? ऐसी गंभीर समस्या से बचने का उपाय सभी बुद्धिजीवियों के पास उपलब्ध है, लेकिन समस्या को जड़ से ख़त्म करने की हिम्मत किसी में भी आज नहीं दिख रही हैं।
बुरा मत देखो दूसरों को बोलना बहुत आसान कार्य है लेकिन बच्चों और युवाओं के साथ पहले बुरा क्यों किया जाता हैं…? यह समझने को आज कोई बुद्धिजीवी तैयार नहीं हैं। आप बुद्धिजीवी तो बन गए हो….क्योंकि बुद्धिजीवी बनना बहुत ही आसान कार्य हैं। जब दूसरों के अंदर मनमुटाव उत्पन्न करने की मानसिकता आपने विकसित कर ली है और दूसरों को गुमराह करने की आपके अंदर योग्यता विकसित हो गई है तो फिर आप बहुत ही आसानी से बुद्धिजीवी बन सकते हो….लेकिन “समझदार” इंसान बनना बहुत ही महान कार्य हैं…. साधारण इन्सान बनना बहुत ही महान कार्य हैं.....आप कब साधारण इन्सान बनेंगे और कब तक पॉलिटिकल थ्योरियों से आम पब्लिक को अंधेरे में रखेंगे….? यह कम से कम एक बार सच्चाई के साथ आम पब्लिक को बोलना चाहिए….ताकि देश की आम पब्लिक आपसे उम्मीद छोड़ दें….
वाक्य 02 | बुरा मत सुनो
हम पहले बुरा नहीं सुनेंगे तो फिर बुरा सोच भी नहीं सकते हैं। पहले हम मेमोरी में बुरा स्टोर करते हैं, फिर मेमोरी से बुरा करने का विचार उत्पन्न होता हैं। जैसे कि परिवार के दो सदस्य बुद्धिजीवी बने हुए है और हर समय मुँह पर 12 बजे रहते हैं। टेप रिकॉर्डर की तरह बिना जरूरत बजते ही रहते है तो फिर बच्चे को बहुत ही आसानी से बुरा सुनने को मिल जाता हैं। फिर बच्चों ने जैसा सुना हुआ होता है, वैसे ही नेगेटिव विचारों में वह खोए रहते हैं। फिर पापा से नफ़रत करते है या फिर मम्मी से नफ़रत करते हैं।
हमें यह वाक्य बहुत ही समझदार बनकर समझने होंगे। जैसे कि मेरा Example लेते हैं।
“मैं” अपनी मम्मी से प्रेम करती हुँ। उनकी हर बात का सम्मान करती हूँ, लेकिन मेरे पापा से नफ़रत करती हूँ तो फिर मेरी मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाएगी। अगर “मैं” पापा का सम्मान करती हुँ और मम्मी से नफ़रत करती हूँ तब मेरी मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाएगी। फिर “मैं” कितनी ही दिखावटी (फॉर्मेलिटी) या पॉलिटिकल थ्योरियों से दूसरों के आगे “सज्जन” बनने की कोशिश करू..? लेकिन सब कुछ व्यर्थ ही हैं।
बेटे की “समझ” उसी दिन से ब्लॉक होनी शुरू हो जाती है, जब वह पापा से नफ़रत करते लग जाता है या फिर मम्मी से नफ़रत करने लग जाता हैं। अगर दोनों में से किसी एक से भी भीतर ही भीतर नफ़रत करता है तो फिर बेटेजी या फिर बेटीजी की मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाती हैं। फिर ऐसे बच्चे मम्मी पापा के सपनों के विपरीत निर्णय लेते है और उनके हृदय को हर्ट करने का अपराध करते हैं।
अभी कुछ नेगेटिव वाक्य आपको सिर्फ पढ़ने है और पॉजिटिव तरीके से इन वाक्यों की फीलिंग कैच करनी हैं। अगर आपको किसी से दुश्मनी निकालनी है तो फिर जिस इन्सान से दुश्मनी है, उसके बेटे और बेटियों में पेरेंट्स के प्रति नफ़रत करना सीखाना होगा.... फिर कुछ ही सालों के बाद उसके परिवार की नींव कमजोर हो जाएगी और उनके घर के बच्चे ही उनके दुश्मन बन जाएंगे। यानी आपके ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा। यह वाक्य “समझदार” बनकर पढ़ने होंगे। क्योंकि यह टिप्स नहीं है सिर्फ आपकी “समझ” विकसित करने के लिए उदाहरण दिया गया हैं।
भाई की “समझ” उसी दिन से ब्लॉक होने लग जाती है, जब वह छोटे भाई से या बड़े भाई से ईर्ष्या (jealousy) करने लग जाता हैं। बहन की समझ उसी दिन से ब्लॉक होने लग जाती है, जब वह मम्मी पापा और भाई बहन से ईर्ष्या (jealousy) करने लग जाती हैं।
जीवन में सुखी होना है तो परिवार के सदस्यों से या फिर रिश्तेदारों से ईर्ष्या करने की आदत जितनी जल्दी छोड़गे उतना ही सुखी होंगे और साथ में पॉजिटिव मानसिकता जल्दी डेवलप होगी।
परिवार के सदस्यों से या फिर दूसरे नेगेटिव मानसिकता के लोगों से ईर्ष्या या नफ़रत करने की आदत बन गई है तो फिर कुछ ही महीनों में आपकी मानसिकता अपग्रेड हो जाएगी। यानी नेगेटिव मानसिकता विकसित हो जाएगी। लेकिन नेगेटिव मानसिकता वाला यह एक्सेप्ट भी नहीं कर सकता है कि “मेरी मानसिकता” नेगेटिव बनी हुई हैं।
नेगेटिव मानसिकता के लोगों के विचारों से जितना रिस्पेक्ट के साथ दूर रहेंगे उतना ही मन का नेगेटिव पार्ट का लेवल डाउन होगा। जितना मन का नेगेटिव पार्ट का लेवल डाउन रहेगा उतना ही आपके शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग add होकर वाक्य बनेंगे और आप जीवन में संतुष्टि का अनुभव करेंगे।
भारतीय एजुकेशन सिस्टम के द्वारा बेटे और बेटियों में इतना स्वाभिमान विकसित होता है कि अपने मम्मी पापा व भाई-बहन के सपनो के ख़िलाफ़ कोई भी निर्णय ले ही नहीं सकते हैं। लेकिन आज सोशल मीडिया पर अच्छे परिवारों के बच्चे भी कैसी नगन