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नमस्कार जी...
Axoim team पेज पर आपका स्वागत हैं। प्राचीन भारतीय पुस्तकों और थ्योरीयों के आधार पर “मन” का सम्पूर्ण विश्लेषण इस पेज की सभी पोस्ट के द्वारा आप प्राप्त कर सकते हैं।

धन्यवाद
🪷🪷🪷 भारतीय प्राचीन थ्योरी के आधार पर इंसान के “मन” का सम्पूर्ण विश्लेषण और “मन” की सम्पूर्ण जानकारी इस पेज की सभी पोस्ट के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। हमारा मन क्या है? हमारा मन शरीर के अंगो के द्वारा कैसे कार्य कर

ता है? मन से नेगेटिव और पॉजिटिव विचार कैसे उत्पन्न होते है? यह महत्वपूर्ण जानकारी इस पेज की सभी पोस्ट के द्वारा और "the reality of your mind" हिंदी पुस्तक के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। इस पुस्तक की सहायता से खुद के “मन” को गहराई से समझकर अनुभव भी कर सकते हैं।

यह पुस्तक प्राचीन भारतीय थ्योरियों के आधार पर लिखी गई हैं। यह पुस्तक एक बार पढ़ने पर खुद के “मन” का अनुभव करते हुए हम “सेल्फ-मोटिवेट” रह सकते हैं। अगर आप यह पुस्तक पढ़े बिना भी खुद को मोटिवेट रखना चाहते है तो फिर हमारे पेज की पोस्ट पढ़कर खुद को मोटिवेट कर सकते हैं। खुद की मानसिकता अपग्रेड कर सकते हैं। मन से नेगेटिव विचार उत्पन्न करने की आदत को ब्लॉक कर सकते हैं।

स्वस्थ मन ही हमारा सच्चा मित्र हैं। अस्वस्थ मन ही सबसे बड़ा दुश्मन हैं। साधारण इन्सान का मन डेवलप होने से रुक जाता है तो फिर मन “अस्वस्थ” बन जाता हैं। फिर कई मानसिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जैसे कि:

🔹 Depression मानसिक असन्तुलन
🔹 Schizophrenia काल्पनिक विचारों में खोए रहना
🔹 Anxiety चिंता, घबराहट
🔹 Phobia भय, अनजाने विचारों से डरना
🔹 Loneliness अकेलापन
🔹 OCD अनियंत्रित जुनूनी विचार उत्पन्न होना आदि

इन सभी मानसिक बीमारियों से बाहर आना अभी बहुत ही आसान कार्य हैं। यह जानकारी आप PDF के द्वारा प्राप्त करना चाहते है तो हमारे WhatsApp : +91 9810706282 पर मैसेज कर सकते हैं।

इस पुस्तक के द्वारा मन को समझकर खुद का thought system अपग्रेड कर सकते हैं।

🔹हमारे मन से बन रहे विचारों में मेमोरी से शब्द कैसे add होते है? मन से बन रहे सभी विचारों में नेगेटिव और पॉजिटिव फीलिंग कैसे add होती है? यह हमें अनुभव हो जाता हैं। फिर नेगेटिव विचार उत्पन्न करने की आदत ही ब्लॉक हो जाती हैं। यह भी हम इस पुस्तक के द्वारा अनुभव कर सकते हैं।

🔹साधारण इन्सान का मन डेवलप नहीं होने पर कैसी उसकी नेगेटिव मानसिकता बन जाती है? यह महत्वपूर्ण जानकारी भी इस पुस्तक के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

🔹साधारण इन्सान का मन डेवलप नहीं होने पर कैसे रिवर्स कार्य करता है? यह भी इस पुस्तक की सहायता से आप समझ सकते हैं।

🔹साधारण इन्सान का मन डेवलप नहीं होने पर फिर वह कैसे खुद के ही नेगेटिव विचारों में ट्रैप होकर दुःखी और असफल होता है? यह रहस्य भी इस पुस्तक के द्वारा समझ सकते हैं।

🔹पुस्तक में खुद के मन के अलग-अलग डायग्राम के द्वारा मन के सभी पार्ट कैसे कार्य करते है और अलग-अलग डायग्राम की हेल्प से खुद के “मन को 360० डिग्री व्यू” में समझ सकते हैं।

हमने जीवन में यह वाक्य बहुत बार सुना होगा और बोला भी होगा कि “मन” को कंट्रोल करो…..लेकिन हमारा मन क्या है? मन क्यों कंट्रोल नहीं होता है..? हम नहीं चाहते फिर भी मन से नेगेटिव और पॉजिटिव विचार क्यों उत्पन्न होते है? यह कुछ लोगों के लिए रहस्य बना हुआ हैं। लेकिन इस पेज की पोस्ट और पुस्तक के द्वारा इन प्रश्नों को हमेशा के लिए रिमूव कर सकते हैं।

साधारण इंसान के मन के अंदर प्रकृति की (108) कम्युनिकेशन स्किल्स कैसे स्टोर रहती है? यह रहस्य इस पुस्तक के द्वारा हम समझ सकते हैं। इन्ही स्किल्स को व्यवहार में इंप्लीमेंट करने पर हम जीवन में सफल और संतुष्ट रहते हैं। हमारे मन की सभी कम्युनिकेशन स्किल्स कैसे एक्टिवेट होती है और कैसे ब्लॉक होती है? यह महत्वपूर्ण जानकारी इस पुस्तक के द्वारा विस्तार से समझ सकते हैं।

पुस्तक की विशेषताएं:

1. खुद के मन को 360 व्यू से अनुभव कर सकते हैं।

2. चेतन मन (conscious mind) का पॉजिटिव पार्ट डेवलप होने पर कैसे पॉजिटिव विचार उत्पन्न होते है? यह रहस्य समझ जाते हैं।

3. अवचेतन मन (subconscious mind) कैसे हमारे भविष्य की प्लानिंग करता है? यह रहस्य हम समझ जाते हैं।

4. अवचेतन मन और चेतन मन की कम्युनिकेशन स्किल्स (36+30) कैसे एक्टिवेट होती है? प्राचीन भारतीय थ्योरीयों के आधार पर सभी स्किल्स एक्टिवेट कर सकते हैं।

5. अवचेतन मन की मुख्य स्किल्स एक्टिवेट नहीं होने पर इंसान सफलता की ऊँचाइयों से भी कैसे असफल होता है? यह महत्वपूर्ण जानकारी भी समझ सकते हैं।

6. पुरुष अपने जीवनसाथी के अवचेतन मन की मुख्य डिमांड को गहराई से समझ सकता है और स्त्री अपने जीवनसाथी के अवचेतन मन की मुख्य डिमांड को गहराई से समझ सकती हैं।

7. परिवार में आपसी मनमुटाव मन से उत्पन्न हो रहे नेगेटिव विचारों से ही शुरु होता हैं। लेकिन इस पुस्तक में “family meeting मैप” के द्वारा स्टेप टू स्टेप प्रॉब्लम को हमेशा के लिए दूर करने की महत्वपूर्ण सुविधा मिलेगी।

8. पीनियल ग्लैंड थर्ड स्टेप तक कैसे एक्टिवेट होती है और थर्ड स्टेप तक एक्टिवेट होने के बाद कैसे कार्य करती है? यह महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

9. अर्धचेतन मन (unconscious mind), अवचेतन मन (subconscious mind) और चेतन मन (conscious mind) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

10. युवाओं में नेगेटिव और पॉजिटिव मानसिकता कैसे विकसित होती है? यह क्लैरिटी से युवा समझ जाता हैं।

11. breath process के साथ मेमोरी से नेगेटिव फीलिंग रिमूव करने की महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।

12. इस पुस्तक की आसान हिंदी भाषा के साथ 13-14 साल के बच्चों को मन की फिटनेस बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।

13. डिप्रेशन किसे कहते है? कितने प्रकार का डिप्रेशन होता है? यह विस्तार से पहली बार इस पुस्तक में समझाया गया है और खुद के विचारों की हेल्प से डिप्रेशन को हमेशा के लिए दूर कर सकते हैं।

14. इस पुस्तक के द्वारा OCD, schizophrenia जैसी घातक मानसिक विकार भी खुद के मन को समझने पर हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। नेचुरल नींद के द्वारा anxiety, phobia, loneliness सभी मानसिक बीमारियों को दूर करने की महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।

15. युवा पॉजिटिव ज़िन्दगी और नेगेटिव ज़िन्दगी का कम्पेरिजन कर सकता हैं।

16. प्रत्येक साधारण इन्सान का “मन” प्रकृति की ऑटोमोड व्यवस्था में तीन स्टेप तक अपडेट होता हैं। यह महत्वपूर्ण जानकारी खुद के अनुभव के साथ कन्फर्म कर सकते हैं।

17. खुद की मानसिकता और मन की डेवलपमेंट रिपोर्ट इस पुस्तक की हेल्प से चेक कर सकते हैं।

18. यह पुस्तक पढने पर साधारण इन्सान भी अवचेतन मन की रि-प्रोग्रामिंग करते हुए नेचुरल स्वभाव, सहज जीवन (ऑटोमेटिक हैबिट) को एक्सेप्ट करते हुए एक नई पॉजिटिव जिंदगी की शुरुआत कर सकता हैं। नेगेटिव मानसिकता को अपग्रेड करने की महत्वपूर्ण सुविधा मिलेगी।

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इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी हमारे WhatsApp : +91 9810706282 पर मैसेज करने पर "पुस्तक का सारांश" PDF में उपलब्ध हैं।

thank you…
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भारत का संविधान विश्व के प्रत्येक नागरिक के जीवन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। भारतीय संविधान प्राचीन पाँच थ्य...
22/06/2024

भारत का संविधान विश्व के प्रत्येक नागरिक के जीवन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। भारतीय संविधान प्राचीन पाँच थ्योरियों के आधार पर लिखा गया था।

♻️ शिक्षा
♻️ न्याय
♻️ समान अधिकार
♻️ विकास
♻️ समृद्धि

01 theory | शिक्षा

भारत की पुरानी शिक्षा पद्धति के आधार पर विश्व के प्रत्येक देश के लोग सुखी और संतुष्ट जीवन का रहस्य समझे।

02 theory | न्याय

विश्व का प्रत्येक देश प्रकृति के पार्टो की रक्षा करें और पृथ्वी को विश्व के सभी देश सम्मान की दृष्टि से देखे।

03 theory | समान अधिकार

विश्व के प्रत्येक देश का पृथ्वी पर समान अधिकार रहे, ताकि सदियों तक किसी भी दो देशों के बीच तनाव और मनमुटाव उत्पन्न नहीं हो।

04 theory | विकास

विश्व के सभी लोगों का मानसिक विकास हो, ताकि विश्व के किसी भी परिवार की माँ की आँखो से आंसू बरसने की परिस्थितियां उत्पन्न नहीं हो।

05 theory | समृद्धि

विश्व के सभी लोगों का कल्याण हो, इसी को सेक्षप शब्दों में “समृद्धि” कहते हैं।

भारतीय संविधान गरिमा और यह पोस्ट मुख्य पाँच प्रश्नों के साथ समझेंगे।

1. शिक्षा का अर्थ क्या है?
2. संविधान की पाँच थ्योरियां परिवार में कैसे खुशियां और समृद्धि की मुख्य वजह बनती है?
3. संविधान की पाँच थ्योरियों के द्वारा युवाओं में सफलता की मानसिकता कैसे विकसित होती है?
4. हमें कैसे पता चले कि हम भारत के संविधान के अनुसार लाइफ स्पेंड कर रहे है?
5. भारत में कितने लोग संविधान के अनुसार लाइफ स्पेंड कर रहे है?

भारतीय संविधान विश्व के प्रत्येक परिवार की खुशहाली की फीलिंग से लिखा गया हैं। आज कई परिवारों के सदस्यों में आपसी विचार मैच नहीं होते हैं… क्योंकि इंसान की मेमोरी में अलग-अलग इंफॉर्मेशन स्टोर हो जाती है तो फिर एक दूसरे के विचार मैच नहीं होते हैं।

आज देश में भी कई बुद्धिजीवियों के विचार मैच नहीं होते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि बुद्धिजीवियों की मेमोरी में संविधान के प्रति गलत जानकारी स्टोर करवाई जाती हैं। इसलिए फिर कई बुद्धिजीवियों के आपसी विचार मैच नहीं होते हैं। क्योंकि जैसी मेमोरी में जानकारी स्टोर होगी वैसे ही सभी विचार उत्पन्न होंगे। लेकिन संविधान की पाँच थ्योरियों को सभी बुद्धिजीवियों ने मिलकर समझ लिया है तो फिर किसी भी बुद्धिजीवी वर्ग में आपसी मनमुटाव उत्पन्न नहीं हो सकता है और बुद्धिजीवियों के परिवार के सदस्यों में भी आपसी मनमुटाव दूर हो जाता हैं।

Axoim टीम पेज की सभी पोस्ट के वाक्य “सिर्फ पढ़ने से कोई विशेष फायदा” होने वाला नहीं है, लेकिन पढ़ने के साथ-साथ वाक्यों को समझ रहे है और वाक्यों के बैकग्राउंड की पॉजिटिव फीलिंग कैच कर रहे है तो फिर हमारी मानसिकता ऑटोमोड पर पॉजिटिव बनती जाएगी। फिर परिवार के सदस्यों के बीच आपसी मनमुटाव उत्पन्न हो ही नहीं सकता हैं।

प्रश्न 01 | शिक्षा का अर्थ क्या है?

शिक्षा का अर्थ वाक्य को पढ़ लेना नहीं है और पोस्ट को पढ़ लेना भी नहीं है…कई पुस्तकों को पढ़ लेना भी नहीं है, लेकिन शिक्षा का सही अर्थ यह है कि लिखे हुए वाक्यों को “ समझने “ की योग्यता विकसित जाए और लिखे हुए वाक्यों की फीलिंग कैच करना सीख जाए।

आपके शरीर की उम्र 22-25 साल की हो गई है और आप गवर्नमेंट रिकॉर्ड के अनुसार ग्रेजुएट हो गए है, लेकिन परिवार के सदस्यों से बात करते समय शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग add करना नहीं सीखा है….? तो फिर आप अभी तक गवर्नमेंट रिकॉर्ड के अनुसार शिक्षित व्यक्ति हो लेकिन आप खुद की नज़रों में ग्रेजुएट इन्सान नहीं हो… परिवार के सदस्यों की नज़रों में आप ग्रेजुएट नहीं हुए है…समाज की नज़रों में आप अभी तक ग्रेजुएट इंसान नहीं हुए हैं…

आपके अन्दर किसी से बात करते हुए या फिर किसी की बात सुनते समय उसके शब्दों और वाक्यों के बैकग्राउंड की फीलिंग कैच करने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर आप ग्रेजुएट होते हुए भी जीवन में हमेशा दुःखी और परेशान ही होंगे। क्योंकि फीलिंग कैच करने की योग्यता नहीं है तो फिर कोई भी नेगेटिव मानसिकता वाला ग्रेजुएट इन्सान आपके साथ फ्रॉड कर सकता हैं।

सभी पुस्तकों की सभी जानकारी मेमोरी में स्टोर कर ली है तो फिर आपको अच्छी जॉब तो मिल सकती है, लेकिन आपके अन्दर “समझ” विकसित हुई है या नहीं हुई है? यह क्लिकर रिपोर्ट तो आपके पेरेंट्स और जीवनसाथी से ही मिलेंगी। अगर आपके अवचेतन मन का 15% तक का हिस्सा विकसित नहीं हुआ है तो फिर आपका व्यवहार परिवार के सदस्यों के लिए नेगेटिव होगा और नेगेटिव विचारधारा के दोस्तों के लिए आपका व्यवहार पॉजिटिव होगा।

अवचेतन मन का हिस्सा 15% तक विकसित नहीं हुआ है तो फिर आपके शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग aad हो ही नहीं सकती हैं। जब शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग aad करने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर किसी से बात करते हुए वाक्यों में ऑटोमेटिक नेगेटिव फीलिंग add हो जाएगी और फिर उसी वाक्य से दोनों सदस्यों के बीच मतभेद उत्पन्न होता हैं ।वही वाक्य फिर परिवार में अशांति की मुख्य “वजह”बन जाता हैं ।

किसी से बात करते समय आपके शब्दों में नेगेटिव फीलिंग add हो गई है तो फिर पूरा वाक्य नेगेटिव बन जाएगा। यानी वॉइस बॉक्स (गले) से नेगेटिव फीलिंग add होकर वाक्य बाहर निकलेगा। फिर वही वाक्य आपके परिवार में सभी प्रोब्लम की मुख्य वजह बन जाता हैं । कई ग्रेजुएट इन्सान एक नेगेटिव वाक्य पर पूरी उम्र जम्पिंग करते ही रहते हैं।

कुछ ग्रेजुएट इन्सान परिवार के किसी एक सदस्य के नेगेटिव वाक्य से इम्प्रेस होकर और उसी वाक्य से चिपक-कर लाइफ टाइम तक घर व कोर्ट के बीच में जम्पिंग करते ही रहते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि शिक्षा के साथ-साथ “समझ” विकसित नहीं हुई हैं। शिक्षा लेते समय मैथ के सब्जेक्ट में बहुत ही कमजोर होंगे, इसलिए किसी गलत निर्णय का मल्टीप्लाई करना नहीं सीखा हैं। बाकी मैथ के सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लाए होते तो फिर नेगेटिव निर्णय का रिजल्ट पहले से ही हमारे पास विचारों के रूप में तैयार हो जाता हैं।

अगर हमारी समझ कमजोर है और परिवार का कोई सदस्य हमें पॉजिटिव निर्णय देगा तो भी हमें नेगेटिव व्यू से देखने की योग्यता विकसित हो जाएगी। यानी हम पॉजिटिव वाक्यों को भी नेगेटिव में कन्वर्ट करते हुए समझेंगे।

साधारण इन्सान के अंदर वाक्यों को पढ़ने और लिखने की योग्यता विकसित है, लेकिन दूसरों के साथ पॉजिटिव व्यवहार व्यवहार कैसे करना है? दूसरों को सकारात्मक निर्णय देने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर इन्सान पढ़ा-लिखा होते हुए भी भीतर से अनपढ़ ही हैं.. अशिक्षित ही हैं। ऐसे लोगों के पास बड़ी जॉब होगी तब भी वहाँ पर करपशन करेगा और देश के विकास में बाधाएं उत्पन्न करता ही रहेगा।

जो ग्रेजुएट इंसान सकारात्मक निर्णय नहीं दे सकता है, वह ग्रेजुएट नागरिक राजनीतिक पार्टी का सदस्य बना हुआ है तब भी वह अनपढ़ ही हैं। क्योंकि उम्र तो बढ़ गई है लेकिन समझ विकसित नहीं हुई है और सकारात्मक निर्णय देने की योग्यता विकसित नहीं हुई हैं।

आज ऐसे कुछ ग्रेजुएट नागरिकों की लाइन लगी हुई है जो कि देश में अशान्ति फैलाने का महान कार्य करते है और देश के भविष्य के साथ अन्याय करने के अपराध को ही अपना मुख्य कर्तव्य समझते हैं। जब इन्सान के अन्दर “समझ ब्लॉक” हो जाती है तो फिर वह निर्णय भी देश के भविष्य के लिए रिवर्स ही लेगा। फिर ऐसे अपराधी दूसरों के परिवारों को तोड़ने का महान कार्य करते है और कुछ उच्चे पद पर बैठे हुए बुद्धिजीवी भी तीन बंदर की भूमिका निभाते हैं। यानी बुरा मत देखो.. बुरा मत बोलो.. और.. बुरा मन सुनो.. लेकिन जब देश के ज़िम्मेदार इन्सान भी काल्पनिक बंदरों की कहानियों के द्वारा दूसरों को गुमराह करते है और पशुओं के व्यवहार की कॉपी करने लग जाते है तो फिर देश के विकास की नींव कमजोर हो जाती हैं। फिर देश का भविष्य भी गलत दिशा में मुड़ जाता हैं।

यह वाक्य हम गहराई से समझेंगे, जब परिवार के मुख्य सदस्य की ऐसी मानसिकता बन जाती है कि
♻️ बुरा मत देखो…
♻️ बुरा मत सुनो…
♻️ बुरा मत बोलो…

तो फिर परिवार की नींव कमजोर होना लगभग तय हो जाता हैं। यह 100% सच्चाई है कोई बुद्धिजीवी बनकर यह सच्चाई एक्सेप्ट नहीं कर सकता है…? यह अलग बात हैं। मगर यह सच्चाई जब रिजल्ट में कन्वर्ट होगी तो फिर एक्सेप्ट करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं रहता हैं।

अगर आप परिवार के मुख्य सदस्य हो और आप तीनों बंदरों की कहानी की कॉपी कर रहे है तो फिर परिवार की खुशियों को ही आप नष्ट करने का अपराध कर रहे हैं। लेकिन अभी एक प्रश्न हमारे अंदर उठ रहा है कि परिवार के दो सदस्यों के बीच में आपसी मनमुटाव उत्पन्न हो रहा है तो फिर हम क्या करें…?

आपको पाँच वाक्य गहराई से समझने अत्यंत जरूरी हैं।

1. बुरा मत सोचो..
2. बुरा मत सुनो..
3. बुरा मत देखो….
4. बुरा मत बोलो…
5. बुरा मत करो…

वाक्य 01 | बुरा मत सोचो

बुरा मत सोचो…बुरा मत बोलो.. बुरा मत देखो.. बुरा मत सुनो.. यह वाक्य दूसरों को बोलना बहुत ही आसान कार्य है… लेकिन खुद को बोलना बहुत ही महान कार्य हैं। ऐसे वाक्य दूसरों के आगे पॉलिटिकल थ्योरियों के साथ बोलना बहुत ही आसान कार्य है और पॉलिटिकल थ्योरियों के साथ दूसरों के लिए लिखना भी बहुत ही आसान कार्य हैं, लेकिन खुद के लिए “लिखना” सबसे “महान कार्य” हैं।

“बुरा मत सोचो” यह वाक्य समझना सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं। अगर यह वाक्य “बुरा मत सोचो” गहराई से समझ में आ गया है तो फिर आपके परिवार का सदस्य बुरा बोल भी नहीं सकता हैं। क्योंकि किसी को बुरा बोलने से पहले उसके लिए पहले “बुरा सोचा जाता “ हैं फिर बूरा बोलने की प्रकिया शुरू होती है।

इन वाक्यों को हम खुद के लिए समझेंगे तो फिर भीतर की नासमझी दूर होने लग जाऐगी और जब दूसरों के लिए समझेंगे तो फिर नासमझी की मानसिकता विकसित होने लग जाऐगी। लेकिन खुद के लिए “समझ” लिया है या फिर परिवार के सदस्यों के लिए पढ़कर “समझ” लिया है तो फिर “समझ” विकसित होनी शुरू हो जाती हैं। परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर समझ लिया है तो फिर फास्ट स्पीड से सभी की “समझ” विकसित होगी और जब “समझ” विकसित हो गई है तो फिर एक सदस्य दूसरे सदस्य के प्रति “बुरा सोच” भी नहीं सकता हैं।

दुनिया के सभी मनोवैज्ञानिक, विशेषज्ञ और फिलोसोफर ने यह स्वीकार किया हैं। यानी सिर्फ माना ही नहीं है.. स्वीकार भी किया है कि परिवार के सदस्यों के प्रति बुरी मानसिकता रखने पर ही दूसरों के लिए बुरे विचार उत्पन्न होते हैं। बुरी मानसिकता कैसे विकसित होती है….? बुरा देखने पर ही बुरी मानसिकता का निर्माण होता है.. बुरा सुनने पर ही बुरी मानसिकता का निर्माण होता है….मानसिकता बुरी (नेगेटिव) बनते ही मन से बुरे (नेगेटिव) विचार उत्पन्न होने लग जाते हैं।

हमार पेज की अन्य पोस्ट के द्वारा और हमारी हिन्दी पुस्तक “the reality of your mind” से भी आप खुद की मानसिकता की रिपोर्ट चेक कर सकते है और परिवार के सदस्यों की मानसिकता की रिपोर्ट भी चेक कर सकते हैं। नेगेटिव मानसिकता को कैसे कन्वर्ट किया जाता हैं…? यह भी बहुत ही आसान उपाय मिलेगा। लेकिन अभी कम शब्दों में यह समझते है कि परिवार के किसी सदस्य की मानसिकता नेगेटिव बनी हुई है तो फिर सिर्फ चार उपाय से ही तीन हफ्ते के अन्दर उसकी मानसिकता पॉजिटिव में कन्वर्ट कर सकते हैं।

पहला उपाय यह है कि परिवार के किसी सदस्य की नेगेटिव मानसिकता बनी हुई है तो फिर आपको उस सदस्य का दोस्त बनना होगा। यानी किसी के 16 साल के बेटे की मानसिकता नेगेटिव बनी हुई है तो फिर बच्चे और पापा को दोस्त बनने की ज़्यादा ज़रूरत हैं। अगर किसी के बेटेजी की 20-25 साल की उम्र हो गई है तब भी पापाजी को दोस्त बनने की ज़्यादा ज़रूरत हैं। क्योंकि जब आप सच्चा दोस्त बनोगे तभी आप नेगेटिव मानसिकता वाले “बेटेजी” की नेगेटिव मानसिकता डिलीट करने में कामयाब हो सकते हैं। अगर आप बॉस बनकर बेटेजी की नेगेटिव मानसिकता डिलीट करने की कोशिश करेंगे तो फिर आप हमेशा ही असफल होंगे और कई बुद्धिजीवी पापाजी तो आखिरी श्वास तक भी बेटेजी के दोस्त नहीं बन पाते हैं।

कई बेटे भी अपने पापा की आखिरी श्वास तक दोस्त नहीं बन पाते है, इसलिए परिवार की खुशियां बढ़ाना चाहते है तो फिर आज से ही अपने बच्चों को रिस्पेक्ट देने की शुरुआत करनी चाहिए। अगर बच्चे को कोई गलती से नेगेटिव आदत लग गई है तो फिर दोस्त बनकर रिस्पेक्ट के साथ हेल्प करनी चाहिए। किसी भी नेगेटिव आदत का रिजल्ट 8 से 10 स्टेप तक बच्चे को रिस्पेक्ट के साथ समझाएंगे तो फिर बच्चा हमेशा के लिए उस आदत से बाहर निकल जाएगा। अगर आप बॉस बनकर 20 स्टेप तक भी रिजल्ट समझाएंगे तो फिर आप हमेशा असफल ही होंगे।

बुद्धिजीवियों के काल्पनिक विचारों से खुद को और बच्चों को हमेशा दूर रहना चाहिए। यानी जो बुद्धिजीवी अपनी मनगढ़ंत कहानी के द्वारा आपके परिवार के सदस्य को “नश्वर” कहते है, उनके विचारों से हमेशा दूरी मेंटेन करनी अत्यंत ज़रूरी हैं। क्योंकि हमारी प्राचीन spiritual पुस्तकों में और भारतीय संविधान के अनुसार परिवार का सदस्य “नश्वर” होता है, ऐसा लिखा हुआ नहीं हैं।

हमारे परिवार के सभी सदस्य हमारे दादाजी के सुन्दर सपनो का हिस्सा हैं। दादाजी की सुन्दर दुनिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए ऐसे बुद्धिजीवी के विचारों से हमेशा दूरी मेंटेन करनी चाहिए। जो बुद्धिजीवी परिवार के आपसी रिश्तों में फूट-डालकर राजनीति करना चाहते है उनके विचारों से हमेशा दूर ही रहना चाहिए और अपने बच्चों के अन्दर भी यह “समझ” विकसित करनी चाहिए कि जो हमारे परिवार के सदस्यों को बुरा बोल रहा है, उससे हमेशा दूरी मेंटेन करनी चाहिए। क्योंकि बुद्धिजीवियों के विचार बच्चे की मेमोरी में स्टोर हो गए है तो फिर वह परिवार के सदस्यों से नफ़रत करने लग जाएगा।

बच्चों की “समझ” विकसित करने के लिए किसी भी बुद्धिजीवी का उदाहरण देकर आप उसकी “समझ” विकसित बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। अगर आप पूरे दिन बुद्धिजीवी बनकर घूमते ही रहे और बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता डेवलप करने में ध्यान नहीं दिया है तो फिर आपके ही बच्चे आपके लिए सभी परेशानी की मुख्य वजह बन जाएंगे। फिर आपके पास भी काल्पनिक बहाने बहुत होंगे कि ज़माना बहुत ही ख़राब है… वो ऐसा है.. वैसा है… उसने मेरे बच्चे को बिगाड़ दिया…..अरे सरजी बच्चे को आपने ही बिगाड़ा हैं….जब आप अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे तो फिर नेगेटिव व्यक्ति तो आपके बच्चों पर ध्यान देगा ही….यह बिलकुल सीधी मैथ हैं…क्योंकि जब आप खुद का कर्तव्य नहीं निभा रहे है तो फिर नेगेटिव व्यक्ति तो अपना कर्तव्य निभाएंगे ही….यह प्रकृति का सदियों से अटल सिद्धांत चल रहा हैं।

क्योंकि गलती शुरुआत में आपकी ही थी कि आप बुद्धिजीवी इन्सान बन गए थे और एक बुद्धिजीवी को दूसरा बुद्धिजीवी बहुत ही आसानी से मिल जाता हैं। फिर तीसरे दोस्त के लिए दोनों बुद्धिजीवियों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं। अगर आप कर्तव्यहीन बन गए है तो फिर कई दोस्त आपको आसानी से मिल जाएंगे और आपके अंदर नासमझी की मानसिकता विकसित करने में सभी दोस्त हेल्पर बनेंगे। क्योंकि आपके परिवार की नींव कमजोर करने में ही नेगेटिव दोस्तों को खुशियां मिलती हैं। इसलिए आप अपने बच्चों से प्रेम करते है तो फिर आपको अब “समझदार” बनना बहुत ही जरूरी है और बच्चों को बुद्धिजीवियों की काल्पनिक कहानियों से भी दूर रखना बहुत ही जरुरी हैं।

आज कई बुद्धिजीवियों का मुख्य उद्देश्य बन गया है और उन्होंने टारगेट लिया हुआ है कि आपके बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता जितनी जल्दी डैमेज होगी उतना ही उनका उद्देश्य जल्दी पूरा होगा। ऐसे बुद्धिजीवियों को देश के कई गद्दार नागरिक सपोर्ट भी करते है और दूसरों के अंदर नेगेटिव मानसिकता विकसित करने का अपराध भी करते हैं। इसलिए अपने बच्चों को “समझदार” बनाना परिवार के मुख्य सदस्य और दूसरे सदस्यों का भी मुख्य कर्तव्य हैं।

दूसरा उपाय यह है कि सकारात्मक सोच वाले परिवार के सदस्य का साथ देने की आदत बनानी होगी। यानी परिवार के किसी एक सदस्य की नेगेटिव मानसिकता बनी हुई है, वह खुद के प्रॉफिट के लिए नेगेटिव दोस्त के विचारों में ट्रैप होकर कोई गलत निर्णय ले रहा है तो फिर उसका साथ नहीं देना है और उनको दूर भी नहीं करना हैं। बल्कि “सम्मान” के साथ उनकी “समझ” विकसित करनी हैं। जब उनकी “समझ” विकसित हो गई तो फिर उनका निर्णय बदल जाएगा। ऐसा हमारी टीम के सदस्यों ने अपने बच्चों पर प्रैक्टिकल प्रयोग किया है और हमारे बच्चों में पॉजिटिव मानसिकता डेवलप होते हुए हम देख रहे हैं।

हमारे बच्चों में मानसिक डेवलपमेंट तेज़ी से हो रहा है और सही निर्णय लेने की ग्रोथ रेट बहुत ही तेज़ी से विकसित भी हो रही हैं। हमारे बच्चे कभी-कभी तो हमें भी सही निर्णय देते हैं। यानी जहाँ पर हम दोनों निर्णय नहीं ले सकते है, वहाँ पर बच्चे हमको आईडिया देते हैं। हमने सिर्फ उनको माइंड डेवलपमेंट की थ्योरियों के द्वारा पूरी लाइफ की पिक्चर समझाई हैं। साथ में यह भी क्लैरिटी से समझा दिया है कि जब सही निर्णय लेंगे तो आपका भविष्य कैसा होगा और गलत निर्णय लेंगे तो फिर आपका भविष्य कैसा होगा…?

सिर्फ इतना ही समझाया हैं। अगर आपका भी बच्चा 13-14 साल का है और उसके अन्दर सही निर्णय लेने की योग्यता विकसित नहीं हुई है तो फिर आसान हिन्दी भाषा में लिखी हुई “the reality of your mind पुस्तक” के दो अध्याय आपके बच्चे के भविष्य में पॉजिटिव मानसिकता डेवलप करने में बहुत ही हेल्पर बन सकते हैं।

जो आप बच्चों को 10 साल मेहनत करते हुए “समझ” विकसित करने की कोशिश करेंगे या फिर जो बच्चे का माइंड डेवलप होगा…वही कार्य इस पुस्तक की सहायता से सिर्फ तीन महीने में पूरा हो जाएगा। लेकिन यह पुस्तक पहले पेरेंट्स को पढ़नी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। तभी आप बच्चों की नेगेटिव मानसिकता को पॉजिटिव में कन्वर्ट कर सकते हैं।

यह दूसरा उपाय बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। परिवार के सदस्यों को रिस्पेक्ट के साथ निर्णय लेने की आदत विकसित करनी होगी। सही का साथ देने की आदत बढ़ानी है और परिवार के नेगेटिव सदस्य को रिस्पेक्ट के साथ समझाना बहुत ही जरूरी हैं। यानी आप परिवार के मुख्य सदस्य है तो फिर सदस्यों के बीच न्याय करना सीखना अत्यंत ज़रूरी हैं। लेकिन हमारे एजुकेशन सिस्टम में परिवार के सदस्यों के साथ कैसे न्याय करना है, यह पढ़ाया ही नहीं जाता है…? जबकि परिवार में सबसे ज़्यादा तो इसी शिक्षा की ज़रूरत है कि दोनों सदस्यों में कभी आपसी मनमुटाव हो जाए तो कैसे दूर करना हैं…?

यानी हमारे एजुकेशन सिस्टम में न्याय शिक्षा और नीतिशास्त्र बहुत ही कम पढ़ाया जाता हैं। जबकि इन्सान की ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा जरूरत तो इसी शिक्षा की हैं। क्योंकि इन्सान को न्याय शिक्षा और नीतिशास्त्र की शिक्षा नहीं मिलती है तो फिर परिवार की छोटी प्रॉब्लम भी भविष्य में बड़ी प्रॉब्लम में कन्वर्ट हो जाती हैं। अगर इन्सान को परिवार के सदस्यों में न्याय करने की शिक्षा मिल गई है तो फिर भविष्य में प्रॉब्लम उत्पन्न होने से पहले ही ख़त्म हो जाती हैं।

यह महत्वपूर्ण जानकारी एजुकेशन सिस्टम में add नहीं होने की वजह से परिवार के दो सदस्य को ज़रा सी बात पर कोर्ट और घर के बीच में चक्कर लगाने पड़ते है और फिर ज़रा सी बात भी “बड़ी प्रॉब्लम “में कन्वर्ट हो जाती हैं।

परिवार के सदस्यों के बीच न्याय करने का अधिकार और परिवार के सदस्यों के बीच कैसे न्याय होता हैं? यह महत्वपूर्ण जानकारी एजुकेशन सिस्टम में क्यों अभी तक add नहीं हुई हैं…? या फिर गलती से add नहीं हुई थी….या फिर कुछ बुद्धिजीवी अपने पर्सनल फ़ायदे के लिए add करना नहीं चाहते थे….? यह हमारे पास अभी तक क्लियर रिपोर्ट नहीं हैं। अगर भविष्य में हमारे पास क्लिकर रिपोर्ट आ गई तो फिर हम इस पेज की पोस्ट पर देने की कोशिश करेंगे। लेकिन आपके पास यह क्लियर रिपोर्ट है तो फिर आप कमेंट बॉक्स में मर्यादित भाषा के साथ लिख सकते हैं। जो कि हमारे लिए और दूसरों के लिए ज्ञानवर्धक होगी। लेकिन कुल मिलाकर बात यह है कि गलत इन्सान को सम्मान के साथ-साथ गलत बोलने की योग्यता हमारे अन्दर विकसित होनी अत्यंत ज़रूरी हैं।

तीसरा उपाय यह है कि बच्चों के आगे हमारे परिवार की रियल हिस्ट्री बतानी चाहिए। यानी हमारे दादाजी के संघर्ष की कहानी बच्चों की मेमोरी में स्टोर करनी चाहिए। दादाजी के संघर्ष की कहानी से बच्चों की नेगेटिव मानसिकता में जबरदस्त परिवर्तन ला सकते हैं। दादाजी विपरीत परिस्थितियों में कैसे निर्णय लेते थे….? यह जानकारी बच्चों की मेमोरी में स्टोर करनी अभी अत्यंत जरूरी हैं। क्योंकि आज कुछ परिवारों के बच्चों में नेगेटिव मानसिकता ज़्यादा डेवलप हो रही हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि बच्चों ने “आदर्श” नेगेटिव मानसिकता के लोगों को बना दिया हैं। फिर जैसे नेगेटिव मानसिकता के लोग निर्णय लेते हैं, वैसे ही आपके परिवार के बच्चे भी नेगेटिव निर्णय लेते ही रहेंगे। अगर माइंड की प्रोग्रामिंग नेगेटिव विचारों के द्वारा हुई है तो फिर निर्णय भी ऑटोमोड पर नेगेटिव ही लेंगे और अपने पेरेंट्स के सपनों के विपरीत निर्णय लेना ही उनको पॉजिटिव कार्य लगेगा।

यह वाक्य कुछ बुद्धिजीवी ट्रांसलेट (अनुवाद) नहीं कर सकते है, लेकिन जिसके अन्दर थोड़ी “समझ” विकसित है, वह इन वाक्यों अच्छी तरह समझ सकते है और इन वाक्यों के बैकग्राउंड की फीलिंग भी अच्छी तरह से कैच कर सकते है कि हमारे परिवार के बुजुर्गों (दादाजी, दादीजी) के संघर्ष की कहानी बच्चों को सुनाने पर जो बच्चों में “समझ” विकसित होगी वैसी “समझ” विकसित तो हज़ारों मूवी, सीरियल या फिर वेब सीरीज देखने पर भी नहीं होगी।

दादी माँ और नानी माँ की पूरी ज़िन्दगी की कहानियाँ किसी “माँ” ने अपनी बेटी को सम्मान के साथ सुना दी है तो फिर हज़ारों सीरियल, बेव सीरीज, मूवी देखने से भी ज़्यादा बेट में “समझ” विकसित होगी। वह बेटी आपके परिवार का “नाम रोशन” करेगी और वह बेटी जिस घर में जाएगी उस घर में लाइफ टाइम तक सम्मान मिलता ही रहेगा।

यह हमारी टीम की एक सदस्य यह गारंटी ले रही हैं। लेकिन बेटी में सकारात्मक निर्णय लेने की योग्यता विकसित करने की मुख्य भूमिका “माँ” की रहती हैं। अगर माँ ही लापरवाही और कर्तव्यविमुख बनी हुई है तो फिर उस माँ की बेटी परिवार का कैसे नाम रोशन करती है….? यह महत्वपूर्ण जानकारी आप सोशल मीडिया के अन्य पेजो और रील्स के द्वारा विस्तार से प्राप्त कर सकते हैं।

चौथा उपाय है बच्चों के अन्दर खुद का कर्तव्य पूरा करने की “समझ” विकसित करनी बहुत ही ज़रूरी हैं। अगर बच्चों में खुद का कर्तव्य पूरा करने की समझ विकसित नहीं हुई है तो फिर जो भी आपने मेहनत करते हुए बैंक बैलेंस बनाया है….एक दो फ्लैट ख़रीदे है या फिर जो भी मेहनत से प्रॉपर्टी बनाई है, वह बच्चे सभाल ही नहीं पाएंगे। फिर आपको खुद के जीवन से नफ़रत होने लग जाऐगी ।इसलिए बैंक बैलेंस बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों की “समझ” भी बढ़ानी अत्यंत जरूरी हैं। तभी बच्चों में बैंक बैलेंस संभालने की योग्यता विकसित होगी और बैंक बैलेंस बढ़ाने की भी “समझ” विकसित होगी।

हमारे टीम के एक सदस्य ने रिपोर्ट तैयार की है कि 14-16 साल के बच्चों को नेगेटिव मानसिकता के लोग सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफ़ॉर्म के द्वारा बच्चों की मेमोरी में नेगेटिव जानकारी स्टोर करते हैं। फिर कुछ बच्चे 18-20 साल में पेरेंट्स के ख़िलाफ़ निर्णय लेते हैं। क्योंकि जैसी मेमोरी में जानकारी स्टोर होती है वैसे ही इन्सान के विचार उत्पन्न होते हैं। जैसे विचार उत्पन्न होंगे वैसे ही वह हर कार्य करेगा। यह सभी मनोचिकित्सक , बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों की क्लियर रिसर्च हैं।

आज सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफार्म के द्वारा ऐसे नेगेटिव मानसिकता के लोग कुछ पैसो की लालच में कई बच्चों के भविष्य के साथ धोखा करते हैं। जिस पेरेंट्स के बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय हुआ है उनको फिर कितनी ही सांत्वना दे दो.....या फिर कितना ही बड़ा पुरस्कार दे दो.....फिर भी उनके हृदय की पीड़ा ख़त्म नहीं होती हैं।

आज बच्चों की पॉजिटिव मानसिकता को डैमेज करने का कार्य सोशल मीडिया और कुछ अन्य प्लेटफ़ॉर्म के द्वारा नेगेटिव मानसिकता के लोग तेज़ी से यह कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ आज कोई भी बुद्धिजीवी एक्शन लेने को तैयार नहीं हैं।

कुछ गवर्नमेंट के अधिकारी और बुद्धिजीवी नेताजी सिर्फ फॉर्मेलिटी के शब्दों से हेल्प करते हैं, लेकिन खुद का कर्तव्य नहीं निभाते हैं। देश का भविष्य डैमेज हो रहा हैं….फिर भी आँख बंद करते हुए देखते है और पॉलिटिकल शब्दों से हर जगह बचने का अपराध करते हैं। ऐसा अपराध क्यों करते हैं…? यह रहस्य अभी तक हमें समझ में नहीं आया हैं ।

आज कुछ बच्चों में तेज़ी से अपराधित मानसिकता विकसित हो रही है…? बच्चों के अंदर क्राइम करने का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा हैं। लेकिन हमारी टीम के एक सदस्य का मानना है कि पहले बच्चे मूवी, वेब सीरीज से नेगेटिव मानसिकता बच्चों के अंदर विकसित होती हैं। फिर मूवी से ही बच्चों को अपराध करने का आइडिया मिलता हैं। बच्चों में मूवी और वेब सीरीज के द्वारा नेगेटिव मानसिकता विकसित करने की स्वीकृति ऊँचे पद पर बैठे हुए लोग क्यों देते हैं…? यह रहस्य हमें अभी तक समझ नहीं आया हैं। जबकि बच्चे ही देश का भविष्य हैं। अगर 18 साल तक बच्चों में नेगेटिव विचारों के साथ मानसिकता की प्रोग्रामिंग हो गई है तो फिर ऐसे बच्चे कभी-भी दूसरों के साथ अमानवीय अपराध कर सकते हैं।

आज देश के बच्चों के और युवाओं के भविष्य की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं हैं…सिर्फ फॉर्मेलिटी और पॉलिटिकल थ्योरीयों के शब्दों के द्वारा जिम्मेदारी से बचने की योग्यता सभी के पास है…यानी आस्वाशन देना सभी को आता है, लेकिन आस्वाशन पूरा करना कई नेताजी को नेगेटिव कार्य लगता हैं।

आज कई युवा समय का सदुपयोग करते हुए…एजुकेशन सिस्टम पर भरोसा करते हुए….रात और दिन जो मेहनत करते है…उनको पाँच साल बाद समय और एनर्जी का रिफंड ही नहीं मिलता हैं। जिस युवा ने रात-दिन मेहनत की है….जिसने समय और एनर्जी खर्च की है….उसके ह्रदय की पीड़ा समझने वाला कोई नहीं हैं। ऐसे अपराध कब तक होते रहेंगे और कब तक बुद्धिजीवी आँख बंद करते हुए बैठे रहेंगे…? ऐसी गंभीर समस्या से बचने का उपाय सभी बुद्धिजीवियों के पास उपलब्ध है, लेकिन समस्या को जड़ से ख़त्म करने की हिम्मत किसी में भी आज नहीं दिख रही हैं।

बुरा मत देखो दूसरों को बोलना बहुत आसान कार्य है लेकिन बच्चों और युवाओं के साथ पहले बुरा क्यों किया जाता हैं…? यह समझने को आज कोई बुद्धिजीवी तैयार नहीं हैं। आप बुद्धिजीवी तो बन गए हो….क्योंकि बुद्धिजीवी बनना बहुत ही आसान कार्य हैं। जब दूसरों के अंदर मनमुटाव उत्पन्न करने की मानसिकता आपने विकसित कर ली है और दूसरों को गुमराह करने की आपके अंदर योग्यता विकसित हो गई है तो फिर आप बहुत ही आसानी से बुद्धिजीवी बन सकते हो….लेकिन “समझदार” इंसान बनना बहुत ही महान कार्य हैं…. साधारण इन्सान बनना बहुत ही महान कार्य हैं.....आप कब साधारण इन्सान बनेंगे और कब तक पॉलिटिकल थ्योरियों से आम पब्लिक को अंधेरे में रखेंगे….? यह कम से कम एक बार सच्चाई के साथ आम पब्लिक को बोलना चाहिए….ताकि देश की आम पब्लिक आपसे उम्मीद छोड़ दें….

वाक्य 02 | बुरा मत सुनो

हम पहले बुरा नहीं सुनेंगे तो फिर बुरा सोच भी नहीं सकते हैं। पहले हम मेमोरी में बुरा स्टोर करते हैं, फिर मेमोरी से बुरा करने का विचार उत्पन्न होता हैं। जैसे कि परिवार के दो सदस्य बुद्धिजीवी बने हुए है और हर समय मुँह पर 12 बजे रहते हैं। टेप रिकॉर्डर की तरह बिना जरूरत बजते ही रहते है तो फिर बच्चे को बहुत ही आसानी से बुरा सुनने को मिल जाता हैं। फिर बच्चों ने जैसा सुना हुआ होता है, वैसे ही नेगेटिव विचारों में वह खोए रहते हैं। फिर पापा से नफ़रत करते है या फिर मम्मी से नफ़रत करते हैं।

हमें यह वाक्य बहुत ही समझदार बनकर समझने होंगे। जैसे कि मेरा Example लेते हैं।

“मैं” अपनी मम्मी से प्रेम करती हुँ। उनकी हर बात का सम्मान करती हूँ, लेकिन मेरे पापा से नफ़रत करती हूँ तो फिर मेरी मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाएगी। अगर “मैं” पापा का सम्मान करती हुँ और मम्मी से नफ़रत करती हूँ तब मेरी मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाएगी। फिर “मैं” कितनी ही दिखावटी (फॉर्मेलिटी) या पॉलिटिकल थ्योरियों से दूसरों के आगे “सज्जन” बनने की कोशिश करू..? लेकिन सब कुछ व्यर्थ ही हैं।

बेटे की “समझ” उसी दिन से ब्लॉक होनी शुरू हो जाती है, जब वह पापा से नफ़रत करते लग जाता है या फिर मम्मी से नफ़रत करने लग जाता हैं। अगर दोनों में से किसी एक से भी भीतर ही भीतर नफ़रत करता है तो फिर बेटेजी या फिर बेटीजी की मानसिकता ऑटोमोड पर नेगेटिव बन जाती हैं। फिर ऐसे बच्चे मम्मी पापा के सपनों के विपरीत निर्णय लेते है और उनके हृदय को हर्ट करने का अपराध करते हैं।

अभी कुछ नेगेटिव वाक्य आपको सिर्फ पढ़ने है और पॉजिटिव तरीके से इन वाक्यों की फीलिंग कैच करनी हैं। अगर आपको किसी से दुश्मनी निकालनी है तो फिर जिस इन्सान से दुश्मनी है, उसके बेटे और बेटियों में पेरेंट्स के प्रति नफ़रत करना सीखाना होगा.... फिर कुछ ही सालों के बाद उसके परिवार की नींव कमजोर हो जाएगी और उनके घर के बच्चे ही उनके दुश्मन बन जाएंगे। यानी आपके ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा। यह वाक्य “समझदार” बनकर पढ़ने होंगे। क्योंकि यह टिप्स नहीं है सिर्फ आपकी “समझ” विकसित करने के लिए उदाहरण दिया गया हैं।

भाई की “समझ” उसी दिन से ब्लॉक होने लग जाती है, जब वह छोटे भाई से या बड़े भाई से ईर्ष्या (jealousy) करने लग जाता हैं। बहन की समझ उसी दिन से ब्लॉक होने लग जाती है, जब वह मम्मी पापा और भाई बहन से ईर्ष्या (jealousy) करने लग जाती हैं।

जीवन में सुखी होना है तो परिवार के सदस्यों से या फिर रिश्तेदारों से ईर्ष्या करने की आदत जितनी जल्दी छोड़गे उतना ही सुखी होंगे और साथ में पॉजिटिव मानसिकता जल्दी डेवलप होगी।

परिवार के सदस्यों से या फिर दूसरे नेगेटिव मानसिकता के लोगों से ईर्ष्या या नफ़रत करने की आदत बन गई है तो फिर कुछ ही महीनों में आपकी मानसिकता अपग्रेड हो जाएगी। यानी नेगेटिव मानसिकता विकसित हो जाएगी। लेकिन नेगेटिव मानसिकता वाला यह एक्सेप्ट भी नहीं कर सकता है कि “मेरी मानसिकता” नेगेटिव बनी हुई हैं।

नेगेटिव मानसिकता के लोगों के विचारों से जितना रिस्पेक्ट के साथ दूर रहेंगे उतना ही मन का नेगेटिव पार्ट का लेवल डाउन होगा। जितना मन का नेगेटिव पार्ट का लेवल डाउन रहेगा उतना ही आपके शब्दों में पॉजिटिव फीलिंग add होकर वाक्य बनेंगे और आप जीवन में संतुष्टि का अनुभव करेंगे।

भारतीय एजुकेशन सिस्टम के द्वारा बेटे और बेटियों में इतना स्वाभिमान विकसित होता है कि अपने मम्मी पापा व भाई-बहन के सपनो के ख़िलाफ़ कोई भी निर्णय ले ही नहीं सकते हैं। लेकिन आज सोशल मीडिया पर अच्छे परिवारों के बच्चे भी कैसी नगन

सत्यमेव जयते एपिसोड-1 का पार्ट 2 समझने के लिए इसी पेज की 30-05-24 की पोस्ट पढ़ ली है तो यह पोस्ट अच्छी तरह से समझ में आ ज...
18/06/2024

सत्यमेव जयते एपिसोड-1 का पार्ट 2 समझने के लिए इसी पेज की 30-05-24 की पोस्ट पढ़ ली है तो यह पोस्ट अच्छी तरह से समझ में आ जाएगी।

यह पोस्ट हम चार प्रश्नों के साथ समझेंगे।

1. हमारा संविधान अभी तक किस स्टेप तक पहुँचा हैं…?
2. क्या भारत पहले से ही अशिक्षत देश था..?
3. पुराने समय में राजाओं पर विपरीत परिस्थितियां क्यों आती थी…?
4. विपरीत परिस्थितियों में राजा कैसे निर्णय लेते थे..?

प्रश्न 01 | हमारा संविधान अभी तक किस स्टेप तक पहुँचा है?

भारत का संविधान किसने लिखा था….संविधान लिखने में कितना समय लगा था? यह हम सभी ने हिस्ट्री में पढ़ लिया था। लेकिन संविधान लिखने के बाद हमारे महापुरुषों ने यह निर्णय लिया था कि नए संविधान को किस प्रकार से लागू करना है…? कब लागू करना है…? 25 सालों तक हमारे संविधान को किस स्टेप तक पूरा करना है….? 50 और 75 सालों तक हमारे संविधान को किस स्टेप तक पूरा करना हैं…? यह सभी ने मिलकर पूरी प्लानिंग बनाई थी और एक रोडमैप तैयार किया गया था। फिर सभी की सहमति से नया संविधान 1949 में लागू हुआ था।

हमारा संविधान प्राचीन पाँच थ्योरियों के आधार पर लिखा हुआ हैं। यह हमने पीछे की पोस्ट के द्वारा काफी समझ लिया था।

1. शिक्षा
2. न्याय
3. समान अधिकार
4. विकास
5. समृद्धि

हम यह जानकारी फिर से समझ लेते है कि संविधान को किस स्टेप तक कब और कैसे पूरा करना है? किस तरह देश का विकास करना है? देश का कितने सालों में विकसित देशों की श्रेणी में नाम दर्ज़ करना है? किस प्रकार से देश का प्रत्येक परिवार समृद्ध-संपन्न बनेगा? यह सभी महापुरुषों ने मिलकर अलग-अलग डायग्राम के द्वारा रोडमैप तैयार किया था। फिर 50 साल में 75% तक संविधान को पूरा करने का टारगेट लिया गया था। यह महान कार्य पूरा करने की योजना सभी ने मिलकर बनाई थी और पाँच स्टेप में संविधान को 99% तक पूरा करने का निर्णय लिया था।

स्टेप 01 | भारत के प्रत्येक नागरिक को कितने सालों में शिक्षित किया जाएगा?
स्टेप 02 कितने साल के बाद प्रत्येक भारतीय नागरिक को न्याय मिलेगा?
स्टेप 03 कितने साल बाद प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिया जाएगा?
स्टेप 04 देश का विकास कैसे होगा?
स्टेप 05 देश का प्रत्येक परिवार कब तक समृद्ध और खुशहाल बनेगा?

अभी हम इन पाँच स्टेप को समझेंगे। जो हमारी टीम के तीन सदस्य ने रिपोर्ट तैयार की हैं। अगर इस रिपोर्ट में कोई कमी रह गई है तो फिर हमें कमेंट में सुझाव के द्वारा अवश्य मार्गदर्शन करेंगे। ऐसी हम सभी आपसे आशा रखते हैं।

संविधान स्टेप 01 | शिक्षा
भारत के प्रत्येक नागरिक को कितने साल में शिक्षित किया जाएगा?

यह पहला स्टेप आज लगभग 90% तक कम्प्लीट हो गया हैं। लेकिन आम पब्लिक को शिक्षा का जितना फ़ायदा होना चाहिए वह अभी तक नहीं हुआ हैं। इसकी मुख्य वजह यह थी कि राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को नीतिशास्त्र की मुख्य थ्योरीयाँ पढ़ने को नहीं मिलती थी और राजनीति की सही ट्रेनिंग भी नहीं मिली थी। यानी जिसके माइंड का विकास नहीं हुआ है और कम पढ़ा लिखा देश का नागरिक भी अपनी नई राजनीतिक पार्टी बनाकर आम पब्लिक को गुमराह करने का कार्य कर सकता था।

आम पब्लिक के जरूरी मुद्दे लेकर कोई भी नई पार्टी बना लेते थे। लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों की पहले से ही प्लानिंग होती थी कि जीत गए तो फिर थोड़े बहुत फॉर्मेलिटी के लिए वादे पूरे कर लेंगे और अगर जीते ही नहीं है तो फिर क्या वादा पूरा करना हैं..? अगले पाँच सालों के बाद वही वादे काम आएंगे….कि हमारी सरकार होती तो फिर हम आज सभी वादे पूरे करते…. ऐसे वादों से 30% पब्लिक गुमराह हो जाती थी। यानी कौन सही है… और कौन ग़लत है…. इसी कन्फुजन में आम पब्लिक रहती थी।

हमारी रिपोर्ट के अनुसार आज भी ऐसी ही स्थिति बनी हुई है कि 35% पब्लिक कन्फ्यूजन की स्थिति में रहती हैं। इसलिए मतदान का आंकड़ा 65% तक ही सीमित रह गया हैं। 65% मतदान में कई संवैधानिक पार्टियों के द्वारा वोट को बाँट दिया जाता हैं। फिर कई मतदाताओं के वोट की वैल्यू ही नहीं रहती हैं।

आम पब्लिक निर्णय लेने में ही हमेशा गुमराह ही रहती है और कई वोटों की कुछ कीमत ही नहीं रहती हैं। क्योंकि वोट देने वाला किस वजह से वोट देता है और आगे वह वोट दूसरी पार्टी के पास चला जाता हैं। आम पब्लिक की सोच हमेशा divide ही रहती हैं। यह कन्फूजन का खेल क्यों स्टार्ट हुआ है और कब तक चलता रहेगा ..? यह खेल देश के भविष्य के लिए सही है या फिर साइड इफ़ेक्ट है..? यह क्लीयर रिपोर्ट तो ऊँचे पद पर बैठे हुए अधिकारी ही दे सकते हैं।

इस कन्फ्यूजन के खेल को आज की भाषा में “राजनीतिक खेल” कहा जाता हैं। कई मुवीयो में इस कन्फ्यूजन के खेल को “डर्टी पॉलिटिक्स” कहा हैं। लेकिन राजनीतिक शब्द बहुत ही वैल्युएबल और गरिमापूर्ण हैं। आज देश के कुछ नेगेटिव मानसिकता के नागरिकों ने राजनीति शब्द को “डर्टी” में कन्वर्ट करने की कोशिश में लगे हुए है और संविधान की गरिमा को ठेस पहुँचाने का अपराध भी करते हैं।

जो महापुरुषों ने देश के विकास का मैप और डायग्राम बनाया था वह सिक्योरिटी परपज के लिए आम पब्लिक तक नहीं पहुँचाया जाता है या फिर कोई अन्य कारण हैं? यह तो क्लियर रिपोर्ट सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के सदस्य ही दे सकते हैं। भविष्य में देश के विकास का डायग्राम आम पब्लिक तक पहुँचाया जाएगा? या फिर ऐसे ही आम पब्लिक को गुमराह करेंगे..? यह तो उनका पर्सनल निर्णय होगा। लेकिन हमारी टीम के सदस्यों ने तीन अलग-अलग पार्टियों के सदस्यों से वजह पूछी तो उन्होंने हमें साफ मना कर दिया कि देश के विकास का मैप और डायग्राम पर हम कुछ भी बातचीत नहीं कर सकते हैं।

संविधान को फाइनल स्टेप तक कब पूरा करना है? यह महत्वपूर्ण जानकारी कुछ राजनेताओं के पास होते हुए भी क्यों आम पब्लिक को गुमराह करते हैं? यह रहस्य हमारी टीम को अभी तक समझ में नहीं आया हैं।

अब हमारे अन्दर यह संदेह उत्पन्न होता है कि यह हमें बताना ही नहीं चाहते हैं। लेकिन हमारी टीम के एक सदस्य का मानना है कि संविधान के सभी स्टेप को पूरा करने का मैप आम पब्लिक तक पहुँच जाए तो फिर देश के 70% मतदाताओं को देश के पॉजिटिव भविष्य का विश्वास हो जाएगा और 30% मतदाताओं में देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम की मानसिकता विकसित हो जाएगी।

हमारा मानना है कि जब जी.डी.पी. रिपोर्ट आम पब्लिक के सामने है तो फिर देश के विकास के मैप से भी आम पब्लिक मोटिवेट हो सकती हैं। हमारा यह मानना सही है या फिर गलत है? यह क्लैरिटी से रिप्लाई तो देश के उच्च पद पर बैठे हुए अधिकारी ही दे सकते है और कुछ राजनीतिक पार्टियों के मुख्य सदस्य भी दे सकते हैं।

हमारा टीम के एक सदस्य का मानना है कि संविधान को फाइनल स्टेप तक कैसे पहुँचाना है? अगर यह जानकारी एजुकेशन के द्वारा शुरुआत में ही आम पब्लिक तक पहुँचाई गई होती तो फिर शायद आज कुछ राजनेता आम पब्लिक को गुमराह करने का अपराध नहीं कर सकते थे। संविधान की गरिमा और संविधान की मुख्य पाँच थ्योरीयों को एजुकेशन सिस्टम में पढ़ाया होता तो फिर आज शायद देश के प्रत्येक परिवार में ख़ुशीया होती।

देश के बच्चों को देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम के साथ संविधान की गरिमा व क़ानून की जानकारी एजुकेशन सिस्टम में मैट्रिक्स तक अलग-अलग उदाहरणों के द्वारा पढ़ाया गया होता तो फिर देश में क्राइम का जन्म ही नहीं होता।

संविधान को फाइनल स्टेप तक कैसे पहुँचाया जाए? अगर एजुकेशन सिस्टम में कुछ हिस्सा पढ़ाया गया होता तो फिर शायद आज देश की ग्रोथ रेट और जी.डी.पी. रेट अलग ही होती।

आज कुछ राजनेताओं के अन्दर देश में अशान्ति बनाए रखने की मानसिकता कौन विकसित करता हैं? यह रिपोर्ट भी हमें कोई राजनीतिक पार्टियों के सदस्य देने को तैयार नहीं है? हमने बहुत ही कोशिश की थी लेकिन असफलता ही हाथ लगी हैं। राजनेता आम पब्लिक को गुमराह क्यों करते है? यह रहस्य अभी तक हमारी टीम के सदस्यों को समझ में नहीं आया हैं।

हमारी टीम की रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को नैतिक मूल्यों की जानकारी नहीं मिलने की वजह से फिर आज जो शिक्षा का फ़ायदा होना चाहिए था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ हैं। फिर कुछ राजनीतिक पार्टियों के सदस्य खुद के कर्तव्य से दूर होते ही गए। यानी शिक्षा का गलत इस्तेमाल करने लग गए थे। इस वजह से हमारे महापुरुषों और महान नारियों ने नया संविधान लिखते समय “नई शिक्षा प्रणाली” से होने वाला बेनिफिट का सपना देखा था और जो टारगेट लिया था, वह आज भी 90% पर ही रुका हुआ हैं। अगर एजुकेशन सिस्टम में मैट्रिक्स तक संविधान की पाँच थ्योरीयां और कानून की जानकारी add होती तो फिर देश का नागरिक गुनाह (क्राइम) भी नहीं कर सकता था। क्योंकि संविधान की गरिमा और कानून की जानकारी आम पब्लिक तक पहुँच गई तो फिर आम नागरिक की सोच विकसित हो सकती थी और देश से अपराध जड़ से ख़त्म हो जाता। ऐसा सिर्फ हमारी टीम के एक सदस्य का सुझाव हैं। आप अपना नेगेटिव और पॉजिटिव सुझाव कमेंट में दे सकते हैं।

संविधान स्टेप 02 | न्याय

कितने साल के बाद प्रत्येक भारतीय नागरिक को न्याय मिलेगा?

संविधान का दूसरा स्टेप पूरा करने के लिए देश के प्रत्येक साधारण इन्सान को न्याय मिलने की व्यवस्था सभी ने मिलकर बनाई थी कि जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी देश के प्रत्येक नागरिक को न्याय देने की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। लेकिन हमारी टीम के सदस्यों की रिपोर्ट के अनुसार यह स्टेप आज लगभग 75% तक पूरा हुआ हैं। जो न्याय आम नागरिक को तीन दिन में मिल सकता है, वहीं न्याय आम नागरिक को आज 10 साल तक भी नहीं मिलता हैं। इसलिए हमारी रिपोर्ट के अनुसार यह स्टेप अभी सिर्फ 75% तक ही पहुँचा है या फिर आप खुद के प्रैक्टिकल अनुभव के द्वारा % को कम ज्यादा करते हुए भी समझ सकते हैं।

हमारी टीम के एक सदस्य कि रिपोर्ट के अनुसार यह स्टेप 99% तक पूरा करने कि ज़्यादा ज़रूरत हैं, लेकिन यह स्टेप 99% तक पूरा करने के लिए विशेषकर देश के बुद्धिजीवी वर्ग का सपोर्ट मिलना बहुत ही जरूरी हैं।

यह स्टेप 99% तक पूरा करने का निर्णय जितना जल्दी लिया जाएगा उतना ही आम नागरिक के अन्दर देशप्रेम और देशभक्ति की मानसिकता विकसित होगी। संविधान और कानून को सम्मान देने की “समझ” प्रत्येक नागरिक के अन्दर विकसित होगी।

संविधान का यह स्टेप 99% तक पूरा करने के लिए तीन निर्णय लेना अत्यंत जरूरी हैं। ऐसा हमारी टीम के एक सदस्य का मानना हैं।

1. टेक्नोलॉजी के साथ जल्दी जुड़ना होगा।
2. माइंड डेवलपमेंट पर फोकस देना अत्यंत जरूरी हैं।
3. राइट कनेक्टिविटी की प्रोग्रामिंग करनी अत्यंत जरूरी हैं।

निर्णय 01 | टेक्नोलॉजी

टेक्नोलॉजी के साथ जुड़कर यह स्टेप जल्दी पूरा हो जाता हैं। टेक्नोलॉजी के डिवाइस के बिना यह कार्य पूरा करना करीब-करीब असंभव हैं। क्योंकि जो न्याय मिलने की ग्रोथ रेट 75 सालों में होनी चाहिए थी वह अभी तक हुई नहीं है और आज यह डिफरेंस दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा हैं। क्योंकि इन्सान थक भी जाता हैं…..इन्सान से गलती भी हो जाती हैं…..इन्सान बेईमानी भी कर लेता हैं। लेकिन AI डिवाइस के द्वारा ऐसी गलतियां नहीं के बराबर होती हैं।

इन्सान की मेमोरी नेचुरल होती हैं. इसलिए इन्सान की मेमोरी में जानकारी कैपेसिटी से एक्स्ट्रा स्टोर करने की अभी तक सुविधा उपलब्ध नहीं हुई हैं। लेकिन AI डिवाइस में मेमोरी की साइज़ भी ज़रूरत के अनुसार बढ़ा सकते हैं। इन्सान को नींद भी चाहिए…लेकिन IA के डिवाइस को नीद की जरूरत ही नहीं रहती हैं। इन्सान दूसरों के नेगेटिव विचारों से अटैच होकर गलत निर्णय भी दे सकता हैं, लेकिन AI का डिवाइस ऐसी गलती कर ही नहीं सकता हैं। सिर्फ शुरुआत में राइट प्रोग्रामिंग होनी अंत्य ज़रूरी हैं। फिर AI का डिवाइस गलत निर्णय नहीं दे सकता हैं। इसलिए AI के डिवाइस के बिना यह स्टेप 99% तक पूरा करना करीब-करीब असंभव कार्य हैं।

निर्णय 02 | माइंड डेवलपमेंट

देश के प्रत्येक नागरिक के माइंड डेवलपमेंट पर कार्य करना भी अत्यंत जरूरी है, तभी संविधान के पाँच स्टेप 99% तक पूरे हो सकते हैं। जैसे आज कई बुद्धिजीवी काल्पनिक कहानियों के द्वारा और कुछ राजनेता पॉलिटिकल थ्योरियों के द्वारा देश के आम नागरिक की मानसिकता का विकास रोकने का अपराध करते हैं। यह भी बंद होना अत्यंत जरूरी हैं। प्रत्येक नागरिक के अंदर देशभक्ति और देशप्रेम की प्रोग्रामिंग AI के डिवाइस के द्वारा करनी भी अत्यंत जरूरी हैं। अगर यह निर्णय नहीं लिया तो फिर डिफरेंस बढ़ता ही जाएगा जो कि भविष्य में कम करना बहुत ही जटिल कार्य हो जाएगा। ऐसा हमारी टीम के एक सदस्य का मानना हैं।

जिस देशवासी की मैथ अच्छी है, वह यह वाक्य अच्छी तरह से समझ सकता है कि आम नागरिक के माइंड डेवलपमेंट का कार्य पूरा करने पर ही अपराध जड़ से ख़त्म होगा और AI के डिवाइस से निर्णय लेने की स्पीड बढ़ जाएगी। फिर आम पब्लिक को बहुत ही राहत मिलेगी। क्योंकि इन्सान 3 साल तक रिसर्च करने के बाद जो निर्णय लेता है, वह टेक्नोलॉजी के डिवाइस के साथ जुड़कर सिर्फ 3 मिनट में ही 360 डिग्री व्यू से रिजल्ट चेक हो जाता हैं।

हम फिर से यह वाक्य गहराई से समझेंगे कि संविधान का दूसरा स्टेप 99% तक पूरा करने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक का माइंड डेवलपमेंट का निर्णय लेना अत्यंत जरूरी हैं। जो कि सिर्फ AI के डिवाइस से ही सम्भव हैं। बाकी बुद्धिजीवियों की काल्पनिक कल्पनाएँ और कहानियों के द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक का माइंड डेवलपमेंट का कार्य पूरा करना हज़ारों सालो के बाद भी क़रीब-क़रीब असम्भव कार्य हैं। क्योंकि बुद्धिजीवी खुद के फ़ायदे के लिए आम पब्लिक को गुमराह करने का अपराध करते हैं। लेकिन टेक्नोलॉजी के डिवाइस को खुद का फायदा करने की ज़रूरत ही नहीं रहती हैं। इन्सान बेईमानी भी कर सकता हैं ….लापरवाही भी कर सकता हैं … पक्ष भी ले सकता हैं…..लेकिन टेक्नोलॉजी का डिवाइस यह गलती कर ही नहीं सकता हैं।

हमारे जीवन का अनुभव है कि जिस समय पर जो कार्य पूरा करना चाहिए था वह पूरा नहीं किया है तो फिर डिफरेंस (समय अवधि) बढ़ती ही जाती हैं। डिफरेंस को रिकवर किए बिना वह दूरी समाप्त हो ही नहीं सकती हैं। हम लापरवाह और कर्तव्यहीन बनकर उस दूरी को अनदेखा तो कर सकते है, लेकिन वह दूरी समाप्त नहीं होगी। ऊँचे पद पर बैठे हुए देश के समझदार नागरिक यह दूरी बढ़ाते है या फिर कम करते हैं..? यह सिर्फ उनका पर्सनल निर्णय हैं। लेकिन जितनी ज्यादा दूरी बढ़ती जाएगी उतना ही देश का विकास रुकेगा और आम नागरिक तनावपूर्ण स्थिति में ज़िन्दगी जीता रहेगा। इसलिए देश के भविष्य की ज़िम्मेदारी सिर्फ बुद्धिजीवी वर्ग की ही नहीं हैं….राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों की भी नहीं हैं… बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक की मुख्य जिम्मेदारी हैं।

निर्णय 03 | राइट कनेक्टिविटी

खुद के विचारों में राइट कनेक्टिविटी की प्रोग्रामिंग करनी अत्यंत जरूरी हैं। यानी देश के युवाओं के साथ जो अपराध हो रहा है, उनके विचारों की कनेक्टिविटी गलत हो रही है और कई युवाओं के माइंड की प्रोग्रामिंग भी रिवर्स हो रही हैं। जब माइंड की प्रोग्रामिंग ही रिवर्स होगी तो थॉट प्रोसेस रिवर्स कार्य करेगा। इसलिए इस पर कार्य करना अत्यंत जरूरी हैं।

आज देश में कई बुद्धिजीवी विचारों के द्वारा दूसरों को गुमराह करने की भरपूर कोशिश करते हैं। अपनी मनगढ़ंत काल्पनिक कल्पनाएँ और काल्पनिक कहानियों के द्वारा युवाओं में मानसिकता की रॉन्ग प्रोग्रामिंग करने का अपराध करते हैं। जब माइंड की प्रोग्रामिंग ही रॉन्ग होगी तो फिर “थाट सिस्टम रिवर्स वर्क” करेगा। यानी नेगेटिव विचार ज़्यादा संख्या में उत्पन्न होंगे। हमारी टीम के सभी सदस्यों का मानना है कि जैसी माइंड की प्रोग्रामिंग होगी वैसी ही मानसिकता डेवलप होगी। जैसी मानसिकता होगी वैसे ही विचार उत्पन्न होंगे और जैसे विचार उत्पन्न होते है, वैसे ही वह प्रत्येक कार्य करता हैं। फिर उसी कार्य से इंसान जीवन में सफल और असफल बनता हैं। अगर माइंड की प्रोग्रामिंग गलत हुई है तो फिर कुछ युवा अपराध के रास्ते पर कदम रखते हैं और जीवन में असफल होते हैं। फिर ऐसे युवाओं के मम्मी पापा के सभी सपने टूट जाते हैं। दूसरी तरफ बुद्धिजीवी ऐसे लोगों पर ही टारगेट ज्यादा करते है और काल्पनिक कल्पनाओं के द्वारा ऐसे पीड़ित पेरेंट्स को गुमराह करने का अपराध करते हैं।

अब गलती बुद्धिजीवी की भी नहीं हैं क्योंकि बुद्धिजीवियों के अन्दर भी जन्म से ही बिजनेस माइंड की थ्योरीयों के अनुसार प्रोग्रामिंग हुई थी। उस प्रोग्रामिंग के अनुसार ही उनका पूरा थॉट सिस्टम कार्य करता हैं।

जन्म के बाद इन्सान की मेमोरी में जैसी नेगेटिव जानकारी स्टोर होती है.. उसी के अनुसार फिर सभी विचार जनरेट होते हैं। उसी विचारों से कनेक्ट होकर युवा खुद का भविष्य डैमेज करता है और देश के विकास की ग्रोथ रेट डाउन करने का अपराध करता हैं।

साधारण इन्सान हो या फिर बुद्धिजीवी इन्सान हो…. या कोई राजनीतिक पार्टी का मुख्य सदस्य हो…अगर माइंड की प्रोग्रामिंग रॉन्ग हो गई है तो फिर वह निर्णय भी ऑटोमोड पर रिवर्स ही लेता हैं। ऐसे कई उदाहरण आज सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे।

टेक्नोलॉजी का कोई भी डिवाइस हो या इन्सान का subconscious mind हो दोनों की कार्य करने की और निर्णय लेने की प्रणाली एक ही जैसी रहती हैं। लेकिन शुरुआत में प्रोग्रामिंग रॉन्ग हो गई है तो फिर रिवर्स कार्य करते हैं। फिर देश के भविष्य के लिए प्लानिंग भी रिवर्स करता रहेगा। निर्णय भी रिवर्स देगा और रिजल्ट भी रिवर्स मिलेगा। इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक के विचारों की कनेक्टिविटी ठीक करना अत्यंत आवश्यक हैं। तभी हमारे संविधान के सभी स्टेप को 99% तक पूरा कर सकते है और हमारे महापुरुषों ने नए भारत के सपने देखते हुए जो संविधान लिखा था वह सपना भी जल्दी पूरा हो जाएगा।

किसी महापुरुष ने आँखों के आंसुओं के साथ रात और दिन नए भारत के सपने देखे होंगे….किसी को नींद में भी मेरे नए भारत का भविष्य दिखता होगा….किसी “माँ” ने अपने बेटे को देश को सौंपते समय जो सपने देखे होंगे…..किसी महापुरुष ने फाँसी को चूमते हुए… जो मेरे नए भारत के युवाओं के लिए सपने देखे होंगे…. वह साकार होंगे और देश के प्रत्येक नागरिक ने महापुरुषों के सपनों को रिस्पेक्ट के साथ आँखों में भर लिया है तो फिर उनके सपनों को साकार होने तक कोई रोक भी नहीं सकता हैं। लेकिन हमें खुद के विचारों की कनेक्टिविटी ठीक करनी होगी। देश के आम नागरिक को गुमराह करने की मानसिकता को डिलीट करना भी अत्यंत जरूरी हैं।

खुद के विचारों की कनेक्टिविटी कैसे ठीक होती है? यह महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से हमारे पेज की अन्य पोस्ट के द्वारा समझ सकते है और हिन्दी पुस्तक the reality of your mind शायद आपकी हेल्पर बन सकती हैं।

संविधान स्टेप 03 | समान अधिकार

कितने साल बाद प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिया जाएगा?

संविधान का तीसरा स्टेप प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार देने का था। लेकिन हमारी रिपोर्ट के अनुसार यह स्टेप अभी तक 30% तक पूरा हुआ हैं। यानी संविधान के दूसरे दो स्टेप 99% तक पूरे नहीं होने की वजह से यह स्टेप पूरा नहीं हुआ हैं। ऐसा हमारी टीम के एक सदस्य का मानना हैं। यह रिपोर्ट क्लियर है या फिर हमारी टीम के एक सदस्य ने मनगढ़ंत और काल्पनिक रिपोर्ट तैयार की है? आप कमेंट में अपना कीमती फीडबैक दे सकते हैं।

संविधान स्टेप 04 | देश का विकास

देश का विकास कितने सालों में होगा और इंडिया का नाम विकसित देशों की श्रेणी में कब दर्ज होगा?

संविधान को फाइनल स्टेज तक पहुँचने में यह स्टेप बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों ने और बुद्धिजीवी वर्ग ने सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों का विकास किया…..किसी ने बैंक बैलेंस का विकास किया…. किसी ने घर का विकास किया.. यानी घर में रहने वाले तो दो लोग है, लेकिन चार-पाँच घर बना लिए हैं। ऐसे नासमझों और मूर्खों को पता ही नहीं है कि एक परिवार में पाँच सदस्य भी रह सकते हैं।
लेकिन पहले तो करप्शन करते हुए सभी के नाम पर अलग-अलग घर बना लेते है और फिर कुछ कोर्ट व घर के बीच जम्पिंग करते ही रहते हैं। कुछ बेचारे सु…. ड जैसा घृणित अपराध करते हैं।

इन्सान की जब “समझ ब्लॉक” हो जाती है तो फिर संविधान और कानून के विपरीत निर्णय लेता हैं। फिर सु….ड जैसा घृणित अपराध करता हैं। शायद यह देश का विकास नहीं हैं। राष्ट्र प्रेम भी नहीं है और देशभक्ति भी नहीं हैं। अगर शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों की जानकारी और परिवार के सदस्यों से लाइफटाइम तक बॉन्डिंग कैसे रखनी है? यह महत्वपूर्ण जानकारी एजुकेशन में add होती तो फिर शायद कोई भी अधिकारी सु.......ड जैसा घृणित कार्य नहीं कर सकता है और कई युवा भी ऐसे अपराध करने से हमेशा दूर होते। फिर देश के किसी भी परिवार की “माँ” की आँखे बेटे के लिए नहीं तरसती रहती।

दुनिया में सबसे बड़ा कार्य है इन्सान बने रहना और सबसे बड़ा अपराध है साधारण इंसान की नेचुरल मानसिकता डैमेज करना। लेकिन आज कई बुद्धिजीवी आम नागरिक की मानसिकता डैमेज करने को ही मुख्य कर्तव्य समझते हैं। देश में अशान्ति फैलाने की प्रक्रिया को ही देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम समझते हैं। शायद यह “समझदारी” नहीं हैं। फिर भी कभी अकेले में बैठकर एक बार सोचना चाहिए…? कि हम किस दिशा में जा रहे हैं….? भागे ही जा रहे हैं…. फ़ुर्सत ही नहीं हैं… पीछे देखने की योग्यता ही ब्लॉक हो गई हैं….? फिर एक को दौड़ता देखकर दूसरा भी गलत दिशा में भागना शुरू हो जाता हैं। लेकिन अब देश के प्रत्येक नागरिक को थोड़ा सा “समझदार” बनना होगा… गलतफहमियों से बाहर निकलना भी बहुत ही जरूरी हैं।

संविधान के चार स्टेप कितने % तक पूरे हुए है? अगर आप क्लियर रिपोर्ट प्राप्त करना चाहते है तो आज की जी.डी.पी. रेट, आम पब्लिक की ग्रोथ रेट और 1955 की ग्रोथ रेट से कमपेरीजन कर सकते हैं। लेकिन सही रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए देश के आम पब्लिक की ग्रोथ रेट चेक करनी होगी। अगर कुछ बुद्धिजीवियों की कंपनियों की ग्रोथ रेट को मैच किया तो फिर शायद “वन वे ट्रैफिक” ही बना रहेगा।

संविधान स्टेप 05 | समृद्धि

देश का प्रत्येक परिवार कब तक समृद्ध और खुशहाल बनेगा?

यह स्टेप हमारी रिपोर्ट के अनुसार अभी तक कितना पूरा हुआ है? पूरा नहीं होने की मुख्य वजह और मुख्य कारणों को अगली पोस्ट में विस्तार से पढ़ेंगे। वैसे तो सभी इंसानों के पास यह रिपोर्ट होगी। क्योंकि मेमोरी में सभी के इन्फॉर्मेशन स्टोर हैं। सिर्फ समझना ही बाकी हैं। अगर किसी के पास सही रिपोर्ट उपलब्ध है तो फिर हमारे कमेंट में मर्यादित भाषा में यह जानकारी दे सकते है और पेज से जुड़े लोगों की समझ विकसित करने में आपका एक कमेंट हेल्पफुल बन सकता हैं।

प्रश्न 02 | क्या भारत पहले से ही अशिक्षित देश था ..?

हमारा भारत शुरुआत से शिक्षित था… पूरे अखंड भारत में सिर्फ एक ही भाषा चलती थी। लेकिन अन्यों देशों के लोग जब भारत के लोगों के साथ अन्याय करते थे तो फिर हमारे प्राचीन विशेषज्ञों ने अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग भाषा का निर्माण किया था। यानी प्रत्येक राज्यों के लोगों को अलग-अलग भाषा में बात करने का कानून बना हुआ था। शायद देश की सुरक्षा की दृष्टि से यह फ़ैसला लिया गया होगा। यानी दूसरे देशों के लोग भारत की भाषा सीखकर हमारे देश की माँ बहनों की फीलिंग के साथ खिलवाड़ करते थे और देश की खुशहाली को ख़त्म करने का अपराध करते थे.. इसलिए हमारे महापुरुषों ने बहुत गहराई से समझकर हज़ारों साल पहले यह निर्णय लिया था कि प्रत्येक राज्य की भाषा अलग-अलग होनी चाहिए। ताकि हमारे देश को कोई तोड़ नहीं सके।

फिर ऐसा भी समय आया कि देश में अलग-अलग भाषा बोलने की वजह से नेगेटिव लोगों ने भारत को अशिक्षित बोलकर फिर से आम पब्लिक को गुमराह (कन्फुज) कर दिया था। फिर देश के ही कुछ गद्दारों ने व बुद्धिजीवियों ने भी नेगेटिव विचारों के लोगों का सपोर्ट किया था और आम पब्लिक को गुमराह करने का महान कार्य करते ही रहे।

दूसरे देशों के लोग भारत की माँ बहनों को शब्दों में ट्रैप करते हुए अमानवीय व्यवहार करते थे। इसलिए भारत में अलग-अलग भाषाओं का निर्माण किया था। ताकि शब्दों के बैकग्राउंड की फीलिंग कोई कैच नहीं कर सके। भाषा पर भी कई तरह के कोड-वर्ड होते थे। भाषाओं की पूरी जानकारी नालंदा यूनिवर्सिटी में युवाओं को दी जाती थी। शब्दों में फीलिंग कैसे add होती है? यह जानकारी भी आम विद्यार्थी को दी जाती थी। ऐसा हमारे टीम के एक सदस्य के डिवाइस में कैच हुआ हैं।

देश के बाहर के दुश्मन के लिए अलग-अलग भाषा के कोड के द्वारा इस्तेमाल होता था ताकि फिर देश के साथ कोई फ्रॉड नहीं करें। लेकिन कुछ बुद्धिजीवियों की वजह से नालंदा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी आज विश्व इतिहास में टूटी हुई दीवारों के रूप में खड़ी हैं।

भारत की पाँच मुख्य यूनिवर्सिटी के बारे में विस्तार से जानकारी अगली पोस्ट में लिखने की कोशिश करेंगे। लेकिन हमारे सभी महापुरुषों और महान नारियों ने संविधान लिखकर दिया हैं। उसका हम क्यों कर्ज भूले? उनके प्राणों का हम कैसा कर्ज उतारते है? यह भी देश के प्रत्येक नागरिक का मुख्य कर्तव्य हैं। हम उनके “महान कर्ज” को कब उतार पाएंगे… यह भी निर्णय देश के प्रत्येक नागरिक को ही लेना होगा… हमारे महापुरुषों ने फाँसी को चुमते हुए जो सपने देखे थे… उसका कर्ज उतारने के लिए खुद की सोच को पॉजिटिव बनानी होगी…खुद की माँ से वादा करना होगा… घर से बाहर निकलते समय “धरती माँ” से वादा करना होगा.. फिर successful युवा बनकर वापस घर आएंगे….तभी हमारे माँ पापा की आँखों में हरियाली… आएगी….देश के प्रत्येक घर में ख़ुशहाली आएगी….देश की प्रत्येक माँ की दुआएँ भारत माता को ख़ुशहाल बनाएगी और सभी महापुरुषों के कर्ज को प्रत्येक देशवासी मिलकर थोड़ा बहुत उतार पाएंगे।

अब हमें फाँसी तक भेजने की किसी के अन्दर हिम्मत भी नहीं हैं… उस समय तो कुछ गद्दारों की वजह से तीन महापुरुषों को फाँसी को चुमना पड़ा था… शायद तीन महापुरुषों ने घर से निकलते वक़्त माँ से वापस आने का वादा किया होगा… माँ ने इन्तज़ार भी किया होगा… लेकिन जैसा एक माँ आखिरी श्वास तक बेटे को देखना चाहती थी… वैसा देख नहीं पाई… थी… उनकी आँखे सालों तक इंतज़ार करती ही रही….बाकी के तीनों प्रश्नों का उत्तर लिखने की ताकत अभी तो हाथों की अंगुलियों में नहीं हैं…. लेकिन अगली सुबह में कोशिश ज़रूर करेंगे। अभी तो सिर्फ महापुरुषों की “माँ” कीं यादों में हृदय को पावन करेंगे…. नए भारत के सपने देखते-देखते.. आँखों को पावन करेंगे…हमारे पवित्र संविधान की फीलिंग मेमोरी में स्टोर करेंगे और मेमोरी से नेगेटिव डाटा रिमूव करेंगे…

प्रश्न 03 | पुराने समय में राजाओं पर विपरीत परिस्थितियां क्यों आती थी?

राजाओं के कार्यकाल में राज्य की किसी भी “माँ बेटी” के हृदय को ठेस पहुँचती थी तो फिर राज्य में विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होती थी। माँ बेटी के हृदय को ठेस पहुँचाने वाले अपराधी को मृत्युदंड दिया जाता था। लेकिन अपराधी के “माँ पापा” और आम पब्लिक की सहमति से राजा ऐसा निर्णय लेता था। फिर आम पब्लिक की नज़रों में अपराधी को मृत्युदंड दिया जाता था। ताकि भविष्य में कोई ऐसा अपराध करने के बारे में सोच भी नहीं सके….

किसी निर्दोष इंसान और पशुओं के हृदय की पीड़ा भी राज्य में विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न कर देती थी। जब राज्य पर विकट परिस्थितियां आती थी तो राजा के सिपाही गांव-गांव जाकर यह रिसर्च करते थे कि आपके गांव में किसी की माँ बेटी के हृदय को पीड़ा तो नहीं पहुँची हैं…? किसी निर्दोष का हृदय हर्ट तो नहीं हुआ हैं….? फिर निर्दोष को न्याय मिलने पर विपरीत परिस्थितियां और महामारी से राज्य के सभी लोग बाहर निकलते थे।

भारतीय पाँच प्राचीन यूनिवर्सिटी में नीतिशास्त्र के सब्जेक्ट में यह भी पढ़ाया जाता था कि अगर राजा ने कोई ग़लत फ़ैसला ले लिया है तो फिर आम पब्लिक के आगे झुक-कर माफ़ी माँगने का कानून बना हुआ था। ताकि भविष्य में कोई दूसरे राज्य का राजा ऐसा गलत निर्णय भूलकर भी नहीं ले पाए। लेकिन फिर समय की धारा में परिस्थितियां बदलती गई। यानी गलत निर्णय लेने वाले राजा को ही कुछ बुद्धिजीवी लोग पॉलिटिकल थ्योरियों के द्वारा “हीरो, रोल मॉडल” बना लेते थे।

प्रश्न 04 | विपरीत परिस्थितियों में राजा कैसे निर्णय लेते थे ..?

यह महत्वपूर्ण जानकारी हम सम्राट अशोक के टाइम पीरियड की पढ़ रहे हैं। उस समय राजा विपरीत परिस्थितियों में देश की आम पब्लिक से राय लेते थे…. जो सही निर्णय देता था… उस सामान्य नागरिक को राजा सिर्फ “तीन दिन” के लिए राजा की उपाधि देते थे और सम्मान के साथ राजतिलक होता था..फिर नए राजा के द्वारा देश हित में तीन दिन तक सही फैसले लिए जाते थे। फिर तीन दिन के बाद कानून और संविधान के अनुसार पुराने राजा का राजतिलक वापस होता था…यह था हमारे राजाओं का त्याग और गरिमा थी। फिर तीन दिन के बाद उस साधारण इंसान को विपक्ष में बिठाया जाता था और राज्य के विकास की पूरी जानकारी उसको दी जाती थी। उसी को आज की भाषा में विपक्ष पार्टी कहते हैं। लेकिन आज समय बहुत ही अपडेट हो गया है, विपक्ष की पार्टी को पाँच साल तक देश के डेवलपमेंट की रिपोर्ट ही नहीं मिलती हैं। विपक्ष थोड़ा बहुत आंकड़ों से अनुमान लगाता है तो दूसरी पार्टी नई पॉलिटिकल थ्योरीयों से गुमराह कर देती हैं।

आज कई विपक्ष के बुद्धिजीवियों ने दूसरी पार्टियों के सदस्यों की टांग खींचने को राजनीतिक नाम दे दिया हैं। बाकी राजनीतिक शब्द में त्याग, समर्पण, देश प्रेम और नीतिशास्त्र की थ्योरीयां add होती हैं। जैसा आज तमाशा कुछ बुद्धिजीवी मिलकर करते है वैसा तमाशा करने का अधिकार भी उस समय किसी के पास नहीं था। किसी के अन्दर यह तमाशा करने की और देखने की हिम्मत भी नहीं थी। लेकिन आज तो कई समझदार इंसान की ऐसी मानसिकता डेवलप हो गई है कि तमाशा करना और देखना मुख्य कर्तव्य बनता जा रहा हैं।

काश.....सभी बुद्धिजीवियों की आँख खुल जाए और संविधान को फाइनल स्टेप तक पहुँचाने के लिए प्रत्येक नागरिक राष्ट्रहित की फीलिंग से सपोर्ट करें तो फिर देश का भविष्य पॉजिटिव दिशा में मुड़ सकता हैं।

जय हिन्द
🇮🇳🇮🇳

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इस पेज की अगली पोस्ट में हम संविधान की पाँच थ्योरियों के द्वारा परिवार के सदस्यों की आपसी मनमुटाव कैसे दूर करें और संविधान की पाँच थ्योरीयां समझ में आ जाए तो जीवन में सफल कैसे हुआ जाता है? यह महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।


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